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अक्तूबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगवान नारायण द्वारा श्रीराधा की स्तुति

नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी। रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।। रासमण्डल में निवास करने वाली हे परमेश्वरि ! आपको नमस्कार है। श्रीकृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रिय हे रासेश्वरि ! आपको नमस्कार है। नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे। ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।। ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं के द्वारा वन्दित चरणकमल वाली हे त्रैलोक्यजननी ! आपको नमस्कार है। हे करुणार्णवे ! आप मुझ पर प्रसन्न होइए। नम: सरस्वतीरूपे नम: सावित्रि शंकरि। गंगापद्मावनीरूपे षष्ठि मंगलचण्डिके।। हे सरस्वतीरूपे ! आपको नमस्कार है। हे सावित्रि ! हे शंकरि ! हे गंगा-पद्मावतीरूपे ! हे षष्ठि ! हे मंगलचण्डिके ! आपको नमस्कार है। नमस्ते तुलसीरूपे नमो लक्ष्मीस्वरुपिणी। नमो दुर्गे भगवति नमस्ते सर्वरूपिणी।। हे तुलसीरूपे ! आपको नमस्कार है। हे लक्ष्मीस्वरूपिणि ! आपको नमस्कार है। हे दुर्गे ! हे भगवति ! आपको नमस्कार है। हे सर्वरूपिणि ! आपको नमस्कार है। मूलप्रकृतिरूपां त्वां भजाम: करुणार्णवाम्। संसारसागरादस्मदुद्धराम्ब दयां कुरु।। (श्रीमद्देवीभागवत ९।५०।४६-५०) हे अम्ब ! मूलप्रक...

युग

युग शब्द का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। जैसे कलियुग, द्वापरयुग, सत्ययुग, त्रेतायुग आदि । यहाँ हम चारों युगों का वर्णन करेंगें। युग वर्णन से तात्पर्य है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई, एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय देना। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है - . सत्ययुग – यह प्रथम युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है - इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 17,28,000 वर्ष होती है । इस युग में मनुष्य की आयु – 1,00,000 वर्ष होती है । मनुष्य की लम्बाई – 32 फिट (लगभग) [21 हाथ] सत्ययुग का तीर्थ – पुष्कर है । इस युग में पाप की मात्र – 0 विश्वा अर्थात् (0%) होती है । इस युग में पुण्य की मात्रा – 20 विश्वा अर्थात् (100%) होती है । इस युग के अवतार – मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह (सभी अमानवीय अवतार हुए) है । अवतार होने का कारण – शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए। इस युग की मुद्रा – रत...

पंचक के प्रकार

जानिए कितनी तरह के होते हैं पंचक- 1. रोग पंचक रविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है। इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं। इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है। 2. राज पंचक सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है। इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है। राज पंचक में संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है। 3. अग्नि पंचक मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले, अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं। इस पंचक में अग्नि का भय होता है। इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है। इनसे नुकसान हो सकता है। 4. मृत्यु पंचक शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है। नाम से ही पता चलता है कि अशुभ दिन से शुरू होने वाला ये पंचक मृत्यु के बराबर परेशानी देने वाला होता है। इन पांच दिनों ...

*शरद पूर्णिमा विशेष*

अक्टूबर 23को समस्त भारत वर्ष में शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जायेगा। इस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। साथ ही माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग जगते है । जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं। इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है।  इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं। पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है। शरद पूर्णिमा विधान 〰〰〰〰〰〰 इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और ब्रह्मचर्य भाव से रहे।इस दिन त...

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति

 (अयोध्याकाण्ड से) जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठ...

पक्षीराज गरुड़

महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थी। लेकिन विनता और कद्रू नामक अपनी दो पत्नियों से वे विशेष प्रेम करते थे। . एक दिन महर्षि जब आनंद भाव में बैठे थे तो उनकी दोनों पत्नियां उनके समीप पहुंची और पति के पांव दबाने लगी। प्रसन्न होकर महर्षि ने बारी-बारी से दोनों को सम्बोधित किया- . तुम दोनों ही मुझे विशेष प्रिय हो। तुम्हारी कोई इच्छा हो तो बताओ। . कद्रू बोली- स्वामी ! मेरी इच्छा है कि मैं हजार पुत्रो की माँ बनूं। . फिर महर्षि ने विनता से पूछा। विनता ने कहा- मैं भी माँ बनना चाहती हूं स्वामी ! किन्तु हजार पुत्रो की नहीं, बल्कि सिर्फ एक ही पुत्र की। . लेकिन मेरा पुत्र इतना बलवान हो कि कद्रू के हजार पुत्र भी उसकी बराबरी न कर सके। . महर्षि बोले- शीघ्र ही मैं एक यज्ञ करने वाला हूं। यज्ञोपरांत तुम दोनों की माँ बनने की इच्छाएं अवश्य पूरी होगी। . महर्षि कश्यप ने यज्ञ किया। देवता और ऋषि-मुनियों ने सहर्ष यज्ञ में हिस्सा लिया। यज्ञ सम्पूर्ण करके महर्षि कश्यप पुनः तपस्या करने चले गए। . कुछ माह पश्चात विनता ने दो तथा कद्रु ने एक हजार अंडे दिए। कुछ काल के पश्चात कद्रु ने अपने अंडे फोड़े तो उनमे ...