मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

प्याज के फायदे

*"प्याज "के संबध में महत्वपूर्ण जानकारी -अवश्य पढ़े*
सन 1919 में फ्लू से चार करोड़ लोग मारे जा चुके थे तब एक डॉक्टर कई किसानों से उनके घर इस प्रत्याशा में मिला कि वो कैसे इन किसानों को इस महामारी से लड़ने में सहायता कर सकता है। बहुत सारे किसान इस फ्लू से ग्रसित थे और उनमें से बहुत से मारे जा चुके थे।
डॉक्टर जब इनमें से एक किसान के संपर्क में आया तो उसे ये जान कर बहुत आश्चर्य हुआ जब उसे ये ज्ञात हुआ कि सारे गाँव के फ्लू से ग्रसितहोने के बावजूद ये किसान परिवार बिलकुल  बिलकुल स्वस्थ्य था तब डॉक्टर को ये जानने की इच्छा जाएगी कि ऐसा इस किसान परिवार ने सारे गाँव से हटकर क्या किया कि वो इस भंयकर महामारी में भी स्वस्थ्य थे। तब किसान की पत्नी ने उन्हें बताया कि उसने अपने मकान के दोनों कमरों में एक प्लेट में बिना छिली प्याज रख दी थी तब डॉक्टर ने प्लेट में रखी इन प्याज में से क को माइक्रोस्कोप से देखा तो उसे इस प्याज में उस घातक फ्लू के बैक्टेरिया मिले जो संभवतया इन प्याज द्वारा अवशोषित कर लिए गए थे और शायद यही कारण था कि इतनी बड़ी महामारी में ये परिवार बिलकुल स्वस्थ्य क्योंकि फ्लू के वायरस इन प्याज द्वारा सोख लिए गए थे।
जब मैंने अपने एक मित्र जो अमेरिका में रहते थे और मुझे हमेशा स्वास्थ्य संबधी मुद्दों पर  बेहद ज्ञानवर्धक जानकारी भेजते रहते हैं तब उन्होंने प्याज के संबध में बेहद महत्वपूर्ण जानकारी/अनुभव मुझे भेजा करते हैं ।  उन्होंने  मुझे  इस कहानी को भेजा। उनकी इस बेहद रोचक कहानी के लिए धन्यवाद। क्योंकि मुझे इस  किसान वाली कहानी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जब मैं न्यूमोनिया से ग्रसित था और कहने की आवश्यकता नहीं थी कि मैं बहुत कमज़ोर महसूस कर रहा था तब मैंने एक लेख पढ़ा था जिसमें ये बताया गया था कि प्याज को बीच से काटकर रात में  न्यूमोनिया से ग्रस्त मरीज़ के कमरे में एक जार में रख दिया गया था और सुबह यह देख कर बेहद आश्चर्य हुआ कि प्याज सुबह कीटाणुओं की वज़ह से  बिलकुल काली हो गई थी तब मैंने भी अपने कमरे में वैसे ही किया और देखा अगले दिन प्याज बिलकुल काली होकर खराब हो चुकी थी और मैं काफी स्वस्थ्य महसूस कर रहा था।

कई बार हम पेट की बीमारी से दो चार होते है तब हम इस बात से अनजान रहते है कि इस बीमारी के लिए किसे दोषी ठहराया जाए। तब नि :संदेह प्याज को इस बीमारी के लिए दोषी ठहराया जा सकता है ,प्याज बैक्टेरिया को अवशोषित कर लेती है यही कारण है  कि अपने इस गुण के कारण प्याज हमें ठण्ड और फ्लू से बचाती है अत :वे प्याज बिलकुल नहीं खाना चाहिए जो बहुत देर पहल काटी गई हो और प्लेट में रखी गई हों। ये जान लें कि "काट कर रखी गई प्याज बहुत विषाक्त होती हैं "

जब कभी भी फ़ूड पॉइसनिंग के केस अस्पताल में आते हैं तो सबसे पहले इस बात की जानकारी ली जाती कि मरीज़ ने अंतिम बार प्याज कब खाई थी. और वे प्याज कहाँ से आई थीं ,(खासकर सलाद  में )तब इस बीमारी के लिए या तो प्याज दोषी हैं या काफी देर पहले कटे हुए "आलू "
प्याज बैक्टेरिया के लिए "चुंबक "की तरह काम करती  हैं खासकर कच्ची प्याज। आप कभी भी थोड़ी सी भी  कटी हुई प्याज को देर तक रखने की गलती न करे ये बेहद खतरनाक  हैं यहाँ तक कि किसी बंद थैली में इसे रेफ्रिजरेटर में रखना भी  सुरक्षित नहीं  है। प्याज ज़रा सी काट देने पर ये बैक्टेरिया से ग्रसित हो सकती है औए आपके लिए खतरनाक हो सकती है। यदि आप कटी हुई प्याज को सब्ज़ी बनाने के लिए उपयोग कर रहें हो तब तो ये ठीक है मगर यदि आप कटी हुई प्याज अपनी ब्रेड पर रख कर खा रहें है तो ये बेहद खतरनाक है ऐसी स्थिति में आप मुसीबत को न्योता दे रहें हैं। याद रखे कटी हुई प्याज और कटे हुए आलू की नमी बैक्टेरिया को तेज़ी से  पनपने में बेहद सहायक होता है। कुत्तों  को  कभी भी प्याज नहीं खिलाना चाहिए  क्योंकि प्याज को  उनका पेट का मेटाबोलिज़ कभी भी   नहीं पचाता।

कृपया ध्यान रखे कि "प्याज को काट कर अगले दिन सब्ज़ी बनाने के लिए नहीं रखना चाहिए क्योंकि ये बहुत खतरनाक है यहाँ तक कि कटी हुई प्याज एक रात में बहुत विषाक्त हो जाती है क्योंकि ये टॉक्सिक बैक्टेरिया बनाती है जो पेट खराब करने के लिए पर्याप्त रहता है "

रविवार, 23 अप्रैल 2017

श्री राधा कृपा कटाक्ष

श्री राधा कृपा कटाक्ष
1. मुनीन्द्रवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी !
व्रजेन्द्रभानुनंदनी व्रजेन्द्र सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम् !!
अर्थ - मुनीन्द वृंद जिनके चरणों की व...ंदना करते हैं तथा जो तीनों लोकों का शोक दूर करने वाली हैं मुस्कानयुक्त प्रफुलिलत मुख कमलवाली,निकुंज भवन में विलास करनेवाली,राजा वृषभानु की राजकुमारी,श्रीब्रज राजकुमार की ह्दयेश्वरी श्रीराधिके!कब मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र बनाओगी ?

2. अशोकवृक्षवल्लरी, वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ्कोमले !
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष -भाजनम् !!
अर्थ - अशोक की वृक्ष-लताओं से बने हुए 'लता मंदिर' में विराजमान और मूँगे अग्नि नवीन लाल पल्लवों के समान अरूण कांतियुक्त कोमल चरणोंवाली,भक्तों को अभीष्ट वरदान देनेवाली तथा अभयदान देने के लिए उत्सुक रहनेवाले कर कमलों वाली अपार ऐश्वर्य की भंङार स्वामिनी श्री राधे मुझे कब अपने कृपा कटाक्ष का अधिकारी बनाओगी.

3. अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां , सुविभ्रुमं ससम्भ्रुमं दृगन्तबाणपातनैं: !
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने , कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम् !!
अर्थ- प्रेम कीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में बाँकी भृकुटी करके, आश्चयर्य उत्पन्न करते हुए सहसा कटाक्ष रूपी वाणों की वर्षा से श्रीनन्दनन्दन को निरंतर बस में करनेवाली हे सरवेश्वरी! अपने कृपा कटाक्ष का पात्र मुझे कब बनाओगी ?

4. तड़ित्सुवर्णचम्पक प्रदीप्तगौरविग्रहे, मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्ङले !
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशावलोचने , कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम् !!
अर्थ - बिजली,स्वर्ण तथा चम्पा के पुष्प के समान सुनहरी कांति से देदीप्यमान गोरे अंगोंवाली अपने मुखारविंद की चाँदनी से करोड़ों शरच्चंदों को जीतनेवाली, क्षण-क्षण में विचित्र चित्रों की छटा दिखानेवाले चंचल चकोर के बच्चे के सदृश विलोचनों वाली, हे जगज्जननी !क्या कभी मुझे अपने कृपाकटाक्ष का अधिकारी बनाओगी.

5. मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमण्डिते, प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपण्डिते !
अनन्यधन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम् !!
अर्थ- अपने अत्यंत रूप-यौवन के मद से मत रहनेवाली आनंद भरा मन ही जिनका सवोतम भूषण है,प्रियतम के अनुराग रंगी हुई, विलास की प्रवीण अनन्य भक्त गोपिकाओं से धन्य हुए निकुंजराज्य के प्रेम कौतुक विघा की विदुषी श्रीराधिके! मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र कब बनाओगी.

6. अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते , प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुम्भिकुम्भसुस्तनी !
प्रशस्तमंदहास्यचूर्णपूर्णसौख्यसागरे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम् !!
अर्थ- संपूर्ण हाव-भावरूपी श्रृंगारों तथा धीरता एंव हीरे की हारों से विभूषित अंगोंवाली शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान एंव गयनि्दनी के गंडस्थल के समान मनोहर पयोंधरोंवाली प्रशांसित मंद मुस्कान से परिपूण आंनद सिंधु के सदृश श्रीराधे !क्या मुझे कभी अपनी कृपा दृषि्ट से कृतार्थ करोगी ?

7. मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोर्लते , लताग्रलास्यलोलनील लोचनावलोकने
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये , कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्!!
अर्थ- जल की लहरों से हिलते हुए कमल के नवीन नाल के समान जिनकी कोमल भुजाएँ हैं पवन से जैसे लता का एक अग भाग नाचता है, ऐसे चंचल लोंचनों से नीलिमा झलकाते हुए जो अवलोकन करती हैं ललचाने वाले,लुभाकर पीछे-पीछे फिरनेवाले,मिलन में मन को हरनेवाले मुग्ध मनमोहन को आश्रय देनेवाली,हे वृषभानु किशोरी! कब अपने कृपा अवलोकन द्वारा मुझे माया जाल से छुड़ाओगी.

8. सुवर्णमलिकांचितेत्रिरेखकुम्बेकण्ठगे,त्रिसूत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्तिदीधिति !
सलोलनीलकुन्तले प्रसुन्गुच्छगुम्फिते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम् !!
अर्थ - स्वर्ण की मालाओ से बिभूषित और तीन रेखाओ वाले शंख की छटा सदृश सुन्दर कंठ वाली और तीन जिनकेकंठ में मंगल मय त्रिसूत्र बंधा हुआ है, जिनमे तीन रंग के रत्नों का भूषण लटक रहा है, रत्नों से देदीप्यमान किरणे निकल रही है. दिव्य पुष्पों के गुच्छों से गूँथे हुए काले घुँघराले लहराते केशोवाली हें सर्वेश्वरी! श्री राधे कब मुझे अपनी कृपा द्रष्टि से देखकर अपने चरण कमलों के दर्शन का अधिकारी बनाओगी .
9. नितंबोंबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण, प्रशस्रत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले !
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके ,कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्!!
अर्थ - कटिमंडल में माणिमय किंकिणी सुशोभित है जिसमे सोने के फूल रत्नों से जड़े हुए लटक रहे है और उसकी प्रशसनीय झंकार अत्यंत मनोहर गजेन्द्र की सूंड के समान जिनकी जंघाए अत्यंत सुन्दर है ऐसी श्री राधे मुझ पर कृपा करके कब संसार सागर से पार लगाओगी.

10. अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत् , समाजराजहंसवंश निक्वणातिगौरवे !
विलोलहेमवल्लरी विडम्बीचारूचंक्रमे , कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम् !!
अर्थ - अनेकों वेदमंत्रो की सुमधुर झनकार करनेवाले स्वर्णमय नूपुर चरणों में ऐसे प्रतीत होते हैं! मानो मनोहर हसों की पंकि्त गूँज रही हो, चलते समय अंगों की छवि है! ऐसी लगती मानो स्वर्णलता लहरा रही हो ! हे जगदीश्वरी श्रीराधे!क्या कभी मैं आपके चरण-कमलों का दास हो सकूँगा?

11. अनन्तकोटिविष्णुलोक - नम्रपद्ममजार्चीते , हिमाद्रिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे !
अपारसिद्धिवृद्धिदिग्ध - सत्पदांगुलीनखे , कदा करिष्यसीह मां कृपा -कटाक्ष भाजनम् !!
अर्थ - अनंत कोटि बैकुंठो की स्वामिनी श्रीलक्ष्मी जी आपकी पूजा करती हैं तथा श्रीपार्वती जी, इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी पूजा कर वरदान पाया है ! आपके चरण-कमलों की एक उंगली के नख का भी ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धि का समूह बढ़ने लगता है! हे करूणामयी! आप कब मुझ को वात्सल्य-रस भरी दृषि्ट से देखोगी.
12. मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी , त्रिवेदभारतीयश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी !
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी , ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते !!
अर्थ- सब प्रकार के यज्ञों की आप स्वामिनी हैं! संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी,स्वधादेवी की स्वामिनी सब देवताओं की [ॠग,यजु ,साम] स्वामिनी प्रमाण शासन शास्त्र की स्वामिनी, श्रीरमा देवी की स्वामिनी , श्रीक्षमा देवी की स्वामिनी और [अयोध्या के] प्रमोद वन की स्वामिनी[श्रीसीता ] आप ही हैं हे राधिके ! कब मुझे कृपा कर अपनी शरण में स्वीकार कर पराभकि्त प्रदान करोगी? हे ब्रजेश्वरी!हे ब्रज की अधीष्ठात्री श्रीराधिके! आपको मेरा बारंबार प्रणाम है.

13. इतीदमद्भुतस्तवं निशम्य भानुनंदनी , करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष -भाजनम् !
भवेत्तदैव संचित-त्रिरूपकर्मनाशनं , लभेत्तदाब्रजेन्द्रसूनु -मण्डलप्रवेशनम् !!
अर्थ- हे वृषाभानुनंदिनी! मेरी इस विचित्र स्तुति को सुनकर सर्वदा के लिए मुझ दास को अपनी दयादृषि्ट का अधिकारी बना लो बस आपकी दया दृषि्ट का अधिकारी बना लो बस आपकी दया ही से तो मेरे [प्रारब्ध संचित और क्रियामाण] इन तीनों प्रकार के कर्मों का नाश हो जाएगा और उसी क्षण श्रीकृष्ण के नित्य मंडल[दिव्यधाम की लीलाओं में] सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा.

14. राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धया ,एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधी !
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति साधकः, राधाकृपाकटाक्षेण भक्ति : स्यात् प्रेमलक्षणा !!
अर्थ - पूर्णिमा के दिन,शुक्लपक्ष की अष्टमी या दशमी को तथा दोनों की एकादशी और त्रयोदशी को जो शुद्ध बुद्धिवाला भक्त इस-स्त्रोत का पाठ करेगा वह जो भावना करेगा वही प्राप्त होगा, अन्यथा निष्काम भावना से पाठ करने पर श्रीराधाजी की दयादृष्टि से पराभक्ति प्राप्त होगी.
         Radhe Radhe 

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

श्रीरुद्राष्टकम्

||श्रीरुद्राष्टकम्||

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे5हं॥1॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो5हं॥2॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे5हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो5हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।!8!!

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥

ॐ नमः शिवाय !

जीवन का उत्तरार्ध

जब हम पचास वर्ष के होँगे तब जरासंध(काल) हमारी मथुरा नगरी(शरीर) पर आक्रमण करेगा । जरासंध वृद्धावस्था है । हमारी उत्तरावस्था ही जरासंध है जो शरीर के कई अंगो पर धावा बोल देती है ।
पचास वर्ष पूरे होने पर जरासंध आता है जीवन का पूर्वार्ध समाप्त हुआ और अब उत्तरार्ध आया है वृद्धावस्था शुरु हो रही है । जरासंध के आक्रमण से मथुरा का गढ़ टूटने लगता है , आँखो की , कानो की , हाथ पाँव की शक्ति क्षीण होती है ।
श्रीकृष्ण ने जरासंध को सत्तरह बार हराया तो वह अठारहवीँ बार कालयवन को लेकर आया । उसने काल को पहले भेजा ।
जब जरासंध (वृद्धावस्था ) अपने साथ कालयवन (काल) को भी लेकर आता है तब बचना आसान नहीँ है । जरासंध और कालयवन एक साथ आ धमके तो श्रीकृष्ण को मथुरा को छोड़कर द्वारिका जाना पड़ा ।
द्वारिका अर्थात् ब्रह्मविद्या । द्वारिका ब्रह्म धस्या सा ब्रह्मविद्या अर्थात् श्रीकृष्ण ने ब्रह्मविद्या का आश्रय लिया ।
मथुरा (मानव काया) छोड़कर ब्रह्मविद्या का आश्रय भगवान को भी लेना पड़ा । जब वृद्धावस्था अपने साथ काल को भी ले आये तब द्वारिका (ब्रह्म विद्या ) का आश्रय लेना चाहिए । ब्रह्मविद्या (द्वारिका) के द्वार काल और जरासंध के लिए खुल नहीँ सकते ।
जरासंध का त्रास अर्थात् जन्म मृत्यु का त्रास । जन्म लिया तो जरा और मृत्यु की व्यवस्था सहनी ही पड़ेगी ।
नरक क्या है ? शंकर स्वामी कहते है कि यह शरीर ही नरकवास है । जन्म धारण करना ही नरकवास है । किसी भी समय गर्भवास न करना पड़े ऐसा प्रयत्न करना चाहिए।
भगवान की प्रेरणा के कारण कुछ महापुरुष भगवान के कार्यो के लिए जन्म लेते हैँ वह उत्तम है । वासना के बंधनोँ के कारण जन्म लेना नरकवास है . जरासंध और कालयवन के धक्के खाते हुए मथुरा (शरीर) छोड़ना की अपेक्षा समझ बूझकर छोड़ना अधिक अच्छा है । प्रवृत्ति हमेँ छोड़ सके इससे पहले हम ही उसे क्यो न छोड़ देँ ।
भगवान ने विश्वकर्मा को द्वारिका नगरी के निर्माण का आदेश दिया । कहते हैँ कि वहाँ के महल इतने बड़े थे कि लोँगो को द्वार ढूढ़ने पड़ते थे । द्वार कहाँ है ऐसा बार बार पूछा जाने के कारण ही इस नगरी का नाम द्वारिका पड़ा । का अर्थात ब्रह्म । उपनिषद के अनुसार "क" ब्रह्म सूचक है । जहाँ प्रत्येक द्वार पर परमात्मा का वास है वह नगरी द्वारिका है । जिस शरीर रुपी नगरी के इन्द्रियो रुपी द्वारो पर परमात्मा को स्थान दिया जायेगा तो जरासंध और कालयवन सता नहीँ पायेँगे । द्वारिका मेँ ये दोनो घुस नही सकते । प्रत्येक इन्द्रिय से भक्ति करने वाला जीव कालयवन पर विजय पाता है ।
यदि जरासंध पीछा करे तो प्रवर्षण पर निवास करना चाहिए । प्रवर्षण अर्थात् जहाँ ज्ञान और भक्ति की मूसलाधार वर्षा हो रही हो वह स्थान । जहाँ कथा श्रवण का लाभ मिले , भक्ति रस की धारा बहती रहे वहाँ चलना चाहिए ।
इक्यावन बावन वर्ष की वय होते ही गृहस्थाश्रम के लिए हम योग्य नही रह सकते ।
इक्या वन-बा वन अर्थात् वन मे प्रवेश का समय आ गया अब घर की आसक्ति त्याग करना है । विलासी लोगो के बीच विरक्त जीवन जीना आसान नहीँ है । जहाँ भक्ति और ज्ञान की सतत वर्षा हो रही हो वैसी पवित्र भूमि मे बसकर ही जरासंध से पीछा छुड़ा सकते हैँ ।।।
                                Radhe Radhe 

कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...