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जनवरी, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

त्रिशंकु की स्वर्गयात्रा

 त्रिशंकु की स्वर्गयात्रा ============= इक्ष्वाकु वंश में त्रिशंकु नाम के एक राजा हुये। त्रिशंकु की इच्छा सशरीर स्वर्ग जाने की थी  अपनी वार्ता जारी रखते हुये मिथिला के राजपुरोहित शतानन्द जी ने कहा, "इस बीच इक्ष्वाकु वंश में त्रिशंकु नाम के एक राजा हुये। त्रिशंकु की इच्छा सशरीर स्वर्ग जाने की थी अतः इसके लिए उन्होंने वशिष्ठ जी से यज्ञ करने के लिए कहा। वशिष्ठ जी ने बताया कि कि मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं है कि मैं किसी व्यक्ति को शरीर सहित स्वर्ग भेज सकूँ। वशिष्ठ जी के असमर्थता प्रकट करने पर त्रिशंकु ने यही प्रार्थना वशिष्ठ जी के पुत्रों से भी की जो दक्षिण प्रान्त में घोर तपस्या कर रहे थे। इस पर वशिष्ठ जी के पुत्रों ने कहा कि 'अरे मूर्ख! जिस काम को हमारे पिता नहीं कर सके तू उसे हम से कराना चाहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि तू हमारे पिता का अपमान करने के लिये यहाँ आया है।' उनके इस प्रकार कहने से त्रिशंकु ने क्रोधित होकर वशिष्ठ जी के पुत्रों को अपशब्द कहे। वशिष्ठ जी के पुत्रों ने रुष्ट होकर त्रिशंकु को चाण्डाल हो जाने का शाप दे दिया। "शाप के कारण त्रिशंकु का सुन्दर शरीर काला ...

सूतक और पातक

 क्या होता है सूतक और पातक, क्यों इनके नियमों का पालन करना है जरूरी? सनातन धर्म में सूतक और पातक दोनों ही विशेष अवधारणाएँ हैं जो शुद्धि और अशुद्धि के संदर्भ में उपयोग की जाती हैं। ये अवधारणाएँ विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नियमों का पालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सूतक: सूतक का संबंध अशुद्धि की अवधि से है जो किसी विशेष घटना के बाद लगती है। यह मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है: 1. **जन्म सूतक**: किसी परिवार में बच्चे के जन्म के बाद लगने वाली अशुद्धि की अवधि को जन्म सूतक कहा जाता है। यह अवधि सामान्यतः दस दिनों तक रहती है, लेकिन विभिन्न समुदायों में इसका समय भिन्न हो सकता है। इस दौरान परिवार के सदस्य कुछ धार्मिक कृत्यों से परहेज करते हैं। 2. **मृत्यु सूतक**: किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु के बाद लगने वाली अशुद्धि की अवधि को मृत्यु सूतक कहा जाता है। यह अवधि भी सामान्यतः तेरह दिनों की होती है, लेकिन इसके नियम और अवधि भी विभिन्न समुदायों में अलग-अलग हो सकती है। इस अवधि के दौरान परिवार के सदस्य विभिन्न धार्मिक और सामाजिक कृत्यों में भाग नहीं लेते हैं। पातक: पातक का स...

देवीपार्वती के 108 नाम और इनका अर्थ

 देवीपार्वती के 108 नाम और इनका अर्थ 〰️〰️🔸〰️〰️🔸🔸〰️〰️🔸〰️〰️ देवी पार्वती विभिन्न नामों से जानी जाता है और उनमें से हर एक नाम का एक निश्चित अर्थ और महत्व है। देवी पार्वती से 108 नाम जुड़े हुए है । भक्त बालिकाओं के नाम के लिए इस नाम का उपयोग करते है।  1 . आद्य - इस नाम का मतलब प्रारंभिक वास्तविकता है। 2 . आर्या - यह देवी का नाम है 3 . अभव्या - यह भय का प्रतीक है। 4 . अएंदरी - भगवान इंद्र की शक्ति। 5 . अग्निज्वाला - यह आग का प्रतीक है। 6 . अहंकारा - यह गौरव का प्रतिक है । 7 . अमेया - नाम उपाय से परे का प्रतीक है। 8 . अनंता - यह अनंत का एक प्रतीक है। 9 . अनंता - अनंत 10 अनेकशस्त्रहस्ता - इसका मतलब है कई हतियारो को रखने वाला । 11 . अनेकास्त्रधारिणी - इसका मतलब है कई हतियारो को रखने वाला । 12 . अनेकावारना - कई रंगों का व्यक्ति । 13 . अपर्णा – एक व्यक्ति जो उपवास के दौरान कुछ नहि कहता है यह उसका प्रतिक है । 14 . अप्रौधा – जो व्यक्ति उम्र नहि करता यह उसका प्रतिक है । 15 . बहुला - विभिन्न रूपों । 16 . बहुलप्रेमा - हर किसी से प्यार । 17 . बलप्रदा - यह ताकत का दाता का प्रतीक है । 18 . ...

क्यों किया था कृष्‍ण ने पलायन, जानें रहस्य

 क्यों किया था कृष्‍ण ने पलायन, जानें रहस्य... ============================= कहते हैं कि राधा और कृष्ण के प्रेम की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। कृष्ण नंदगांव में रहते थे और राधा बरसाने में। नंदगांव और बरसाने से मथुरा लगभग 42-45 किलोमीटर दूर है। अब सवाल यह उठता है कि जब 11 वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे, तो इतनी लघु अवस्था में गोपियों के साथ प्रेम या रास की कल्पना कैसे की जा सकती है? मथुरा में उन्होंने कंस से लोहा लिया और कंस का अंत करने के बाद तो जरासंध उनकी जान का दुश्मन बन गया था जो शक्तिशाली मगथ का सम्राट था और जिसे कई जनपदों का सहयोग था। उससे दुश्मनी के चलते श्रीकृष्ण को कई वर्षों तक तो भागते रहना पड़ा था। जब परशुराम ने उनको सुदर्शन चक्र दिया तब जाकर कहीं आराम मिला। लेकिन इसके पीछे का सच भी जानेंगे अगले पन्नों पर। उल्लेखनीय है कि महाभारत या भागवत पुराण में 'राधा' के नाम का उल्लेख नहीं मिलता है। फिर यह राधा नाम की महिला भगवान कृष्ण के जीवन में कैसे आ गई या कहीं यह मध्यकाल के कवियों की कल्पना तो नहीं? यह सच है कि कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में राधा का नाम नहीं है। ...

स्वप्न फल

 स्वप्न फल ज्योतिष (Swapan Phal Jyotish) : स्वप्न ज्योतिष के अनुसार नींद में दिखाई देने वाले हर सपने महत्वपूर्ण संकेत को दर्शाते है, प्रत्येक स्वप्न का विशेष फल होता है। स्वप्न हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देते हैं। स्वप्न और ज्योतिष एक दुसरे के सहयोगी हैं क्यूंकि ज्योतिषी हमारे स्वप्न का आंकलन कर हमारे भविष्य का स्पष्ट आंकलन कर सकते हैं। हमारी ग्रह स्थितियां ही हमें स्वप्न द्वारा सटीक भविष्य बताती हैं इसलिए हम स्वप्न को काबू नहीं कर सकते। परन्तु अगर स्वप्न में भविष्य के लिए कुछ नकारत्मक दीखता है तो किसी विशेषज्ञ के माध्यम से उसके फल को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। आध्यात्मिकता के पथ पर चलने वाले व्यक्तियों को भविष्य में घटित होने वाली कई घटनायें पहले से ही दिख जाती हैं। स्वप्न का फल कितने समय में मिलेगा यह निर्धारित करता है कि स्वप्न रात्रि के किस पहर में देखा गया है। रात्रि में प्रथम पहर के स्वप्न का फल १ वर्ष में मिल जाता है। दुसरे पहर का फल ६ माह, तीसरे पहर का फल ३ माह में और चौथे पहर में देखे गए स्वप्न का फल १ माार में ही प्राप्त हो जाता है। सूर्य अस्त के...