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पापनाशक स्तोत्र

*जानकि त्वाम् नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥*

*दारिद्र्यरणसन्हर्त्री भक्तानामिष्टदायिनीम् ॥*

*विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम ॥*

*भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ॥*

*पौलस्त्यैश्वर्यसन्हर्त्री भक्ताभीष्टाम् सरस्वतीम् ॥*

*पतिव्रताधुरीणां त्वाम् नमामि जनकात्मजां ॥*

*अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम ॥*

*आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहं ॥*

*प्रसादाभिमुखीम् लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभां ॥*

*नमामि चन्द्रभगिनीम् सीताम् सर्वाङ्गसुन्दरीम् ॥*

*नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरं ॥*

*पद्मालयां पद्महस्तां विष्णु वक्षः स्थलालयां ॥*

*नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननां ॥*

*आल्हादरूपिणीम् सिद्धिं शिवाम् शिवकरीं सतीम् ॥*

*नमामि विश्वजननीम् रामचन्द्रेष्टवल्लभां ॥*

*सीतां सर्वानवद्यान्गीम् भजामि सततं हृदा ॥*
(स्कन्द पुराण ४६/५०-५७)

*जो मनुष्य वायुपुत्र हनुमान द्वारा वर्णित श्री राम और सीताजी के इन पाप नाशक स्तोत्रों का प्रतिदिन पाठ करता है , वह सदा मनोवांछित महान एश्वर्य का उपभोग करता है*।

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पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

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