बुधवार, 1 नवंबर 2023

श्रीराधा के सोलह नामों की महिमा

 श्रीराधा के सोलह नामों की महिमा 


जो मनुष्य जीवन भर श्रीराधा के इस सोलह नामों का पाठ करेगा, उसको इसी जीवन में श्रीराधा-कृष्ण के चरण-कमलों में भक्ति प्राप्त होगी । मनुष्य जीता हुआ ही मुक्त हो जाएगा ।


श्रीराधा का सोलह (षोडश) नाम स्तोत्र

भगवान नारायण ने श्रीराधा की स्तुति करते हुए उनके सोलह नाम और उनकी महिमा बतायी है—


राधा रासेस्वरी रासवासिनी रसिकेश्वरी। कृष्णप्राणाधिका कृष्णप्रिया कृष्णस्वरूपिणी।।

कृष्णवामांगसम्भूता परमानन्दरूपिणी । 

कृष्णा वृन्दावनी वृन्दा वृन्दावनविनोदिनी ।। 

चन्द्रावली चन्द्रकान्ता शरच्चन्द्रप्रभानना । 

नामान्येतानि साराणि तेषामभ्यन्तराणि च ।। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्णजन्मखण्ड, १७।२२०-२२२)


 

श्रीराधा के सोलह नामों का रहस्य और अर्थ

श्रीराधा के इन सोलह नामों का रहस्य और अर्थ भगवान नारायण ने नारदजी को बताया था जो इस प्रकार हैं–


१. राधा–‘राधा’ का अर्थ है—भलीभांति सिद्ध । ‘राधा’ शब्द का ‘रा’ प्राप्ति का वाचक है और ‘धा’ निर्वाण का । अत: राधा मुक्ति, निर्वाण (मोक्ष) प्रदान करने वाली हैं । 


२. रासेस्वरी–वे रासेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की प्राणप्रिया अर्धांगिनी हैं, अत: ‘रासेश्वरी’ कहलाती हैं ।


३. रासवासिनी–उनका रासमण्डल में निवास है, इसलिए ‘रासवासिनी’ कहलाती हैं।


४. रसिकेश्वरी–वे समस्त रसिक देवियों की स्वामिनी हैं, इसलिए प्राचीन काल से संत लोग उन्हें ‘रसिकेश्वरी’ कहकर पुकारते हैं ।


५. कृष्णप्राणाधिका–श्रीकृष्ण को वे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं इसलिए स्वयं श्रीकृष्ण ने उनका नाम ‘कृष्णप्राणाधिका’ रखा है ।


६. कृष्णप्रिया–वे श्रीकृष्ण की परम प्रिया हैं या श्रीकृष्ण उन्हें परम प्रिय हैं, इसलिए देवतागण उन्हें ‘कृष्णप्रिया’ कहकर सम्बोधित करते हैं ।


७. कृष्णस्वरूपिणी–वे लीला (खेल-खेल) में श्रीकृष्ण का रूप धारण करने में समर्थ हैं और श्रीकृष्ण के समान हैं; इसलिए ‘कृष्णस्वरूपिणी’ कहलाती हैं ।


८. कृष्णवामांगसम्भूता–वे श्रीकृष्ण के वामांग से प्रकट हुई हैं, इसलिए श्रीकृष्ण ने ही उनका नाम रखा—‘कृष्णवामांगसम्भूता’ ।


९. परमानन्दरूपिणी–ये भगवान की परम आनंदस्वरूपा आह्लादिनी शक्ति है, इसी से श्रुतियों ने उन्हें ‘परमानन्दरूपिणी’ नाम से प्रसिद्ध किया।


१०. कृष्णा–‘कृष्’ शब्द मोक्षदायक है, ‘न’ उत्कृष्ट का द्योतक है और ‘आ’ देने वाली का सूचक है । श्रेष्ठ मोक्ष प्रदान करने वाली होने के कारण ये ‘कृष्णा’ कहलायीं  ।


११. वृन्दावनी–वृन्दावन उनकी राजधानी और मधुर लीलाभूमि है तथा वे वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी हैं, अत: वे ‘वृन्दावनी’ नाम से स्मरण की जाती है ।


१२. वृन्दा–‘वृन्द’ शब्द का अर्थ है सखियों का समुदाय और ‘आ’ सत्ता का वाचक है अर्थात् वे सखियों के समुदाय की स्वामिनी हैं; अत: वृन्दा कहलायीं ।


१३. वृन्दावनविनोदिनी–वृन्दावन में उनका विनोद (मन बहलाव) होता है, इसलिए वेद उन्हें ‘वृन्दावनविनोदिनी’ कहकर पुकारते हैं ।


१४. चन्द्रावली–इनके शरीर में नखरूप चन्द्रमाओं की पंक्ति सुशोभित है और मुख पर चन्द्रमा सदा विराजित है, इसलिए स्वयं श्रीकृष्ण ने उनका नाम रखा है—‘चन्द्रावली’ ।


१५. चन्द्रकान्ता–उनके शरीर पर अनन्त चन्द्रमाओं की-सी कांति रात-दिन जगमगाती रहती है, इसलिए श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर उन्हें ‘चन्द्रकान्ता’ कहते हैं ।


१६. शरच्चन्द्रप्रभानना–इनका मुखमण्डल शरत्कालीन चन्द्रमा के समान प्रभावान है, इसलिए वेदव्यासजी ने उनका नाम रखा है—‘शरच्चन्द्रप्रभानना’ ।


श्रीराधा के सोलह नाम की महिमा है न्यारी

जो मनुष्य जीवन भर श्रीराधा के इन सोलह नाम (या स्त्रोत) का प्रतिदिन तीन समय पाठ करता है, उसके इसी जीवन में जन्म-जन्मान्तर के संचित पाप और शुभ-अशुभ कर्मों के भोग नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य जीता हुआ ही मुक्त हो जाता है।


श्रीराधा के नामों के जप से श्रीकृष्ण के चरण-कमलों की दास्यभक्ति प्राप्त होती है ।

इस सोलह नाम स्तोत्र के पाठ से मनुष्य को सभी अभिलाषित पदार्थ और सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है । 


षोडश नाम स्तोत्र का पाठ मनुष्य को श्रीकृष्ण का-सा तेज, शिव के समान औढरदानीपन (दानशक्ति), योगशक्ति और उनकी स्मृति प्रदान करता है ।


कई जन्मों तक श्रीकृष्ण की सेवा से उनके लोक की प्राप्ति होती है, किन्तु श्रीराधा की कृपा से साधक श्रीकृष्ण के गोलोक धाम को शीघ्र ही प्राप्त कर लेता है । शरीर छूटने पर उनका नित्य सहचर/सहचरी होकर उसे युगलसरकार की सेवा प्राप्त होती है । अष्ट सिद्धियों से युक्त उसे नित्य शरीर प्राप्त होता है तथा भगवान के साथ अनन्तकाल तक रहने का सुख, सारूप्य और उनका तत्वज्ञान प्राप्त होता है ।


भगवान श्रीकृष्ण को प्राणों से भी बढ़कर प्रिय ‘श्रीराधा’ नाम!!!!!!!!


राधा राधा नाम को सपनेहूँ जो नर लेय । 

ताको मोहन साँवरो रीझि अपनको देय ।।


भगवान श्रीकृष्ण का कथन है–‘उन राधा से भी अधिक उनका ‘राधा’ नाम मुझे मधुर और प्यारा लगता है । 


जय श्री राधे राधे 🌹🌹🙏🏻 हरे कृष्णा 🌹🌹🙏🏻

विष्णु सहस्रनाम मंत्र के लाभ

 *विष्णु सहस्रनाम मंत्र और इसके लाभ ::-*

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विष्णु सहस्रनाम एक ऐसा मंत्र है जिसमें विष्णु के हजार नामों का सम्मिश्रण है अर्थात अगर कोई व्यक्ति भगवान विष्णु के हजार नामों का जाप नहीं कर सकता है तो वह इस एक मंत्र का जाप कर सकता है। इस एक मंत्र में अथाह शक्ति छिपी हुई है जो कलयुग में सभी परेशानियों को दूर करने में सहायक है।


*विष्णु सहस्रनाम स्त्रोत्र मंत्र :-*

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*नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।*


*सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नमः।।*

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*शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है ये मंत्र :-*

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इस मंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हिन्दू धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है।


*विष्णु सहस्रनाम में विष्णु को शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र के नाम से सम्बोधित किया है, जो इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि शिव और विष्णु एक ही है।* विष्णु सहस्रानम में प्रत्येक नाम के एक सौ अर्थ से कम नहीं हैं, इसलिए यह एक बहुत प्रकांड और शक्तिशाली मंत्र है, शंकराचार्य और पारसर भट्ट जैसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व ने इस पवित्र पाठ पर टिप्पणियां लिखी हैं।


*विष्णु सहस्रनाम उद्ग्म स्रोत :-*

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विष्णु सहस्रनम की उत्पत्ति महाकाव्य महाभारत से मानी जाती है, जब पितामह भीष्म, पांडवों से घिरे मौत के बिस्तर पर अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहे थे, उस समय युधिष्ठिर ने उनसे पूछा, "पितामह! कृपया हमें बताएं कि सभी के लिए सर्वोच्च आश्रय कौन है? जिससे व्यक्ति को शांति प्राप्त हो सके, वह नाम कोनसा है जिससे इस भवसागर से मुक्ति प्राप्त हो सके, इस सवाल के जबाब में भीष्म ने कहा की वह नाम विष्णु सहस्रनाम है ।


*ज्योतिषीय लाभ :-*

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यह नकारात्मक ज्योतिषीय प्रभावों को वश में करने में मदद करता है, इनमें उन दोषों को शामिल किया जाता है जो जन्म समय की ग्रहों की खराब स्थिति से उत्पन्न होते हैं, विष्णु सहस्त्रनाम बुरी किस्मत और श्राप से दूर कर सकता है।


*अच्छा भाग्य और तकदीर:-*

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जो व्यक्ति विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करता है उसका भाग्य हमेशा उसका साथ देता है।


*मनोवैज्ञानिक फायदे :-*

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इसका मनोवैज्ञानिक लाभ भी है , दैनिक विष्णु सहस्रनाम का जप करते हुए मन को काफी आराम मिलता हैं और अवांछित चिंताओं और विचलित विचारों से मुक्ति मिलती है, इससे मन में सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने और कुशलता सीखने को मिलती है।


*बाधाएं दूर होती हैं :-*

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विष्णु सहस्त्रनामम अपने जीवन में बाधाओं को दूर करने का अंतिम उपाय है, यह आपके जीवन में मौजूद महत्वपूर्ण योजनाओं को तेज़ी से और आपके रास्ते पर बाधाओं और चुनौतियों को दूर करने में मदद कर सकता है, बढ़ती ऊर्जा स्तर और आत्मविश्वास के साथ, आप अपने जीवन के लक्ष्यों की ओर जल्दी और ऊर्जावान रूप से आगे बढ़ सकते हो ।


*रक्षात्मक कवच::-*

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भगवान विष्णु का नाम दुर्भाग्य, खतरों, काला जादू, दुर्घटनाओं और बुरी नज़रों से व्यक्ति की रक्षा करने के लिए एक बहुत शक्तिशाली कवच की तरह कार्य करता है और दुश्मनों की बुरी योजनाओं से मन और शरीर की सुरक्षा करता है।


*पापों को मिटाना::-*

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यह शक्तिशाली मंत्र एक व्यक्ति को अपने सारे जन्मों में अपने सभी पापों को मुक्त करने में सहायता कर सकता है।


*सन्तति देता है :-*

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विष्णु के हजारों नामों का जप करने से बांझपन को दूर करने और परिवार में संतान प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। यह घर में बच्चों के स्वास्थ्य और खुशी को बढ़ाता है और उनके समग्र कल्याण को बढ़ावा देता है।


                         🚩 हर हर महादेव 🚩


ब्राह्मण के प्रकार

 🔥 *ब्राह्मण के दश प्रकार* 🔥


*जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः* 

- अत्रि स्मृति १३८

ब्राह्मण वंश में जन्म लेने वाला जन्म से ही ब्राह्मण है। 


भले ही वो नीच कार्य भी क्यों न करें वह अंत तक ब्राह्मण ही रहेगा। महर्षि अत्रि ने ब्राह्मणो का कर्म अनुसार विभाग किया है।


*देवो मुनिर्द्विजो राजा वैश्यः शूद्रो निषादकः ॥*

*पशुम्लेच्छोपि चंडालो विप्रा दशविधाः स्मृताः॥*

- अत्रि स्मृति ३७१

देव, मुनि, द्विज, राजा, वैश्य, शूद्र, निषाद, पशु, म्लेच्छ, चांडाल यह दश प्रकार के ब्राह्मण कहे हैं ॥ ३७१ ॥


१.देव ब्राह्मण -  ब्राह्मणोचित श्रोत स्मार्त कर्म करने वाला हो 

२. मुनि ब्राह्मण - शाक पत्ते फल आहार कर वन में रहने वाला

३. द्विज ब्राह्मण - वेदांत,सांख्य,योग आदि अध्ययन व ज्ञान पिपासु

४. क्षत्रिय ब्राह्मण - युद्ध कुशल हो

५. वैश्य ब्राह्मण - व्यवसाय गोपालन आदि

६. शुद्र ब्राह्मण - लवण,लाख,घी,दूध,मांस आदि बेचने वाला

७. निषाद ब्राह्मण - चोर, तस्कर, मांसाहारी,व्यसनी हो

८. पशु ब्राह्मण - शास्त्र विहीन हो किन्तु मिथ्याभिमान हो

९. म्लेच्छ ब्राह्मण - बावड़ी,कूप,बाग,तालाब को बंद करने वाला

१०. चांडाल ब्राह्मण - अकर्मी, क्रियाहीन, कर्मसंकर,वर्णसंकर

(अत्रिस्मृति ३७२-३८१ के आधार पर।) 



हनुमान चालीसा का महत्व

 हनुमान चालीसा का 100 बार जप करने पर आपको सभी भौतिकवादी चीजों से मुक्त करता है।


हनुमान चालीसा का 21 बार जाप करने से धन में वृद्धि होती है।


19 बार हनुमान चालीसा का जाप करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।


हनुमान चालीसा का 7 बार जाप करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।


हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से भगवान हनुमान का आशीर्वाद मिलता है और आपको हर स्थिति में विजयी होने में मदद मिलती है।


मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और मंगल दोष, साढ़े साती जैसे हर दोष का निवारण होता है।


भगवान हनुमान जी का नाम जप करने से आपके आसपास एक सकारात्मक आभा का निर्माण होता है।


राम नाम का जप या राम हनुमान का कोई भी राम भजन, हनुमान जी को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है क्योंकि वे भगवान श्री राम जी से सबसे अधिक प्रेम करते हैं।


यदि आप एक विशेष दोहा का जप करते हैं


बल बुधि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार


यदि आप अध्ययन से पहले 11 बार इस दोहा का जप करते हैं, तो 27 दिनों से पहले अध्ययन के प्रति आपकी एकाग्रता बढ़ेगी


भूत पिशाच निकट नहीं आवै महावीर जु नाम सुनावे


अगर आप इस श्लोक का 27 बार जाप करेंगे तो आपके दिल से अनुचित डर खत्म हो जाएगा।


और भी बहुत से लाभ आपको खास दोहा और चौपाई का जाप करने से मिलेगा।


कहा जाता है कि हनुमान चालीसा के हर श्लोक और दोहे का 108 बार जाप करना भी बहुत अच्छा होता है।



राम राम राम

ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों

 *ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ?*


रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। 

सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है। ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।


“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।


अर्थात - ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।

सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।

ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।


✴️पौराणिक महत्व 


वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।

शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है--


वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।

ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥


अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।


✴️ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति 


ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।


✴️इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि


आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।


✴️ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।


ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।

वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।


प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।

तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1


अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।


यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। 

सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35


अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।


उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।

अथर्ववेद- 7/16/2


अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।


✴️व्यावहारिक महत्व 


व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।


🕉️ जैविक घड़ी 🕉️

पर आधारित शरीर की दिनचर्या


✴️प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना। इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है।


✴️प्रातः 5 से 7 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान का लेना चाहिए। सुबह 7 के बाद जो मल-त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।


✴️प्रातः 7 से 9 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है। इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये।


✴️प्रातः 11 से 1 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है।

दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसी लिए भोजन वर्जित है। इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है।


✴️दोपहर 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए। इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है।


✴️दोपहर 3 से 5 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है। 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।


✴️शाम 5 से 7 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है। इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए। शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करे। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते है। देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।


✴️रात्री 7 से 9 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है। इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है। अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है। आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टी हुई है।


✴️रात्री 9 से 11 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है। इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है। यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।


✴️रात्री 11 से 1 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है। इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा, नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है। इस समय नई कोशिकाएं बनती है।


✴️रात्री 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है। अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है। इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।


👉नोट :-ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखे, जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबुफे डिनरʹ से बचना चाहिए।


👉पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।


👉शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।


👉आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देl

कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...