रुद्राक्ष के महत्व, लाभ और धारण विधि
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एक मुखी रुद्राक्ष
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इसके मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। इसे धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होता है। चेतना का द्वार खुलता है, मन विकार रहित होता है और भय मुक्त रहता है। लक्ष्मी की कृपा होती है।*
दो मुखी रुद्राक्ष
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मुख्य ग्रह चन्द्र हैं यह शिव और शक्ति का प्रतीक है मनुष्य इसे धारण कर फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है।
तीन मुखी रुद्राक्ष
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मुख्य ग्रह मंगल, भगवान शिव त्रिनेत्र हैं। भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है। यह तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना साक्षात भगवान शिव और शक्ति को धारण करना है। यह अग्रि स्वरूप है इसका धारण करना रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर में लाभप्रद है। आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है।
चार मुखी रुद्राक्ष
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चार मुखी रुद्राक्ष के मुख्य देवता ब्रह्मा हैं और यह बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी में भी लाभप्रद है।
पांच मुखी रुद्राक्ष
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यह साक्षात भगवान शिव का प्रसाद एवं सुलभ भी है। यह सर्व रोग हरण करता है। मधुमेह, ब्लडप्रैशर, नाक, कान, गुर्दा की बीमारी में धारण करना लाभप्रद है। यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है।
छ: मुखी रुद्राक्ष
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शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करता है। इस पर शुक्रग्रह सत्तारूढ़ है। शरीर के समस्त विकारों को दूर करता है, उत्तम सोच-विचार को जन्म देता है, राजदरबार में सम्मान विजय प्राप्त कराता है।
सात मुखी रुद्राक्ष
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इस पर शनिग्रह की सत्तारूढ़ता है। यह भगवती महालक्ष्मी, सप्त ऋषियों का प्रतिनिधित्व करता है। लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, हड्डी के रोग दूर करता है, यह मस्तिष्क से संबंधित रोगों को भी रोकता है।
आठ मुखी रुद्राक्ष
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भैरव का स्वरूप माना जाता है, इसे धारण करने वाला व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। गणेश जी की कृपा रहती है। त्वचा रोग, नेत्र रोग से छुटकारा मिलता है, प्रेत बाधा का भय नहीं रहता। इस पर राहू ग्रह सत्तारूढ़ है।
नौ मुखी रुद्राक्ष
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नवग्रहों के उत्पात से रक्षा करता है। नौ देवियों का प्रतीक है। दरिद्रता नाशक होता है। लगभग सभी रोगों से मुक्ति का मार्ग देता है।
दस मुखी रुद्राक्ष
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भगवान विष्णु का प्रतीक स्वरूप है। इसे धारण करने से परम पवित्र विचार बनता है। अन्याय करने का मन नहीं होता। सन्मार्ग पर चलने का ही योग बनता है। कोई अन्याय नहीं कर सकता, उदर और नेत्र का रोग दूर करता है।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष
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रुद्र के ग्यारहवें स्वरूप के प्रतीक, इस रुद्राक्ष को धारण करना परम शुभकारी है। इसके प्रभाव से धर्म का मार्ग मिलता है। धार्मिक लोगों का संग मिलता है। तीर्थयात्रा कराता है। ईश्वर की कृपा का मार्ग बनता है।
बारह मुखी रुद्राक्ष
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बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है। शिव की कृपा से ज्ञानचक्षु खुलता है, नेत्र रोग दूर करता है। ब्रेन से संबंधित कष्ट का निवारण होता है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष
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इन्द्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मानव को सांसारिक सुख देता है, दरिद्रता का विनाश करता है, हड्डी, जोड़ दर्द, दांत के रोग से बचाता है।
चौदह मुखी रुद्राक्ष
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भगवान शंकर का प्रतीक है। शनि के प्रकोप को दूर करता है, त्वचा रोग, बाल के रोग, उदर कष्ट को दूर करता है। शिव भक्त बनने का मार्ग प्रशस्त करता है।
रुद्राक्ष को विधान से अभिमंत्रित किया जाता है, फिर उसका उपयोग किया जाता है। रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से वह अपार गुणशाली होता है। अभिमंत्रित रुद्राक्ष से मानव शरीर का प्राण तत्व अथवा विद्युत शक्ति नियमित होती है। भूतबाधा, प्रेतबाधा, ग्रहबाधा, मानसिक रोग के अतिरिक्त हर प्रकार के शारीरिक कष्ट का निवारण होता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को सशक्त करता है, जिससे रक्त चाप का नियंत्रण होता है। रोगनाशक उपाय रुद्राक्ष से किए जाते हैं, तनावपूर्ण जीवन शैली में ब्लडप्रैशर के साथ बे्रन हैमरेज, लकवा, मधुमेह जैसे भयानक रोगों की भीड़ लगी है। यदि इस आध्यात्मिक उपचार की ओर ध्यान दें तो शरीर को रोगमुक्त कर सकते हैं।
रुद्राक्ष धारण करने की सम्पूर्ण विधि
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रुद्राक्ष को धारण करना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है. रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व कुछ शुद्ध पवित्र कर्म किए जाते हैं, जिनके उपरांत रुद्राक्ष अभिमंत्रित हो धारण एवं उपयोग करने योग्य बनता है. सर्वप्रथम रुद्राक्ष की माला या रुद्राक्ष, जो भी आप धारण करना चाहते हैं, उसको पांच से सात दिनों तक सरसों के तेल में भिगोकर रखना चाहिए तत्पश्चात रुद्राक्ष के मनकों को शुद्ध लाल धागे में माला तैयार करने के बाद पंचामृत (गंगाजल मिश्रित रूप से) और पंचगव्य को मिलाकर स्नान करवाना चाहिए और प्रतिष्ठा के समय ॐ नमः शिवाय इस पंचाक्षर मंत्र को पढ़ना चाहिए। उसके पश्चात पुनः गंगाजल में शुद्ध करके निम्नलिखित मंत्र पढ़तेहुए चंदन, बिल्वपत्र, लालपुष्प, धूप, दीप द्वारा पूजन करके अभिमंत्रित करे और “ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात”। 108 बार मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए।
शिवपूजन, मंत्र, जप, उपासना आरंभ करने से पूर्व ऊपर लिखी विधि के अनुसार रुद्राक्ष माला को धारण करने एवं एक अन्य रुद्राक्ष की माला का पूजन करके जप करना चाहिए। जपादि कार्यों में छोटे और धारण करने में बड़े रुद्राक्षों का ही उपयोग करे। तनाव से मुक्ति हेतु 100 दानों की, अच्छी सेहत एवं आरोग्य के लिए 140 दानों की, अर्थ प्राप्ति के लिए 62 दानों की तथा सभी कामनाओं की पूर्ति हेतु 108 दानों की माला धारण करे। जप आदि कार्यों में 108 दानों की माला ही उपयोगी मानी गई है। अभीष्ट की प्राप्ति के लिए 50 दानों की माला धारण करे। द्गिाव पुराण के अनुसार 26 दानों की माला मस्तक पर, 50 दानों की माला हृदय पर, 16 दानों की माला भुजा पर तथा 12 दानों की माला मणिबंध पर धारण करनी चाहिए। जिस रुद्राक्ष माला से जप करते हो, उसे धारण नहीं करे। इसी प्रकार जो माला धारण करें, उससे जप न करे। दूसरों के द्वारा उपयोग मे लाए गए रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला को प्रयोग में न लाएं।
रुद्राक्ष धारण करने का शुभ मुहूर्त
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रूद्राक्ष को पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों में धारण करने पर व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रहण में, संक्रांति, अमावस्या में धारण किया जाना चाहिए रुद्राक्ष का आधार ब्रह्मा जी हैं इसकी नाभि विष्णु हैं, इसके चेहरे रुद्र है और इसके छिद्र देवताओं के होते हैं। रुद्राक्ष के दिव्य गुणों से जीव दुखों से मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जीता है तथा भगवान शिव की कृपा को पाता है।
सावधानी
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रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए। मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना हितकर होता है। आत्मिक शुद्धता के द्वारा ही रुद्राक्ष के लाभ को प्राप्त किया जा सकता है। रुद्राक्ष मन को पवित्र कर विचारों को पवित्र करता है।
श्लोकी रुद्राक्ष महिमाम्
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एकमुखी रुद्राक्ष
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एकवक्त्रः शिवः साक्षात्
ब्रह्महत्या व्यपोहति।
द्विमुखी रुद्राक्ष
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द्विवक्त्रो देव देवशो गौवधं ना नाशयेद्ध्रुवुम्।
तीन मुखी रुद्राक्ष
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त्रिवक्त्रोऽग्नेर्विज्ञेयः स्त्री हत्या च व्यपोहति।
चतुर्मुखी रुद्राक्ष
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चतुर्वक्त्रः स्वयं ब्रह्मा नरहत्या व्यपोहति।
पंचमुखी रुद्राक्ष
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पंचवक्त्रः स्वयं रुद्रः कालाग्निर्नाम नामतः।
अगम्यागमनं चैव तथा चाभयभक्षणम्।
मुच्यत नात्र संदेहः पंचवक्त्र धारणात्।।
षट्मुखी रुद्राक्ष
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षड्वक्त्रः कार्तिकेयस्तु धारयेत् दक्षिणे भुजे।
भ्रूणहत्यादिभिः पापैर्मुच्यते नात्र संशयः।।
सप्तमुखी रुद्राक्ष
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सप्तवक्त्रो महासेन अनन्तो नाम नामतः।
स्वर्णस्तेयं गौवधश्चैव कृत्यापाप शतानि च ।।
अष्टमुखी रुद्राक्ष
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अष्टवक्त्रो महासेन साक्षात् देवो विनायकः।
मानकूटाविजं पाप हर स्त्री जन्ममेव च ।
तप्तापं न भदेद्वत्स अष्टवक्त्रस्य धारणम् ।।
नवमुखी रुद्राक्ष
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नव मुखी भैरवं नाम कापिलं मुक्तिदं स्मृतम्।
धारणाद् वामहस्ते तु मम तुल्यो भवेन्नरः।
लक्ष्कोटि सहस्राणि पापानि प्रतिमुंचति।।
दसमुखी रुद्राक्ष
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दशवक्त्रो महासेन साक्षाद् देवो जनार्दनः।
गृहश्चैव पिशाचस्य बेताला ब्रह्मराक्षसाः।
नागाभ्य न दशंतीह दशवक्त्रस्य धारणात्
एकादश मुखी रुद्राक्ष
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एकादशास्यो रुद्रो हि रूद्राश्चैकादशा: स्मृताः।
शिखायां धारेयन्नित्यं तस्य पुण्यफलं श्रृणु ।।
अश्वमेघ सहस्राणि वाजपेय शतानि च।
तत्फलं लभते मर्त्यो रूद्रवक्त्रस्य धारणात् ।।
द्वादशमुखी रुद्राक्ष
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द्वादशास्यो हि रुद्राक्षो साक्षाद् देवः प्रभाकरः।
रुद्राक्षं द्वादशास्यन्तु धारयेत्कण्ठ देशतः।।
नश्यन्ति तानि पापानि वक्त्रद् वादश धारणात् ।
आदित्याश्चेव ते सर्वे रुद्राक्ष शेव व्यवस्थितः ।।
त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष
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त्रयोदशास्यं रुद्राक्षं वत्स यो धारयेन्नरः ।
सर्वान्कामानावाप्नोति सौभाग्यमतुलं भवेत् ।।
सर्व रसायनं चैव धातवादस्तथैव च ।
सर्व सिध्यति रुद्राक्षान्धारयन्ति च ये नराः ।।
चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष
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चतुर्दशास्यो रुद्राक्षो साक्षाद् देवो हनुमतः ।
धारयेन्मूर्घि्न यो याति परमं पदम् ।।
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