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अथ लघु विष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्रम्

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 ॥ अथ लघु विष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्रम्॥ अलं नामसहस्रेण केशवोऽर्जुनमब्रवित्। श्रुणु मे पार्थ नामानि यैश्चतुष्यामि सर्वदा॥१॥ केशवः पुण्डरीकाक्षः स्वयंभूर्मधुसूदनः। दामोदरो हृषीकेशः पद्मनाभो जनार्दनः॥२॥ विष्वक्सेनो वासुदेवो हरिर्नारायणस्तथा। अनंतश्च प्रबोधश्च सत्यः कृष्णः सुरोत्तमः॥३॥ आदिकर्ता वराहश्च वैकुण्ठो विष्णुरच्युतः। श्रीधरः श्रीपतिः श्रीमान् पक्षिराजध्वजस्तथा॥४॥ एतानि मम नामानि विद्यार्थी ब्राह्मणः पठेत्। क्षत्रियो विजयस्यार्थे वैश्यो धनसमृद्धये॥५॥ नाग्निराजभयं तस्य न चोरात् पन्नगाद्भयम्। राक्षसेभ्यो भयं नास्ति व्याधिभिर्नैव पीड्यते॥६॥ इदं नामसहस्त्रं तु केशवेनोद्धृतं स्तवम्। उद्धृत्य चार्जुने दत्तं युद्धे शत्रुविनाशनम्॥७॥ ॥इति श्री विष्णुपुराणे लघु विष्णुसहस्त्रनामस्तवः॥

श्री काल भैरव अष्टमी

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         श्री कालभैरवाष्टमी   〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰️〰️ दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं श्री भैरव। श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं- 1. असितांग भैरव, 2. चंड भैरव, 3. रूरू भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाल भैरव, 7. भीषण भैरव 8. संहार भैरव। क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप'काल भैरव'के नाम से विख्यात हैं। दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें"आमर्दक"कहा गया है। शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या