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प्याज के फायदे

*"प्याज "के संबध में महत्वपूर्ण जानकारी -अवश्य पढ़े* सन 1919 में फ्लू से चार करोड़ लोग मारे जा चुके थे तब एक डॉक्टर कई किसानों से उनके घर इस प्रत्याशा में मिला कि वो कैसे इन किसानों को इस महामारी से लड़ने में सहायता कर सकता है। बहुत सारे किसान इस फ्लू से ग्रसित थे और उनमें से बहुत से मारे जा चुके थे। डॉक्टर जब इनमें से एक किसान के संपर्क में आया तो उसे ये जान कर बहुत आश्चर्य हुआ जब उसे ये ज्ञात हुआ कि सारे गाँव के फ्लू से ग्रसितहोने के बावजूद ये किसान परिवार बिलकुल  बिलकुल स्वस्थ्य था तब डॉक्टर को ये जानने की इच्छा जाएगी कि ऐसा इस किसान परिवार ने सारे गाँव से हटकर क्या किया कि वो इस भंयकर महामारी में भी स्वस्थ्य थे। तब किसान की पत्नी ने उन्हें बताया कि उसने अपने मकान के दोनों कमरों में एक प्लेट में बिना छिली प्याज रख दी थी तब डॉक्टर ने प्लेट में रखी इन प्याज में से क को माइक्रोस्कोप से देखा तो उसे इस प्याज में उस घातक फ्लू के बैक्टेरिया मिले जो संभवतया इन प्याज द्वारा अवशोषित कर लिए गए थे और शायद यही कारण था कि इतनी बड़ी महामारी में ये परिवार बिलकुल स्वस्थ्य क्योंकि फ्लू के वा

श्री राधा कृपा कटाक्ष

श्री राधा कृपा कटाक्ष 1. मुनीन्द्रवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी ! व्रजेन्द्रभानुनंदनी व्रजेन्द्र सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम् !! अर्थ - मुनीन्द वृंद जिनके चरणों की व...ंदना करते हैं तथा जो तीनों लोकों का शोक दूर करने वाली हैं मुस्कानयुक्त प्रफुलिलत मुख कमलवाली,निकुंज भवन में विलास करनेवाली,राजा वृषभानु की राजकुमारी,श्रीब्रज राजकुमार की ह्दयेश्वरी श्रीराधिके!कब मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र बनाओगी ? 2. अशोकवृक्षवल्लरी, वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ्कोमले ! वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष -भाजनम् !! अर्थ - अशोक की वृक्ष-लताओं से बने हुए 'लता मंदिर' में विराजमान और मूँगे अग्नि नवीन लाल पल्लवों के समान अरूण कांतियुक्त कोमल चरणोंवाली,भक्तों को अभीष्ट वरदान देनेवाली तथा अभयदान देने के लिए उत्सुक रहनेवाले कर कमलों वाली अपार ऐश्वर्य की भंङार स्वामिनी श्री राधे मुझे कब अपने कृपा कटाक्ष का अधिकारी बनाओगी. 3. अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां , सुविभ्रुमं ससम्भ्रुमं दृगन्तबाणपा

श्रीरुद्राष्टकम्

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||श्रीरुद्राष्टकम्|| नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे5हं॥1॥ निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो5हं॥2॥ तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥ चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं। मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥ प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्। त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे5हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥ कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी। चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥ न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां। न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥ न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो5हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं। जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।!8!! रुद्राष्

जीवन का उत्तरार्ध

जब हम पचास वर्ष के होँगे तब जरासंध(काल) हमारी मथुरा नगरी(शरीर) पर आक्रमण करेगा । जरासंध वृद्धावस्था है । हमारी उत्तरावस्था ही जरासंध है जो शरीर के कई अंगो पर धावा बोल देती है । पचास वर्ष पूरे होने पर जरासंध आता है जीवन का पूर्वार्ध समाप्त हुआ और अब उत्तरार्ध आया है वृद्धावस्था शुरु हो रही है । जरासंध के आक्रमण से मथुरा का गढ़ टूटने लगता है , आँखो की , कानो की , हाथ पाँव की शक्ति क्षीण होती है । श्रीकृष्ण ने जरासंध को सत्तरह बार हराया तो वह अठारहवीँ बार कालयवन को लेकर आया । उसने काल को पहले भेजा । जब जरासंध (वृद्धावस्था ) अपने साथ कालयवन (काल) को भी लेकर आता है तब बचना आसान नहीँ है । जरासंध और कालयवन एक साथ आ धमके तो श्रीकृष्ण को मथुरा को छोड़कर द्वारिका जाना पड़ा । द्वारिका अर्थात् ब्रह्मविद्या । द्वारिका ब्रह्म धस्या सा ब्रह्मविद्या अर्थात् श्रीकृष्ण ने ब्रह्मविद्या का आश्रय लिया । मथुरा (मानव काया) छोड़कर ब्रह्मविद्या का आश्रय भगवान को भी लेना पड़ा । जब वृद्धावस्था अपने साथ काल को भी ले आये तब द्वारिका (ब्रह्म विद्या ) का आश्रय लेना चाहिए । ब्रह्मविद्या (द्वारिका) के द्वार काल