रविवार, 24 नवंबर 2019

किस देवता को कौन से फूल चढ़ाए?

किस देवता को कौन से फूल चढ़ाए??????


हिंदू धर्म में विभिन्न धार्मिक कर्म-कांडों में फूलों का विशेष महत्व है। देव पूजा विधियों में कई तरह के फूल-पत्तों को चढ़ाना बड़ी ही शुभ माना गया है। धार्मिक अनुष्ठान, पूजन, आरती आदि कार्य बिना पुष्प के अधूरे ही माने जाते हैं।

कुछ विशेष फूल देवताओं को चढ़ाना निषेध होता है। किंतु शास्त्रों में ऐसे भी फूल बताए गए हैं, जिनको चढ़ाने से हर देवशक्ति की कृपा मिलती है यह बहुत शुभ, देवताओं को विशेष प्रिय होते हैं और हर तरह का सुख-सौभाग्य बरसाते हैं। कौन से भगवान की पूजा किस फूल से करें, इसके बारे में यहां संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है। इन फूलों को चढ़ाने से आपकी हर मनोकामना शीघ्र ही पूरी हो जाती है।

हमारे जीवन में फूलों का काफी महत्व है। फूल ईश्वर की वह रचना है, जिसकी खुशबू से हमारे घर की नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। इसकी खुशबू मन को शांति देती है। वैसे तो भगवान भक्ति के भूखे हैं, लेकिन हमारे देश में भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनपर उनके प्रिय फूलों को चढ़ाने की मान्यता भी है।

कहा जाता है कि भगवान के पसंदीदा रंगों के आधार मानकर उनपर उन्हीं रंगों के फूल चढ़ाए जाते हैं। ध्यान रखें, भगवान की पूजा कभी भी सूखे फूलों से न करें। कमल का फूल को लेकर मान्यता यह है कि यह फूल दस से पंद्रह दिन तक भी बासी नहीं होता। चंपा की कली के अलावा किसी भी पुष्प की कली देवताओं को अर्पित नहीं की जानी चाहिए।

श्रीगणेश- आचार भूषण ग्रंथानुसार भगवान श्रीगणेश को तुलसीदल को छोड़कर सभी प्रकार के फूल चढ़ाए जा सकते हैं। पद्मपुराण आचाररत्न में भी लिखा है कि 'न तुलस्या गणाधिपम' अर्थात् तुलसी से गणेश जी की पूजा कभी न करें। गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। गणेश जी को दूर्वा बहुत ही प्रिय है । दूर्वा के ऊपरी हिस्से पर तीन या पांच पत्तियां हों तो बहुत ही उत्तम है। श्री गणेश जी को लाल फूल बहुत ही प्रिय है। गणेश जी की पूजा में उन्हें लाल गुलाब चढ़ाने से उनकी पूर्ण कृपा प्राप्त होती है ।

शंकरजी- भगवान शंकर को धतूरे के पुष्प, हरसिंगार, व नागकेसर के सफेद पुष्प, सूखे कमल गट्टे, कनेर, कुसुम, आक, कुश आदि के पुष्प चढ़ाने का विधान है। भगवान शंकर को धतूरे का फूल सबसे अधिक प्रिय है। इसके अलावा इनको बेलपत्र और शमी पत्र चढ़ाना बहुत ही शुभ माना जाता है। भगवान शिव जी को सेमल, कदम्ब, अनार, शिरीष , माधवी, केवड़ा, मालती, जूही और कपास के पुष्प नहीं चढ़ाये जाते है ।

सूर्य नारायण- इनकी उपासना कुटज के पुष्पों से की जाती है। इसके अलावा आक, कनेर, कमल, चंपा, पलाश, अशोक, बेला, आक, मालती, आदि के पुष्प भी प्रिय हैं।

 भविष्यपुराण में तो यहां तक कहा गया है कि सूर्य भगवान पर यदि एक आक का फूल चढ़ाया जाए तो इससे स्वर्ण की दस अशर्फियों को चढ़ाने जैसा ही फल मिल जाता है। भगवान सूर्य को लाल फूल बहुत ही पसंद है ।

भगवती गौरी- शंकर भगवान को चढऩे वाले पुष्प मां भगवती को भी प्रिय हैं। इसके अलावा बेला, सफेद कमल, पलाश, चंपा के फूल भी चढ़ाए जा सकते हैं।

माँ दुर्गा - माँ दुर्गा को लाल रंग के पुष्प विशेषकर लाल गुलाब और गुड़हल का फूल बहुत प्रिय है। नवरात्री और प्रति शुक्रवार को माँ को लाल गुलाब या लाल गुड़हल के फूलो की माला चढ़ाने से सभी तरह के आर्थिक संकट अवश्य ही दूर होते है । माता दुर्गा जी को बेला, अशोक, माधवी, केवड़ा, अमलतास के फूल भी चढ़ाये जाते है ।

लेकिन माता को दूर्वा ( भगवान गणपति गणेश जी को प्रिय ), तुलसीदल , आँवला ( भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय ) और तमाल के पुष्प नहीं चढ़ाये जाते है । दुर्गा जी को आक और मदार के फूल भी नहीं चढ़ाने चाहिए ।

श्रीकृष्ण- अपने प्रिय पुष्पों का उल्लेख महाभारत में युधिष्ठिर से करते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- मुझे कुमुद, करवरी, चणक, मालती, नंदिक, पलाश व वनमाला के फूल प्रिय हैं। भगवान श्री कृष्ण केसर का तिलक अथवा पीले चन्दन का तिलक करने और पीले फूल चढ़ाने से वह अति शीघ्र प्रसन्न होते है ।
लक्ष्मीजी- मां लक्ष्मी सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी है । माँ लक्ष्मी का सबसे अधिक प्रिय पुष्प कमल है। कमल जल में उत्पन्न होता है और माँ लक्ष्मी की उत्पत्ति भी सागर अर्थात जल से ही हुई है और कमल का फूल उनका आसन भी है इसलिए जो व्यक्ति पूरे नवरात्र विशेषकर अष्टमी, दीपावली, और हर शुक्रवार को माँ को कमल का फूल अर्पित करता है ।

वह इस धरती पर ऐश्वर्यवान बनता है उसे किसी भी सांसारिक सुख की कमी नहीं होती है। माता लक्ष्मी को नित्य गुलाब के फूल अर्पित करने से भी माँ की शीघ्र कृपा प्राप्त होती है और भगवान विष्णु की अर्धांगनी होने के कारण यह पीले सुगन्धित फूलो को अर्पण करने से भी अपने भक्तो से सहर्ष ही प्रसन्न हो जाती है

विष्णुजी- भगवान विष्णु को कमल, मौलसिरी, जूही, कदम्ब, केवड़ा, चमेली, अशोक, मालती, वासंती, चंपा, वैजयंती के पुष्प विशेष प्रिय हैं। इनको इनको पीले फूल बहुत ही पसंद है । विष्णु भगवान तुलसी दल चढ़ाने से अति शीघ्र प्रसन्न होते है । कार्तिक मास में भगवान नारायण केतकी के फूलों से पूजा करने से विशेष रूप से प्रसन्न होते है । लेकिन विष्णु जी पर आक, धतूरा, शिरीष, सहजन, सेमल, कचनार और गूलर आदि के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए । विष्णु जी पर अक्षत भी नहीं चढ़ाये जाते है ।

सरस्वती जी - विद्या की देवी माँ सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए सफेद या पीले रंग का फूल चढ़ाएं जाते यही । सफेद गुलाब, सफेद कनेर या फिर पीले गेंदे के फूल से भी मां सरस्वती वहुत प्रसन्न होती हैं।

किसी भी देवता के पूजन में केतकी के पुष्प नहीं चढ़ाए जाते।

बजरंग बली- बजरंग बली को लाल या पीले रंग के फूल विशेष रूप से अर्पित किए जाने चाहिए। इन फूलों में गुड़हल, गुलाब, कमल, गेंदा, आदि का विशेष महत्व रखते हैं। हनुमानजी को नित्य इन फूलों और केसर के साथ घिसा लाल चंदन का तिलक लगाने से जातक की सभी मनोकामनाएँ शीघ्र ही पूरी होती है ।

शनि देव - शनि देव को नीले लाजवन्ती के फूल चढ़ाने चाहिए, इसके अतिरिक्त कोई भी नीले या गहरे रंग के फूल चढ़ाने से शनि देव शीघ्र ही प्रसन्न होते है।

गुरुवार, 14 नवंबर 2019

पूजा पाठ में आवश्यक सावधानी

पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पाठ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं.वे नियम कुछ इस प्रकार हैं?????

1 सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते हैं. इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए. इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है।

2 गणेश जी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

3 दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए।

4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए. जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं,उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं।

6 रविवार,एकादशी,द्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए।

7 दूर्वा( एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।

8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए।

९ कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।

10 बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।

.11 तुलसी की पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।

12 हाथों में रख कर हाथों से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।

13 तांबे के पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए।

14 दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए जो दीपक से दीपक जलते हैं वो रोगी होते हैं।

15 पतला चंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए।

16 प्रतिदिन की पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा में अपने दोष,दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें, अवश्य सफलता मिलेगी और मनोकामना पूर्ण होगी।

17 चर्मपात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए।

18 स्त्रियों और शूद्रों को शंख नहीं बजाना चाहिए यदि वे बजाते हैं तो लक्ष्मी वहां से चली जाती है।

19 देवी देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए. सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म बेला में प्रथम पूजन और आरती होनी चाहिए।प्रात:9 से 10 बजे तक दिवितीय पूजन और आरती होनी चाहिए,मध्याह्र में तीसरा पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए शाम को चार से पांच बजे तक चौथा पूजन और आरती होना चाहिए,रात्रि में 8 से 9 बजे तक पाँचवाँ पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए।

20 आरती करने वालों को प्रथम चरणों की चार बार,नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार और समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए।

21 पूजा हमेशा पूर्व या उतर की ओर मुँह करके करनी चाहिए, हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में करें।

22 पूजा जमीन पर ऊनी आसन पर बैठकर ही करनी चाहिए, पूजागृह में सुबह एवं शाम को दीपक,एक घी का और एक तेल का रखें।

23 पूजा अर्चना होने के बाद उसी जगह पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएँ करें।

24 पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी ,लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

25 गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें.अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें, यह अमंगलकारक है एवं इनसे विपतियों का आगमन होता है।

26 मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता --पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें,उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।

27 विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।

28 प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में कलश स्थापित करना चाहिए कलश जल से पूर्ण, श्रीफल से युक्त विधिपूर्वक स्थापित करें यदि आपके घर में श्रीफल कलश उग जाता है तो वहाँ सुख एवं समृद्धि के साथ स्वयं लक्ष्मी जी नारायण के साथ निवास करती हैं तुलसी का पूजन भी आवश्यक है।

29 मकड़ी के जाले एवं दीमक से घर को सर्वदा बचावें अन्यथा घर में भयंकर हानि हो सकती है।

30 घर में झाड़ू कभी खड़ा कर के न रखें झाड़ू लांघना, पाँवसे कुचलना भी दरिद्रता को निमंत्रण देना है दो झाड़ू को भी एक ही स्थान में न रखें इससे शत्रु बढ़ते हैं।

31 घर में किसी परिस्थिति में जूठे बर्तन न रखें. क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि रात में लक्ष्मीजी घर का निरीक्षण करती हैं यदि जूठे बर्तन रखने ही हो तो किसी बड़े बर्तन में उन बर्तनों को रख कर उनमें पानी भर दें और ऊपर से ढक दें तो दोष निवारण हो जायेगा।

32 कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा घर में नित्य अवश्य जलाना चाहिए,जिससे वातावरण अधिकाधिक शुद्ध हो: वातावरण में धनात्मक ऊर्जा बढ़े।

33 घर में नित्य घी का दीपक जलावें और सुखी रहें।

34 घर में नित्य गोमूत्र युक्त जल से पोंछा लगाने से घर में वास्तुदोष समाप्त होते हैं तथा दुरात्माएँ हावी नहीं होती हैं।

35 सेंधा नमक घर में रखने से सुख श्री(लक्ष्मी) की वृद्धि होती है ।

36 रोज पीपल वृक्ष के स्पर्श से शरीर में रोग प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है।

37 साबुत धनिया,हल्दी की पांच गांठें,11 कमलगट्टे तथा साबुत नमक एक थैली में रख कर तिजोरी में रखने से बरकत होती है श्री (लक्ष्मी) व समृद्धि बढ़ती है।

38 दक्षिणावर्त शंख जिस घर में होता है,उसमे साक्षात लक्ष्मी एवं शांति का वास होता है वहाँ मंगल ही मंगल होते हैं पूजा स्थान पर दो शंख नहीं होने चाहिएँ।

39 घर में यदा कदा केसर के छींटे देते रहने से वहां धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है पतला घोल बनाकर आम्र पत्र अथवा पान के पते की सहायता से केसर के छींटे लगाने चाहिएँ।

40 एक मोती शंख,पाँच गोमती चक्र, तीन हकीक पत्थर,एक ताम्र सिक्का व थोड़ी सी नागकेसर एक थैली में भरकर घर में रखें श्री (लक्ष्मी) की वृद्धि होगी।

41 आचमन करके जूठे हाथ सिर के पृष्ठ भाग में कदापि न पोंछें,इस भाग में अत्यंत महत्वपूर्ण कोशिकाएँ होती हैं।

42 घर में पूजा पाठ व मांगलिक पर्व में सिर पर टोपी व पगड़ी पहननी चाहिए,रुमाल विशेष कर सफेद रुमाल शुभ नहीं माना जाता है।                                                       

हरि ॐ

शनिवार, 2 नवंबर 2019

मृतसञ्जीवन स्तोत्र

मृतसञ्जीवन स्तोत्र :

★★★★★★★★
ये स्तोत्र महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित है। इस स्तोत्र को कवच रूप में पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र में महेश्वर से सभी प्रकार से रक्षा करने की प्रार्थना की जाती है।

।। श्री मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ।।

एवमारध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमेश्वरं।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ॥१॥

गौरीपति मृत्युञ्जयेश्र्वर भगवान् शंकर की विधिपूर्वक आराधना करने के पश्र्चात भक्तको सदा मृतसञ्जीवन नामक कवचका सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये।

सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं। 
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ २॥

महादेव भगवान् शङ्कर का यह मृतसञ्जीवन नामक कवच का तत्त्वका भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है गुह्य और मङ्गल प्रदान करनेवाला है।

समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभं।
शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥३॥

[आचार्य शिष्य को उपदेश करते हैं कि – हे वत्स! ] अपने मनको एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवच को सुनो। यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है। इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना।

वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः। 
मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥४॥

जरा से अभय करने वाले, निरन्तर यज्ञ करनेवाले, सभी देवतओं से आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव ! आप पर्व-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें।

दधाअनः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुजः प्रभुः।
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥५॥

अभय प्रदान करने वाली शक्ति को धारण करने वाले, तीन मुखोंवाले तथा छ: भुजओं वाले, अग्रिरूपी प्रभु सदाशिव अग्रिकोण में मेरी सदा रक्षा करें।

अष्टदसभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः।
यमरूपि महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु ॥६॥

अट्ठारह भुजाओं से युक्त, हाथ में दण्ड और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सर्वत्र व्याप्त यमरुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें।

खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः।
रक्षोरूपी महेशो मां नैरृत्यां सर्वदावतु ॥७॥

हाथमें खड्ग और अभयमुद्रा धारण करने वाले, धैर्यशाली, दैत्यगणों से आराधित रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें।

पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः।
वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदावतु ॥८॥

हाथमें अभयमुद्रा और पाश धाराण करनेवाले, शभी रत्नाकरों से सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशा में मेरी सदा रक्षा करें।

गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः।
वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा ॥९॥

हाथों में गदा और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, प्राणो के रक्षक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शंकरजी वायव्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें।

शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः ॥१०॥

हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा) सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओं के मध्यमें मेरी रक्षा करें।

शूलाभयकरः सर्वविद्यानमधिनायकः।
ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥११॥

हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशानस्वरूप भगवान् परमेश्व शिव ईशानकोण में मेरी रक्षा करें।

ऊर्ध्वभागे ब्रःमरूपी विश्वात्माऽधः सदावतु।
शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः ॥१२॥

ब्रह्मरूपी शिव मेरी ऊर्ध्वभाग में तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभागमें मेरी सदा रक्षा करें। शंकर मेरे सिर की और चन्द्रशेखर मेरे ललाट की रक्षा करें।

भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु।
भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः ॥१३॥

मेरे भौंहों के मध्य में सर्वलोकेश और दोनों नेत्रों की त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें, दोनों भौंहों की रक्षा गिरिश एवं दोनों कानों को रक्षा भगवान् महेश्वर करें।

नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः।
जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ॥१४॥

महादेव मेरी नासीकाकी तथा वृषभध्वज मेरे दोनों ओठों की सदा रक्षा करें। दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वा की तथा गिरिश मेरे दाँतों की रक्षा करें।

मृतुय्ञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः।
पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ॥१५॥

मृत्युञ्जय मेरे मुखकी एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठकी रक्षा करें। पिनाकी मेरे दोनों हाथोंकी तथा त्रिशूली मेरे हृदय की रक्षा करें।

पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः।
नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वौ मे पार्वतीपतिः ॥१६॥

पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनो की और जगदीश्वर मेरे उदरकी रक्षा करें। विरूपाक्ष नाभिकी और पार्वतीपति पार्श्वभागकी रक्षा करें।

कटद्वयं गिरीशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः।
गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः॥१७॥

गिरीश मेरे दोनों कटिभाग की तथा प्रमथाधिप पृष्टभाग की रक्षा करें। महेश्वर मेरे गुह्यभाग की और भैरव मेरे दोनों ऊरुओं की रक्षा करें।

जानुनी मे जगद्दर्ता जङ्घे मे जगदम्बिका। 
पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥१८॥

जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनों की, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघोकी तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरोंकी रक्षा करें।

गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम।
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥१९॥

गिरीश मेरी भार्याकी रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रोंकी रक्षा करें । मृत्युञ्जय मेरे आयुकी गणनायक मेरे चित्तकी रक्षा करें।

सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिव:।
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥२०॥

कालोंके काल सदाशिव मेरे सभी अंगोकी रक्षा करें। [ हे वत्स ! ] देवताओंके लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवचका वर्णन मैंने तुमसे किया है।

मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम्। 
सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥२१॥

हादेवजीने मृतसञ्जीवन नामक इस कवचको कहा है। इस कवचकी सहस्त्र आवृत्ति को पुरश्चरण कहा गया है।

यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः। 
सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥२२॥

जो अपने मन को एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथावा दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्युको जीतकर पूर्ण आयुका उपयोग करता है।

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ। 
आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥२३॥

जो व्यक्ति अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवचका पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है। फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं।

कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा। 
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥२४॥

यह मृतसञ्जीवन कवच कालके गाल में गये हुए व्यक्तिको भी जीवन प्रदान कर ‍देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणोंसे युक्त ऐश्वर्यको प्राप्त करता है।

युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशतिवारकं। 
युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥२५॥

युद्ध आरम्भ होनेके पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवचका २८ बार पाठ करके रणभूमिमें उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुऔंसे अदृश्य रहता है।

न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै।
विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा ॥२६॥

यदि देवताओ के भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है।

प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं। 
अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च ॥२७॥

जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोकमें भी अक्षय्य सुख प्राप्त होता है ॥२७॥

सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः। 
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥२८॥

वह सम्पूर्ण व्याधियोंसे मुक्त हो जाता है, सब प्रकारके रोग उसके शरीरसे भाग जाते हैं। वह अजर-अमर होकर सदाके लिये सोलह वर्षवाला व्यक्ति बन जाता है।

विचरव्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान्।
तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ॥२९॥

इस लोकमें दुर्लभ भोगों को प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकोंमें विचरण करता रहता है। इसलिये इस महागोपनीय कवच को मृतसञ्जीवन नाम से कहा है।

मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥३०॥

यह देवतओं के लिय भी दुर्लभ है।

  ॥ इति वसिष्ठ कृत मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥
 
🙏इस प्रकार वसिष्ठजी द्वारा रचित मृतसञ्जीवन स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।

नक्षत्र से रोग विचार तथा उपाय

नक्षत्र से रोग विचार तथा उपाय

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हमारे ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र के अनुसार रोगों का वर्णन किया गया है। व्यक्ति के कुंडली में नक्षत्र अनुसार रोगों का विवरण निम्नानुसार है। आपके कुंडली में नक्षत्र के अनुसार परिणाम आप देख सकते है।

अश्विनी नक्षत्र👉 जातक को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट.
उपाय : दान पुण्य, दिन दुखियों की सेवा से लाभ होता है।

भरणी नक्षत्र👉 जातक को शीत के कारण कम्पन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्य क्षमता का अभाव।
उपाय : गरीबोंकी सेवा करे लाभ होगा।

कृतिका नक्षत्र👉 जातक आँखों सम्बंधित बीमारी, चक्कर आना, जलन, निद्रा भंग, गठिया घुटने का दर्द, ह्रदय रोग, घुस्सा आदि।
उपाय : मन्त्र जप, हवन से लाभ।

रोहिणी नक्षत्र👉 ज्वर, सिर या बगल में दर्द, चित्य में अधीरता।
उपाय : चिर चिटे की जड़ भुजा में बांधने से मन को शांति मिलती है।

मृगशिरा नक्षत्र👉 जातक को जुकाम, खांसी, नजला, से कष्ट।
उपाय : पूर्णिमा का व्रत करे लाभ होगा।

आद्रा नक्षत्र👉 जातक को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, अधासीरी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा।
उपाय : भगवान शिव की आराधना करे, सोमवार का व्रत करे, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधे लाभ होगा।

पुनर्वसु नक्षत्र👉 जातक सिर या कमर में दर्द से कष्ट।
उपाय: रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक का पौधा की जड़ अपनी भुजा मर बांधने से लाभ होगा।

पुष्प नक्षत्र👉 जातक निरोगी व स्वस्थ होता है। कभी तीव्र ज्वर से दर्द परेशानी होती है, कुशा की जड़ भुजा में बांधने से तथा पुष्प नक्षत्र में दान पुण्य करने से लाभ होता है।

अश्लेश नक्षत्र👉 जातक का दुर्बल देह प्राय: रोग ग्रस्त बना रहता है, देह में सभी अंग में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदुषण के कारण कष्ट।
उपाय : नागपंचमी का पूजन करे, पटोल की जड़ बांधने से लाभ होता है।

मघा नक्षत्र👉 जातक को अर्धसीरी या अर्धांग पीड़ा, भुत पिचाश से बाधा।
उपाय : कुष्ठ रोगी की सेवा करे, गरीबोंको मिष्ठान खिलाये।

पूर्व फाल्गुनी👉 जातक को बुखार,खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट।
उपाय : पटोल या आक की जड़ बाजु में बांधे, नवरात्रों में देवी माँ की उपासना करे।

उत्तर फाल्गुनी👉 जातक को ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकडन।
उपाय : पटोल या आक की जड़ बाजु में बांधे, ब्राह्मण को भोजन कराये।

हस्त नक्षत्र👉 जातको पेट दर्द, पेट में अफारा, पसीने से दुर्गन्ध, बदन में वात पीड़ा आक या जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा।

चित्रा नक्षत्र👉 जातक जटिल या विषम रोगों से कष्ट पता है। रोग का कारण बहुधा समज पाना कठिन होता है। फोड़े फुंसी सुजन या चोट से कष्ट होता है।
उपाय : असंगध की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होता है, तिल चावल जौ से हवन करे।

स्वाति नक्षत्र👉 वाट पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकडन से कष्ट।
उपाय : गौ तथा ब्राह्मणों की सेवा करे, जावित्री की जड़ भुजा में बांधे।

विशाखा नक्षत्र👉 जातक को सर्वांग पीड़ा से दुःख, कभी फोड़े होने से पीड़ा।
उपाय : गूंजा की जड़ भुजा भुजा पर बांधना, सुगन्धित वास्तु से हवन करना लाभ दायक होता है।

अनुराधा नक्षत्र👉 जातक को ज्वर ताप, सिर दर्द, बदन दर्द, जलन, रोगों से कष्ट,
उपाय : चमेली, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधना से लाभ।

जेष्ठा नक्षत्र👉 जातक को पित्त बड़ने से कष्ट,देह में कम्पन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी, कम में मन नहीं लगना।
उपाय : चिरचिटे की जड़ भुजा में बांधने से लाभ। ब्राह्मण को दूध से बनी मिठाई खिलाये।

मूल नक्षत्र👉 जातक को सन्निपात ज्वर, हाथ पैरों का ठंडा पड़ना, रक्तचाप मंद, पेट गले में दर्द अक्सर रोगग्रस्त रहना।
उपाय : 32 कुओं (नालों) के पानी से स्नान तथा दान पुण्य से लाभ होगा।

पूर्वाषाढ़ नक्षत्र👉 जातक को देह में कम्पन, सिर दर्द तथा सर्वांग में पीड़ा। सफ़ेद चन्दन का लेप, आवास कक्ष में सुगन्धित पुष्प से सजाये। कपास की जड़ भुजा में बांधने से लाभ।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र👉 जातक संधि वात, गठिया, वात शूल या कटी पीड़ा से कष्ट, कभी असहय वेदना।
उपाय : कपास की जड़ भुजा में बांधे, ब्राह्मणों को भोज कराये लाभ होगा।

श्रवन नक्षत्र👉 जातक अतिसार, दस्त, देह पीड़ा ज्वर से कष्ट, दाद, खाज खुजली जैसे चर्म रोग कुष्ठ, पित्त, मवाद बनना, संधि वात, क्षय रोग से पीड़ा।
उपाय : अपामार्ग की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है।

धनिष्ठा नक्षत्र👉 जातक मूत्र रोग, खुनी दस्त, पैर में चोट, सुखी खांसी, बलगम, अंग भंग, सुजन, फोड़े या लंगड़े पण से कष्ट।
उपाय : भगवान मारुती की आराधना करे ,गुड चने का दान करे।

शतभिषा नक्षत्र👉 जातक जलमय, सन्निपात, ज्वर, वातपीड़ा, बुखार से कष्ट। अनिंद्रा, छाती पर सुजन, ह्रदय की अनियमित धड़कन, पिंडली में दर्द से कष्ट।
उपाय : यज्ञ, हवन, दान, पुण्य तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलानेसे लाभ होगा।

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र👉 जातक को उल्टी या वमन, देह पीड़ा, बैचेनी, ह्रदय रोग, टकने की सुजन, आंतो का रोग से कष्ट होता है।
उपाय : भृंगराज की जड़ भुजा में भुजा पर बांधे, तिल का दान करने से लाभ होता है।

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र👉 जातक अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना से कष्ट हो सकता है।
उपाय : पीपल की जड़ भुजा पर बांधने से तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलाये लाभ होगा।

रेवती नक्षत्र👉 जातक को ज्वर, वाट पीड़ा, मति भ्रम, उदार विकार, मादक द्रव्य सेवन से उत्पन्न रोग किडनी के रोग, बहरापन, या कण के रोग पाव की अस्थि, मासपेशी खिचाव से कष्ट।
उपाय : पीपल की जड़ भुजा में बांधे लाभ होगा।

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