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अप्रैल, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

किस देवता के थे कितने और कौन-से पुत्र

हिन्दू धर्म में प्राचीनकाल के मानवों में देव (सुर) और दैत्य (असुर) दो तरह के भेद के अलावा  और भी कई तरह के भेद थे। जैसे दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, अप्सरा, किन्नर, वानर, नाग, किरात, विद्याधर, चारण, ऋक्ष, भल्ल, वसु, सिद्ध, पिशाच, मरुद्गण, भाट आदि। हिन्दुओं के प्रारंभिक इतिहास में उपरोक्त सभी जातियों के लोगों ने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ज्ञान, विज्ञान, ज्योतिष आदि की स्थापना की और जिनके कारण कई तरह की घटनाओं का जन्म हुआ। हिन्दुओं के प्रमुख वंश, जानिए अपने पूर्वजों को हजारों वर्षों के इतिहास कालक्रम के चलते ये सभी लोग अब मिथकीय माने जाते हैं, लेकिन इस पर अच्छे से शोध करेंगे तो पता चलेगा कि अपने-अपने वंश को आगे बढ़ाने, भूमि पर साम्राज्य स्थापित करने और अपने रक्त की शुद्धता बनाने रखने की एक जिद थी जिसके चलते संघर्ष का जन्म हुआ और इसी संघर्ष से नई-नई जातियों और प्रजातियों का जन्म होता गया। खैर...! आओ हम जानते हैं प्रारंभिक काल के इन देवताओं और लोगों के पुत्रों के बारे में... ब्रह्मा के पुत्र :ब्रह्मा के पुत्रों की संख्‍या पुराणों में निश्चित नहीं है। ब्रह्मा की तीन पत्नियां के नाम मिल

14 वर्ष के वनवास में राम कहां-कहां रहे

प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया। रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार....  जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की।* इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है। जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की। आईये जानते हैं कुछ प्रमुख स्

समुद्र मंथन में निकले चौदह रत्न

हलाहल (विष) -शिव जी पी गये कामधेनु (या सुरभि गाय) -ऋषियों को यज्ञादि के लिये दे दी गयी लक्ष्मी -लक्ष्मीजी ने विष्णु का वरन किया मणि (कौस्तुभ एवं पद्मराग)- विष्णु के लिये अप्सरा(रम्भा) वारुणी (कन्या,सुरा लिये हुए)- असुरों को दी गयी हाथी (ऐरावत) -इन्द्र को दिया गया कल्पवृक्ष या पारिजात, पाञ्चजन्य शंख, चन्द्रमा, धनुष(सारंग) घोड़ा (उच्चैश्रवा) -राजा बालि को दिया गया धन्वन्तरि -अमृत लेकर आये अमृत -देवताओं एवं दैत्यों को बांटा गया. "जय जय श्री राधे"

नरक चतुर्दशी

कृष्ण ने नरकासुर नाम के अत्यंत क्रूर राजा को दिवाली वाली चतुर्दशी के दिन मार दिया था। असल में यह नरकासुर की ही इच्छा थी की यह चतुर्दशी उसकी बुराइयों के अंत होने की वजह से एक उत्सव की रूप में मनाई जाए दीवाली के दिन भगवान कृष्ण ने नरक को मारा था दीवाली को नरक चतुदर्शी के रूप में भी मनाया जाता है। दरअसल, नरक ने प्राथर्ना की थी कि उसकी मृत्यु का उत्सव मनाया जाए। बहुत से लोगों को मुत्यु के पलों में ही अपनी सीमाओं का अहसास होता है।  कहते हैं कि भगवान विष्णु ने जब जंगली शूकर यानी वराह अवतार लिया, तब नरक उनके पुत्र के रूप में पैदा हुआ। इसलिए उसमें कुछ खास तरह की प्रवृत्तियां थीं।अगर उन्हें पहले ही इनका अहसास हो जाए तो जीवन बेहतर हो सकता है। लेकिन ज्यादातर लोग अपने आखिरी पलों का इंतजार करते हैं। नरक भी उनमें से एक था। अपनी मृत्यु के पलों में अचानक उसे अहसास हुआ कि उसने अपना जीवन कैसे बरबाद कर दिया और अब तक अपनी जिंदगी के साथ क्या कर रहा था। उसने कृष्ण से प्रार्थना की, ‘आप आज सिर्फ मुझे ही नहीं मार रहे, बल्कि मैंने अब तक जो भी बुराइंया या गलत काम किए हैं, उन्हें भी खत्म कर रहे हैं। इस मौक

श्री हरि के वाहन गरुड़जी की रोचक कथा

गरुड़ देव के ये रहस्य आपको आश्चर्यचकित कर देंगे! आखिरकार भगवान विष्णु के वाहन गरूढ़ का क्या रहस्य है? क्यों हिन्दू में उनको विशेष महत्व दिया जाता है। क्या है उनके जन्म का रहस्य और कैसे वह एक पक्षी से भगवान बन गए????? गरूड़ भगवान के बारे में सभी जानते होंगे। यह भगवान विष्णु का वाहन हैं। भगवान गरूड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है। गरूड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण पक्षी माना गया है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गरूड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख वाला) कहा गया है। जातक कथाओं में भी गरूड़ के बारे में कई कहानियां हैं। माना जाता है कि गरूड़ की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश और व्यक्तियों को इधर से उधर ले जाना होता था। कहते हैं कि यह इतना विशालकाय पक्षी होता था जो कि अपनी चोंच से हाथी को उठाकर उड़ जाता था। गरूढ़ जैसे ही दो पक्षी रामायण काल में भी थे जिन्हें जटायु और सम्पाती कहा जाता था। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते विचरण करते रहते थे। इनके लिए दूरियों का कोई महत