शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

जानिये घर में किस चीज़ की धूनी (धूप) करने से होता है क्या फायदा

 जानिये घर में किस चीज़ की धूनी (धूप) करने से होता है क्या फायदा

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हिंदू धर्म के अनुसार घरों में धूनी (धूप) देने की परंपरा काफी प्राचीन है। धूप देने से मन को शांति और प्रसन्नता मिलती है। साथ ही, मानसिक तनाव दूर करने में भी इससे बहुत लाभ मिलता है। घरों में धूनी देने के लिए कई तरह की चीज़ें आती है। आइए जानते है किस चीज़ की धूनी करने से क्या फायदे होते है।


1- कर्पूर और लौंग

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रोज़ाना सुबह और शाम घर में कर्पूर और लौंग जरूर जलाएं। आरती या प्रार्थना के बाद कर्पूर जलाकर उसकी आरती लेनी चाहिए। इससे घर के वास्तुदोष ख़त्म होते हैं। साथ ही पैसों की कमी नहीं होती।


2- गुग्गल की धूनी

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हफ्ते में 1 बार किसी भी दिन घर में कंडे जलाकर गुग्गल की धूनी देने से गृहकलह शांत होता है। गुग्गल सुगंधित होने के साथ ही दिमाग के रोगों के लिए भी लाभदायक है।


3- पीली सरसों

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पीली सरसों, गुग्गल, लोबान, गौघृत को मिलाकर सूर्यास्त के समय उपले (कंडे) जलाकर उस पर ये सारी सामग्री डाल दें। नकारात्मकता दूर हो जाएगी।


4- धूपबत्ती

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घर में पैसा नहीं टिकता हो तो रोज़ाना महाकाली के आगे एक धूपबत्ती लगाएं। हर शुक्रवार को काली के मंदिर में जाकर पूजा करें।


5- नीम के पत्ते

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घर में सप्ताह में एक या दो बार नीम के पत्ते की धूनी जलाएं। इससे जहां एक और सभी तरह के जीवाणु नष्ट हो जाएंगे। वही वास्तुदोष भी समाप्त हो जाएगा।


6- षोडशांग धूप

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अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागर, चंदन, इलायची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गल, ये सोलह तरह के धूप माने गए हैं। इनकी धूनी से आकस्मिक दुर्घटना नहीं होती है।


7- लोबान धूनी

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लोबान को सुलगते हुए कंडे या अंगारे पर रख कर जलाया जाता है, लेकिन लोबान को जलाने के नियम होते हैं इसको जलाने से पारलौकिक शक्तियां आकर्षित होती है। इसलिए बिना विशेषज्ञ से पूछे इसे न जलाएं।


8- दशांग धूप

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चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे दशांग धूप कहते हैं। इससे घर में शांति रहती है।


9- गायत्री केसर

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घर पर यदि किसी ने कुछ तंत्र कर रखा है तो जावित्री, गायत्री केसर लाकर उसे कूटकर मिला लें। इसके बाद उसमें उचित मात्रा में गुग्गल मिला लें। अब इस मिश्रण की धुप रोज़ाना शाम को दें। ऐसा 21 दिन तक करें।


गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

शिवनामावल्यष्टकम्

 *नित्य पाठ के लिए भगवान शिव का नामावली अष्टक*

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संसार में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है, जो स्तुति से प्रसन्न न हो जाता हो। भगवान शिव आशुतोष (शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले) हैं। अत: यदि उनके विभिन्न नामों के साथ उनकी आराधना की जाए तो वे शीघ्र ही प्रसन्न होकर आराधक को सांसारिक पीड़ाओं से मुक्त कर मनवांछित वस्तु प्रदान कर देते हैं। भगवान शिव का नामावल्यष्टक (नामावली का अष्टक) श्रीशंकराचार्यजी द्वारा रचित एक ऐसा ही सुन्दर स्तोत्र है जिसके आठ पदों में भगवान शिव के विभिन्न नामों का गान कर सांसारिक दु:खों से रक्षा की प्रार्थना की गई है और नवें पद में उन्हें वंदन किया गया है। श्रद्धा भक्ति से किए गए इस स्तोत्र के नित्य पाठ से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर आराधक का कल्याण कर देते हैं।


सांसारिक दु:खों से मुक्ति के लिए भगवान शिव का नामावली अष्टक


*हे चन्द्रचूड मदनान्तक शूलपाणे*

*स्थाणो गिरीश गिरिजेश महेश शम्भो।*

*भूतेश भीतभयसूदन मामनाथं*

*संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।१।।*


हे चन्द्रचूड! (चन्द्रमा को सिर पर धारण करने वाले), हे मदनान्तक! (कामदेव को भस्म कर देने वाले), हे शूलपाणे! हे स्थाणो! (सदा स्थिर रहने वाले), हे गिरीश तथा गिरिजापते, हे महेश, हे शम्भो, हे भूतेश, जरा, मृत्यु आदि से भयभीत की रक्षा करने वाले, हे जगदीश्वर शिव! संसार के गहन दु:खों से मेरी रक्षा कीजिए।


*हे पार्वतीहृदयवल्लभ चन्द्रमौले*

*भूताधिप प्रमथनाथ गिरीशजाप।*

*हे वामदेव भव रुद्र पिनाकपाणे*

*संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।२।।*


हे माता पार्वती के हृदयेश्वर! हे चन्द्रमौले! हे भूताधिप! हे प्रमथ (रुण्ड-मुण्ड-तुण्ड) गणों के स्वामिन्! गिरिजा का पालन करने वाले, हे वामदेव, हे भव, हे रुद्र, हे पिनाकपाणे, हे जगदीश्वर शिव! संसार के गहन दु:खों से मेरी रक्षा कीजिए।


*हे नीलकण्ठ वृषभध्वज पंचवक्त्र*

*लोकेश शेषवलयं प्रमथेश शर्व।*

*हे धूर्जटे पशुपते गिरिजापते मां*

*संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।३।।*


हे नीलकण्ठ, हे वृषकेतु, हे पंचमुख, हे लोकेश, शेष का कंगण धारण करने वाले! हे प्रमथगणों के स्वामी, हे शर्व, हे धूर्जटे, हे पशुपते, हे गिरिजापते, हे जगदीश्वर शिव! संसार के गहन दु:खों से मेरी रक्षा कीजिए।


*हे विश्वनाथ शिव शंकर देवदेव*

*गंगाधर प्रमथनायक नन्दिकेश।*

*बाणेश्वरान्धकरिपो हर लोकनाथ*

*संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।४।।*


हे विश्वनाथ, हे शिव, हे शंकर, हे देवाधिदेव, हे गंगा को धारण करने वाले, हे प्रमथगणों के स्वामी, हे नन्दीश्वर, हे बाणेश्वर, हे अन्धकासुर के विनाशक, हे हर, हे लोकनाथ, हे जगदीश्वर शिव! संसार के गहन दु:खों से मेरी रक्षा कीजिए।


*वाराणसीपुरपते मणिकर्णिकेश*

*वीरेश दक्षमखकाल विभो गणेश।*

*सर्वज्ञ सर्वहृदयैकनिवास नाथ*

*संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।५।।*


हे वाराणसी नगरी के स्वामिन्, हे मणिकर्णिकेश, हे वीरेश, हे दक्षयज्ञ के विध्वंसक, हे विभो, हे गणेश, हे सर्वज्ञ, हे सर्वान्तरात्मन्, हे नाथ! हे जगदीश्वर शिव! संसार के गहन दु:खों से मेरी रक्षा कीजिए।


*श्रीमन् महेश्वर कृपामय हे दयालो*

*हे व्योमकेश शितिकण्ठ गणाधिनाथ।*

*भस्मांगराग नृकपालकलापमाल*

*संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।६।।*


हे श्रीमान् महेश्वर, हे कृपामय, हे दयालो, हे व्योमकेश (आकाश ही है केश जिनका), हे नीलकण्ठ, हे गणाधिनाथ, हे भस्म को अंगराग बनाने वाले, मनुष्यों के कपालसमूह की माला धारण करने वाले, हे जगदीश्वर शिव! संसार के गहन दु:खों से मेरी रक्षा कीजिए।


*कैलासशैलविनिवास वृषाकपे हे*

*मृत्युंजय त्रिनयन त्रिजगन्निवास।*

*नारायणप्रिय मदापह शक्तिनाथ*

*संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।७।।*


हे कैलासशैल पर निवास करने वाले, हे वृषाकपे, हे मृत्युंजय, हे त्रिनयन, हे तीनों लोकों में निवास करने वाले, हे नारायणप्रिय, हे अहंकार को नष्ट करने वाले, हे शक्तिनाथ, हे जगदीश्वर शिव! संसार के गहन दु:खों से मेरी रक्षा कीजिए।


*विश्वेश विश्वभवनाशक विश्वरूप*

*विश्वात्मक त्रिभुवनैकगुणाभिवेश।*

*हे विश्वबन्धु करुणामय दीनबन्धो*

*संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।८।।*


हे विश्वेश, हे संसार के जन्म-मरण के चक्र को दूर करने वाले, हे विश्वरूप, हे विश्वात्मन्, हे त्रिभुवन के समस्त गुणों से परिपूर्ण, हे विश्वबन्धो, हे करुणामय, हे दीनबन्धो! हे जगदीश्वर शिव! संसार के गहन दु:खों से मेरी रक्षा कीजिए।


*गौरीविलासभवनाय महेश्वराय*

*पंचाननाय शरणागतरक्षकाय।*

*शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै*

*दारिद्रयदु:खदहनाय नम: शिवाय।।९।।*


भगवती पार्वती के विलास के आधार महेश्वर के लिए, पंचानन के लिए, शरणागतों के रक्षक के लिए, शर्व–शम्भु के लिए, सम्पूर्ण जगत्पति के लिए एवं दारिद्रय तथा दु:ख को भस्म करने वाले भगवान शिव के लिए मेरा नमस्कार है।


*।। इति श्रीमच्छंकराचार्य विरचितं शिवनामावल्यष्टकं सम्पूर्णम् ।*

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कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...