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कभी भी भगवान शिव को ये 6 वस्तुएं नहीं चढ़ानी चाहिए।

हिन्दू धर्म में सभी देवी-देवताओं को प्रसन्न करने, उनकी आराधना करने के विशिष्ट तरीकों का वर्णन उपलब्ध हैं। कुछ ऐसी सामग्रियां और विधियां होती हैं जो विशिष्ट आराध्य देव को बहुत पसंद होती हैं, उनकी पूजा में उन सामग्रियों की उपलब्धता मनवांछित फल प्रदान करती हैं। लेकिन कुछ ऐसी सामग्रियां भी होती हैं जिनका प्रयोग करना उलटा परिणाम प्रदान कर सकता है। जहां कुछ चीजें आराध्य देवी-देवताओं को पसंद आती हैं वहीं कुछ उन्हें कतई नापसंद होती हैं, ऐसे में अगर उन्हें वे अर्पित की जाएं या उनकी पूजा में उन सामग्रियों का प्रयोग किया जाए तो यह समस्या का कारण बन सकता है। भगवान शिव जिन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है और विनाशक भी। जहां वे अपने भक्तों से बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं तो क्रोध के कारण बहुत जल्दी रौद्र रूप भी धारण कर लेते हैं। भगवान शिव को भांग- धतूरे का चढ़ावा बहुत पसंद है, पर कुछ ऐसी सामग्रियां भी हैं जिनका उपयोग शिव आराधना के दौरान बिल्कुल नहीं करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार शिव भक्तों को कभी भी भगवान शिव को ये 6 वस्तुएं नहीं चढ़ानी चाहिए। 1. केतकी के फूल पौराणिक कथा के अनुसार केतकी फूल ने ब्...

शिव मानस पूजा स्तुति

शिव मानस पूजा स्तुति,,,आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित दिव्य मंत्रावली आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनूठी स्तुति है। इस स्तुति में मात्र कल्पना से शिव को सामग्री अर्पित की गई है और पुराण कहते हैं कि ‍साक्षात शिव ने इस पूजा को स्वीकार किया था।  यह स्तुति भगवान भोलेनाथ की महान उदारता को प्रस्तुत करती है। इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा शिवशंकर को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से समस्त पंचामृत दिव्य सामग्री समर्पित की जाती है। हम कल्पना में ही उन्हें रत्नजडित सिहांसन पर आसीन करते हैं, दिव्य वस्त्र, भोजन तथा आभूषण आदि अर्पण करते हैं। पाठकों के लिए प्रस्तुत है हिन्दी अनुवाद सहित शिव मानस पूजा- -रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं। नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम॥ जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा। दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌॥1॥ हिन्दी भावार्थ - मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्ना...

श्रीजगन्नाथाष्टकम्

श्रीजगन्नाथाष्टकम्  कदाचित् कालिन्दी_तट_विपिन_सङ्गीत_तरलो मुदाभीरी_नारी_वदन_कमलास्वाद_मधुपः । रमा_शम्भु_ब्रह्मामर_पति_गणेशार्चित_पदो जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥१॥ भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखि_पिच्छं कटितटे दुकूलं नेत्रान्ते सहचर_कटाक्षं च विदधत् । सदा श्रीमद्वृन्दावन_वसति_लीला_परिचयो जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥२॥ महाम्भोधेस्तीरे कनक_रुचिरे नील_शिखरे वसन् प्रासादान्तः सहज_वलभद्रेण बलिना । सुभद्रा_मध्यस्थः सकल_सुर_सेवावसर_दो जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥३॥ कृपा_पारावारः सजल_जलद_श्रेणि_रुचिरो रमा_वाणी_रामः स्फुरदमल_पंकेरुह_मुखः । सुरेन्द्रैराराध्यः श्रुति_गण_शिखा_गीत_चरितो जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥४॥ रथारूढो गच्छन् पथि मिलित_भूदेव पटलैः स्तुति_प्रादुर्भावं प्रति_पदमुपाकर्ण्य सदयः । दया_सिन्धुर्बन्धुः सकल_जगतां सिन्धु_सुतया जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥५॥ परंब्रह्मापीडः कुवलय_दलोत्फुल्ल_नयनो निवासी नीलाद्रौ निहित_चरणोऽनन्त_शिरसि । रसानन्दी राधा_सरस_वपुरालिङ्गन_सुखो जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥६॥ न...