सोमवार, 24 अक्टूबर 2022

दीपावली पूजन विधि

 दीपावली महात्मय एवं पूजन विधि 

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हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. प्रतिवर्ष यह कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है. रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की अमावस्या थी, उस दिन घर-घर में दिए जलाए गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली गई।


“ब्रह्मपुराण” के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं।


दीपावली पूजन के लिए पूजा स्थल एक  दिन पहले से सजाना चाहिए पूजन सामग्री भी दिपावली की पूजा शुरू करने से पहले ही एकत्रित कर लें। इसमें अगर माँ के पसंद को ध्यान में रख कर पूजा की जाए तो शुभत्व की वृद्धि होती है। माँ के पसंदीदा रंग लाल, व् गुलाबी है। इसके बाद फूलों की बात करें तो कमल और गुलाब मां लक्ष्मी के प्रिय फूल हैं। पूजा में फलों का भी खास महत्व होता है। फलों में उन्हें श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े पसंद आते हैं। आप इनमें से कोई भी फल पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। अनाज रखना हो तो चावल रखें वहीं मिठाई में मां लक्ष्मी की पसंद शुद्ध केसर से बनी मिठाई या हलवा, शीरा और नैवेद्य है। माता के स्थान को सुगंधित करने के लिए केवड़ा, गुलाब और चंदन के इत्र का इस्तेमाल करें।


दीये के लिए आप गाय के घी, मूंगफली या तिल्ली के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मां लक्ष्मी को शीघ्र प्रसन्न करते हैं। पूजा के लिए अहम दूसरी चीजों में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र शामिल हैं।


पूजा की चौकी सजाना

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(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूक, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र


सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजा करने वाले मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अलावा एक दीपक गणेशजी के पास रखें।


मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।


इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचों बीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।


इन थालियों के सामने पूजा करने वाला बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।


हर साल दिवाली पूजन में नया सिक्का ले और पुराने सिक्को के साथ इख्ठा रख कर दीपावली पर पूजन करे और पूजन के बाद सभी सिक्को को तिजोरी में रख दे।


पवित्रीकरण 

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हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में नीचे दिया गया पवित्रीकरण मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।


शरीर एवं पूजा सामग्री पवित्रीकरण मन्त्र👇

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।


यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥


पृथ्वी पवित्रीकरण विनियोग👇

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः


कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥


अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-


पृथ्वी पवित्रीकरण मन्त्र👇

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः


अब आचमन करें

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पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-


ॐ केशवाय नमः


और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-


ॐ नारायणाय नमः


फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-


ॐ वासुदेवाय नमः।

 

शिखा बंधन  

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शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति की स्थापना करें                                                           चिद्रुपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते ,तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व मे ॥


मौली बांधने का मंत्र  

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येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।  

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥


तिलक लगाने का मंत्र  

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कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्। 

ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ॥


यज्ञोपवीत मंत्र  

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ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।

आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं  बलमस्तु तेज:।।


पुराना यगोपवीत त्यागने का मंत्र  

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एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।  

जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम्।


न्यास  

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संपूर्ण शरीर को साधना के लिये पुष्ट एवं सबल बनाने के लिए प्रत्येक मन्त्र के साथ संबन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें


ॐ वाङ्ग में आस्येस्तु - मुख को

ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु - नासिका के छिद्रों को

ॐ चक्षुर्में तेजोऽस्तु  - दोनो नेत्रों को

ॐ कर्णयोमें श्रोत्रंमस्तु - दोनो कानो को

ॐ बह्वोर्मे  बलमस्तु  -  दोनो बाजुओं को

ॐ ऊवोर्में ओजोस्तु  -  दोनों जंघाओ  को

ॐ अरिष्टानि  मे अङ्गानि सन्तु - सम्पूर्ण शरीर को।


आसन पूजन   

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अब अपने आसन के नीचे चन्दन से त्रिकोण बनाकर उसपर अक्षत , पुष्प समर्पित करें एवं मन्त्र बोलते हुए हाथ जोडकर प्रार्थना करें।


ॐ पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥ 


इसके बाद संभव हो तो किसी किसी ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से पूजन करवाना अति लाभदायक रहेगा। ऐसा संभव ना हो तो सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर गणेश जी का ध्यान कर अक्षत पुष्प अर्पित करने के पश्चात दीपक का गंधाक्षत से तिलक कर निम्न मंत्र से पुष्प अर्पण करें।


शुभम करोति कल्याणम, 

अरोग्यम धन संपदा, 

शत्रु-बुद्धि विनाशायः, 

दीपःज्योति नमोस्तुते ! 


दिग् बन्धन   

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बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओ में छिड़कें 


बायें हाथ में चावल लेकर दायें से ढक कर निम्न मंत्रों का उच्चारण करें


ॐ अपसर्पन्तु ये भूता ये भूता भूमि संस्थिताः। ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।। अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्। सर्वेषामविरोधेन पूजा. कर्म समारभे।।


बायें हाथ में रखे हुए चावलों को निम्न मंत्रोच्चार करते हुए सभी दिशाओं में उछाल दें


ॐ प्राच्ये नमः पूर्व दिशा में।

ॐ प्रतीच्ये नमः पश्चिम दिशा में।

ॐ उदीच्चे नमः उत्तर दिशा में ।

ॐ अवाच्चै नमः दक्षिण दिशा में । 

ऊँ ऊर्ध्वाय नमः ऊपर की ओर।

ॐ पातालाय नमः नीचे की ओर।


गणेश स्मरण   

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सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः  । लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥ 

 धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः   ।   द्वादशैतानि नामानि  यः पठेच्छृणुयादपि ॥ 

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा    ।     संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥ 


श्री गुरु ध्यान   

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अस्थि चर्म युक्त देह को ही गुरु नहीं कहते अपितु इस देह में जो ज्ञान समाहित है उसे गुरु कहते हैं , इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये उन्होने जो तप और त्याग किया है , हम उन्हें नमन करते हैं , गुरु हीं हमें दैहिक , भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का ज्ञान देतें हैं इसलिये शास्त्रों में गुरु का महत्व सभी देवताओं से ऊँचा माना गया है , ईश्वर से भी पहले गुरु का ध्यान एवं पूजन करना शास्त्र सम्मत कही गई है।


द्विदल  कमलमध्ये  बद्ध  संवित्समुद्रं     ।  धृतशिवमयगात्रं     साधकानुग्रहार्थम्  ॥


श्रुतिशिरसि विभान्तं बोधमार्तण्ड मूर्तिं   । 

 शमित तिमिरशोकं  श्री गुरुं भावयामि  ॥


ह्रिद्यंबुजे      कर्णिक       मध्यसंस्थं       ।  

सिंहासने      संस्थित       दिव्यमूर्तिम्  ॥


ध्यायेद्   गुरुं   चन्द्रशिला    प्रकाशं       ।    

 चित्पुस्तिकाभिष्टवरं           दधानम्  ॥


श्री  गुरु  चरणकमलेभ्यो   नमः  ध्यानं  समर्पयामि।


॥ श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः प्रार्थनां समर्पयामि , श्री गुरुं मम हृदये आवाहयामि मम हृदये कमलमध्ये स्थापयामि नमः ॥ 


पूजन हेतु संकल्प 

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इसके बाद बारी आती है संकल्प की। जिसके लिए पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें- ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079, तमेऽब्दे नल नामक संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) सोमवासरे चित्रा नक्षत्रे वैधृति योग शकुनि करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।


गणेश पूजन

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किसी भी पूजन की शुरुआत में सर्वप्रथम श्री गणेश को पूजा जाता है। इसलिए सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करें। 

इसके लिए हाथ में पुष्प लेकर गणेश जी का ध्यान करें। मंत्र पढ़े – 


ध्यानम्

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खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं

प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्।

दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः    सिन्दुरशोभाकरं वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्॥

ॐ गं गणपतये नमः ध्यानं समर्पयामि ।


ॐ गजाननम्भूतगणादिसेवितं 

कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। 

उमासुतं शोक विनाशकारकं 

नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।


गणपति आवाहन:👉 ॐ गणानां त्वां गणपति ( गूं ) हवामहे प्रियाणां त्वां प्रियपति ( गूं ) हवामहे निधीनां त्वां निधिपति ( गूं ) हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्  ॥

एह्येहि  हेरन्ब  महेशपुत्र समस्त  विघ्नौघविनाशदक्ष।

माङ्गल्य पूजा प्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते॥

ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः गणपतिमावाहयामि , स्थापयामि , पूजयामि 


ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। इतना कहने के बाद पात्र में अक्षत छोड़ दे।


आसन

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अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम् कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं  परिगृह्यताम ॥

ॐ  गं  गणपतये  नमः आसनार्थे  पुष्पं समर्पयामि।


स्नान

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॥ मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्   तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 


ॐ  गं  गणपतये नमः  पद्यं , अर्ध्यं , आचमनीयं च  स्नानं समर्पयामि , पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि  ।  (पांच आचमनि जल प्लेटे मे चदायें )


वस्त्र

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सर्वभुषादिके सौम्ये  लोके  लज्जानिवारणे , मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥

ॐ गं गणपतये नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।


यज्ञोपवीत

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ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं  पुरस्तात्।

आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥

यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवितेनोपनह्यामि।

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्  ।

उपवीतंमया दत्तं गृहाण परमेश्वर  ॥

ॐ गं गणपतये नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि , यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।


 चन्दन

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ॐ श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरं, विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥


ॐ गं गणपतये नमः चन्दनं समर्पयामि ।


अक्षत

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अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः  मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर   ॥

ॐ गं गणपतये नमः अक्षतान् समर्पयामि ।


पुष्प

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माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः, मयाऽऽ ह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां॥ 


ॐ  गं गणपतये नमः पुष्पं बिल्वपत्रं च समर्पयामि।


 दूर्वा

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दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान्  ,  आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक ॥

ॐ गं गणपतये नमः दूर्वाङ्कुरान समर्पयामि।


सिन्दूर

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सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्  ,  शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्  ॥

ॐ गं गणपतये नमः सिदुरं समर्पयामि ।


धूप

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॥ वनस्पति रसोद् भूतो गन्धाढयो  सुमनोहरः, आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ गं गणपतये नमः धूपं आघ्रापयामि ।


दीप

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साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया , दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्  ॥ 


ॐ गं गणपतये नमः दीपं दर्शयामि  ।


नैवैद्य

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शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च , आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः नैवैद्यं निवेदयामि नानाऋतुफलानि च समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि।


ताम्बूल

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पूगीफलं महद्दिव्यम् नागवल्लीदलैर्युतम्  एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ 


ॐ गं गणपतये नमः ताम्बूलं समर्पयामि ।


दक्षिणा

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हिरण्यगर्भगर्भस्थं  हेमबीजं विभावसोः   अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

ॐ गं गणपतये नमः कृतायाः पूजायाः सद् गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।


आरती

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कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् , आरार्तिकमहं  कुर्वे पश्य मां वरदो भव ॥

ॐ गं गणपतये नमः आरार्तिकं समर्पयामि ।


मन्त्रपुष्पाञ्जलि

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नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद् भवानि च  पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वर ॥


ॐ गं गणपतये नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिम्  समर्पयामि ।


प्रदक्षिणा

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यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि  च, तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥

ॐ गं गणपतये नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि ।


विशेषार्ध्य

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रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षक  ,   भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात् । 

द्वैमातुर कृपासिन्धो  षाण्मातुराग्रज प्रभो  ,  वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्छितं वाञ्छितार्थद ॥ 

अनेन सफलार्ध्येण वरदोऽस्तु सदा मम  ॥


ॐ गं गणपतये नमः विशेषार्ध्य    समर्पयामि।


 प्रार्थना

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विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगध्दिताय

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते

भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय विद्याधराय विकटाय च वामनाय भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते

नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः  नमस्ते रुद्ररुपाय करिरुपाय ते नमः

विश्वरूपस्वरुपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे  भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक

त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति  भक्तप्रियेति शुखदेति फलप्रदेति

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्  त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः।


ॐ गं गणपतये नमः प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान्  समर्पयामि।  

( साष्टाङ्ग  नमस्कार करे )


समर्पण

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गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम्   ।

तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम  ॥

अनया पूजया गणेशे प्रियेताम्  , न मम  ।


( ऐसा कहकार समस्त पूजनकर्म  भगवान् को समर्पित कर दें ) तथा पुनः नमस्कार करें ।


लक्ष्मी पूजन 

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  ध्यान 

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पद्मासनां पद्मकरां       पद्ममालाविभूषिताम् क्षीरसागर संभूतां    हेमवर्ण - समप्रभाम् ।

क्षीरवर्णसमं वस्त्रं दधानां हरिवल्लभाम्

भावेय भक्तियोगेन भार्गवीं कमलां शुभाम्

सर्वमंगलमांगल्ये विष्णुवक्षःस्थलालये

आवाहयामि देवी त्वां क्षीरसागरसम्भवे

पद्मासने पद्मकरे सर्वलोकैकपूजिते

नारायणप्रिये देवी सुप्रीता भव सर्वदा।


 आवाहन 

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सर्वलोकस्य  जननीं  सर्वसौख्यप्रदायिनीम् 

सर्वदेवमयीमीशां  देविमावाहयाम्यम्

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्  

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् 

ॐ महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मीमावाहयामि , आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि 


 आसन

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अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्  । इदं हेममयं दिव्यमासनं परिगृह्यताम ॥ 

श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनार्थे  पुष्पं समर्पयाम ।


 पाद्य 

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गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्य आनीतं तोयमुत्तमम्  । पाद्यार्थं ते प्रदास्यामि गृहाण परमेश्वरी ॥ 

श्री महालक्ष्म्यै नमः पादयोः पाद्यं  समर्पयामि। ( जल चढ़ाये )


 अर्ध्य 

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गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्ध्यं  सम्पादितं मया ।  गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा ॥ 

श्री महालक्ष्म्यै नमः हस्तयोः अर्ध्यं  समर्पयामि। 

( चन्दन , पुष्प , अक्षत , जल से युक्त अर्ध्य दे )


आचमन 

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कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम्।  तोयमाचमनीयार्थं गृहाण परमेश्वरी॥ 

श्री  महालक्ष्म्यै नमः आचमनं   समर्पयामि। 

( कर्पुर मिला हुआ शीतल जल चढ़ाये )


स्नान

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मन्दाकिन्यास्तु  यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।  तदिदं कल्पितं देवी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री महालक्ष्म्यै नमः स्नानार्थम जलं  समर्पयामि। ( जल चढ़ाये )


 वस्त्र

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सर्वभूषादिके सौम्ये  लोक  लज्जानिवारणे। मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥

श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं समर्पयामि  ।

( दो मौलि के टुकड़े अर्पित करें एवं एक आचमनी जल अर्पित करें ) 


चन्दन

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श्रीखण्डं  चन्दनं  दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरं। विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥


श्री महालक्ष्म्यै नमः चन्दनं समर्पयामि । ( मलय चन्दन लगाये )


कुङ्कुम 

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कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनीकामसम्भवम्  । कुङ्कुमेनार्चिता देवी कुङ्कुमं                             प्रतिगृह्यताम् ॥ 


श्री महालक्ष्म्यै नमः कुङ्कुमं समर्पयामि ।  ( कुङ्कुम चढ़ाये )


 सिन्दूर 

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सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसन्निभम् ।  अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरी ॥  

श्री महालक्ष्म्यै नमः सिन्दूरं समर्पयामि ।  ( सिन्दूर चढ़ाये )


 अक्षत

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अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः। 

मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरी॥

श्री महालक्ष्म्यै नमः अक्षतान् समर्पयामि । 

( साबुत चावल चढ़ाये )


 आभूषण 

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हारकङकणकेयूरमेखलाकुण्डलादिभिः । रत्नाढ्यं हीरकोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  आभूषणानि  समर्पयामि।  (  आभूषण  चढ़ाये ) 


पुष्प

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माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः। मयाऽह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां।


श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पं समर्पयामि । ( पुष्प चढ़ाये )


 दुर्वाङकुर 

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तृणकान्तमणिप्रख्यहरिताभिः  सुजातिभिः।  दुर्वाभिराभिर्भवतीं पूजयामि महेश्वरी ॥ 

श्री महालक्ष्मये देव्यै  नमः दुर्वाङ्कुरान  समर्पयामि।  (  दूब  चढ़ाये )


अङ्ग - पूजा 

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कुङ्कुम, अक्षत, पुष्प से निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए अङ्ग - पूजा करे।


ॐ चपलायै नमः , पादौ पूजयामि 

ॐ चञ्चलायै नमः , जानुनी पूजयामि

ॐ कमलायै नमः , कटिं पूजयामि

ॐ कात्यायन्यै नमः , नाभिं पूजयामि

ॐ जगन्मात्रे नमः , जठरं पूजयामि 

ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलं पूजयामि

ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि 

ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि 

ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि 

ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि 

ॐ महालक्ष्मै नम:, सर्वाङ्गं पूजयामि


 अष्टसिद्धि - पूजन 

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कुङ्कुम, अक्षत, पुष्प से निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए आठों दिशाओं में आठों सिद्धियों की पूजा करे।


१ -  ॐ अणिम्ने  नमः  ( पूर्वे  )   

२- ॐ महिम्ने नमः  ( अग्निकोणे  ) 

३ - ॐ  गरिम्णे नमः  ( दक्षिणे )    

४ - ॐ लघिम्णे नमः  ( नैर्ॠत्ये ) 

५ - ॐ प्राप्त्यै नमः  ( पश्चिमे  )    

६ - ॐ  प्राकाम्यै नमः  ( वायव्ये ) 

७ - ॐ ईशितायै  नमः  ( उत्तरे )   

८ -  ॐ वशितायै नमः  ( ऐशान्याम् ) 


 अष्टलक्ष्मी  पूजन 

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कुङ्कुम , अक्षत , पुष्प से निम्नलिखित   नाम - मंत्र पढ़ते हुए आठ   लक्ष्मियों  की पूजा करे 


ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः ,  

ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः , 

ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः , 

ॐ अमृतलक्ष्म्यै   ,

ॐ कामलक्ष्म्यै  नमः , 

ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः , 

ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः ,  

ॐ योगलक्ष्म्यै नमः 


 धूप

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वनस्पति रसोद् भूतो गन्धाढ्यो  सुमनोहरः। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं आघ्रापयामि  । ( धूप दिखाये ) 


 दीप

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साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया । दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥  

श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं दर्शयामि । 


 नैवैद्य

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शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।  आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवैद्यं निवेदयामि। पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि। 


( प्रसाद चढ़ाये एवं इसके बाद आचमनी से जल चढ़ाये )


 ऋतुफल 

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इदं फलं मया देवी स्थापितं पुरतस्तव। तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥ 

श्री महालक्ष्म्यै नमः ॠतुफलानि समर्पयामि  ( फल चढ़ाये )


 ताम्बूल

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 पूगीफलं महद्दिव्यम् नागवल्लीदलैर्युतम् । एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि ।  (पान चढ़ाये )


दक्षिणा 

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हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।  अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

श्री महालक्ष्म्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि ।  ( दक्षिणा चढ़ाये )


कर्पूरआरती

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॥ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् ।  आरार्तिकमहं  कुर्वे पश्य मां वरदो  भव ॥

श्री महालक्ष्म्यै नमः आरार्तिकं समर्पयामि । (कर्पूर की आरती करें )


जल शीतलीकरण

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ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष  ( गूं ) शान्ति: ,    पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय:   शान्ति:।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: , सर्व ( गूं ) शान्ति: , शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥


मन्त्रपुष्पाञ्जलि

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नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद् भवानि च  पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वरि  ॥

श्री महालक्ष्म्यै नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिम्  समर्पयामि ।


नमस्कार मंत्र 

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सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं सदा  यत्तव पादपङ्कजम् परावरं पातु वरं  सुमङ्गलं नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये 

भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते 

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये 

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् श्री महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं  नमस्कारान् समर्पयामि


लक्ष्मी  मन्त्र का जाप अपनी सुविधनुसार करे


॥ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः  ॥ 


जप समर्पण👉 (दाहिने हाथ में जल लेकर मंत्र बोलें एवं जमीन पर छोड़ दें) 


॥ ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं  जपं, सिद्धिर्भवतु मं देवी त्वत् प्रसादान्महेश्वरि॥ 


श्री लक्ष्मी जी की आरती

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ॐ जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता । 

तुमको  निसिदिन  सेवत हर - विष्णू - धाता  ॥  ॐ जय  ॥ 


उमा , रमा , ब्रह्माणी , तुम ही जग - माता  

सूर्य - चन्द्रमा ध्यावत ,  नारद ऋषि गाता ॥  ॐ जय  ॥


दुर्गारुप  निरञ्जनि  , सुख - सम्पति - दाता 

जो कोइ तुमको ध्यावत , ऋधि - सिधि - धन पाता ॥  ॐ जय  ॥


तुम पाताल - निवासिनि , तुम ही शुभदाता 

कर्म - प्रभाव -प्रकाशिनि  ,  भवनिधिकी  त्राता  ॥  ॐ जय  ॥


जिस घर तुम रहती , तहँ  सब   सद् गुण   आता 

सब सम्भव हो जाता , मन नहिं  घबराता  ॥  ॐ जय  ॥


तुम बिन यज्ञ न होते , वस्त्र न हो पाता 

खान – पान का वैभव सब तुमसे  आता ॥  ॐ जय  ॥


शुभ – गुण – मन्दिर  सुन्दर , क्षीरोदधि – जाता 

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोइ नहि पाता  ॥  ॐ जय  ॥


महालक्ष्मी जी कि आरति , जो कोई नर गाता 

उर आनन्द समाता , पाप उतर जाता    ॥  ॐ जय  ॥


क्षमा - याचना👉 मन्त्रहीनं  क्रियाहीनं  भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्युजितं मया देवी   परिपूर्ण तदस्तु मे॥ श्री महालक्ष्म्यै नमः क्षमायाचनां  समर्पयामि 


ना तो मैं आवाहन करना जानता हूँ , ना विसर्जन करना जानता हूँ और ना पूजा करना हीं जानता हूँ । हे परमेश्वरी  क्षमा करें । हे परमेश्वरी  मैंने जो मंत्रहीन , क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है , वह सब आपकी दया से पूर्ण हो । 


  ॐ  तत्सद्  ब्रह्मार्पणमस्तु। 


बुधवार, 12 अक्टूबर 2022

करवा चौथ विशेष

                 


करवा चौथ 

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करवा चौथ व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति की लम्बी उम्र के पत्नियां पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती है। 


करवा चाैथ पर इस वर्ष सिद्धि योग रहेगा। यह योग मंगलदायक कार्यों में सफलता प्रदान करता है। साथ ही चंद्रमा शाम 06:40 के बाद पूरे समय रोहिणी नक्षत्र में रहेगा। इस नक्षत्र में चंद्रमा का पूजन करना बेहद ही शुभ माना जाता है।


वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस समय शनि, बुध और गुरु अपनी स्वराशि में स्थित हैं। सूर्य और बुध भी एक साथ विराजमान हैं। जिससे बुधादित्य योग का भी निर्माण हो रहा है। वहीं लक्ष्मी नारायण योग का निर्माण भी हो रहा है। इस योग के बनने से पति-पत्नी का आपसी संबंध और विश्वास मजबूत होगा। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेंगे। जिससे की गई प्रार्थना शीघ्र स्वीकार होगी।


पहली बार करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए इस वर्ष शुक्रास्त होने के कारण व्रत एवं पूजा पाठ ही कर सकेंगी ऐसे मे खरीददारी अथवा अन्य मांगलिक कार्यों से बचना चाहिए।


करवा चौथ महात्म्य

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छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणोश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।


महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।


सरगी का महत्त्व

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करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।


महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है।


चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि   

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करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री👇


कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे। सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। 


व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।


करवा चौथ पूजन विधि

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प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।

व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-

प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- 


'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'


अथवा👇

ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 

'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 

'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 

'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।


शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।

भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें।

सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें। चंद्रोदय के बाद चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान खा कर व्रत खोले।


करवा चौथ प्रथम कथा 

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बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।

शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।


वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।


उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।


एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।


इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।


अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।


करवाचौथ द्वितीय कथा 

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इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।


परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।


करवा चौथ तृतीय कथा 

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एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।


उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।

यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।


करवाचौथ चौथी कथा 

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एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।


पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।

तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।


एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।

भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।

भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं। सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें। पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।


पूजा एवं चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त

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कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (करवाचौथ) 13 अक्टूबर को करवा चौथ पूजा मुहूर्त- सायं 05:47 से 07:01 बजे तक।


चंद्रोदय- 20:02 मिनट पर।


चतुर्थी तिथि आरंभ 12 अक्टूबर रात्रि 01:59 पर।


चतुर्थी तिथि समाप्त 13 अक्टूबर रात्रि 03:08 पर।


13 घंटे 44 मिनट का समय व्रत के लिए है। ऐसे में महिलाओं को सुबह 6 बजकर 17 मिनट से शाम 08 बजकर 02 मिनट तक करवा चौथ का व्रत रखना होगा।


करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 8:11 बजे से 8:55 तक है।


करवाचौथ के दिन भारत के कुछ प्रमुख नगरों का चंद्रोदय समय 

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दिल्ली- 08 बजकर 09 मिनट पर


नोएडा- 08 बजकर 08 मिनट पर


मुंबई- 08 बजकर 48 मिनट पर


जयपुर- 08 बजकर 18 मिनट पर


देहरादून- 08 बजकर 02 मिनट पर


लखनऊ- 07 बजकर 59 मिनट पर


शिमला- 08 बजकर 03 मिनट पर


गांधीनगर- 08 बजकर 51 मिनट पर


अहमदाबाद- 08 बजकर 41 मिनट पर


कोलकाता- 07 बजकर 37 मिनट पर


पटना- 07 बजकर 44 मिनट पर


प्रयागराज- 07 बजकर 57 मिनट पर


कानपुर- 08 बजकर 02 मिनट पर


चंडीगढ़- 08 बजकर 06 मिनट पर


लुधियाना- 08 बजकर 10 मिनट पर


जम्मू- 08 बजकर 08 मिनट पर


बंगलूरू- 08 बजकर 40 मिनट पर


गुरुग्राम- 08 बजकर 21 मिनट पर


असम - 07 बजकर 11 मिनट पर


 इन शहरों के लगभग 200 किलोमीटर के आसपास तक चंद्रोदय के समय मे 1 से 3 मिनट का अंतर आ सकता है।


प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। 


चंद्रदेव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।


"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।

गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥"


इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।


सुख सौभाग्य के लिये राशि अनुसार उपाय

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मेष राशि👉 मेष राशि की महिलाएं करवा चौथ की पूजा अगर लाल और गोल्डन रंग के कपड़े पहनकर करती हैं तो आने वाला समय बेहद शुभ रहेगा।  


वृषभ राशि👉 वृषभ राशि की महिलाओं को इस करवा चौथ सिल्वर और लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से आने वाले समय में पति-पत्नी के बीच प्यार में कभी कमी नहीं आएगी। 


मिथुन राशि👉 इस राशि की महिलाओं के लिए हरा रंग इस करवा चौथ बेहद शुभ रहने वाला है। इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ के दिन हरे रंग की साड़ी के साथ हरी और लाल रंग की चूड़ियां पहनकर चांद की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पति की आयु निश्चित लंबी होगी।  


कर्क राशि👉 कर्क राशि की महिलाओं को करवा चौथ की पूजा विशेषकर लाल-सफेद रंग के कॉम्बिनेशन वाली साड़ी के साथ रंग-बिरंगी चूडि़यां पहनकर पूजा करनी चाहिए। याद रखें इस राशि की महिलाओं को व्रत खोलते समय चांद को सफेद बर्फी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके पति का प्यार आपके लिए कभी कम नहीं होगा। 


सिंह राशि👉 करवा चौथ की साड़ी चुनने के लिए इस राशि की महिलाओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। इस राशि की महिलाएं लाल, संतरी, गुलाबी और गोल्डन रंग चुन सकती है। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक जीवन में हमेशा प्यार बना रहता है। 


कन्या राशि👉 कन्या राशि वाली महिलाओं को इस करवा चौथ लाल-हरी या फिर गोल्डन कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने से लाभ मिलेगा। ऐसा करने से दोनों के वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ जाएगी।


तुला राशि👉 इस राशि की महिलाओं को पूजा करते समय लाल- सिल्वर रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनने पर पति का साथ और प्यार दोनों हमेशा बना रहेगा। 


वृश्चिक राशि👉 इस राशि की महिलाएं लाल, मैरून या गोल्डन रंग की साड़ी पहनकर पूजा करें तो पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ जाएगा। 


धनु राशि👉 इस राशि की महिलाएं पीले या आसमानी रंग के कपड़े पहनकर पति की लंबी उम्र की कामना करें।  


मकर राशि👉 मकर राशि की महिलाएं इलेक्ट्रिक ब्लू रंग करवा चौथ पर पहनने के लिए चुनें। ऐसा करने से आपके मन की हर इच्छा जल्द पूरी होगी। 


कुंभ राशि👉 ऐसी महिलाओं को नेवी ब्लू या सिल्वर कलर के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहेगी। 


मीन राशि👉 इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ होगा। 



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