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जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विनोद खन्ना द्वारा लिखी गई आत्मकथा की खूबसूरत पंक्तियां

"जब मुझे पर्याप्त आत्मविश्वास मिला.... तो मंच खत्म हो चुका था.... जब मुझे हार का यकीन हो गया तब मैं जीता...... जब मुझे लोगों की जरूरत थी... उन्होंने मुझे छोड़ दिया.... जब रोते हुये मेरे आँसू सूख गए.... तो मुझे सहारे के लिए कंधा मिल गया.... जब मैंने नफरत की दुनिया में जीना सीख लिया... किसी ने मुझे दिल की गहराई से प्यार करना शुरु कर दिया.... जब सुबह का इंतजार करते करते मे सोने लगा... सूर्य निकल आया..... यही जिंदगी है... कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या योजना बना रहे हैं आप कभी भी नहीं जान पाते हैं कि जीवन आपके लिए क्या योजना बना रहा है... सफलता आपका दुनिया से परिचय कराती है और असफलता आप को दुनिया का....! इसलिए हमेशा खुश रहो!! अक्सर जब हम आशा खो देते हैं और लगता है कि यह अंत है भगवान ऊपर से मुस्कराते हैं और कहते हैं कि...शांत रहो वत्स...यह सिर्फ एक मोड़ है अंत नहीं...!!!

​श्री हरि के वाहन गरुड़जी की रोचक कथा!!!!!!

​श्री हरि के वाहन गरुड़जी की रोचक कथा!!!!!! गरूड़ भगवान के बारे में सभी जानते होंगे। यह भगवान विष्णु का वाहन हैं। भगवान गरूड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है। गरूड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण पक्षी माना गया है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गरूड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख वाला) कहा गया है। जातक कथाओं में भी गरूड़ के बारे में कई कहानियां हैं। माना जाता है कि गरूड़ की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश और व्यक्तियों को इधर से उधर ले जाना होता था। कहते हैं कि यह इतना विशालकाय पक्षी होता था जो कि अपनी चोंच से हाथी को उठाकर उड़ जाता था। गरूढ़ जैसे ही दो पक्षी रामायण काल में भी थे जिन्हें जटायु और सम्पाती कहा जाता था। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते विचरण करते रहते थे। इनके लिए दूरियों का कोई महत्व नहीं था। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है। पक्...

जानिए पौराणिक काल के 24 चर्चित श्राप और उनके पीछे की कहानी

जानिए पौराणिक काल के 24 चर्चित श्राप और उनके पीछे की कहानी 🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁 हिन्दू पौराणिक ग्रंथो में अनेको अनेक श्रापों का वर्णन मिलता है। हर श्राप के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर मिलती है। आज हम आपको हिन्दू धर्म ग्रंथो में उल्लेखित 24 ऐसे ही प्रसिद्ध श्राप और उनके पीछे की कहानी बताएँगे। 1. युधिष्ठिर का स्त्री जाति को श्राप👇 महाभारत के शांति पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद जब कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो पांडवों को बहुत दुख हुआ। तब युधिष्ठिर ने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया। माता कुंती ने जब पांडवों को कर्ण के जन्म का रहस्य बताया तो शोक में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दिया कि - आज से कोई भी स्त्री गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी। 2. ऋषि किंदम का राजा पांडु को श्राप👇 महाभारत के अनुसार एक बार राजा पांडु शिकार खेलने वन में गए। उन्होंने वहां हिरण के जोड़े को मैथुन करते देखा और उन पर बाण चला दिया। वास्तव में वो हिरण व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी। तब ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप ...

खाटू श्याम बाबा की सम्पूर्ण एवम विस्तृत कथा

🌹🌹((खाटू श्याम बाबा की सम्पूर्ण एवम  विस्तृत कथा,,,,,)),🌹🌹 हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी कलियुग में कृष्ण के अवतार हैं, जिन्होंने श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलियुग में उनके नाम श्याम से पूजे जाएँगे। श्री कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जैसे-जैसे कलियुग का अवतरण होगा, तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे। तुम्हारे भक्तों का केवल तुम्हारे नाम का सच्चे दिल से उच्चारण मात्र से ही उद्धार होगा। यदि वे तुम्हारी सच्चे मन और प्रेम-भाव से पूजा करेंगे तो उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और सभी कार्य सफ़ल होंगे। श्री श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ तथा श्री कृष्ण से सीखी। भगवान् शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये; इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्निदेव प्...

श्री चैतन्य महाप्रभु

. ‘यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत’ का संदेश भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में अर्जुन को दिया था । . इसका तात्पर्य यह था कि जब-जब धर्म की अवनति होती है तब-तब ईश्वर किसी योगी महात्मा के रूप में अवतार लेते हैं और संदेश प्रचार आदि से धर्म की रक्षा करते हैं । . चौदहवीं विक्रमी संवत् के समय पश्चिम बगाल में अंधविश्वासों और रुढ़िवादियों का बोल बाला था । . नवद्वीप नाम के ग्राम में धारणा थी कि जब कोई नवजात शिशु जन्म लेता है तो शाकिनी डाकिनी नाम की चुड़ैल उस बालक का अनिष्ट करती हैं . परंतु यदि बालक का नाम निमाई रख दिया जाए तो उसका कोई अनिष्ट नहीं होता । . संवत् 1407 में फास्तुन मास की शुक्ल पूर्णिमा को एक ब्राह्मण परिवार में एक बालक का जन्म हुआ । . पंडित जगन्नाथ मिश्र की पत्नी शुचि देवी ने इस बालक को जन्म दिया जिसका नाम लोकधारणा के अनुसार निमाई रखा गया । . बाल्यकाल में निमाई बड़े नटखट और क्रोधी थे । मनचाहा न होने पर ये रो-रोकर घर सिर पर उठा लेते थे । यद्यपि भगवद्भक्ति के संस्कार भी इनके अंदर थे । . इनका रोना सुन कर इनकी माताश्री मधुर स्वर में हरिगान गातीं और यह रोना ...

भगवान भोलेनाथ के रहस्य

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है, उनके बारे में यहां प्रस्तुत हैं 35 रहस्य। 1. आदिनाथ शिव…. सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें ‘आदिदेव’ भी कहा जाता है। ‘आदि’ का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम ‘आदिश’ भी है। 2. शिव के अस्त्र-शस्त्र…. शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था। 3. शिव का नाग…. शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है। 4. शिव की अर्द्धांगिनी….. शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं। 5. शिव के पुत्र शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है। 6. शिव के शिष्य….. शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भ...

महापंडित लंकाधीश रावण रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना के समय पुरोहित कैसे बने ????

बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी महर्षि कम्बन की 'इरामावतारम्' मे यह कथा है। रावण केवल शिवभक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था..। उसे भविष्य का पता था..। वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए असंभव था..। जामवंत जी को आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया..। जामवन्त जी दीर्घाकार थे, वे आकार में कुम्भकर्ण से तनिक ही छोटे थे। लंका में प्रहरी भी हाथ जोड़कर मार्ग दिखा रहे थे। इस प्रकार जामवन्त को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा। स्वयं रावण को उन्हें राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ। मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूँ। उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है। रावण ने सविनय कहा– आप हमारे पितामह के भाई हैं। इस नाते आप हमारे पूज्य हैं। आप कृपया आसन ग्रहण करें। यदि आप मेरा निवेदन स्वीकार कर लेंगे, तभी संभवतः मैं भी आपका संदेश सावधानी से सुन सकूंगा। जामवन्त ने कोई आपत्ति नहीं की। उन्होंने आसन ग्रहण किया। रावण ने भी अपना स्थान ग्रहण किया। तदुपर...

इन कामों से बचें

    *💎💎दूसरे के पहने हुए वस्त्र और जूते कभी नहीं पहनना चाहिए।* *💎💎दूसरे की सवारी, शय्या,आसन, घर, बिना कुछ दिये उपयोग करने वाला पापी हो जाता है।* *💎💎जो अमावस्या के दिन किसी के यहाँ भोजन करता है, उसका एक माह का पुण्य अन्नदाता को, जो उत्तरायण, या दक्षिणायन के दिन किसी का अन्न ग्रहण करें, तो छः महीने के, तथा जो सूर्य के मेष और तुला राशि में आने पर भोजन करें, वह तीन माह का, एवं चन्द्र ग्रहण व सूर्य ग्रहण के दिन जो दूसरे का अन्न ले, वह बारह वर्षों का, तथा संक्रांति के दिन दूसरे का अन्न खाता है, वह एक माह के पुण्य से वञ्चित हो जाता है।* *💎💎बिना निमन्त्रण के भी भोजन नहीं करना चाहिए, दूसरे के पकाये भोजन की रूचि नहीं रखनी चाहिए।* *💎💎किसी के घर या तो बहुत प्रेम के कारण, या आपत्ति होने पर ही भोजन करना चाहिए*। *💎💎जो बिना बुद्धि वाला केवल अतिथि सत्कार के लोभ से किसी का अन्न खाता है, वह अन्नदाता का पशु बनता है।* *💎💎दूसरे की कोई भी वस्तु चाहे सरसों के दाने के बराबर ही क्यों न हो, उसका अपहरण करने पर मनुष्य पापी और नरकगामी होता है।* *💎💎दूसरे की स्त्री का सेवन इन्द...

शिवलिंग स्थापित करने में इतनी सावधानी जरूर रखें

आप अपने घर में शिवलिंग स्थापित करने के बारे में सोच रहे हैं तो रखें कुछ बातों का ध्यान, फायदे में रहेंगे! """"""" भगवन शिव के बारे में तो आप जानते ही हैं, वह बहुत ही दयालु भी हैं और क्रोधी स्वाभाव के भी हैं। जो उन्हें सच्चे मन से याद करता है, उसकी पुकार वह तुरंत सुन लेते हैं। अगर आपने भी अपने घर में शिवलिंग स्थापित किया हुआ है या करने के बारे में सोच रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरुरी है। आप तो जानते ही हैं कि भगवन शिव जब क्रोधित हो जाते हैं, तो वह पूरी पृथ्वी का विनाश करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में कोई ऐसा काम ना करें या कोई ऐसी चीज चढ़ावे के रूप में ना चढ़ाएँ जो उन्हें पसंद ना हो। आज हम आपको कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जो शिवलिंग के साथ नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग के साथ ऐसा भूलकर भी ना करें..... कोने में ना रखें:- शिवलिंग अगर घर में स्थापित कर रहे हैं तो उसे भूलकर भी कोने में या किसी ऐसी जगह ना रखें जहाँ आप उसकी पूजा ना कर पायें। ऐसा करने से भगवन शिव क्रोधित हो जाते हैं, और उनके क्रोध से बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता ह...