सोमवार, 25 अप्रैल 2022

भगवान शिव के प्रमुख सात अवतार

 भगवान शिव के प्रमुख सात अवतार 

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️


कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।

जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥


  जिनका कुंद के पुष्प और चन्द्रमा के समान (गौर) शरीर है, जो पार्वतीजी के प्रियतम और दया के धाम हैं और जिनका दीनों पर स्नेह है, वे कामदेव का मर्दन करने वाले (शंकरजी) मुझ पर कृपा करें॥


 सुप्रसिद्ध शिव महापुराण में देवों के देव महादेव शिव के अनेक अवतारों का वर्णन किया गया है. इस धर्मग्रंथ के अनुसार भगवान शिव ने 19 अवतार लिए थे। प्रस्तुत लेख में हम आपको भूतभावन भोलेनाथ के प्रमुख सात अवतारों की कथा बताएगें।


वीरभद्र अवतार भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया।


 उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए।शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।


पिप्पलाद अवतार मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए?


 देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे।


देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। 


शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।“ पिप्पलादेति तन्नाम चक्रे ब्रह्मा प्रसन्नधी:”।अर्थात ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर सुवर्चा के पुत्र का नाम पिप्पलाद रखा।


नंदी अवतार भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है। नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। 


इस अवतार की कथा इस प्रकार है- शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की।


तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला।


 शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ।


भैरव अवतार शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तब वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी।


 उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया।उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं।


भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।


अश्वत्थामा अवतार महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप मे अवतीर्ण होंगे।


समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं।शिवमहापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।


शरभावतार भगवान शंकर का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। 


इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार-  हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था।


हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की।


 लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।


गृहपति अवतार भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। इसकी कथा इस प्रकार है- नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। शुचिष्मती ने बहुत काल तक नि:संतान रहने पर एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की।


पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए। यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की।एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया।


 मुनि ने बालरूपधारी शिव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्म ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

बुधवार, 20 अप्रैल 2022

श्रीमयूरेश स्तोत्रम्

 श्रीमयूरेश स्तोत्रम्

〰️〰️🌼〰️〰️

श्री गणपति भगवान सभी विघ्नों का नाश करने वाले देवता है, यह सभी कार्यो को सिद्ध करने वाले हैं। किसी भी पूजा या अनुष्ठान में गणपति जी को स्थापित करके पूजन या अनुष्ठान किया जाये तो निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है।

यूँ तो गणपति महाराज के अनेको स्तोत्रम् हैं परंतु मयूर स्तोत्रम् का महत्व सर्वोपरि है। यह स्तोत्र अपने आप में चैतन्य और मन्त्र सिद्ध है, अतः इसका पाठ ही पूर्ण सफलता प्रदान करने वाला है। मयूर स्तोत्रम् का पाठ घर में आने वाली बाधाओ, सुख शांति, उन्नति, प्रगति तथा प्रत्येक क्षेत्र में इसका नियमित पाठ सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यदि कोई व्यक्ति मानसिक अथवा शारीरिक रूप से परेशान है। किसी प्रकार की बीमारी से दुखी है तब इस स्तोत्र का पाठ करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा किसी को जेल हो गई है अथवा जेल जाने की संभावना बन रही है तब भी इस स्तोत्र का पाठ कर के इससे बचा जा सकता है। इस स्तोत्र का पाठ स्त्री एवं पुरुष सामान रूप से कर सकते हैं।


सर्व प्रथम स्नान कर आसान को स्पर्श करके मस्तक से लगाएं। पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे अपने सामने गणपति यंत्र या मूर्ती स्थापित करें। पूजा शुक्ल पक्ष के बुधवार को प्रारम्भ करें।


“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||

सर्वप्रथम गुरु जी का पंचोपचार से पूजन करे। उसके बाद गणपति महाराज को प्रणाम करें।


“सर्व स्थूलतनुम् गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम

प्रस्यन्द्न्मधुगंधलुब्धमधुपव्यालोलगंडस्थलम।

दंताघातविदारितारीरुधिरे: सिन्दुरशोभाकर,

वन्दे शैलसुत गणपति सिद्धिप्रदं कामदम ||

सिन्दुराभ त्रिनेत्र प्रथुतरजठर हमेर्दधानस्त्पदमेर्दधानम्

दंत पाशाकुशेष्ट-अन्द्दु रुकर्विलसद्विजपुरा विरामम,

बालेन्दुद्दौतमौली करिपतिवदनं दानपुरार्र्गन्ड-

भौगिन्द्रा बद्धभूप भजत गणपति रक्तवस्त्रान्गरांगम .

सुमुखश्चेक़दंतश्च कपिलो गजकर्णक:

लम्बोदरश्च विक्तो विघ्ननाशो विनायकः

धूम्रकेतु गणध्यक्षो भालचन्द्रो गजानना:

द्वादशेतानी नामानि य पठच्छ्रणुयदपि |

विद्धारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा |

संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्यतस्य ना जायते ||”


तत्पश्चात गणपति महाराज के 12 नामो का स्मरण करे।


सुमुखश्च-एकदंतश्च कपिलो गज कर्णक:

लम्बोदरश्व विकटो विघ्ननाशो विनायक:

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:

द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छर्णुयादपि

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा

संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जयते।

इसके बाद श्री गणपति जी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करके मयुरेश स्त्रोत का पाठ करे करें।

 

श्रीमयूरेश स्तोत्रम्

〰️〰️〰️〰️〰️

ब्रहोवाच

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा । मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।1।।


ब्रह्मा जी बोले – जो पुराण पुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की कीडाएँ करते हैं. जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाज्य अर्थात अचिन्त्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।1।।


परातत्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् । गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।2।।


जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित, गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।।2।।


सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया । सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।3।।


जो स्वेच्छा से ही संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।3।।


नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् । नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ।।4।।


जो अनेकानेक दैत्यों के प्राणनाशक हैं और नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं, उन नाना अस्त्र-शस्त्रधारी मयूरेश को मैं भक्ति भाव से नमस्कार करता हूँ ।।4।।


इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् । सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।5।।


इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय दिन-रात जिनका स्तवन करता है तथा जो सत्, असत्, व्यक्त और अव्यक्त रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।5।।


सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् । सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।6।।


जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी, सर्वव्यापक और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।6।।


मयूरेश उवाच


पार्वतीनदनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् । भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।7।।


जो पार्वती जी को पुत्र रूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान शंकर का भी आनन्द बढ़ाते हैं, उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ ।।7।।


मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् । समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ।।8।।


मुनि जिनका ध्यान करते हैं, मुनि जिनके गुण गाते हैं तथा जो मुनियों की कामना पूर्ण करते हैं, उन आप समिष्ट-व्यष्टि रूप मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।8।।

सर्वाज्ञाननिहान्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् । सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।9।।


जो समस्त वस्तुविषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्भावक, पवित्र, सत्य-ज्ञान स्वरूप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।।9।।


अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् । अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।10।।


जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभवसम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णु रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।।10।।


मयूरेश उवाच


इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रणाशनम् । सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ।।11।।


मयूरेश बोले – यह स्तोत्र ब्रह्मभाव की प्राप्ति कराने वाला और समस्त पापों का नाशक है, मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवांछित वस्तु देने वाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करने वाला है ।।11।।


कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् । आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ।।12।।

 

सात दिन तक इसका पाठ किया जाए तो कारागार में पड़े हुए मनुष्यों को भी यह छुड़ा लाता है. यह शुभ स्तोत्र आधि अर्थात मानसिक चिन्ता तथा व्याधि अर्थात शारीरिक रोग को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है.


।। इति श्रीमयूरेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...