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मई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पूजा में प्रयोग होने वाले शब्दों का मतलब

  पूजा में प्रयोग होने वाले कुछ शब्द और उनके अर्थ। 1. पंचोपचार – गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने को ‘पंचोपचार’ कहते हैं | 2. पंचामृत – दूध , दही , घृत , मधु { शहद ] तथा शक्कर इनके मिश्रण को ‘पंचामृत’ कहते हैं | 3. पंचगव्य – गाय के दूध , घृत , दही मूत्र तथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में ‘पंचगव्य’ कहते हैं | 4. षोडशोपचार – आवाहन् , आसन , पाध्य , अर्घ्य , आचमन , स्नान , वस्त्र, अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप , नैवैध्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करने की विधि को ‘षोडशोपचार’ कहते हैं | 5. दशोपचार – पाध्य , अर्घ्य , आचमनीय , मधुपक्र , आचमन , गंध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने की विधि को ‘दशोपचार’ कहते हैं | 6. त्रिधातु – सोना , चांदी और लोहा |कुछ आचार्य सोना , चांदी, तांबा इनके मिश्रण को भी ‘त्रिधातु’ कहते हैं | 7. पंचधातु – सोना , चांदी , लोहा, तांबा और जस्ता | 8. अष्टधातु – सोना , चांदी , लोहा , तांबा , जस्ता , रांगा , कांसा और पारा | 9. नैवैध्य – खीर , मिष्ठान आदि मीठी वस्तुये | 10. नवग्रह – सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध,...

श्री गणेश चतुर्थी पूजा विधि

 श्री गणेश चतुर्थी विस्तृत पूजन विधि 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन, रोली, सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर। विधि👉  गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करे और आवाहन करें। आवाहन मंत्र 〰️〰️〰️〰️ गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं। उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।। आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव। यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।। अब नीचे दिया मंत्र पढ़कर प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें - 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ मंत्र👉 अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।। निम्न मंत्र से गणेश भगवान को आसान दें 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम। आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।। पाद्य (पैर धुलना) न...

गिलोय के औषधीय गुण

  गिलोय के औषधिय गुणसूत्र.. ........ ‌ #गिलोय एक ही ऐसी बेल है, जिसे आप सौ मर्ज की एक दवा कह सकते हैं। इसलिए इसे संस्कृत में अमृता नाम दिया गया है।  कहते हैं कि देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला और इस अमृत की बूंदें जहां-जहां छलकीं, वहां-वहां गिलोय की उत्पत्ति हुई। #इसका वानस्पिक नाम( Botanical name) टीनोस्पोरा कॉर्डीफोलिया (tinospora cordifolia है। इसके पत्ते पान के पत्ते जैसे दिखाई देते हैं और जिस पौधे पर यह चढ़ जाती है, उसे मरने नहीं देती। इसके बहुत सारे लाभ आयुर्वेद में बताए गए हैं, जो न केवल आपको सेहतमंद रखते हैं, बल्कि आपकी सुंदरता को भी निखारते हैं।  #आइए_जानते_हैं_गिलोय_के_फायदे….... #गिलोय बढ़ाती है रोग प्रतिरोधक क्षमता गिलोय एक ऐसी बेल है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर उसे बीमारियों से दूर रखती है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करते हैं। यह खून को साफ करती है, बैक्टीरिया से लड़ती है। लिवर और किडनी की अच्छी देखभाल भी गिलोय के बहुत सारे कामों में से ए...

राजा दिलीप की कथा

 * राजा दिलीप की कथा * ~~~~~~~~~~~~~~ रघुवंश का आरम्भ राजा दिलीप से होता है । जिसका बड़ा ही सुन्दर और विशद वर्णन महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम में किया है । कालिदास ने राजा दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम, लव, कुश, अतिथि और बाद के बीस रघुवंशी राजाओं की कथाओं का समायोजन अपने काव्य में किया है। राजा दिलीप की कथा भी उन्हीं में से एक है। राजा दिलीप बड़े ही धर्मपरायण, गुणवान, बुद्धिमान और धनवान थे । यदि कोई कमी थी तो वह यह थी कि उनके कोई संतान नहीं थी । सभी उपाय करने के बाद भी जब कोई सफलता नहीं मिली तो राजा दिलीप अपनी पत्नी सुदक्षिणा को लेकर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे । महर्षि वशिष्ठ ने राजा का आथित्य सत्कार किया और आने का प्रयोजन पूछा तो राजा ने अपने निसंतान होने की बात बताई । तब महर्षि वशिष्ठ बोले – “ हे राजन ! तुमसे एक अपराध हुआ है, इसलिए तुम्हारी अभी तक कोई संतान नहीं हुई है ।” तब राजा दिलीप ने आश्चर्य से पूछा – “ गुरुदेव ! मुझसे ऐसा कोनसा अपराध हुआ है कि मैं अब तक निसंतान हूँ। कृपा करके मुझे बताइए ?” महर्षि वशिष्ठ बोले – “ राजन ! एक बार ...

पक्षियों से इतना तो जरूर सीखें।

 पक्षियों से कुछ कुछ सीखे:.    १. वो रात को कुछ नही खाते।   २. रात को घूमते नही।   ३. अपने बच्चे को खुद ट्रेनिंग देते है। दूसरों के पास सिखने कभी नही भेजते।   ४. ठूस ठूस के कभी नही खाते। आप ने कितने भी दाने डाले हो। थोड़ा खाके उड़ जायेंगे। साथ कुछ नही ले जाते।   ५. रात होते ही सो जायेंगे सुबह जल्दी जाग जायेंगे, गाते गाते उठेंगे।    ६. अपना आहार कभी नही बदलते।   ७. अपनी पक्षी जाती मे ही संबंध एवं मित्रता करेंगे (यानि साथ रहेंगे) काग और हंस की जोड़ी कभी नही होगी।   ८. अपने शरीर से सतत् काम लेंगे. रात के सिवा आराम नही।   ९. बीमारी आई तो खाना छोड़ देंगे, तभी खायेंगे जब ठीक होंगे   १०. अपने बच्चे को खुब प्यार देंगे।   ११. आपस मे मिलजुल के रहेंगे... कभी नही लड़ते  १२. प्रकृति के सभी नियमों का पालन करते है।  १३. अपना घर इको फ्रेंडली बनायेंगे।   ।।जय महादेव।। हम भी इनसे कुछ सीखें तो जीवन सरल, सुंदर व सफल हो जाए !

अक्षय तृतीया का महत्व

 🙏🙏 जय जय श्री राधे🙏🙏 *🔱आइए जानें अक्षय तृतीया का महत्व!!! 14मई 2021 दिन शुक्रवार*🎄 शास्त्रों में अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य जैसे-विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार अथवा उद्योग का आरंभ करना अति शुभ फलदायक होता है। सही मायने में अक्षय तृतीया अपने नाम के अनुरूप शुभ फल प्रदान करती है। अक्षय तृतीया पर सूर्य व चंद्रमा अपनी उच्च राशि में रहते हैं। *इस वर्ष 2021 में अक्षय तृतीया 14 मई 2021 दिन शुक्रवार को होगी।* *🎁तो आइए जानें 25 बातों से अक्षय तृतीया का महत्व...🎂* 1.“न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गंगयां समम्।।” *🙏वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है।* 2 .अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों...

सोलह माताएं

 गुरुपत्नी , राजपत्नी , देवपत्नी , पुत्रवधु , माता की बहिन , पिता की बहिन , शिष्यपत्नी , भृत्य पत्नी ( नौकर की पत्नी ) , मामी , पिता की पत्नी ( माता और विमाता ) , भाई की पत्नी , सास , बहिन , बेटी , गर्भ में धारण करने वाली ( जन्मदात्री ) तथा इष्टदेवी - ये पुरुष की सोलह माताएं हैं !  गुरुपत्नी राजपत्नी देव्पतनी तथा वधु: ! पित्रो: स्वसा शिष्यपत्नी भृत्यपत्नी च मातुली !! पितृपत्नी भ्रातृपत्नी श्वभृशच भगिनी सुता ! गर्भधात्रीषट्देवी च पुन्सः षोडश मातरः !! 🙏- ब्रह्मवैवर्त्य पुराण🙏

वरूथिनी एकादशी

*वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? कृपया उसकी महिमा बताइये। भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन ! वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी ‘वरुथिनी’ नाम से प्रसिद्ध है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है। *व्रत कथा* नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम के राजा का राज था। राजा की रुचि हमेशा धार्मिक कार्यों में रहती थी। वह हमेशा पूजा-पाठ में लीन रहते थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या में लीन थे तभी एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा इस घटना से तनिक भी भयभीत नहीं हुए और उनके पैर को चबाते हुए भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया। तब राजा मान्धाता ने भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे। राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट ने चक्र से भालू को मार डाला। राजा का पैर भालू खा चुका था और वह इस बात को लेकर वह बहुत परेशान हो गए। दुखी भक्त को देखकर भगवान विष्णु बोले- 'हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करों। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तु...