सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गरुड़ देव के आठ रहस्य

गरुड़ भगवान के बारे में सभी जानते होंगे। यह भगवान विष्णु का वाहन हैं। भगवान गरूड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है। गरूड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण पक्षी माना गया है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गरूड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख वाला) कहा गया है। जातक कथाओं में भी गरूड़ के बारे में कई कहानियां हैं। माना जाता है कि गरूड़ की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश और व्यक्तियों को इधर से उधर ले जाना होता था। कहते हैं कि यह इतना विशालकाय पक्षी होता था जो कि अपनी चोंच से हाथी को उठाकर उड़ जाता था। गरूढ़ जैसे ही दो पक्षी रामायण काल में भी थे जिन्हें जटायु और सम्पाती कहा जाता था। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते विचरण करते रहते थे। इनके लिए दूरियों का कोई महत्व नहीं था। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है। पक्षियों में गरुड़ को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। ...

दसमहाविघा स्तोत्रम

दसमहाविघा स्तोत्रम 🔸🔸🔹🔹🔸🔸 ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि । नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥१॥ 👣 शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे । प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥२॥ 👣 जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् । करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥३॥ 👣 हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् । गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥४॥ 👣 हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् । सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥५॥ 👣 मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् । प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥६॥ 👣 उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् । नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥७॥ 👣 श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् । प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥८॥ 👣 विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् । आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥९॥ 👣 श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् । प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥१०॥ 👣 त्रिपुरां सुन्दरीं ...

मां वैष्णो देवी की कथा

 वैष्णो देवी उत्तरी भारत के सबसे पूजनीय और पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर पहाड़ पर स्थित होने के कारण अपनी भव्यता व सुंदरता के कारण भी प्रसिद्ध है। वैष्णो देवी भी ऐसे ही स्थानों में एक है जिसे माता का निवास स्थान माना जाता है। मंदिर, 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।  हर साल लाखों तीर्थ यात्री मंदिर के दर्शन करते हैं।यह भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थस्थल है। वैसे तो माता वैष्णो देवी के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन मुख्य 2 कथाएँ अधिक प्रचलित हैं। माता वैष्णो देवी की प्रथम कथा!!!!! मान्यतानुसार एक बार पहाड़ों वाली माता ने अपने एक परम भक्तपंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई और पूरे सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दु:खी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया।  माँ वैष्णो कन्या ...

भगवान कृष्ण के मुकट पर क्यों विराजमान है मोरपंख??

भगवान कृष्ण के मुकट पर क्यों विराजमान है मोरपंख?? मित्रो आपने श्रीकृष्ण की तस्वीर या प्रतिमा तो देखी ही होगी जिसमें वह अपने शीश पर मोर पंख धारण किये होते हैं । लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि श्रीकृष्ण मोर पंख धारण क्यों करते हैं । क्यों उनके मुकुट में मोर पंख दर्शाया जाता हैं । आज हम आपको इसी रहस्य के बारे में एक कथा के माध्यम से बताने जा रहे हैं । तो चलिए शुरू करने है । गोकुल में एक मोर हुआ करता था । वह रोज कृष्ण के दरवाजे पर बैठकर भजन गया करता था , “मेरा कोई न सहारा बिना तेरे , गोपाल सावरियाँ मेरे , मां बाप सवारियानमेरे ।” रोज  आते जाते कृष्ण के कानों में यह भजन तो पड़ता था मगर वह कुछ खास ध्यान नही देते थे । मोर भगवान के विशेष स्नेह के आस में रोज  भजन गाता रहा । एक एक दिन करते करते एक साल गुजर गया । मोर बिना चुके भजन गाते रहा , प्रभु सुनते रहे , मगर कुछ खास तवज्जो न देते । वो बस आते जाते मोर की ओर देखते और एक प्यारी से मुस्कान देकर चले जाते । इससे ज्यादा सालभर में कुछ नही हुआ । जिससे धीरे धीरे मोर की आस टूटने लगी । सालभर की भक्ति से भी जब प्रभु प्रस्सन न हुए तब...