गुरुवार, 26 जुलाई 2018

चंद्रग्रहण के दौरान सावधानियां

🌕🌖चन्द्र ग्रहण🌘🌑
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कल 27-28 जुलाई 2018 आषाढ़ पूर्णिमा ( गुरु पूर्णिमा ) के दिन खग्रास यानी पूर्ण चंद्रग्रहण होने जा रहा है। यह ग्रहण कई मायनों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पूर्ण चंद्रग्रहण सदी का सबसे लंबा और बड़ा चंद्रग्रहण है। इसकी पूर्ण अवधि 3 घंटा 55 मिनट होगी। यह ग्रहण भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों में देखा जा सकेगा। इस चंद्रग्रहण को ब्लड मून कहा जा रहा है क्योंकि ग्रहण के दौरान एक अवस्था में पहुंचकर चंद्रमा का रंग रक्त की तरह लाल दिखाई देने लगेगा।  यह एक खगोलीय घटना है जिसमें चंद्रमा धरती के अत्यंत करीब दिखाई देता है।

 खग्रास चंद्रग्रहण...
यह खग्रास चंद्रग्रहण उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र तथा मकर राशि में लग रहा है। इसलिए जिन लोगों का जन्म उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र और जन्म राशि मकर या लग्न मकर है उनके लिए ग्रहण अशुभ रहेगा। मेष, सिंह, वृश्चिक व मीन राशि वालों के लिए यह ग्रहण श्रेष्ठ, वृषभ, कर्क, कन्या और धनु राशि के लिए ग्रहण मध्यम फलदायी तथा मिथुन, तुला, मकर व कुंभ राशि वालों के लिए अशुभ रहेगा।

 ग्रहण कब से कब तक....
ग्रहण 27 जुलाई की मध्यरात्रि से प्रारंभ होकर 28 जुलाई को तड़के समाप्त होगा।
 स्पर्श : रात्रि 11 बजकर 54 मिनट
 सम्मिलन : रात्रि 1 बजे
 मध्य : रात्रि 1 बजकर 52 मिनट
 उन्मीलन : रात्रि 2 बजकर 44 मिनट
 मोक्ष : रात्रि 3 बजकर 49 मिनट
 ग्रहण का कुल पर्व काल : 3 घंटा 55 मिनट

 सूतक कब प्रारंभ होगा...
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस खग्रास चंद्रग्रहण का सूतक आषाढ़ पूर्णिमा शुक्रवार दिनांक 27 जुलाई को ग्रहण प्रारंभ होने के तीन प्रहर यानी 9 घंटे पहले लग जाएगा। यानी 27 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट पर लग जाएगा। सूतक लगने के बाद कुछ भी खाना-पीना वर्जित रहता है। रोगी, वृद्ध, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां सूतक के दौरान खाना-पीना कर सकती हैं। सूतक प्रारंभ होने से पहले पके हुए भोजन, पीने के पानी, दूध, दही आदि में तुलसी पत्र या कुशा डाल दें। इससे सूतक का प्रभाव इन चीजों पर नहीं होता।

  ग्रहण काल में क्या सावधानियां रखें...
ग्रहणकाल में प्रकृति में कई तरह की अशुद्ध और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें ग्रहण काल के दौरान नहीं किया जाता है।

ग्रहणकाल में सोना नहीं चाहिए। वृद्ध, रोगी, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां जरूरत के अनुसार सो सकती हैं। वैसे यह ग्रहण मध्यरात्रि से लेकर तड़के के बीच होगा इसलिए धरती के अधिकांश देशों के लोग निद्रा में होते हैं।

ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।

ग्रहणकाल में यात्रा नहीं करना चाहिए, दुर्घटनाएं होने की आशंका रहती है।

ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।

ग्रहण को खुली आंखों से न देखें।

ग्रहणकाल के दौरान महामृत्युंजय मत्र का जाप करते रहना चाहिए।

 गर्भवती स्त्रियां क्या करें...
ग्रहण का सबसे अधिक असर गर्भवती स्त्रियों पर होता है। ग्रहण काल के दौरान गर्भवती स्त्रियां घर से बाहर न निकलें। बाहर निकलना जरूरी हो तो गर्भ पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर नहीं होगा। ग्रहण काल के दौरान यदि खाना जरूरी हो तो सिर्फ खानपान की उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करें जिनमें सूतक लगने से पहले तुलसी पत्र या कुशा डला हो। गर्भवती स्त्रियां ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ता है। सुई से सिलाई भी न करें। माना जाता है इससे बच्चे के कोई अंग जुड़ सकते हैं। ग्रहण काल के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करती रहें।

💐 जय श्री हरि💐

बुधवार, 25 जुलाई 2018

धरती कर ये लोग मृतक समान हैं

*धरती पर मृतक के समान हैं ये चौदह प्रकार के लोग*
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गोस्वामी तुलसीदास कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में बालि पुत्र अंगद रावण की सभा में रावण को सीख देते हुए बताते हैं कि कौन-से ऐसे 14 दुर्गुण है जिसके होने से मनुष्य मृतक के समान माना जाता है। हो सकता है कि आप भी इन 14 प्रकार के लोगों में से कोई एक हों।

आओ जानते हैं कि इस चौपाई में ऐसे कौन-से 14 दुर्गुण बताए गए हैं जिसमें से एक भी व्यक्ति के भीतर होने पर वह मृतक के समान माना जाता है।

*कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा।*
*अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥*
*सदा रोगबस संतत क्रोधी।*
*बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥*
*तनु पोषक निंदक अघ खानी*
*जीवत सव सम चौदह प्रानी॥*
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*पहला मृतक व्यक्ति वाममार्गी ( #कौल_याने_तांत्रिक)👉* इसे उस दौर में कौल कहा जाता था। कौल मार्ग अर्थात तांत्रिकों का मार्ग। कापालिक संप्रदाय के लोग भी इससे जुड़े हैं। जादू, तंत्र, मंत्र और टोने टोटको में विश्वास करने वाले भी कौल हो सकते हैं। हालांकि इसके अर्थ को और भी विस्तृत किया जा सकता है। आजकल वामपंथी विचारधारा के लोग जो कर रहे हैं वह कौल ही है।

कौल या वाम का अर्थ यह कि जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोज ले और जो नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार का घोर विरोधी हो, वह वाममार्गी है। ऐसा काम करने वाले लोग समाज को दूषित ही करते हैं। यह लोग उस मुर्दे के समान है जिसके संपर्क में आने पर कोई भी मुर्दा बन जाता है। वामपंथ देश, समाज और धर्म के लिए घातक है।
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*दूसरा मृतक व्यक्ति कामुक (#कामी) 👉* चौपाई में कामबश लिखा है। काम का अर्थ भोग और संभोग दोनों ही होता है। बहुत से लोगों के लिए उनकी जिंदगी में सेक्स ही महत्वपूर्ण होता है। कहते हैं अत्यंत भोगी, विलासी और कामवासना में ही लिप्त रहने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे मौत के मुंह में स्वत: ही चला जाता है।

ऐसे व्यक्ति वक्त के पहले ही वह बूढ़ा हो जाता है। उसे हर तरह के रोग या शोक घेर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति के मन की इच्छाएं कभी पूर्ण नहीं होती। वह कुतर्की भी होता है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है।
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*तीसरा मृतक व्यक्ति कृपण (#कंजूस)👉* चौपाई में कृपिन शब्द का उपयोग किया गया है जिसे हिन्दी में कृपण कहते हैं। कृपण को प्रचलित शब्द में कंजूस कह सकते हैं, लेकिन कृपण तो महाकंजूस होता है। चमड़ी चली जाए लेकिन दमड़ी नहीं देगा वाली कहावत को वह चरितार्थ करता है। ऐसे व्यक्ति द्वारा अर्जित धन का उपयोग न तो वह कर पाता है और न ही उसका परिवार।

अति कंजूस व्यक्ति को मृतक समान माना गया है। ऐसा व्यक्ति धर्म-कर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य के लिए दान देने या उसमें हिस्सा लेने से बचता है।
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*चौथे तरह का मृतक व्यक्ति है विमूढ़ (#मतिमंद)👉* चौपाई में विमूढ़ा लिखा है। विमूढ़ को अंग्रेजी में कन्फ्यूज़्ड व्यक्ति कहते हैं। इसे भ्रमित बुद्धि का व्यक्ति भी कह सकते हैं। इसे गफलत में जीने वाला और अपने विचारों पर दृढ़ नहीं रहने वाला व्यक्ति भी कह सकते हैं।

कुल मिलकार ऐसा व्यक्ति मूढ़ और मूर्ख होता है। ऐसा व्यक्ति खुद कभी निर्णय नहीं लेता। उसकी जिंदगी के हर फैसले कोई दूसरा ही करता है। अब सोचीए हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित रहने वाले व्यक्ति को मृतक समान ही तो मानेंगे। ऐसे ही लोग ईश्वर को छोड़कर कथित बाबाओं, ज्योतिषियों और चमत्कार दिखाने वाले ढोंगी लोगों के यहां शरण लिए हुए होते हैं।
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*पांचवां मृतक व्यक्ति #अति_दरिद्री 👉* इस दरिद्र शब्द का अर्थ गरीब या निर्धन नहीं होता है। यदि आपके घर में कचरा फैला, सामान अस्त-व्यस्त बिखरा हुआ है तो लोग कहते हैं कि क्या दरिद्रता फैला रखी है। दरिद्रता का संबंध गंदगी से भी हैं। स्वच्छता से दरिद्रता का नाश होता है। आप कितने ही गरीब हों, लेकिन स्वच्‍छ रहेंगे तो धनवान बनने के रास्ते खुलते जाएंगे।

दरिद्रता एक रोग के समान है। महात्मा गांधी ने दरिद्रों को नारायण कहकर सम्मानित किया और इस रोग को और बढ़ावा दिया। यदि हम जिस पर ध्यान देंगे, वही चीज ज्यादा विकसित होगी। दरिद्रा का सम्मान करने से दरिद्रता पोषित होती है।

गरीबों की गरीबी दूर करने के हर उपाय उस व्यक्ति, उसके समाज और उसकी सरकार को करना चाहिए। यदि समाज में कोई व्यक्ति दीनहीन, दुखी या दरिद्र है तो उसकी जिम्मेदारी सभी की बनती है। गरीबों को अमीर बनाने का लक्ष्य होना चाहिए और यह तभी होगा जबकि हम दरिद्रा से घृणा करने लगेंगे। दरिद्र से नहीं दरिद्रता से घृणा करना जरूरी है। बहुत से शायर या साहित्यकार या भक्त लोग फकीरी जीवन को सम्मान देते हैं। यही कारण रहा की हमारा देश अमीर होने के बावजूद दीनहीन बन गया।

दरिद्रता कई प्रकार की होती है, कोई धन से, कोई आत्मविश्‍वास से, कोई साहस से, कोई सम्मान से और कोई ज्ञान से दरिद्र होता है, लेकिन जिस व्यक्ति में यह सभी दुर्गुण विद्यमान है वह अति दरिद्र व्यक्ति माना गया है। ऐसा व्यक्ति मृतक समान है। ऐसे व्यक्ति की सहायता करने वाला पुण्य प्राप्त करता है।
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*छठा मृतक व्यक्ति अजसि(#अपयशी)👉* ब्रज मंडल में यश को  जस कहा जाता है यह अजसि शब्द इसी से बना है। इस अपयश कहते हैं। अर्थात जिसके पास यश नहीं अपयश है वही। इसे उर्दू में बदनामी कह सकते हैं।

समाज में ऐसे कई व्यक्ति हैं जिनका घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर और राष्ट्र आदि किसी भी क्षेत्र में कोई सम्मान नहीं होता है या जिसने कभी सम्मान अर्जित ही नहीं किया, लेकिन यह बात अधूरी है। दरअसल ऐसे व्यक्ति जो विख्यात तो नहीं लेकिन कुख्यात जरूर है। किसी भी कारणवश वह बदनाम हो गया है।

बुराई से भी बुरी होती है बदनामी। समझदार व्यक्ति हर प्रकार का नुकसान उठाने के लिए तैयार रहता है बदनामी से बचने के लिए। बदनामी से सबकुछ नष्ट हो जाता है। बदनाम व्यक्ति भी मृतक व्यक्ति के समान होता है।
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*सातवां मृतक व्यक्ति #अति_बूढ़ा👉* अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। यदि आपका शरीर और बुद्धि दोनों ने ही काम करना बंद कर दिया है और फिर भी आप जिंदा हैं तो ऐसे जीने का क्या मतलब।

ऐसे अति बूढ़े व्यक्ति के बारे में उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं। उनमें से कुछ कहते हैं कि हम चाहते हैं कि उनको कष्टों से छुटकारा मिल जाए इसीलिए हम ऐसी कामना करते हैं। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार वे खुद ही इस तरह के बूढे व्यक्ति से छुटकारा पाना चाहते हैं जिसकी सेवा में वे दिनरात लगे हुए हैं। हो सकता है कि घर के कुछ सदस्य ऐसा नहीं सोचते हों। लेकिन क्या यह जिंदगी सही है?
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*आठवां मृतक व्यक्ति #सदा_रोगी👉* घर में कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो किस न किसी रोग से हमेशा ग्रस्त ही रहता हो। गोलियों का ही सहारा हो। निरंतर रोगग्रस्त रहने वाले व्यक्ति को भी मृतक समान ही माना गया है।
ऐसे व्यक्ति का मन हमेशा विचलित रहता है।

नकारात्मकता उस पर हावी रहती है। हमेशा नकारात्मक सोचते रहने से भी उसके स्वस्थ होने में रुकावट पैदा हो जाती है। ऐसा व्यक्ति खुद ही मरने की सोचने लगता है जो कि गलत है।

इस तरह की सोच से वह जीवित होते हुए भी स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है। ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने आहर में बदलाव करें, नियमित योग करें और नियमित ध्यान करें, तो निश्‍चि ही वह एक वर्ष में पूर्ण स्वस्थ हो सकता है।
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*नौवां मृतक व्यक्ति संतत #क्रोधी👉* निरंतर क्रोध में रहने वाले व्यक्ति को तुलसीदासजी ने संतत क्रोधी कहा है। हर छोटी-बड़ी बात पर जिसे क्रोध आ जाए ऐसा व्यक्ति भी मृतक के समान ही है।

क्रोधी व्यक्ति के अपने मन और बुद्धि, दोनों ही पर नियंत्रण नहीं रहता है। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है। ऐसा व्यक्ति न खुद का भला कर पाता है और न परिवार का। उसका परिवार उससे हमेश त्रस्त ही रहता है। सभी उससे दूर रहना पसंद करते हैं।
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*दसवां मृतक व्यक्ति विष्णु विमुख(#आस्तिक 👉* इसका अर्थ है भगवान विष्णु के प्रति प्रीति नहीं रखने वाला, अस्नेही या विरोधी। इसे ईश्‍वर विरोधी भी कहा गया है। ऐसे परमात्मा विरोधी व्यक्ति मृतक के समान है।

ऐसे अज्ञानी लोग मानते हैं कि कोई परमतत्व है ही नहीं। जब परमतत्व है ही नहीं तो यह संसार स्वयं ही चलायमान है। हम ही हमारे भाग्य के निर्माता है। हम ही संचार चला रहे हैं। हम जो करते हैं, वही होता है। अविद्या से ग्रस्त ऐसे ईश्‍वर विरोधी लोग मृतक के समान है जो बगैर किसी आधार और तर्क के ईश्‍वर को नहीं मानते हैं। उन्होंने ईश्‍वर के नहीं होने के कई कुतर्क एकत्रित कर लिए हैं।
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*ग्यारहवां मृतक व्यक्ति श्रु‍ति और #संत_विरोधी👉* वेदों को श्रुति कहा गया है और स्मृतियां, रामायण, पुराण आदि स्मृति कहा गया है। श्रुति ही हिन्दु धर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ है। यहां तुलसीदासजी कह रहे हैं कि श्रुति विरोधी अर्थात वेद विरोधी इस धरती पर मृतक के समान है।

वेद का अर्थ होता है ज्ञान। इस वेद शब्द से ही वेदना शब्द बना है जिसे ज्ञान की पीड़ा माना जाता है। वेद का अर्थ जांचा परखा और जाना गया ज्ञान। वेद का अर्थ देखा और प्रत्यक्ष सुना गया ज्ञान। परमात्मा ने चार ऋषियों को यह ज्ञान सुनाया। ये चार ऋषि हैं:-अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।

संत विरोधी :बहुत से संत आजकल स्वयंभू संत है। हिन्दू संत धारा में संत तो 13 अखाड़े और दसनामी संप्रदाय में दीक्षित होकर ही संत बनते हैं। ऐसे में संत की परिभाषा को समझना जरूरी है। संत का विरोधी भी इस धरती पर मृतक समान है।

स्वयंभू भी संत हो सकता है और दीक्षित व्यक्ति भी। जिसने वैदिक यम-नियमों का पालन किया, ध्यान, क्रिया और प्रणायाम का तप किया- वही संत होता है। इसके अलावा ज्ञान और भक्ति में डूबे हुए लोग भी संत होते हैं।
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*बारहवां मृतक व्यक्ति तनु पोषक( #स्वार्थी)👉* तनु पोषक:तनु पोषक का अर्थ खुद के तन और मन को ही पोषित करने वाला। खुद के स्वार्थ और आत्म संतुष्टि के लिए ही जिने वाला व्यक्ति। ऐसे व्यक्ति के मन में किसी भी अन्य के लिए कोई भाव या संवेदना नहीं होती। ऐसा व्यक्ति भी मृतक के समान ही होता है।

आपने देखे होंगे ऐसे बहुत से लोग जो खाने-पीने में, पहने-ओढ़ने में, घुमने-फिरने में हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले मुझे मिलें, बाकि किसी अन्य को मिले न मिले। ऐसे लोगों के मन में अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए कोई भावना नहीं होती है। यह सभी के लिए अनुपयोगी और मृतक समान हैं। ये खुद की कमाई को खुद भी ही खर्च तो करेंगे ही दूसरे की कामाई का भी खाने की आस रखेंगे।
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*तेरहवां मृतक व्यक्ति है #निंदक👉*  हालांकि कबीर दासजी ने कहा है कि निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।। लेकिन तुलसीदासजी यहां जिस निंदक व्यक्ति की बात कर रहे हैं वह जरा अलग किस्म का है।

कई ऐसे लोग होते हैं जिनका काम ही निंदा करना होता है। उन्हें इससे मतलब नहीं रहता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। उन्हें तो दूसरों में कमियां ही नजर आती है। कटु आलोचना करना ही उनका धर्म होता है। ऐसे लोग किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकते हैं। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी न किसी की बुराई ही करे। ऐसे लोगों से बचकर ही रहें।
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*चौदहवां मृतक व्यक्ति (#अघ_खानी) अधर्म से धन एकत्रित करने वाला👉*
 समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो पाककर्म के द्वारा धन या संपत्ति अर्जित करके अपना और परिवार का पालन-पोषण करते हैं। ऐसे व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। पाप की कमाई पाप में ही जाती है।
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🌸🍂जय राम जी की🍂🌸

सोमवार, 23 जुलाई 2018

भगवान शिव ने मातापार्वती को बताए थे जीवन के ये पांच रहस्य, आप भी जानिए!!!!!

भगवान शिव ने मातापार्वती को बताए थे जीवन के ये पांच रहस्य, आप भी जानिए!!!!!

भगवान शिव ने देवी पार्वती को समय-समय पर कई ज्ञान की बातें बताई हैं। जिनमें मनुष्य के सामाजिक जीवन से लेकर पारिवारिक और वैवाहिक जीवन की बातें शामिल हैं। भगवान शिव ने देवी पार्वती को 5 ऐसी बातें बताई थीं जो हर मनुष्य के लिए उपयोगी हैं, जिन्हें जानकर उनका पालन हर किसी को करना ही चाहिए-

1. क्या है सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ा पाप
देवी पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा धर्म और अधर्म मानी जाने वाली बात के बारे में बताया है। भगवान शंकर कहते है-

श्लोक- नास्ति सत्यात् परो नानृतात् पातकं परम्।।

अर्थात- मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या उसका साथ देना।

इसलिए हर किसी को अपने मन, अपनी बातें और अपने कामों से हमेशा उन्हीं को शामिल करना चाहिए, जिनमें सच्चाई हो, क्योंकि इससे बड़ा कोई धर्म है ही नहीं। असत्य कहना या किसी भी तरह से झूठ का साथ देना मनुष्य की बर्बादी का कारण बन सकता है।

2. काम करने के साथ इस एक और बात का रखें ध्यान,,,,,
श्लोक- आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनुस्तु शुभाशुभे।

अर्थात- मनुष्य को अपने हर काम का साक्षी यानी गवाह खुद ही बनना चाहिए, चाहे फिर वह अच्छा काम करे या बुरा। उसे कभी भी ये नहीं सोचना चाहिए कि उसके कर्मों को कोई नहीं देख रहा है।

कई लोगों के मन में गलत काम करते समय यही भाव मन में होता है कि उन्हें कोई नहीं देख रहा और इसी वजह से वे बिना किसी भी डर के पाप कर्म करते जाते हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही होती है। मनुष्य अपने सभी कर्मों का साक्षी खुद ही होता है। अगर मनुष्य हमेशा यह एक भाव मन में रखेगा तो वह कोई भी पाप कर्म करने से खुद ही खुद को रोक लेगा।

3. कभी न करें ये तीन काम करने की इच्छा,,,,,

श्लोक-मनसा कर्मणा वाचा न च काड्क्षेत पातकम्।

अर्थात- आगे भगवान शिव कहते है कि- किसी भी मनुष्य को मन, वाणी और कर्मों से पाप करने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मनुष्य जैसा काम करता है, उसे वैसा फल भोगना ही पड़ता है।

यानि मनुष्य को अपने मन में ऐसी कोई बात नहीं आने देना चाहिए, जो धर्म-ग्रंथों के अनुसार पाप मानी जाए। न अपने मुंह से कोई ऐसी बात निकालनी चाहिए और न ही ऐसा कोई काम करना चाहिए, जिससे दूसरों को कोई परेशानी या दुख पहुंचे। पाप कर्म करने से मनुष्य को न सिर्फ जीवित होते हुए इसके परिणाम भोगना पड़ते हैं बल्कि मारने के बाद नरक में भी यातनाएं झेलना पड़ती हैं।

4. सफल होने के लिए ध्यान रखें ये एक बात
संसार में हर मनुष्य को किसी न किसी मनुष्य, वस्तु या परिस्थित से आसक्ति यानि लगाव होता ही है। लगाव और मोह का ऐसा जाल होता है, जिससे छूट पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इससे छुटकारा पाए बिना मनुष्य की सफलता मुमकिन नहीं होती, इसलिए भगवान शिव ने इससे बचने का एक उपाय बताया है।

श्लोक-दोषदर्शी भवेत्तत्र यत्र स्नेहः प्रवर्तते। अनिष्टेनान्वितं पश्चेद् यथा क्षिप्रं विरज्यते।।

अर्थात- भगवान शिव कहते हैं कि- मनुष्य को जिस भी व्यक्ति या परिस्थित से लगाव हो रहा हो, जो कि उसकी सफलता में रुकावट बन रही हो, मनुष्य को उसमें दोष ढूंढ़ना शुरू कर देना चाहिए। सोचना चाहिए कि यह कुछ पल का लगाव हमारी सफलता का बाधक बन रहा है। ऐसा करने से धीरे-धीरे मनुष्य लगाव और मोह के जाल से छूट जाएगा और अपने सभी कामों में सफलता पाने लगेगा।

5. यह एक बात समझ लेंगे तो नहीं करना पड़ेगा दुखों का सामना,,,,,
श्लोक-नास्ति तृष्णासमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्।
सर्वान् कामान् परित्यज्य ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

अर्थात- आगे भगवान शिव मनुष्यो को एक चेतावनी देते हुए कहते हैं कि- मनुष्य की तृष्णा यानि इच्छाओं से बड़ा कोई दुःख नहीं होता और इन्हें छोड़ देने से बड़ा कोई सुख नहीं है।

 मनुष्य का अपने मन पर वश नहीं होता। हर किसी के मन में कई अनावश्यक इच्छाएं होती हैं और यही इच्छाएं मनुष्य के दुःखों का कारण बनती हैं। जरुरी है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में अंतर समझे और फिर अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करके शांत मन से जीवन बिताएं।.   काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता ।
निज कृत करम भोग सबु भ्राताll ।।

शनिवार, 21 जुलाई 2018

देवशयनी एकादशी

सोमवार दिनांक 23/07/2018, आषाढ़ शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी -
                          "देवशयनी एकादशी"
                                 माहात्म्य
           आषाढ़ शुक्ल एकादशी को  देवशयनी एकादशी के नाम से जानते हैं। इसे पद्मा एकादशी, पद्मनाभा एकादशी भी कहा जाता है। गृहस्थ आश्रम में रहने वालों के लिए चातुर्मास्य नियम इसी दिन से प्रारम्भ हो जाते हैं। सन्यासियों का चातुर्मास्य गुरु पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है। देवशयनी एकादशी नाम से पता चलता है कि इस दिन से श्री हरि शयन करने चले जाते हैं। इस अवधि में श्री हरि पाताल के राजा बलि के यहाँ चार मास निवास करते हैं। भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी, देवउठनी एकादशी, जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, के दिन पाताल लोक से अपने लोक लौटते हैं। इसी दिन चातुर्मास्य नियम भी समाप्त हो जाते हैं।
          चातुर्मास्य शब्द सुनते ही उन सभी साधु-सन्तों का ध्यान आ जाता है, जो चार मास एक ही स्थान पर रहते हुए लोगों को धर्म सम्बन्धी ज्ञान उपलब्ध कराकर सत्य पर आधारित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। चातुर्मास्य आषाढ़ शुक्ल एकादशी (इसे देवशयनी या हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठावनी या देवोत्थान एकादशी) तक होता है। सनातन धर्म में चातुर्मास्य की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसका अनुकरण आज भी हमारे साधु-सन्त करते हैं।
          प्रसिद्ध धर्म ग्रंथों- महाभारत आदि में चातुर्मास की महिमा का विशेष गान किया गया है। चातुर्मास असल में सन्यासियों द्वारा समाज को मार्गदर्शन करने का समय है। आम आदमी इन चार महीनों में अगर केवल सत्य ही बोले तो भी उसे अपने अन्दर आध्यात्मिक प्रकाश नजर आएगा। नाम चर्चा और नित्य नाम स्मरण भी ऐसा फल प्रदान करते हैं।
          इन चार मासों में कोई भी मंगल कार्य- जैसे विवाह, नवीन गृहप्रवेश आदि नहीं किया जाता है। ऐसा क्यों ? तो इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-अर्चना करें। देखा जाए तो बदलते मौसम में जब शरीर में रोगों का मुकाबला करने की क्षमता यानी प्रतिरोधक शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है।
         पुराणों के अनुसार एकादशी का व्रत जो भी भक्त सच्चे मन से रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही समस्त पापों का नाश भी हो जाते हैं और मृत्यु के बाद स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस एकादशी की कथा पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान के जितना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत में भगवान विष्णु और पीपल की पूजा करने का शास्त्रों में विधान है।
                            पूजन विधि
          नारदपुराण के अनुसार, इस एकादशी के बाद भगवान विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं तो उनकी पूजा भी इस दिन खास होती है। इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत होकर भगवान विष्णु का ध्यान करें। भगवान के ध्यान के बाद उनके व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयार करें। पूजा घर में भगवान विष्णु की तस्वीर पर गंगाजल के छींटे दें और रोली-चावल से उनका तिलक करें और फूल चढ़ाएं। भगवान के सामने देसी घी का दीपक जलाना ना भूलें और जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हैं उससे मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करें और उनकी आरती भी उतारें।
          इसके बाद द्वादशी तिथि को स्नान करने के बाद भगवान को व्रत पूरा होने पर आराधना करें और ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें। ऐसा करने से आपका व्रत पूर्ण होता है। जो कोई भी व्रत नहीं करते हैं, उनके लिए भी शास्त्रों में बताया गया है कि वह इस दिन बैंगन, प्याज, चावल, बेसन से बनी चीजें, पान-सुपारी, लहसुन, मांस-मदिरा आदि चीजों से परहेज करें। व्रत रखने वाले दशमी से ही विष्णु भगवान का ध्यान करें और भोग विलास से खुद को दूर रखें।
सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धनधान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था।
                                   कथा
            सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धनधान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था।
           एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यन्त दु:खी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बन्द हो गए। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजन ! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है, क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन ! कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यन्त दु:खी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दु:खों को समझता हूँ। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अन्त में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचा। वहाँ राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया।
          मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन ! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यन्त दु:खी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूँ तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया ? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी सन्देह को निवृत्त कराने के लिए आया हूँ। कृपा करके मेरे इस सन्देह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन ! आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो।
        मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुँचा। अत: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है। इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं।
                           "जय श्रीहरि"

मंगलवार, 10 जुलाई 2018

अठारह पुराण उनके नाम और उनका संक्षिप्त परिचय

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पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं। उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं।

उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।

विशेष तथ्य यह है कि पुराणों में देवा-देवताओं, राजाओ, और ऋषि-मुनियों के साथ साथ जन साधारण की कथायें भी उल्लेख करी गयी हैं जिस से पौराणिक काल के सभी पहलूओं का चित्रण मिलता है।

महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा विष्णु तथा महेश्वर उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं। इन 18 पुराणों के अतिरिक्त 16 उप-पुराण भी हैं किन्तु विषय को सीमित रखने के लिये केवल मुख्य पुराणों का संक्षिप्त परिचय ही दिया गया है। मुख्य पुराणों का वर्णन इस प्रकार हैः-

1- ब्रह्म पुराण :-
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 ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

2- पद्म पुराण :-
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 पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह गॅंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है।

 भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

3- विष्णु पुराण :-
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विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था।

इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैः
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।

(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

4- शिव पुराण :-
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शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस में कैलास पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

5- भागवत पुराण :-
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भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, दूारिका नगरी के जलमग्न होने और यादव वँशियों के नाश तक का विवर्ण भी दिया गया है।

6- नारद पुराण :-
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नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध ऐवम कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है।

संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थि्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

7- मार्कण्डेय पुराण:-
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अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।

8- अग्नि पुराण:-
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अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

9- भविष्य पुराण:-
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भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है।

इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है।

ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है। यह पुराण भी भारतीय इतिहास का महत्वशाली स्त्रोत्र है जिस पर शोध कार्य करना चाहिये।

10- ब्रह्मवैवर्त पुराण:-
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ब्रह्मवैवर्त पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

11- लिंग पुराण:-
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लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

12- वराह पुराण:-
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वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।

13- स्कन्द पुराण:-
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सकन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। सकन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

14- वामन पुराण:-
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वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उप्लब्द्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

15- कुर्मा पुराण:-
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कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

16- मत्स्य पुराण:-
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मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है

17- गरुड़ पुराण:-
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गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है।

साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्यों कि इस ग्रंथ को किसी सम्वन्धी या परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है।

समस्त योरुप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी। अंग्रेज़ी साहित्य में जान बनियन की कृति दि पिलग्रिम्स प्रौग्रेस कदाचित इस ग्रंथ से परेरित लगती है जिस में एक एवेंजलिस्ट मानव को क्रिस्चियन बनने के लिये प्रोत्साहित करते दिखाया है ताकि वह नरक से बच सके।

18- ब्रह्माण्ड पुराण:-
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ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक प्रथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है।

 परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।

हिन्दू पौराणिक इतिहास की तरह अन्य देशों में भी महामानवों, दैत्यों, देवों, राजाओं तथा साधारण नागरिकों की कथायें प्रचिलित हैं।

 कुछ के नाम उच्चारण तथा भाषाओं की विभिन्नता के कारण बिगड़ भी चुके हैं जैसे कि हरिकुल ईश से हरकुलिस, कश्यप सागर से केस्पियन सी, तथा शम्भूसिहं से शिन बू सिन आदि बन गये। तक्षक के नाम से तक्षशिला और तक्षकखण्ड से ताशकन्द बन गये। यह विवरण अवश्य ही किसी ना किसी ऐतिहासिक घटना कई ओर संकेत करते हैं।

प्राचीन काल में इतिहास, आख्यान, संहिता तथा पुराण को ऐक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता था। इतिहास लिखने का कोई रिवाज नहीं था और राजाओ नें कल्पना शक्तियों से भी अपनी वंशावलियों को सूर्य और चन्द्र वंशों से जोडा है। इस कारण पौराणिक कथायें इतिहास, साहित्य तथा दंत कथाओं का मिश्रण हैं।

रामायण, महाभारत तथा पुराण हमारे प्राचीन इतिहास के बहुमूल्य स्त्रोत्र हैं जिन को केवल साहित्य समझ कर अछूता छोड़ दिया गया है। इतिहास की विक्षप्त श्रंखलाओं को पुनः जोड़ने के लिये हमें पुराणों तथा महाकाव्यों पर शोध करना होगा।
जय हो सनातन धर्म की //
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कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...