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वैदिक स्नान के नियम

                  वैदिक स्नान के नियम १. स्नान किये बिना जो पुण्यकर्म किया जाता है, वह निष्फल होता है। उसे राक्षस ग्रहण कर लेते हैं । २. दुःस्वप्न देखने, हजामत बनवाने, श्मशानभूमिमें जानेपर वस्त्रसहित स्नान करना चाहिये। ३. तेल लगानेके बाद, श्मशानसे लौटनेपर, क्षौरकर्म (हजामत) करनेके बाद जबतक मनुष्य स्नान नहीं करता, तबतक वह चाण्डाल बना रहता है। . यदि नदी हो तो जिस ओरसे उसकी धारा आती हो, उसी ओर मुँह करके तथा दूसरे जलाशयोंमें सूर्यकी ओर मुँह करके स्नान करना चाहिये । ५. कुएैसे निकाले हुए जलकी अपेक्षा झरनेका जल पवित्र होता है। उससे पवित्र सरोवरका जल तथा उससे भी पवित्र नदीका जल बताया जाता है। तीर्थका जल उससे भी पवित्र होता है और गंगाका जल तो सबसे पवित्र माना गया है। ६. दूसरोंके बनाये हुए सरोवरमें स्नान करनेसे सरोवर बनानेवालेका पाप स्नान करनेवालेको लगता है। अतः उसमें स्नान न करे। यदि दूसरेके सरोवरमें स्नान करना ही पड़े तो पाँच या सात देला मिट्टी निकालकर स्नान करे। . भोजनके बाद, रोगी रहनेपर, महानिशा (रात्रिके मध्य दो पहर) में, बहुत वस्त्र पहने हुए और अ...