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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आज हिंदू धर्म के इन नियमों को संपूर्ण विश्व को पालन करना चाहिए

हिंदू धर्म में हजारों सालों से संक्रमण से बचने के लिए कुछ सूत्र जो अब पूरी दुनिया अपना रही है । *घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:।*(वाधूलस्मृति 9) *नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:। (मनुस्मृति 4/49)) नाक, मुंह तथा सिर को ढ़ककर, मौन रहकर मल मूत्र का त्याग करना चाहिए। *तथा न अन्यधृतं धार्यम्*  (महाभारत अनु.104/86) दुसरों के पहने कपड़े नहीं पहनने चाहिए। *स्नानाचारविहीनस्य सर्वा:स्यु: निष्फला: क्रिया:*(वाधूलस्मृति 69) स्नान और शुद्ध आचार के बिना सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं, अतः: सभी कार्य स्नान करके शुद्ध होकर करने चाहिए। *लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च। लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्। (धर्मसिंधु 3 पू.आह्निक) नमक, घी, तैल, कोई भी व्यंजन, चाटने योग्य एवं पेय पदार्थ यदि हाथ से परोसे गए हों तो न खायें, चम्मच आदि से परोसने पर ही ग्राह्य हैं। *न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्। (विष्णुस्मृति 64) पहने हुए वस्त्र को बिना धोए पुनः न पहनें। पहना हुआ वस्त्र धोकर ही पुनः पहनें। *न चैव आर्द्राणि वासांसि नित्यं सेवेत मानव:।* (महाभारत अनु.104/52) *न आर्द्रं प...

ए पांच वस्तुएं कभी भी अपवित्र नहीं होती

पांच वस्तु ऐसी हे ,जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र है.... 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰  उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं         वमनं शवकर्पटम् ।   काकविष्टा ते पञ्चैते         पवित्राति मनोहरा॥  1. उच्छिष्ट —  गाय का दूध ।         गाय का दूध पहेले उसका बछडा पीकर उच्छिष्ट करता है।फिर भी वह पवित्र ओर शिव पर चढता हे । 2. शिव निर्माल्यं - गंगा का जल        गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधी शिव जी के मस्तक पे आई नियमानुसार शिव जी पर चढायी हुइ हर चीज़ निर्माल्य है पर गंगाजल पवित्र है. 3. वमनम्—उल्टी — शहद..        मधुमख्खी जब फूलो का रस लेके अपने छल्ले पे आती है , तब वो अपने मुख से उसे निकालती है ,जिससे शहद बनता है ,जो पवित्र कार्यो मे लिया जाता है. 4. शव कर्पटम्— रेशमी वस्त्र        धार्मिक कार्यो को संपादित करने के लिये पवित्रता की आवश्यकता रहती है , रेशमी वस्त्र को पवित्र माना गया है , पर रेशम को बनाने के लिये रेशमी किडें को उबलते पानी मे डाला जाता है ,ओर उसकी मौत ...

भगवान तिरुपति बालाजी

कैसे बने भगवान विष्णु तिरुपति बालाजी  〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️                  एक बार समस्त देवताओं ने मिलकर एक यज्ञ करने का निश्चय किया । यज्ञ की तैयारी पूर्ण हो गयी । तभी वेद ने एक प्रश्न किया तो एक व्यवहारिक समस्या आ खड़ी हुई । ऋषि-मुनियों द्वारा किए जाने वाले यज्ञ की हविष्य तो देवगण ग्रहण करते थे । लेकिन देवों द्वारा किए गए यज्ञ की पहली आहूति किसकी होगी ? यानी सर्वश्रेष्ठ देव का निर्धारण जरुरी था, जो फिर अन्य सभी देवों को यज्ञ भाग प्रदान करे ।   ब्रह्मा-विष्णु-महेश परम् अात्मा हैं । इनमें से श्रेष्ठ कौन है ? इसका निर्णय आखिर हो तो कैसे ? भृगु ने इसका दायित्व सम्भाला । वह देवों की परीक्षा लेने चले । ऋषियों से विदा लेकर वह सर्व प्रथम अपने पिता ब्रह्मदेव के पास पहुँचे ।   ब्रह्मा जी की परीक्षा लेने के लिए भृगु ने उन्हें प्रणाम नहीं किया । इससे ब्रह्मा जी अत्यन्त कुपित हुए और उन्हें शिष्टता सिखाने का प्रयत्न किया । भृगु को गर्व था कि वह तो परीक्षक हैं, परीक्षा लेने आए हैं । पिता-पुत्र का आज क्या रिश्ता ? भृगु ने ब्रह्म देव...

हनुमान जयंती पर पढ़ें हनुमानजी के जन्म की कथा

हनुमान जन्मोत्सव विशेष 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ पवन पुत्र हनुमान के जन्म की कहानी 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 114 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 06:03 बजे हुआ था। इस वर्ष हनुमान जी का जन्मोत्सव 8 अप्रैल 2020 बुधवार के दिन मनाया जाएगा। हनुमान जी की माता अंजनि के पूर्व जन्म की कहानी 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ कहते हैं कि माता अंजनि पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं। ‘बालपन में वो अत्यंत सुंदर और स्वभाव से चंचल थी एक बार अपनी चंचलता में ही उन्होंने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी थी। गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा, ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना मांगने लगी, तब ऋषि ने कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा। तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा, अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला।...

हनुमानजी के प्रसिद्ध मंदिर

मंगलवार विशेष,भारत के प्रसिद्ध सोलह हनुमान मंदिर ? इस लेख में आप सब भारत के विभिन्न हिस्सों में स्तिथ 16 प्रसीद्ध हनुमान मंदिरों की बारे में जानकारी पाएंगे। इनमे से हर मंदिर की अपनी एक विशेषता है कोई मंदीर अपनी प्राचीनता की लिये प्रसिद्ध है तो कोइ मन्दिरअपनी भव्यता के लिए।  जबकि कई मंदिर अपनी अनोखी हनुमान मूर्त्तियों के लिए जैसे की इलाहबाद का हनुमान मंदीर जहां की भारत की एक मात्र लेटे  हुए हनूमान की प्रतिमा है जबकि इंदौर के उलटे हनुमान मंदिर में भारत कि एक मात्र उलटे हनुमान कि प्रतीमा  हैं इसी तरह रतनपुर के गिरिजाबंध हनुमान मंदिर में स्त्री रुप में हनुमान प्रतीमा है।  इन सबसे अलग गुजरात के जामनगर के बाल हनूमान मंदीर का नाम एक अनोखे रिकॉर्ड क़े कारण गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। 1. हनुमान मंदिर, इलाहबाद, उत्तर प्रदेश इलाहबाद किले से सटा यह मंदिर लेटे हुए हनुमान जी की प्रतिमा वाला एक छोटा किन्तु प्राचीन मंदिर है। यह सम्पूर्ण भारत का केवल एकमात्र मंदिर है जिसमें हनुमान जी लेटी हुई मुद्रा में हैं। यहां पर स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा 20 फीट लम्बी है। जब वर्षा क...

पंचमुखी हनुमान

पंचमुखी हनुमान लंका में महा बलशाली मेघनाद के साथ बड़ा ही भीषण युद्ध चला. अंतत: मेघनाद मारा गया। रावण जो अब तक मद में चूर था राम सेना, खास तौर पर लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आया। रावण को कुछ दुःखी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई। रावण को याद आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं। लंका का राजा बनने के बाद उनकी सुध ही नहीं रही थी। रावण यह भली प्रकार जानता था कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महा पंडित, जादू टोने के धनी और मां कामाक्षी के परम भक्त हैं। रावण ने उन्हें बुला भेजा और कहा कि वह अपने छल बल, कौशल से श्री राम व लक्ष्मण का सफाया कर दे। यह बात दूतों के जरिए विभीषण को पता लग गयी। युद्ध में अहिरावण व महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए। विभीषण को लगा कि भगवान श्री राम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ेगी. इसके लिए उन्हें सबसे बेहतर लगा कि इसका जिम्मा परम वीर हनुमान जी को सौंप दिया जाए। राम-लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी। हनुमान जी ने भगवान श्री राम की ...

द्वादश ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्री शैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम् ॥ केदारे हिगवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम् । वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बंक गौतमी तटे ॥ वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने । सेतुबन्धे च रामेशं घृष्णेशंच शिवालये ॥ एतानि ज्योतिर्लिंगानि प्रातरुत्थाय य: पठेत् । जन्मान्तर कृत पापं स्मरणेन विनश्यति ॥

देवी पार्वती जी के शिव की अर्द्धांगिनी बनने की कथा

देवी पार्वती के शिव की अर्धांगिनी बनने की कथा भगवती पार्वती अपने पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की कन्या सती के रूप में अवतीर्ण हुई थीं। उस समय भी उन्हें भगवान शंकर की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दक्ष यज्ञ में अपने पति भगवान शिव के अपमान से क्षुब्ध होकर योगाग्नि में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। सती ने देह त्याग करते समय यह संकल्प किया कि, ‘‘मैं पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म ग्रहण कर पुन: भगवान शिव की अर्धांगिनी बनूं।’’  कुछ समय बाद ही माता सती हिमालय पत्नी मैना के गर्भ में प्रविष्ट हुईं और यथा समय उनका प्राकट्य हुआ। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण वह पार्वती कहलाईं। जब वह कुछ सयानी हुईं तो उनके माता-पिता उनके अनुरूप वर के लिए चिंतित रहने लगे। एक दिन अकस्मात देवर्षि नारद हिमवान के घर पधारे।  पर्वत राज ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया। उन्होंने अपनी पुत्री पार्वती को भी बुलाकर मुनि के चरणों में प्रणाम करवाया तथा उनसे अपनी पुत्री के भविष्य के विषय में कुछ बताने की प्रार्थना की। नारद जी ने हंस कर कहा, ‘‘गिरिराज! तुम्हारी पुत्री सब गुणों की खान है। आगे चल कर यह उमा, अम्बिका और भव...

श्री लक्ष्मी कवच

श्री लक्ष्मी कवच  🔸🔸🔹🔸🔸 लक्ष्मी में चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः। नारायणी शीर्षदेभे सर्वांगे श्री स्वरूपिणी।।  भावार्थ: लक्ष्मी जी हमारे आगे के भाग की तथा कमलाजी हमारी पीठ की रक्षा करें। नारायणी हमारे सिर की और श्री स्वरूपिणी हमारे पूरे शरीर एवं अंगों की रक्षा करें।  रामपत्नी तु प्रत्यंगे रामेश्वरी सदाऽवतु। विभालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणीतथा।। जयदात्री धनदात्री, पाभाक्षमालिनी शुभा। हरिप्रिया हरिरामा जयंकारी महोदरी।। कृष्णपरायणा देवी श्रीकृष्ण मनमोहिनी। जयंकारी महारोद्री सिद्धिदात्री शुभंकरी।।  सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूटनिवासिनी।  भयं हरतु भक्तानां भवबन्ध विमुचतु।।  भावार्थ: रामपत्नी और रामेश्वरी हमारे सब अंगों-उपांगों की रक्षा करें। वह कौमारी है, चक्रधारिणी हैं, जय देने वाली और पाभाक्षमालिनी हैं, वह कल्याणी हैं, हरिप्रिया हैं, हरिरामा हैं, जयंकारी हैं, महादेवी हैं, श्रीकृष्ण का मन मोहन करने वाली हैं, महाभयंकर, सिद्धि देने वाली हैं, शुभंकरी, सुख तथा मोक्ष को देने वाली हैं जिनके चित्रकूट निवासिनी इत्यादि अनेक नाम हैं वह अनपायिनि लक्ष्मी देवी हमारे भ...

धर्मराज दशमी व्रत कथा

धर्मराज दशमी 〰️🌼🌼〰️ धर्मराज दशमी का व्रत व त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की दशमी को है। धर्मराज को यमराज भी कहते हैं। यमराज को पितृपति और दण्डधर भी कहते हैं।   लाभ तथा महत्त्व 〰️〰️〰️〰️〰️ भगवान श्रीकृष्ण के मुख से इस कथा को सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- हे गोविन्द! यह दशमी व्रत किस प्रकार और कैसे किया जाता है तथा इसके क्या लाभ हैं? आप सर्वज्ञ हैं। आप इसे बतायें। युधिष्ठिर की बात सुनकर श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! इस व्रत के प्रभाव से राजपूत्र अपना राज्य, कृषि, खेती, वणिक व्यापार में लाभ, पुत्रार्थी पुत्र तथा मानव धर्म, अर्थ एवं काम की सिद्धि प्राप्त करते हैं। कन्या श्रेष्ठ वर प्राप्त करती है। ब्राह्मण निर्विघ्र यज्ञ सम्पन्न कर लेता है। असाध्य रोगों से पीड़ित रोगी रोग से मुक्त हो जाता है और पति के यात्रा-प्रवास पर जाने पर और जल्दी न आने पर स्त्री इस व्रत के द्वारा अपने पति को शीघ्र प्राप्त कर सकती है। शिशु के दन्तजनिक पीड़ा में भी इस व्रत से पीड़ा दूर हो जाती है और कष्ट नहीं होता। इसी प्रकार अन्य कार्यों की सिद्धि के लिए इसी दशमी व्रत को करना चाहिए। जब भी जिस किसी को कष्ट पड़े, उसकी निवृत्ति ...

पापनाशक स्तोत्र

*जानकि त्वाम् नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥* *दारिद्र्यरणसन्हर्त्री भक्तानामिष्टदायिनीम् ॥* *विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम ॥* *भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ॥* *पौलस्त्यैश्वर्यसन्हर्त्री भक्ताभीष्टाम् सरस्वतीम् ॥* *पतिव्रताधुरीणां त्वाम् नमामि जनकात्मजां ॥* *अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम ॥* *आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहं ॥* *प्रसादाभिमुखीम् लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभां ॥* *नमामि चन्द्रभगिनीम् सीताम् सर्वाङ्गसुन्दरीम् ॥* *नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरं ॥* *पद्मालयां पद्महस्तां विष्णु वक्षः स्थलालयां ॥* *नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननां ॥* *आल्हादरूपिणीम् सिद्धिं शिवाम् शिवकरीं सतीम् ॥* *नमामि विश्वजननीम् रामचन्द्रेष्टवल्लभां ॥* *सीतां सर्वानवद्यान्गीम् भजामि सततं हृदा ॥* (स्कन्द पुराण ४६/५०-५७) *जो मनुष्य वायुपुत्र हनुमान द्वारा वर्णित श्री राम और सीताजी के इन पाप नाशक स्तोत्रों का प्रतिदिन पाठ करता है , वह सदा मनोवांछित महान एश्वर्य का उपभोग करता है*।

पितृदोष से बचने का बहुत सरल उपाय

: पितृदोष की पूजा नहीं करा सकते हैं तो 3 उपाय से मिलेगा लाभ :  जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है पितृदोष यानी हमारे पूर्वजों का ठीक से श्राद्ध कर्म ना होने के कारण घर में आने वाली परेशानी। पितृदोष है या नहीं ये किसी इंसान की कुंडली से भी पता किया जाता है। इसका सीधा तरीका है कि अगर कुंडली में सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु-केतु में से कोई एक ग्रह बैठा हो तो इसे पितृदोष कहा जाता है। नीचे दिए गए 6 में से किन्हीं भी तीन उपायों को कर लेने से पितृदोष से राहत मिलती है। ज्योतिष में सूर्य को पिता कहा गया है, चंद्रमा को माता। अगर इन दोनों ग्रहों में से किसी एक के साथ राहु या केतु हों तो ये ग्रह दूषित हो जाते हैं। इसे ही पितृदोष कहा जाता है। अगर पितृदोष हो तो कई सारी समस्याएं आती हैं। इनकी शांति के लिए पितृदोष की पूजा होती है, जिसमें सभी जाने या अनजाने पितरों के लिए तर्पण-श्राद्ध किया जाता है। अगर आपके पास पूजा कराने के लिए समय या संसाधनों का अभाव हो तो आप कुछ छोटे-छोटे उपायों से अपने पितृदोष की शांति कर सकते हैं।                       ये होता है...

भगवान शिव के इन ज्योतिर्लिंगों के स्मरण

शिव के बारह ज्योतिर्लिंग की महिमा  〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥ परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥ वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥ एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥ इस स्तोत्र के जप मात्र से व्यक्ति को शिवजी के साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र को नियमित जप करता है, उसे महालक्ष्मी की कृपा हमेशा प्राप्त होती है क्या आप जानते हैं भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं। इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मातर के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं।  सोमनाथ👉 सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र...