सोमवार, 29 अक्टूबर 2018

भगवान नारायण द्वारा श्रीराधा की स्तुति


नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।
रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।

रासमण्डल में निवास करने वाली हे परमेश्वरि ! आपको नमस्कार है। श्रीकृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रिय हे रासेश्वरि ! आपको नमस्कार है।

नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।
ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।।

ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं के द्वारा वन्दित चरणकमल वाली हे त्रैलोक्यजननी ! आपको नमस्कार है। हे करुणार्णवे ! आप मुझ पर प्रसन्न होइए।

नम: सरस्वतीरूपे नम: सावित्रि शंकरि।
गंगापद्मावनीरूपे षष्ठि मंगलचण्डिके।।

हे सरस्वतीरूपे ! आपको नमस्कार है। हे सावित्रि ! हे शंकरि ! हे गंगा-पद्मावतीरूपे ! हे षष्ठि ! हे मंगलचण्डिके ! आपको नमस्कार है।

नमस्ते तुलसीरूपे नमो लक्ष्मीस्वरुपिणी।
नमो दुर्गे भगवति नमस्ते सर्वरूपिणी।।

हे तुलसीरूपे ! आपको नमस्कार है। हे लक्ष्मीस्वरूपिणि ! आपको नमस्कार है। हे दुर्गे ! हे भगवति ! आपको नमस्कार है। हे सर्वरूपिणि ! आपको नमस्कार है।

मूलप्रकृतिरूपां त्वां भजाम: करुणार्णवाम्।
संसारसागरादस्मदुद्धराम्ब दयां कुरु।। (श्रीमद्देवीभागवत ९।५०।४६-५०)

हे अम्ब ! मूलप्रकृतिस्वरूपिणी तथा करुणासिन्धु आप भगवती की हम उपासना करते हैं, संसार-सागर से हमारा उद्धार कीजिए, दया कीजिए।

स्तोत्र पाठ का फल
जो मनुष्य तीनों कालों (प्रात:, मध्याह्न और सायं) में श्रीराधा का स्मरण करते हुए इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके लिए कभी कोई भी वस्तु अलभ्य (दुर्लभ) नहीं रहती और देह-त्याग के बाद वह गोलोकधाम में रासमण्डल में निवास करता है।

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

युग

युग शब्द का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। जैसे कलियुग, द्वापरयुग, सत्ययुग, त्रेतायुग आदि । यहाँ हम चारों युगों का वर्णन करेंगें। युग वर्णन से तात्पर्य है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई, एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय देना। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है -
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सत्ययुग – यह प्रथम युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है -
इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 17,28,000 वर्ष होती है ।
इस युग में मनुष्य की आयु – 1,00,000 वर्ष होती है ।
मनुष्य की लम्बाई – 32 फिट (लगभग) [21 हाथ]
सत्ययुग का तीर्थ – पुष्कर है ।
इस युग में पाप की मात्र – 0 विश्वा अर्थात् (0%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 20 विश्वा अर्थात् (100%) होती है ।
इस युग के अवतार – मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह (सभी अमानवीय अवतार हुए) है ।
अवतार होने का कारण – शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए।
इस युग की मुद्रा – रत्नमय है ।
इस युग के पात्र – स्वर्ण के है ।
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त्रेतायुग – यह द्वितीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –
इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 12,96,000 वर्ष होती है ।
इस युग में मनुष्य की आयु – 10,000 वर्ष होती है ।
मनुष्य की लम्बाई – 21 फिट (लगभग) [ 14 हाथ ]
त्रेतायुग का तीर्थ – नैमिषारण्य है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है ।
इस युग के अवतार – वामन, परशुराम, राम (राजा दशरथ के घर)
अवतार होने के कारण – बलि का उद्धार कर पाताल भेजा, मदान्ध क्षत्रियों का संहार, रावण-वध एवं देवों को बन्धनमुक्त करने के लिए ।
इस युग की मुद्रा – स्वर्ण है ।
इस युग के पात्र – चाँदी के है ।
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द्वापरयुग - यह तृतीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –
इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 8.64,000 वर्ष होती है ।
इस युग में मनुष्य की आयु - 1,000 होती है ।
मनुष्य लम्बाई – 11 फिट (लगभग) [ 7 हाथ ]
द्वापरयुग का तीर्थ – कुरुक्षेत्र है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है ।
इस युग के अवतार – कृष्ण, (देवकी के गर्भ से एंव नंद के घर पालन-पोषण), बुद्ध (राजा के घर)।
अवतार होने के कारण – कंसादि दुष्टो का संहार एंव गोपों की भलाई, दैत्यो को मोहित करने के लिए ।
इस युग की मुद्रा – चाँदी है ।
इस युग के पात्र – ताम्र के हैं ।
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कलियुग - यह चतुर्थ युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –
इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 4,32,000 वर्ष होती है ।
इस युग में मनुष्य की आयु – 100 वर्ष होती है ।
मनुष्य की लम्बाई – 5.5 फिट (लगभग) [3.5 हाथ]
कलियुग का तीर्थ – गंगा है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है ।
इस युग के अवतार – कल्कि (ब्राह्मण विष्णु यश के घर) ।
अवतार होने के कारण – मनुष्य जाति के उद्धार अधर्मियों का विनाश एंव धर्म कि रक्षा के लिए।
इस युग की मुद्रा – लोहा है।
इस युग के पात्र – मिट्टी के है।

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

पंचक के प्रकार

जानिए कितनी तरह के होते हैं पंचक-
1. रोग पंचक
रविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है। इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं। इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है।
2. राज पंचक
सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है। इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है। राज पंचक में संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है।
3. अग्नि पंचक
मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले, अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं। इस पंचक में अग्नि का भय होता है। इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है। इनसे नुकसान हो सकता है।
4. मृत्यु पंचक
शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है। नाम से ही पता चलता है कि अशुभ दिन से शुरू होने वाला ये पंचक मृत्यु के बराबर परेशानी देने वाला होता है। इन पांच दिनों में किसी भी तरह के जोखिम भरे काम नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव से विवाद, चोट, दुर्घटना आदि होने का खतरा रहता है।
5. चोर पंचक
शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है। विद्वानों के अनुसार इस पंचक में यात्रा करने की मनाही है। इस पंचक में लेन-देन, व्यापार और किसी भी तरह के सौदे भी नहीं करने चाहिए। मना किए गए कार्य करने से धन हानि हो सकती है।
6. इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है। इन दो दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

*शरद पूर्णिमा विशेष*

अक्टूबर 23को समस्त भारत वर्ष में शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जायेगा।
इस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। साथ ही माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग जगते है । जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं।
इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है।  इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं।
पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।

शरद पूर्णिमा विधान
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इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और ब्रह्मचर्य भाव से रहे।इस दिन ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए १०० दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।

शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्व
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शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा
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एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।

उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

शरद पूर्णिमा की रात को क्या करें, क्या न करें ?
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दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें।

अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना।

इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है ।

शरद पूनम दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है।

चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है।
अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है । इस दिन हमारे मंदिर में लक्ष्मी जी का अभिषेक संपूर्ण श्री सूक्त से करवाया जाएगा इसके अलावा रात्रि में लक्ष्मी जी के मंत्रों से जो लोग हवन करवाना चाहते हैं वह लोग फोन पर संपर्क कर सकते हैं  इस दिन लक्ष्मी  जी के मंत्रों से हवन Poojan karne se लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त होगी रात्रि में ओम हरीम श्रीम लक्ष्मी नारायणाय नमः इस मंत्र का चंद्रमा की रोशनी में विष्णु जी और लक्ष्मी जी के सामने बैठकर पूरी रात या ज्यादा से ज्यादा समय तक बैठकर जप करें इससे पूरे साल भर आप पर लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहेगी

सुख समृद्धि के लिए राशि अनुसार करे ये उपाय
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मेष🐐
शरद पूर्णिमा पर मेष राशि के लोग कन्याओं को खीर खिलाएं और चावल को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएं। ऐसा करने से आपके सारे कष्ट दूर हो सकते हैं।

वृष🐂
 इस राशि में चंद्रमा उच्च का होता है। वृष राशि शुक्र की राशि है और राशि स्वामी शुक्र प्रसन्न होने पर भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान करते हैं। शुक्र देवता को प्रसन्न करने के लिए इस राशि के लोग दही और गाय का घी मंदिर में दान करें।

मिथुन💏
 इस राशि का स्वामी बुध, चंद्र के साथ मिल कर आपकी व्यापारिक एवं कार्य क्षेत्र के निर्णयों को प्रभावित करता है। उन्नति के लिए आप दूध और चावल का दान करें तो उत्तम रहेगा।

कर्क🦀
आपके मन का स्वामी चंद्रमा है, जो कि आपका राशि स्वामी भी है। इसलिए आपको तनाव मुक्त और प्रसन्न रहने के लिए मिश्री मिला हुआ दूध मंदिर में दान देना चाहिए।

सिंह🐅
आपका राशि का स्वामी सूर्य है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर धन प्राप्ति के लिए मंदिर में गुड़ का दान करें तो आपकी आर्थिक स्थिति में परिवर्तन हो सकता है।

कन्या👩
इस पवित्र पर्व पर आपको अपनी राशि के अनुसार 3 से 10 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन में खीर खिलाना विशेष लाभदाई रहेगा।

तुला⚖
इस राशि पर शुक्र का विशेष प्रभाव होता है। इस राशि के लोग धन और ऐश्वर्य के लिए धर्म स्थानों यानी मंदिरों पर दूध, चावल व शुद्ध घी का दान दें।

वृश्चिक🦂
इस राशि में चंद्रमा नीच का होता है। सुख-शांति और संपन्नता के लिए इस राशि के लोग अपने राशि स्वामी मंगल देव से संबंधित वस्तुओं, कन्याओं को दूध व चांदी का दान दें।

धनु🏹
इस राशि का स्वामी गुरु है। इस समय गुरु उच्च राशि में है और गुरु की नौवीं दृष्टि चंद्रमा पर रहेगी। इसलिए इस राशि वालों को शरद पूर्णिमा के अवसर पर किए गए दान का पूरा फल मिलेगा। चने की दाल पीले कपड़े में रख कर मंदिर में दान दें।

मकर🐊
इस राशि का स्वामी शनि है। गुरु की सातवी दृष्टि आपकी राशि पर है जो कि शुभ है। आप बहते पानी में चावल बहाएं। इस उपाय से आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।

कुंभ🍯
 इस राशि के लोगों का राशि स्वामी शनि है। इसलिए इस पर्व पर शनि के उपाय करें तो विशेष लाभ मिलेगा। आप दृष्टिहीनों को भोजन करवाएं।

मीन🐳
शरद पूर्णिमा के अवसर पर आपकी राशि में पूर्ण चंद्रोदय होगा। इसलिए आप सुख, ऐश्वर्य और धन की प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
हरे कृष्ण...!*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🌷🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*🌸🌸*जय श्री नाथ जी*🌸🌸

रविवार, 21 अक्टूबर 2018

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति

 (अयोध्याकाण्ड से)

जय जय गिरिबरराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनि दुति गाता।।

नहिं तव आदि मध्य अवसाना।
अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव विभव पराभव कारिनि।
बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।

[दोहा]
पतिदेवता सुतीय महुँ,
मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि,
सहस सारदा सेष।।235।।

सेवत तोहि सुलभ फल चारी।
बरदायिनी पुरारि पिआरी।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।

मोर मनोरथु जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं।
अस कहि चरन गहे बैदेहीं।।

बिनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ।
बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।।

सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचि साचा।
सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।

[छंद]
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु,
सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु,
सनेहु जानत रावरो।।

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय,
सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि,
मुदित मन मंदिर चली।।

[सोरठा]
जानि गौरि अनुकूल सिय,
हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल,
बाम अंग फरकन लगे।।236।।

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

पक्षीराज गरुड़

महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थी। लेकिन विनता और कद्रू नामक अपनी दो पत्नियों से वे विशेष प्रेम करते थे।
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एक दिन महर्षि जब आनंद भाव में बैठे थे तो उनकी दोनों पत्नियां उनके समीप पहुंची और पति के पांव दबाने लगी। प्रसन्न होकर महर्षि ने बारी-बारी से दोनों को सम्बोधित किया-
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तुम दोनों ही मुझे विशेष प्रिय हो। तुम्हारी कोई इच्छा हो तो बताओ।
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कद्रू बोली- स्वामी ! मेरी इच्छा है कि मैं हजार पुत्रो की माँ बनूं।
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फिर महर्षि ने विनता से पूछा। विनता ने कहा- मैं भी माँ बनना चाहती हूं स्वामी ! किन्तु हजार पुत्रो की नहीं, बल्कि सिर्फ एक ही पुत्र की।
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लेकिन मेरा पुत्र इतना बलवान हो कि कद्रू के हजार पुत्र भी उसकी बराबरी न कर सके।
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महर्षि बोले- शीघ्र ही मैं एक यज्ञ करने वाला हूं। यज्ञोपरांत तुम दोनों की माँ बनने की इच्छाएं अवश्य पूरी होगी।
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महर्षि कश्यप ने यज्ञ किया। देवता और ऋषि-मुनियों ने सहर्ष यज्ञ में हिस्सा लिया। यज्ञ सम्पूर्ण करके महर्षि कश्यप पुनः तपस्या करने चले गए।
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कुछ माह पश्चात विनता ने दो तथा कद्रु ने एक हजार अंडे दिए। कुछ काल के पश्चात कद्रु ने अपने अंडे फोड़े तो उनमे से काले नागों के बच्चे निकल पड़े।
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कद्रु ने ख़ुशी से चहकते हुए विनता को पुकारा- विनता ! देखो तो मेरे अन्डो से कितने प्यारे बच्चे बाहर निकले है।
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विनता बोली- सचमुच बहुत खूबसूरत है कद्रू ! बधाई हो, अब मैं भी अपने दोनों अंडो को फोड़कर देखती हूं।
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यह कहकर विनता अपने दोनों अंडो के पास गई। उसने एक अंडा फोड़ दिया,
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लेकिन अंडे के अंदर से एक बच्चे का आधा बना शरीर देखकर वह सहम गई। बोली- हे भगवान ! जल्दीबाजी में मैने ये क्या कर डाला। यह बच्चा तो अभी अपूर्ण है।
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तभी फूटे हुए अंडे के अंदर से बालक बोल पड़ा- जल्दबाजी में अंडा फोड़कर तुमने बहुत बड़ा अपराध कर डाला है। फलस्वरूप तुम्हे कुछ समय तक दासता करनी होगी।
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विनता बोली- अपराध तो मुझसे हो ही गया। लेकिन इसका निराकरण कैसे होगा पुत्र ?
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अपूर्ण बालक बोला- दूसरे अंडे को फोड़ने में जल्दबाजी मत करना। यदि तुमने ऐसा किया तो जीवन भर दासता से मुक्त नहीं हो पाओगी।
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क्योंकि उसी अंडे से पैदा होने वाला तुम्हारा पुत्र तुम्हे दासता से मुक्ति दिलाएगा।
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इतना कहकर अंडे से उत्पन्न अपूर्ण बालक आकाश में उड़ गया और विनता दूसरे अंडे के पकने तक इंतजार करने लगी।
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समय पाकर अंडा फूटा और उसमे से एक महान तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गरुड़ रखा गया।
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गरुड़ दिन-प्रतिदिन बड़ा होने लगा और कद्रू के हजार पुत्रों पर भारी पड़ने लगा।
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परिणामस्वरूप विनता और कद्रू के संबंध दिन-प्रतिदिन कटु से कटुतर होते गए।
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फिर एक दिन जब विनता और कद्रू भृमण कर रही थी। कद्रू ने सागर के किनारे दूर खड़े सफेद घोड़े को देखकर विनता से कहा-
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बता सकती हो विनता ! दूर खड़ा वह घोड़ा किस रंग का है ?
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विनता बोली- सफेद रंग का।
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कद्रू बोली- शर्त लगाकर कह सकती हो कि घोड़ा सफेद रंग का ही है। मुझे तो इसकी पूंछ काले रंग की नजर आ रही है।
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विनता बोली- “तुम्हारा विचार गलत है। घोड़ा पूंछ समेत सफेद रंग का है।
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दोनों में काफी देर तक यही बहस छिड़ी रही। आखिर में कद्रू ने कहा- तो फिर हम दोनों में शर्त हो गई।
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कल घोड़े को चलकर देखते है। यदि वह सम्पूर्ण सफेद रंग का हुआ तो मैं हारी, और यदि उसकी पूंछ काली निकली तो मैं जीत जाऊंगी।
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उस हालत में जो भी हम दोनों में से जीतेगी, तो हारने वाली को जीतने वाली की दासी बनना पड़ेगा। बोलो तुम्हे मंजूर है ?
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विनता बोली- मुझे मंजूर है।
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रात को ही कद्रू ने अपने सर्प पुत्रों को बुलाकर कहा- आज रात को तुम सब उच्चेः श्रवा घोड़े की पूंछ से जाकर लिपट जाना। ताकि सुबह जब विनता देखे तो उसे घोड़े की पूंछ काली नजर आए।
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योजनानुसार नाग उच्चेः श्रवा घोड़े की पूंछ से जाकर लिपट गए। परिणाम स्वरूप सुबह जब कद्रू ने विनता को घोड़े की पूंछ काले रंग की दिखाई तो वह हैरान रह गई।
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बोली- ऐसा कैसे हो गया। कल तो इसकी पूंछ बिलकुल सफेद थी।
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कद्रू बोली- खूब तसल्ली से देख लो। घोड़े की पूंछ आरम्भ से ही काली है। शर्त के मुताबित तुम हार चुकी हो। इसलिए अब तुम्हे मेरी दासी बनकर रहना पड़ेगा।
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विवशतापूर्वक विनता को कद्रू की दासता स्वीकार करनी पड़ी।
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माता को उदास देखकर गरुड़ ने पूछा- क्या ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे आप कद्रू की दासता से मुक्त हो जाए ?
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विनता बोली- यह तो कद्रू से ही पूछना पड़ेगा। यदि वह प्रसन्न हो जाती है तो मुझे दासता से मुक्त कर देगी।
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गरुड़ अपनी माता विनता को लेकर कद्रू के पास पहुंचा और कहा- क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप मेरी माता को अपनी दासता से मुक्त कर दे।
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कद्रू बोली- हो सकता है। बशर्ते कि तुम मेरे पुत्रों को अमृत लाकर दे दो।
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यह सुनकर गरुड़ सोच में पड़ गया। उसने अपनी माता से पूछा- माँ ! अमृत कहा मिलेगा जिसे लेकर मैं तुम्हे दासी जीवन से मुक्त कर संकू।
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विनता ने कहा- अमृत का पता तुम्हारे पिता बता सकते है पुत्र ! तुम उन्हीं के पास जाकर पूछो।
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गरुड़ महर्षि कश्यप के पास पहुंचा। कश्यप अपने पुत्र को देखकर बहुत प्रसन्न हुए।
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गरुड़ ने उनसे पूछा- पिताश्री ! मैं अमृत लेकर अपनी माता को दासता से मुक्ति दिलाना चाहता हूं। कृपया मुझे बताइये कि अमृत कहा मिलेगा।
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महर्षि बोले- पुत्र ! देवराज इंद्र ने अमृत की सुरक्षा के लिए बहुत व्यापक प्रबंध कर रखा है। वहां तक पहुचना कठिन है।
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गरुड़ बोला- इंद्र ने कितनी ही कड़ी सुरक्षा प्रबंध क्यों न कर रखे हो। मगर मैं अमृत ले आऊंगा। आप मुझे सिर्फ उस स्थान का पता बता दीजिये।
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महर्षि कश्यप ने गरुड़ को इंद्र का पता बता दिया। गरुड़ ने फिर पूछा- पिता जी ! मुझे भूख बहुत लगती है। कृपया मुझे यह भी बता दीजिये कि इस लम्बे मार्ग में क्या खाकर अपना पेट भरु।
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महर्षि बोले- अमृत जिस स्थान पर रखा है उस सरोवर तक पहुंचने में तुम्हे वक्त लग जाएगा। इस बीच समुद्र के किनारे तुम्हे निषादों की अनेक बस्तिया मिलेगी।
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ये निषाद बहुत पतित है और इनके आचरण असुरो जैसे है। तुम इन्हे खाकर अपनी भूख मिटा लेना।
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गरुड़ बोला- और उसके बाद भी मेरा पेट न भरा तो ?
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महर्षि बोले- सरोवर के अंदर एक विशाल कछुआ रहता है और उसके साथ ही वन में एक महा भयंकर हाथी भी रहता है।
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दोनों ही बहुत क्रूर और आसुरी प्रवृति के है। तुम उन्हें भी खा सकते हो।
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पिता का आदेश पाते ही गरुड़ अमृत सरोवर की ओर बढ़ चला। मार्ग में उसने निषादों को खाकर अपनी भूख मिटाई।
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फिर अमृत सरोवर पर पहुंचकर कच्छप और हाथी को अपने पंजो में दबाया और दोनों को खाने के लिए किसी उचित जगह की तलाश में उड़ चला।
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सोमगिरि पर्वत पर लहलहाते ऊंचे वृक्षों को देखकर जैसे ही उसने एक वृक्ष पर बैठना चाहा तो उनके भार से वृक्ष की शाखा टूटकर नीचे गिरने लगी।
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यह देख गरुड़ तुरंत उड़ा और दूसरे वृक्ष पर जा बैठा। जिस शाखा पर वह बैठा उस शाखा पर उसने उलटे लटके कुछ ऋषियों को तपस्या करते देखा।
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लेकिन वह शाखा उनके भार से टूटकर नीचे गिरने लगी। यह देख गरुड़ ने शाखा को चोंच में दबाया और हाथी तथा कच्छप को पंजे में दबाए हुए वह अपने पिता के आश्रम की ओर उड चला।
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कश्यप के आश्रम में गरुड़ ने उड़ते-उड़ते अपने पिता से पूछा- पिताजी ! मेरे भार से उस पेड़ की शाखा टूट गई है जिस पर कुछ ऋषि उलटे लटके तपस्या कर रहे थे।
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मुझे बताइये अब मैं इस शाखा को कहां छोडूं ?
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महर्षि कश्यप बोले- तुमने बहुत अच्छा किया पुत्र ! जो सीधे यहां चले आए। शाखा, से उलटे लटके हुए ये बालखिल्य ऋषिगण है।
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अगर इन्हे कष्ट पहुंचा तो ये शाप देकर तुम्हे भस्म कर देंगे।
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गरुड़ बोले- तो फिर बताइये अब मैं क्या करूं ?
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महर्षि बोले- ठहरो, मैं ऋषिगण से प्रार्थना करता हूं कि वे अपना स्थान छोड़कर नीचे आ जाए।
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महर्षि कश्यप ने ऋषि गणो से प्रार्थना की। बालखिल्य ऋषियों ने कश्यप की प्रार्थना स्वीकार कर शाखा छोड़ दी और वे हिमालय में तपस्या करने चले गए।
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चोंच में दबी शाखा को नीचे फेंककर गरुड़ ने भी आनंद से कछुए और हाथी का आहार किया और तृप्त होकर पुनः अमृत लाने के लिए उड़ चला।
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गरुड़ अमृत सरोवर के पास पहुंचा तो अमृत की रक्षा करते हुए महाकाय देवो और अमृत कलश के चारो ओर घूमते हुए चक्र को देखकर वह हैरान हो गया।
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उसने सोचा कि ये देव और चक्र देवराज इंद्र ने अमृत कलश की सुरक्षा के लिए लगाए हुए है।
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चक्र में फंसकर मेरे पंख कट सकते है। इसलिए मैं अत्यंत छोटा रूप धारण कर इसके मध्य में प्रवेश करूंगा।
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गरुड़ को देखकर एक देव ने कहा- यह कोई असुर है जो वेश बदलकर अमृत चुराने यहां तक पहुंचा है। हमे इसे खत्म कर देना चाहिए।
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दोनों देव विद्युत गति से गरुड़ पर टूट पड़े। लेकिन गरुड़ ने अपने पैने पंजो और तीखी चोंच से इन्हे इतना घायल कर दिया कि शीघ्र ही वे दोनों बेहोश होकर गिर पड़े।
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गरुड़ ने अमृत कलश पंजो में दबाया और वापस उड़ गया।
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होश में आते ही दोनों रक्षक देव घबराए हुए इंद्र के पास पहुंचे और गरुड़ द्वारा अमृत कलश ले उड़ने की घटना बता दी।
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यह सुनके इंद्र चकित होकर बोला- ऐसा कैसे हो गया। सरोवर में रहने वाले विशाल कच्छप और तट पर रहने वाले महाकाय हाथी का क्या हुआ ?
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उन दोनों को भी उस विशाल गरुड़ ने अपना भोजन बना लिया।
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यह सुनकर इंद्र अपनी देव सेवा की एक टुकड़ी के साथ वज्र उठाए इन्द्रपुरी से निकला और गरुड़ की खोज में बढ़ चला।
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आकाश मार्ग में उड़ते हुए शीघ्र ही उसने गरुड़ को देख लिया और अपना वज्र चला दिया।
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इंद्र के वज्र का गरुड़ पर कोई असर न हुआ। उसके डैनों से सिर्फ एक पंख वज्र से टकराकर नीचे आ गिरा।
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देव गरुड़ पर टूट पड़े लेकिन कुछ ही समय में गरुड़ ने उन्हें अपनी पैनी चोंच की मार से अधमरा कर दिया।
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यह देख इंद्र सोचने लगा- यह तो महान पराक्रमी है। मेरे वज्र का इस पर जरा भी असर नहीं हुआ।
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जबकि मेरे वज्र के प्रहार से पहाड़ तक टूट के चूर्ण बन जाते है। ऐसे पराक्रमी को शत्रुता से नहीं मित्रता से काबू में करना चाहिए।
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यह सोचकर इंद्र ने गरुड़ से कहा- पक्षीराज ! मैं तुम्हारी वीरता से बहुत प्रभावित हुआ हूं। इस अमृत कलश को मुझे सौंप दो और बदले में जो भी वर मांगना चाहते हो मांग लो।
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गरुड़ बोला- यह अमृत मैं अपने लिए नही, अपनी माता को दासता से मुक्त कराने के लिए नाग माता को देने के लिए ले जा रहा हूं। इसलिए यह कलश मैं तुम्हे नहीं दूंगा।
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इंद्र बोला- ठीक है, इस समय तुम कलश ले जाकर नाग माता को सौंप दो किन्तु उन्हें इसे प्रयोग मत करने देना। उचित मौका देखकर मैं वहां से यह कलश गायब कर दूंगा।
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गरुड़ बोला- अगर मैं तुम्हारी बात को मान लूं तो मुझे बदले में क्या मिलेगा ?
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इंद्र बोला- तुम्हारा मनपसंद भरपेट भोजन। तब मैं तुम्हे इन्ही नागो को खाने की इजाजत दे दूंगा।
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गरुड़ बोला- यही तो मैं चाहता हूं। नाग मेरे स्वादिष्ट भोजन है किन्तु एक ही पिता की संतान होने के कारण मैं इन्हे कहते हुए हिचकता हूं।
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अब मेरी हिचक दूर हो गई। अब मैं आपके कथानुसार ही कार्य करूंगा।
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यह कहकर गरुड़ अमृत कलश लेकर कद्रु के पास पहुंचा और उससे बोला- माते ! अपनी प्रतिज्ञानुसार मैं अमृत कलश ले आया हूं। अब आप अपने वचन से मेरी माता को मुक्त कर दे।
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कद्रु ने उसी क्षण विनता को वचन से मुक्त कर दिया और अगली सुबह अमृत नागो को पिलाने का निश्चय कर वहां से चली गई।
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रात को उचित मौका देखकर इंद्र ने अमृत कलश उठा लिया और पुनः उसी स्थान पर पहुंचा दिया।
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दूसरे दिन सुबह नाग जब वहां पहुंचे तो अमृत कलश गायब देखकर दुखी हुए। उन्होंने उस कुशा को ही जिस पर अमृत कलश रखा था चाटना आरम्भ कर दिया जिसके कारण उनकी जीभ दो हिस्सों में फट गई।
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गरुड़ की मातृभक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु गरुड़ के सम्मुख प्रकट हो गए और बोले- मैं तुम्हारी मातृभक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हूं पक्षीराज ! मैं चाहता हूं कि अब से तुम मेरे वाहन के रूप में मेरे साथ रहा करो।
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गरुड़ बोला- मैं बहुत भाग्यशाली हूं प्रभु जो स्वयं आपने मुझे अपना वाहन बनाना स्वीकार किया।
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आज से मैं हर क्षण आपकी सेवा में रहूंगा और आपको छोड़कर कही नहीं जाऊंगा।
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इस तरह उसी दिन से पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन के रूप में प्रयुक्त होने लगे।
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गरुड़ के भगवान विष्णु की सेवा में जाते ही देवता भयमुक्त हो गए।
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और चूँकि नागों के छल के कारण गरुड़ की माँ विनीता को दासता स्वीकार करनी पड़ी इसलिए नाग और गरुड़ एक दूसरे के दुश्मन है।

जय श्री राधे

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
 हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

कुंभ महापर्व

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