गुरुवार, 8 जुलाई 2021

किसे प्रणाम ना करें?

 ★★★प्रणाम निषेध ★★★


१_दूरस्थं जलमध्यस्थं धावन्तं धनगर्वितम् । 

क्रोधवन्तं मदोन्मत्तं नमस्कारोsपि वर्जयेत् ॥ 

      दूरस्थित, जलके बीच, दौड़ते हुए, धनोन्मत्त, क्रोधयुक्त, नशे से पागल व्यक्ति को प्रणाम नहीं करना चाहिए ॥ 


२_ समित्पुष्पकुशाग्न्यम्बुमृदन्नाक्षतपाणिकः । 

जपं होमं च कुर्वाणो नाभिवाद्यो द्विजो भवेत् ॥ 

       अर्थात् पूजाकी तैयारी करते हुए तथा पूजादि नित्यकर्म करते समय ब्राह्मण को प्रणाम करने का निषेध है । निवृत्ति के पश्चात् प्रणाम करना चाहिए ॥


३_अपने समवर्ण ज्ञाति एवं बान्धवों तथा ससुराल पक्ष के ज्ञानवृद्ध तथा वयोवृद्ध द्वारा प्रणाम स्वीकार नहीं करना चाहिए, इससे अपनी हानि होती  है । 

[ज्ञाति = पिता का परिवार,  बान्धव = मातृपक्ष (ननिहाल)]


४- स्त्रियों के लिये साष्टाङ्ग प्रणाम वर्जित है  । वे बैठकर ही प्रणाम करें ।

[ जैसा कि हम जानते हैं --

जानुभ्यां च तथा पद्भ्यां पाणिभ्यामुरसा धिया । 

शिरसा वचसा दृष्ट्या प्रणामोsष्टाङ्ग ईरितः ॥ 

       जानु, पैर, हाथ, वक्ष, शिर, वाणी, दृष्टि और बुद्धि से किया प्रणाम साष्टाङ्ग प्रणाम कहा जाता है ॥ 

     परन्तु --

"विनाssसनद्विजं शङ्खं शालग्रामं च पुस्तकम् ।

वसुन्धरा न सहते कामिनी कुचमर्दनम् ।। "

    अर्थात् ब्राह्मण, शङ्ख, शालग्राम, पुस्तक और स्त्री-कुचों का पृथ्वी से स्पर्श वर्जित है । इस सूत्र के अनुसार स्त्री द्वारा साष्टाङ्ग प्रणाम का निषेध है । अतः उसे बैठकर ही, परपुरुष को स्पर्श न करते हुए, प्रणाम करने का आदेश है ॥ 


●अपूज्याः यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते ।

त्रीणि तत्र भविष्यन्ति दारिद्र्यं मरणं भयम् ।।

               (शिवपुराण)

       यहाँ कालिदास भी कहते हैं__ 'प्रतिबध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः' अर्थात् पूज्यका असम्मान कल्याणकारी नहीं होता ॥ 

बुधवार, 7 जुलाई 2021

जाने -अनजाने में किये हुये पाप का प्रायश्चित कैसे कर सकते हैं?

 जाने -अनजाने में किये हुये पाप का प्रायश्चित कैसे कर सकते हैं?



हम सभी से जाने - अनजाने में बहुत पाप हो जाते है जिसके बारे में कभी कभी हमे पता भी नहीं चलता के हमसे क्या पाप हो गया है। तो हम किस प्रकार उस पाप का प्रायश्चित कर सकते है ।


बहुत सुन्दर प्रश्न है ,यदि हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ती का कोई उपाय है।


श्रीमद्भागवत जी के षष्ठम स्कन्ध में , महाराज परीक्षित जी ,श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न कर लिए।


बोले भगवन - आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरको का वर्णन किया ,उसको सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं।


प्रभूवर मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं ,जैसे चींटी मर गयी,हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं ,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं । और ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं ।


तो उस पाप से मुक्ती का क्या उपाय है भगवन ।

आचार्य शुकदेव जी ने कहा राजन ऐसे पाप से मुक्ती के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए ।


-महाराज परीक्षित जी ने कहा, भगवन एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोंचना पड़ता है ।आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं । -

यहां पर आचार्य शुकदेव जी हम सभी मानव के कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं ।


बोले राजन पहली यज्ञ है -जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए ।


दूसरी यज्ञ है राजन -चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ो के पास डालना चाहिए।


तीसरी यज्ञ है राजन्-पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।


चौथी यज्ञ है राजन् -आँटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए ।


पांचवीं यज्ञ है राजन् भोजन बनाकर अग्नि भोजन , रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमे घी चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाओ।


राजन् अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे ।


राजन् ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ती मिल जाती है। हमे उसका दोष नहीं लगता ।उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता।


राजा ने पुनः पूछ लिया ,भगवन यदि

गृहस्त में रहकर ऐसी यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता है क्या।


तब यहां पर श्री शुकदेव जी कहते हैं

राजन्


कर्मणा कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते।

अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं विमर्शनम् ।।


नरक से मुक्ती पाने के लिए हम प्रायश्चित करें। कोई व्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित करता है। कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है। कोई व्यक्ति यम,नियम,आसन के द्वारा प्रायश्चित करता है। लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन्!


केचित् केवलया भक्त्या वासुदेव

परायणः ।


राजन् केवल हरी नाम संकीर्तन से ही

जाने और अनजाने में किये हुए को नष्ट करने की सामर्थ्य है ।


इसलिए सदैव कहीं भी कभी भी किसी भी समय सोते जागते उठते बैठते राम नाम रटते रहो।

कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...