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सूतक और पातक

 क्या होता है सूतक और पातक, क्यों इनके नियमों का पालन करना है जरूरी?



सनातन धर्म में सूतक और पातक दोनों ही विशेष अवधारणाएँ हैं जो शुद्धि और अशुद्धि के संदर्भ में उपयोग की जाती हैं। ये अवधारणाएँ विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नियमों का पालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


सूतक:

सूतक का संबंध अशुद्धि की अवधि से है जो किसी विशेष घटना के बाद लगती है। यह मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है:

1. **जन्म सूतक**: किसी परिवार में बच्चे के जन्म के बाद लगने वाली अशुद्धि की अवधि को जन्म सूतक कहा जाता है। यह अवधि सामान्यतः दस दिनों तक रहती है, लेकिन विभिन्न समुदायों में इसका समय भिन्न हो सकता है। इस दौरान परिवार के सदस्य कुछ धार्मिक कृत्यों से परहेज करते हैं।


2. **मृत्यु सूतक**: किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु के बाद लगने वाली अशुद्धि की अवधि को मृत्यु सूतक कहा जाता है। यह अवधि भी सामान्यतः तेरह दिनों की होती है, लेकिन इसके नियम और अवधि भी विभिन्न समुदायों में अलग-अलग हो सकती है। इस अवधि के दौरान परिवार के सदस्य विभिन्न धार्मिक और सामाजिक कृत्यों में भाग नहीं लेते हैं।


पातक:

पातक का संबंध पाप या दोष से है, जो किसी अनुचित या अधार्मिक कार्य को करने से उत्पन्न होता है। 

 बुरे कर्मों या पाप के कारण होने वाली नैतिक और धार्मिक अशुद्धि, जिससे मुक्त होने के लिए प्रायश्चित करना पड़ता है।


सूतक का सम्बन्ध "जन्म के" निमित्त से हुई अशुद्धि से है !

जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप "सूतक" माना जाता है !


जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई अशुचिता :-

3 पीढ़ी तक - 10 दिन

4 पीढ़ी तक - 10 दिन

5 पीढ़ी तक - 6 दिन


ध्यान दें :- एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती ... वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है !

प्रसूति (नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है !

प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध है ! इसीलिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं !


अपनी पुत्री :-

पीहर में जनै तो हमे 3 दिन का,

ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है ! और हमे कोई सूतक नहीं रहता है !


नौकर-चाकर :-

अपने घर में जन्म दे तो 1 दिन का,

बाहर दे तो हमे कोई सूतक नहीं ! पालतू पशुओं का :-

घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर हमे 1 दिन का सूतक रहता है !

किन्तु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता !

बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 12 दिन, 10 दिन और 6 दिन तक "अभक्ष्य/अशुद्ध" रहता है !


पातक :-

पातक का सम्बन्ध "मरण के" निम्मित से हुई अशुद्धि से है !

मरण के अवसर पर दाह-संस्कार इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप "पातक" माना जाता है !


मरण के बाद हुई अशुचिता :-

3 पीढ़ी तक - 12 दिन

4 पीढ़ी तक - 10 दिन

5 पीढ़ी तक - 6 दिन


ध्यान दें :- जिस दिन मृत्यु होती है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है।

यदि घर का कोई सदस्य बाहर/विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता है !


अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि हो जाती है !

किसी स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए !

घर का कोई सदस्य मुनि-आर्यिका-तपस्वी बन गया हो तो, उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता है ! किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को 1 दिन का पातक लगता है !


किसी अन्य की शवयात्रा में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दा छूने वाले को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि जाननी चाहिए !

घर में कोई आत्मघात कर ले तो 6 महीने का पातक मानना चाहिए !


यदि कोई स्त्री अपने पति के मोह/निर्मोह से जल मरे, बालक पढाई में फेल होकर या कोई अपने ऊपर दोष देकर मरता है तो इनका पातक बारह पक्ष याने 6 महीने का होता है !


उसके अलावा भी कहा है कि :-

जिसके घर में इस प्रकार अपघात होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल भी ग्रहण नहीं करता है ! वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर जी में चढ़ाया जाता है ! 

(क्रियाकोष १३१९-१३२०)

अनाचारी स्त्री-पुरुष के हर समय ही पातक रहता है। 

सूतक-पातक की अवधि में "देव-शास्त्र-गुरु" का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं !


इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है !

यहाँ तक की गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है !


सूतक-पातक के नियम : --

1. सूतक और पातक में अन्य व्यक्तियों को स्पर्श न करें।

2. कोई भी धर्मकृत्य अथवा मांगलिक कार्य न करें तथा सामाजिक कार्य में भी सहभागी न हों।

3. अन्यों की पंगत में भोजन न करें।

4. किसी के घर न जाएं और ना ही किसी भी प्रकार का भ्रमण करें। घर में ही रहकर नियमों का पालन करें।

5. किसी का जन्म हुआ है तो शुद्धि का ध्यान रखते हुए भगवान का भजन करें और यदि कोई मर गया है तो गरुड़ पुराण सुनकर समय गुजारें।

6. सूतक या पातक काल समाप्त होने पर स्नान तथा पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का मिश्रण) सेवन कर शुद्ध हो जाएं।

7. सूतक पातक की अवधि में देव शास्त्र गुरु, पूजन प्राक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती है।

8. जिस व्यक्ति या परिवार के घर में सूतक-पातक रहता है, उस व्यक्ति और परिवार के सभी सदस्यों को कोई छूता भी नहीं है। वहां का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करता है। वह परिवार भी मंदिर सहित किसी के घर नहीं जा सकता है और न किसी का भोग, पानी या प्रसाद नही ग्रहण करना चाहिए ।

यह सूतक-पातक आर्ष-ग्रंथों से मान्य है !


कहीं कहीं लोग सूतक-पातक के दिनों में मंदिर ना जाकर इसकी समाप्ति के बाद मंदिर से गंधोदक लाकर शुद्धि के लिए घर-दुकान में छिड़कते हैं, ऐसा करके नियम से घोर पाप का बंध करते हैं !

इन्हे समझना इसलिए ज़रूरी है, ताकि अब आगे घर-परिवार में हुए जन्म-मरण के अवसरों पर अनजाने से भी कहीं दोष का उपार्जन न हो। 

जीवन अगर खुशियों से भरा है तो वह बहुत छोटा लगता है, ऐसा लगता है यह सफर कितनी जल्दी समाप्त होने जा रहा है। वहीं अगर सिर्फ गम के साये में ही समय बीत रहा हो तो एक-एक दिन भी बोझिल हो जाता है और ऐसा लगता है ना जाने यह सफर अचानक इतना लंबा कैसे हो गया। 


 अंधविश्वास या व्यवहारिक

अकसर इसे एक अंधविश्वास मान लिया जाता है जबकि इसके पीछे छिपे बड़े ही प्रैक्टिकल कारण की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। 

 पहले के दौर में संयुक्त परिवारों का चलन ज्यादा था। घर की महिलाओं को हर हालत में पारिवारिक सदस्यों की जरूरतों को पूरा करना होता था। लेकिन बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है।

 स्त्री को आराम देना

उन्हें हर संभव आराम की जरूरत होती है जो उस समय संयुक्त परिवार में मिलना मुश्किल हो सकता था, इसलिए सूतक के नाम पर इस समय उन्हें आराम दिया जाता था ताकि वे अपने दर्द और थकान से बाहर निकल पाएं।


संक्रमण का खतरा

 जब बच्चे का जन्म होता है तो उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास भी नहीं हुआ होता। वह बहुत ही जल्द संक्रमण के दायरे में आ सकता है, इसलिए 10-30 दिनों की समयावधि में उसे बाहरी लोगों से दूर रखा जाता था, उसे घर से बाहर नहीं लेकर जाया जाता था। बाद में जरूर सूतक को एक अंधविश्वास मान लिया गया लेकिन इसका मौलिक उद्देश्य स्त्री के शरीर को आराम देना और शिशु के स्वास्थ्य का ख्याल रखने से ही था।

 बच्चे का शरीर

आज के समय में वे बच्चे जो जन्म के समय काफी कमजोर होते हैं उन्हें डॉक्टर इंक्यूबेटर में रखते हैं ताकि वे बाहरी वातावरण के लिए शारीरिक तौर पर तैयार हो जाएं। 


 मृत्यु के पश्चात सूतक

जिस तरह जन्म के समय परिवार के सदस्यों पर सूतक लग जाता है उसी तरह परिवार के लिए सदस्य की मृत्यु के पश्चात सूतक का साया लग जाता है, जिसे ‘पातक’ कहा जाता है। इस समय भी परिवार का कोई सदस्य ना तो मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल जा सकता है और ना ही किसी धार्मिक कार्य का हिस्सा बन सकता है।

 स्नान का महत्व

यह भी मात्र अंधविश्वास ना होकर बहुत साइंटिफिक कहा जा सकता है क्योंकि या तो किसी लंबी और घातक बीमारी या फिर एक्सिडेंट की वजह से या फिर वृद्धावस्था के कारण व्यक्ति की मृत्यु होती है। 


कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन इन सभी की वजह से संक्रमण फैलने की संभावनाएं बहुत हद तक बढ़ जाती हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि दाह-संस्कार के पश्चात स्नान आवश्यक है ताकि श्मशान घाट और घर के भीतर मौजूद कीटाणुओं से मुक्ति मिल सके।


 प्राचीन ऋषि-मुनि

प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों और ज्ञानियों ने बिना किसी ठोस कारण के कोई भी नियम नहीं बनाए। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की जांच और उसे गहराई से समझने के बाद ही दिशा-निर्देश दिए गए, जो बेहद व्यवहारिक हैं। परंतु आज के दौर में उनकी व्यवहारिकता को समाप्त कर उन्हें मात्र एक अंधविश्वास की तरह अपना लिया गया है।


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