सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

श्रीजगन्नाथाष्टकम्

श्रीजगन्नाथाष्टकम् 


कदाचित् कालिन्दी_तट_विपिन_सङ्गीत_तरलो
मुदाभीरी_नारी_वदन_कमलास्वाद_मधुपः ।
रमा_शम्भु_ब्रह्मामर_पति_गणेशार्चित_पदो
जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥१॥

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखि_पिच्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर_कटाक्षं च विदधत् ।
सदा श्रीमद्वृन्दावन_वसति_लीला_परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥२॥

महाम्भोधेस्तीरे कनक_रुचिरे नील_शिखरे
वसन् प्रासादान्तः सहज_वलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रा_मध्यस्थः सकल_सुर_सेवावसर_दो
जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥३॥

कृपा_पारावारः सजल_जलद_श्रेणि_रुचिरो
रमा_वाणी_रामः स्फुरदमल_पंकेरुह_मुखः ।
सुरेन्द्रैराराध्यः श्रुति_गण_शिखा_गीत_चरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥४॥

रथारूढो गच्छन् पथि मिलित_भूदेव पटलैः
स्तुति_प्रादुर्भावं प्रति_पदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया_सिन्धुर्बन्धुः सकल_जगतां सिन्धु_सुतया
जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥५॥

परंब्रह्मापीडः कुवलय_दलोत्फुल्ल_नयनो
निवासी नीलाद्रौ निहित_चरणोऽनन्त_शिरसि ।
रसानन्दी राधा_सरस_वपुरालिङ्गन_सुखो
जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥६॥

न वै याचे राज्यं न च कनक_माणिक्य_विभवं
न याचेऽहं रम्यां सकल_जन_काम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथ_पतिना गीत_चरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥७॥

हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिमपरां यादवपते ।
अहो दीनेऽनाथे निहित_चरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयन_पथ_गामी भवतु मे ॥८॥

जगन्नाथाष्टकं पुण्यं यः पठेत् प्रयतः शुचि ।
सर्वपाप_विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥९॥

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

शिव नाम महिमा

भगवान् श्रीकृष्ण कहते है ‘महादेव महादेव’ कहनेवाले के पीछे पीछे मै नामश्रवण के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं। जो शिव शब्द का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है, वह कोटि जन्मों के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है । शिव शब्द कल्याणवाची है और ‘कल्याण’ शब्द मुक्तिवाचक है, वह मुक्ति भगवन् शंकर से ही प्राप्त होती है, इसलिए वे शिव कहलाते है । धन तथा बान्धवो के नाश हो जानेके कारण शोकसागर मे मग्न हुआ मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण करके सब प्रकार के कल्याणको प्राप्त करता है । शि का अर्थ है पापोंका नाश करनेवाला और व कहते है मुक्ति देनेवाला। भगवान् शंकर मे ये दोनों गुण है इसीलिये वे शिव कहलाते है । शिव यह मङ्गलमय नाम जिसकी वाणी मे रहता है, उसके करोड़ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है । शि का अर्थ है मङ्गल और व कहते है दाता को, इसलिये जो मङ्गलदाता है वही शिव है । भगवान् शिव विश्वभर के मनुष्योंका सदा ‘शं’ कल्याण करते है और ‘कल्याण’ मोक्ष को कहते है । इसीसे वे शंकर कहलाते है । ब्रह्मादि देवता तथा वेद का उपदेश करनेवाले जो कोई भी संसार मे महान कहलाते हैं उन सब के देव अर्थात् उपास्य होने...

श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्

              __श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्__ शिव महिम्न: स्तोत्रम शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है| ४३ क्षन्दो के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है| स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी | कथा कुछ इस प्रकार के है … एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था| वो परं शिव भक्त था| उसने एक अद्भुत सुंदर बागा का निर्माण करवाया| जिसमे विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे| प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे | फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था| उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया| मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया| अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए | पर ये तो आरम्भ मात्र था … बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्यक दिन पुष्प की चोरी करने लगा| इस रहश्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे| पुष्पदंत अपने दिव्या शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा | और फिर … राजा च...