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चाणक्य नीति के श्लोक -Part1

 नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम् । छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ॥ [अपने व्यवहार में बहुत सीधे ना रहे, वन में जो सीधे पेड़ पहले काटे जाते हैं, और जो पेड़ टेढ़े हैं वो खड़े हैं ।] Do not be very upright in your dealings, as you would see in forest, the straight trees are cut down while the crooked ones are left standing. कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ । कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ॥ [इन बातो को बार बार गौर करे…सही समय, सही मित्र, सही ठिकाना, पैसे कमाने के सही साधन, पैसे खर्चा करने के सही तरीके, आपके उर्जा स्रोत ।] Consider again and again the following: the right time, the right friends, the right place, the right means of income, the right ways of spending, and from whom you derive your power. यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते । ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव हि ॥ [जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का सहारा लेता है, उसका निश्चित भी नष्ट हो जाता है। अनिश्चित तो स्वयं नष्ट होता ही है।] He who gives up what is imperish...