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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

श्रीभगवती स्तोत्रम

श्रीभगवतीस्तोत्रम 〰〰🌼〰〰 शक्ति रूपेण देवी भगवती दुर्गा की स्तुति में कहा गया स्तोत्र है। इसके अनेक उवाच हैं, जो कि निम्नलिखित हैं। यह एक धार्मिक पाठ है जिसकी रचना व्यास मुनि ने की थी। ऐसा माना जाता है कि जो पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं। स्त्रोत्र 〰〰 जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे। जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥ जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे, जय पावकभूषितवक्त्रवरे। जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥२॥ जय महिषविमर्दिनि शूलकरे, जय लोकसमस्तकपापहरे। जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोऽवनते॥३॥ जय षण्मुखसायुधईशनुते, जय सागरगामिनि शम्भुनुते। जय दुःखदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥४॥ जय देवि समस्तशरीरधरे, जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे। जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे, जय वाच्छितदायिनि सिद्धिवरे॥५॥ एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियतः शुचिः। गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥६ भावार्थ 〰〰〰 हे वरदायिनी देवि! हे...

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई?

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई? 〰️〰️🔸〰️〰️〰️〰️🔸〰️〰️ शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था. मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए. मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं. महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा. भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है. ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है. मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक ...

जानिए माता रानी के पवित्र शक्तिपीठों के बारे में

🌹  *माँ भगवती के 51 प्रमुख शक्तिपीठ*🌹 🌷1. *किरीट कात्यायनी*:- पश्चिमी बंगाल में हुगली नदी के तट पर लालबाग कोट स्थित शक्तिपीठ, जहां सती का किरीट यानी *"मुकुट*" गिरा था। 🌷2. *कात्यायनी वृंदावन* : - मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृंदावन शक्तिपीठ, जहां सती के *"केशपाश"* गिरे थे। 🌷3. *नैनादेवी* : - पाकिस्तान के सक्खर स्टेशन के निकट शर्कररे और हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित नैनादेवी मन्दिर स्थलों पर सती के *नेत्र"*गिरे थे। 🌷4. *श्रीपर्वत शक्तिपीठ* : - इस शक्तिपीठ को लेकर लोगों में मतांतर है। कुछ लोग मानते हैं कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ कहते हैं कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती की *कनपटी गिरी* थी। 🌷5. *विशालाक्षी शक्तिपीठ* : - वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर स्थित इस शक्तिपीठ पर माता सती के *दाहिने कान के मणि*  गिरे थे। 🌷6. *गोदावरी तट शक्तिपीठ*  : - आन्ध्र प्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित इस शक्तिपीठ में माता का  *गाल"* गिरा था। 🌷7. *शुचीन्द्रम शक्तिपीठ* : - कन्याकुमारी के त्रिसागर संगम स्थल...

गरुड़ पुराण में वर्णित नरकों की कथा

गरुड़ पुराण में वर्णित 36 नर्क जानिए किसमें कैसे दी जाती है सजा 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखी अनेक कथाओं में स्वर्ग और नर्क के बारे में बताया गया है। पुराणों के अनुसार स्वर्ग वह स्थान होता है जहां देवता रहते हैं और अच्छे कर्म करने वाले इंसान की आत्मा को भी वहां स्थान मिलता है, इसके विपरीत बुरे काम करने वाले लोगों को नर्क भेजा जाता है, जहां उन्हें सजा के तौर पर गर्म तेल में तला जाता है और अंगारों पर सुलाया जाता है। हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में 36 तरह के मुख्य नर्कों का वर्णन किया गया है। अलग-अलग कर्मों के लिए इन नर्कों में सजा का प्रावधान भी माना गया है। गरूड़ पुराण, अग्रिपुराण, कठोपनिषद जैसे प्रामाणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। 1. महावीचि- यह नर्क पूरी तरह रक्त यानी खून से भरा है और इसमें लोहे के बड़े-बड़े कांटे हैं। जो लोग गाय की हत्या करते हैं, उन्हें इस नर्क में यातना भुगतनी पड़ती है। 2. कुंभीपाक- इस नर्क की जमीन गरम बालू और अंगारों से भरी है। जो लोग किसी की भूमि हड़पते हैं या ब्राह्मण की हत्या करते हैं। उन्हें इस नर्क में आना पड़ता है। ...

राम चरित मानस की सिद्ध चौपाइयां

अत्यंत उपयोगी है श्री रामचरित मानस के ये सिद्ध मंत्र।श्री रामचरित मानस के सिद्ध ‘मन्त्र’! नियम- मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये। अष्टांग हवन सामग्री :- १॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल। जानने की बातें :- जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में ‘स्वाहा’ बोल दे...

पंचक के बारे में विशेष जानकारी

पंचक विशेष 🔸🔸🔹🔹 भारतीय ज्योतिष में पंचक को अशुभ माना गया है। इसके अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं। पंचक के दौरान कुछ विशेष काम वर्जित किये गए है। पंचक के प्रकार 1👉 रोग पंचक रविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है। इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं। इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं करने चाहिए। हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है। 2👉 राज पंचक सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है। इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है। राज पंचक में संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है।* 3👉 अग्नि पंचक मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले, अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं। इस पंचक में अग्नि का भय होता है। इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है। इनस...

घर में धन-धान्य की पूर्ति हेतु सरल उपाय

घर मे अन्न धन धान्य की निर्विघ्न प्राप्ति और भंडारे परिपूर्ण करने के लिए माँ अन्नपूर्णा स्तोत्र के नित्य पठन का बहुत फल बताया गया है  जो व्यक्ति अन्नपूर्णा स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करता है उसके जीवन मे अनवरत खाद्य पदार्थ और सुख समृद्धि की प्राप्ति बनी रहती है। श्री माँ अन्नपूर्णा स्तोत्र नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्य रत्नाकरी निर्धूताखिल घोर पावनकरी प्रत्यक्ष माहेश्वरी । प्रालेयाचल वंश पावनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 1 ॥ नाना रत्न विचित्र भूषणकरि हेमाम्बराडम्बरी मुक्ताहार विलम्बमान विलसत्-वक्षोज कुम्भान्तरी । काश्मीरागरु वासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 2 ॥ योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मैक्य निष्ठाकरी चन्द्रार्कानल भासमान लहरी त्रैलोक्य रक्षाकरी । सर्वैश्वर्यकरी तपः फलकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 3 ॥ कैलासाचल कन्दरालयकरी गौरी-ह्युमाशाङ्करी कौमारी निगमार्थ-गोचरकरी-ह्योङ्कार-बीजाक्षरी । मोक्षद्वार-कवाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि...

यमराज के बारे में जानकारी

मृत्यु के देवता यमराज जी के चौंकाने वाले रहस्य!!!!!!!!!! कहते हैं कि विधाता लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं। मृत्य का समय ही नहीं, स्थान भी निश्चित है जिसे कोई टाल नहीं सकता। हिन्दू धर्म में तीन देवताओं को दंड नायक माना गया है- यमराज, शनिदेव और भैरव। यमराज को दंड देने का अधिकार प्रदान है। वही आत्माओं को उनके कर्म अनुसार नरक, स्वर्ग, पितृलोक आदि लोकों में भेज देते हैं।  उनमें से कुछ को पुन: धरती पर फेंक दिया जाता है। मृत्यु के देवता और दक्षिण के दिक्पाल : - 'मार्कण्डेय पुराण' के अनुसार दक्षिण दिशा के दिक्पाल और मृत्यु के देवता को यम कहा जाता है। दस दिशाओं के दिकपाल ये हैं- इंद्र, अग्नि, यम, नऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ईश्व, अनंत और ब्रह्मा। यमराज का परिवार : -  विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के गर्भ से उत्पन्न सूर्य के पुत्र को यम कहा गया है। इनकी पत्नी का नाम यमी है। शस्त्र दंड और वाहन भैंसा है। चित्रगुप्त इनका सहयोगी है। इनके पिता का नाम सूर्य और बहन का नाम यमुना और भाई का नाम श्राद्धदेव मनु है। यमराज का रूप : - यमराज का पुराणों...

छप्पन भोग की पूरी जानकारी

56 (छप्पन) भोग क्यों लगाते है... 🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸 भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है | इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है | यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी,पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है | अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं | ऐसा भी कहा जाता है कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी | अर्थात्...बालकृष्ण आठ बार भोजन करते थे | जब इंद्र के प्रकोप से सारे  व्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने  गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया | आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र की वर्षा बंद हो गई है, सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर  भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का  लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और मया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ. भगवान के प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिख...

टाइफाइड का इलाज

🌹टाइफाइड -आयुर्वेदिक उपाय 🌹 : 🌹गिलोय का काढ़ा 1 तोला को आधा तोला शहद में मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलाना लाभकारी है ।  🌹अजमोद का चूर्ण 2 से 4 ग्राम तक शहद के साथ सुबह शाम चाटने से लाभ होता है। 🌹मोथा, पित्त पापड़ा, मुलहठी, मुनक्का चारों को समभाग लेकर अष्टावशेष क्वाथ करें। इसे शहद डालकर पिलाने से ज्वर, दाह, भ्रम व वमन आदि नष्ट होते हैं। 🌹नीम के बीज पीसकर 2-2 घंटे के बाद पिलाने से आन्त्रिक ज्वर उतर जाता है । यह योग मल निकालता है। शरीर में ताजा खून बनाता है, नयी शक्ति का संचार करता है । यदि मलेरिया बुखार से टायफाइड बना हो तो नीम जैसी औषधि के अतिरिक्त अन्य कोई सस्ता और सहज शर्तिया उपचार नहीं है । 🌹 जीरे को जल के साथ महीन पीसकर 4-4 घंटे के अंतर से ओष्ठों (होंठ के किनारों पर लेप करने से ज्वर उतरने के पश्चात् ज्वरजन्य ओष्ठ-प्रकोप बुखार का मूतना) अर्थात् होठों का पकना व फूटना ठीक हो जाता है । 🌹जीरा सफेद 3 ग्राम 100 मि. ली. उबलते जल में डाल दें । इसे 15-20 मिनट के बाद छानकर थोड़ी शक्कर मिलाकर रोगी को दें। 10-15 दिनों तक निरन्तर प्रात:काल में पीने से ज्वर उतरने के पश्चात् आ...

हिंदू धर्म में दस पवित्र पक्षी

हिंदू धर्म के दस पवित्र पक्षी, जानिए उनका रहस्य!!!!!!!!! हिंदू धर्म संपूर्ण पशु-पक्षी और वृक्षों को मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण घटक मानता है। उनमें से भी कुछ वृक्ष, पशु और पक्षी ऐसे हैं ‍जिनके नहीं होने से मानव का अस्तित्व भी संकट में पड़ सकता है। इसके अलावा हिंदू धर्म के ऋषियों और मुनियों ने यह जाना कि कौन से पक्षी में क्या रहस्य छिपा हुआ है। आओ जानने हैं ऐसे दस दिव्य और पवित्र पक्षी जिनका हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है और जिनका सम्मान और आदर करना प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है।  पहला पक्षी, हंस : - जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है। पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने ‍जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक ...

पुजा पाठ से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

पूजा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी! ★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए। ★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। ★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें। ★ मन्दिर में किसी व्यक्ति के चरण नहीं छूने (गुरु को छोड़कर ) चाहिए। ★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे मानसिक जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं। ★ जप करते समय माला को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए। ★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए। ★ संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं। ★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए। ★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं। ★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है, ★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं। ★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए। ★  ...

रोगानुसार देसी गाय के घी का उपयोग

*रोगानुसार देसी गाय के शुद्ध घी के उपयोग :-* १. गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है। २. गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है। ३. गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है। ४. 20-25 ग्राम गाय का घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है।  ५. गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है। ६. नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है। ७. गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है। ८. गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है। ९. गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है। १०. हाथ-पॉँव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है। ११. हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी ।  १२. गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है। १३. गाय के घी से बल और ...

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण!!!!!!!!! भगवान ने सृष्टि रचना के साथ ही मनुष्य के मन, बुद्धि व हृदय के भीतर भगवन्भावना को बनाए रखने के लिए उसकी जिह्वा पर अपने-आप ही भगवन्नाम को प्रकट किया है । जब प्राणी पर विपत्ति आती है, दु:ख पड़ता है या अमंगल आता हुआ दिखाई देता है तो स्वत: ही मुख से ‘हे राम !’ या ‘हाय राम !’ की करुण ध्वनि निकल जाती है; आत्मा अनायास ही उस मंगलकर्ता भगवान के पावन मधुर नाम को पुकार उठती है । भगवान मनुष्य के चित्त को सदा आकर्षित करते हैं और वह सदा अंत:करण से भगवान को चाहता है । अत: भगवान का नाम उसकी रसना में अपने-आप स्फुरित होता है । यह भगवान की अहैतुकी कृपा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । नाम में भगवान ने अपनी समस्त शक्ति और प्रकाश रख दिया है जिससे मनुष्य निर्भय होकर इस संसार की यात्रा कर सकता है । विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है—ब्रह्म, परमात्मा, भगवान, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, नारायण, हरि, दुर्गा, काली, तारा, अन्नपूर्णा, गॉड, इन्द्र, चन्द्र, वायु, वरुण, सूर्य, अग्नि, प्रजाप...

हरसिंगार का औषधीय गुण

हरसिंगार : हर बीमारी में असरदार, जानें 10 लाभ नारंगी डंडी वाले सफेद खूबसूरत और महकते हरसिंगार के फूलों को आपने जरूर देखा होगा। लेकिन क्या आपने कभी हरसिंगार की पत्तियों से बनी चाय पी है? या फि‍र इसके फूल, बीज या छाल का प्रयोग स्वास्थ्य एवं सौंदर्य उपचार के लिए क्या है?  आप नहीं जानते तो, जरूर जान लीजिए इसके चमत्कारी औषधीय गुणों के बारे में। इसे जानने के बाद आप हैरान हो जाएंगे... हरसिंगार के फूलों से लेकर पत्त‍ियां, छाल एवं बीज भी बेहद उपयोगी हैं। इसकी चाय, न केवल स्वाद में बेहतरीन होती है बल्कि सेहत के गुणों से भी भरपूर है। इस चाय को आप अलग-अलग तरीकों से बना सकते हैं और सेहत व सौंदर्य के कई फायदे पा सकते हैं। जानिए विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए इसके लाभ और चाय बनाने का तरीका - वि‍धि 1 : हरसिंगार की चाय बनाने के लिए इसकी दो पत्तियां और एक फूल के साथ तुलसी की कुछ पत्त‍ियां लीजिए और इन्हें 1 गिलास पानी में उबालें। जब यह अच्छी तरह से उबल जाए तो इसे छानकर गुनबुना या ठंडा करके पी लें। आप चाहें तो स्वाद के लिए शहद या मिश्री भी डाल सकते हैं। यह खांसी में फायदेमंद है। वि‍धि 2 ...

घर में पूजा अर्चना करने का सही तरीका

घर पर पूजा-पाठ करने का क्या है सही विधि!!!!!!! कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले या फिर किसी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए सभी लोग अक्सर घर में पूजा पाठ करवाते हैं, ताकि उन्हें अपने लक्ष्य में सफलता मिल सके। अपनी मनोकामना जल्दी पूरी हो सके, इसके लिए घर में पूजा-पाठ और मांगलिक उत्सव करने का सही तरीका इस प्रकार हैं :- और उसके लिए पूजा-पाठ करते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए.. *घर में पूजा-पाठ का सही स्थान क्या हो..??* : -घर में हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा में ही मंदिर का स्थान रखें। -घर का मंदिर हमेशा लकड़ी का बना होना चाहिए। -घर के मंदिर के आसपास कोई गंदगी न हो। उसे हमेशा साफ-सुथरा ही रखें। *||* *घर के मंदिर का मुख्य रंग क्या हो..??* : -मंदिर का सही रंग हल्का पीला या नारंगी होना चाहिए। -घर के मंदिर में हमेशा हल्की पीली लाइट का प्रयोग करना चाहिए। -मंदिर में गहरे नीले रंग का प्रयोग नहीं करें। *||* *घर के मंदिर में क्या-क्या रखना चाहिए..??* : -घर के मंदिर में हलके पीले रंग का या लाल रंग का वस्त्र बिछाएं। -भगवान गणपति और महालक्ष्मी का स्वरूप रखें। -अपने इष...

विवाहिता स्त्री को गुरू बनाना चाहिये या नहीं

*हरि🕉विवाहिता स्त्री को गुरू  बनाना  चाहिये या नहीं ?* 🕉🙏🏻🕉🙏🏻🕉🙏🏻🕉🙏🏻 आइए इसके बारे में हमारे शास्त्र क्या कहते हैं जरा वह देखें । 1-  _*गुरूग्निद्विर्जातिनां वर्णाणां ब्रह्मणो गुरूः।*_ _*पतिरेकोगुरू स्त्रीणां सर्वस्याम्यगतो गुरूः।।*_ _(पदम पुं . स्वर्ग खं 40-75)_ अर्थ : *अग्नि ब्राह्मणो का गुरू है।* *अन्य वर्णो का ब्राह्मण गुरू है।* *एक मात्र उनका पति ही स्त्रीयों का गुरू है* *तथा अतिथि सब का गुरू है।* 2-  _*पतिर्बन्धु गतिर्भर्ता दैवतं गुरूरेव च।*_ _*सर्वस्याच्च परः स्वामी न गुरू स्वामीनः परः।।*_ _(ब्रह्मवैवतं पु. कृष्ण जन्म खं 57-11)_ अर्थ > *स्त्रीयों का सच्चा बन्धु पति है, पति ही उसकी गति है। पति ही उसका एक मात्र देवता है। पति ही उसका स्वामी है और स्वामी से ऊपर उसका कोई गुरू नहीं।।* 3-  _*भर्ता देवो गुरूर्भता धर्मतीर्थव्रतानी च।*_ _*तस्मात सर्वं परित्यज्य पतिमेकं समर्चयेत्।।*_ (स्कन्द पु. काशी खण्ड पूर्व 30-48) अर्थ > *स्त्रीयों के लिए पति ही इष्ट देवता है। पति ही गुरू है। पति ही धर्म है, तीर्थ और व्रत आदि है। स्त्...