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श्रीशनिवज्रपंजरकवचम्

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  श्रीशनिवज्रपंजरकवचम्   〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️☘️🍀 श्री गणेशाय नमः ॥ विनियोगः । ॐ अस्य श्रीशनैश्चरवज्रपञ्जर कवचस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री शनैश्चर देवता, श्रीशनैश्चर प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥ ऋष्यादि न्यासः ।  श्रीकश्यप ऋषयेनमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । श्रीशनैश्चर देवतायै नमः हृदि । श्रीशनैश्चरप्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥ ध्यानम् । नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् । चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशान्तः ॥ १॥ ब्रह्मा उवाच ॥ श‍ृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् । कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥ २॥ कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् । शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ ३॥ ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दनः । नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः ॥ ४॥ नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा । स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः ॥ ५॥ स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु-शुभप्रदः । वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा ॥ ६॥ नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा । ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥ ७॥ पादौ

गणेश चतुर्थी पूजा

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 गणेश चतुर्थी की पूजा   तिल संकटा चौथ व्रत की विधि   भालचंद्र गणेश की पूजा संकट चौथ को की जाती है। प्रात:काल नित्य क्रम से निवृत होकर षोड्शोपचार विधि से गणेश जी की पूजा करें। निम्न श्लोक पढ़कर गणेश जी की वंदना करें।    मं‍त्र:  गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥   इसके बाद भालचंद्र गणेश का ध्यान करके पुष्प अर्पित करें। पूरे दिन मन ही मन श्री गणेश जी के नाम का जप करें । सुर्यास्त के बाद स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र पहन लें । अब विधिपूर्वक गणेश जी का पूजन करें। एक कलश में जल भर कर रखें। धूप-दीप अर्पित करें। नैवेद्य के रूप में तिल तथा गुड़ के बने हुए लड्डु, ईख, शकरकंद, गुड़ तथा घी अर्पित करें।    यह नैवेद्य रात्रि भर बांस के बने हुए डलिया(टोकरी) से ढंक यथावत् रख दिया जाता है। पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस ढंके हुए नैवेद्य को पुत्र ही खोलता है तथा भाई बंधुओं में बांटता है। ऐसी मान्यता है कि इससे भाई-बंधुओं में आपसी प्रेम-भावना की वृद्धि होती है।   अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग प्रकार के ति