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महाशिवरात्रि पर शिव पूजा विधि

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 * महाशिवरात्रि पर कल कैसे करे शिव पूजा*   〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ सामान्य (लौकिक) मंत्रो से सम्पूर्ण शिवपूजन प्रकार और पद्धति 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शिवपूजन में ध्यान रखने जैसे कुछ खास बाते  (1)👉 स्नान कर के ही पूजा में बेठे (2)👉 साफ सुथरा वस्त्र धारण कर ( हो शके तो शिलाई बिना का तो बहोत अच्छा ) (3)👉 आसन एक दम स्वच्छ चाहिए ( दर्भासन हो तो उत्तम ) (4)👉 पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करे (5)👉 बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वाही शिवलिंग पर चढ़ाये ( कृपया खंडित बिल्व पत्र मत चढ़ाये ) (6)👉 संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे ( जहा से जल पसार हो रहा हे वहा से वापस आ जाये ) (7)👉 पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग ना करे। (8)👉 बिल्व पत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर सकते है। (9)👉 शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे ( ये सब के लिए पवित्र हे )।   पूजन सामग्री  〰️〰️〰️〰️〰️ शिव की मूर्ति या शिवलिंगम, अबीर- गुलाल, चन्दन ( सफ़ेद ) अगरबत्ती धुप ( गुग्गुल ) बिलिपत्र बिल्व फल, तुलसी, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल,मिठाई, पान-सुपारी,जनेऊ, पंचामृत

एकादशी व्रत महिमा

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  एकादशी व्रत को सभी व्रतों का राजा क्यों कहते हैं ? भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है एकादशी का व्रत । पूर्व काल में मुर दैत्य को मारने के लिए भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या प्रकट हुई जो विष्णु के तेज से सम्पन्न और युद्धकला में निपुण थी । उसकी हुंकार मात्र से मुर दैत्य राख का ढेर हो गया । वह कन्या ही एकादशी देवी थी । इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा ।  एकादशी देवी ने वर मांगा—‘यदि आप प्रसन्न हैं तो आपकी कृपा से मैं सब तीर्थों में प्रधान, सभी विघ्नों का नाश करने वाली व समस्त सिद्धि देने वाली देवी होऊं । जो लोग उपवास (नक्त और एकभुक्त) करके मेरे व्रत का पालन करें, उन्हें आप धन, धर्म व मोक्ष प्रदान कीजिए ।’ भगवान ने वर देते हुए कहा—‘ऐसा ही हो । जो तुम्हारे भक्तजन हैं वे मेरे भी भक्त कहलायेंगे ।’ एकादशी व्रत को सभी ‘व्रतों का राजा’ या ‘व्रतों में शिरोमणि’ क्यों कहते हैं ? वैकुण्ठधाम की प्राप्ति कराने वाला, भोग और मोक्ष दोनों ही देने वाला तथा पापों का नाश करने वाला एकादशी के समान कोई व्रत नहीं है, इसलिए इसे ‘व्रतों का राजा’ कहते हैं । सभी व्रत व सभी दान से अधिक फल एक

मोरपंख का महत्त्व

  मोरपंख का महत्त्व 〰️〰️🌼🌼〰️〰️ ज्योतिष में मोरपंख को सभी नौ ग्रहों का प्रतिनिधि माना गया है, विशेष तौर पर मोरपंख के कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें किसी शुभ मुहूर्त में करने से सभी समस्याओं से तुरंत छुटकारा मिल जाता है। श्रीकृष्ण का श्रृंगार मोर पंख के बिना अधूरा ही लगता है। वे अपने मुकुट में मोर पंख भी विशेष रूप से धारण करते हैं।  मोर पंख का संबंध केवल श्रीकृष्ण से नहीं, बल्कि अन्य देवी-देवताओं से भी है। शास्त्रों के अनुसार मोर के पंखों में सभी देवी-देवताओं और सभी नौ ग्रहों का वास होता है।  प्राचीन काल में एक मोर के माध्यम से देवताओं ने संध्या नाम के असुर का वध किया था। पक्षी शास्त्र में मोर और गरुड़ के पंखों का विशेष महत्व बताया गया है। आइये जानते हैं मोर पंख आपके जीवन को किस तरह सुख- समृद्धि से भर देता है- * मोर का शत्रु सर्प है. अत: ज्योतिष में जिन लोगों को राहू की स्थिति शुभ नहीं हो उन्हें मोर पंख सदैव अपने साथ रखना चाहिए। * आयुर्वेद में मोर पंख से तपेदिक, दमा, लकवा, नजला और बांझपन जैसे दुसाध्य रोगों में सफलता पूर्वक चिकित्सा बताई गई है। * जीवन में मोर पंख से कई तरह के संकट दूर

श्रीकमलाकवचम्

 ॥ श्रीकमलाकवचम् ॥ श्रीगणेशाय नमः । ॐ अस्याश्चतुरक्षराविष्णुवनितायाः कवचस्य श्रीभगवान् शिव ऋषीः । अनुष्टुप्छन्दः । वाग्भवा देवता । वाग्भवं बीजम् । लज्जा शक्तिः । रमा कीलकम् । कामबीजात्मकं कवचम् । मम सुकवित्वपाण्डित्यसमृद्धिसिद्धये पाठे विनियोगः । ऐङ्कारो मस्तके पातु वाग्भवां सर्वसिद्धिदा । ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षुर्युग्मे च शाङ्करी ॥ १॥ जिह्वायां मुखवृत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि । ओष्ठाधारे दन्तपङ्क्तौ तालुमूले हनौ पुनः ॥ २॥ पातु मां विष्णुवनिता लक्ष्मीः श्रीवर्णरूपिणी ॥ कर्णयुग्मे भुजद्वन्द्वे स्तनद्वन्द्वे च पार्वती ॥ ३॥ हृदये मणिबन्धे च ग्रीवायां पार्श्वर्योद्वयोः । पृष्ठदेशे तथा गुह्ये वामे च दक्षिणे तथा ॥ ४॥ उपस्थे च नितम्बे च नाभौ जङ्घाद्वये पुनः । जानुचक्रे पदद्वन्द्वे घुटिकेऽङ्गुलिमूलके ॥ ५॥ स्वधा तु प्राणशक्‍त्यां वा सीमन्यां मस्तके तथा । सर्वाङ्गे पातु कामेशी महादेवी समुन्नतिः ॥ ६॥ पुष्टिः पातु महामाया उत्कृष्टिः सर्वदाऽवतु । ऋद्धिः पातु सदा देवी सर्वत्र शम्भुवल्लभा ॥ ७॥ वाग्भवा सर्वदा पातु पातु मां हरगेहिनी । रमा पातु महादेवी पातु माया स्वराट् स्वयम् ॥ ८॥ सर्वाङ्गे पा