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भगवान कृष्ण के मुकट पर क्यों विराजमान है मोरपंख??

भगवान कृष्ण के मुकट पर क्यों विराजमान है मोरपंख??

मित्रो आपने श्रीकृष्ण की तस्वीर या प्रतिमा तो देखी ही होगी जिसमें वह अपने शीश पर मोर पंख धारण किये होते हैं । लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि श्रीकृष्ण मोर पंख धारण क्यों करते हैं । क्यों उनके मुकुट में मोर पंख दर्शाया जाता हैं । आज हम आपको इसी रहस्य के बारे में एक कथा के माध्यम से बताने जा रहे हैं । तो चलिए शुरू करने है ।

गोकुल में एक मोर हुआ करता था । वह रोज कृष्ण के दरवाजे पर बैठकर भजन गया करता था , “मेरा कोई न सहारा बिना तेरे , गोपाल सावरियाँ मेरे , मां बाप सवारियानमेरे ।” रोज  आते जाते कृष्ण के कानों में यह भजन तो पड़ता था मगर वह कुछ खास ध्यान नही देते थे । मोर भगवान के विशेष स्नेह के आस में रोज  भजन गाता रहा ।

एक एक दिन करते करते एक साल गुजर गया । मोर बिना चुके भजन गाते रहा , प्रभु सुनते रहे , मगर कुछ खास तवज्जो न देते । वो बस आते जाते मोर की ओर देखते और एक प्यारी से मुस्कान देकर चले जाते । इससे ज्यादा सालभर में कुछ नही हुआ । जिससे धीरे धीरे मोर की आस टूटने लगी ।

सालभर की भक्ति से भी जब प्रभु प्रस्सन न हुए तब  वह मोर रोने लगा । वह प्रभु को याद कर रो रहा थी कि तभी वहां से उड़ती हुई एक मैना गुजरी । उसने जब मोर को रोते हुए देखा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ । उसे आश्चर्य इस बात का नही था कि मोर रो रहा हैं । बल्कि इस बात का आश्चर्य था कि कृष्ण के दरवाजे पर कोई रो रहा हैं । मैना सोची , कितना अभागा है ये । जिसके दरवाजे पर आकर सबके कष्ट दूर हो जाते हैं , उसके दरवाजे पर यह  रो रहा हैं ।

वह मोर के पास पहुंची और उसने मोर से रोने का कारण पूछा । तब मोर ने उसे बताया कि वह कैसे पिछले एक साल से प्रभु की भक्ति कर रहा हैं । उनकी प्रसंसा में गीत गा रहा है । लेकिन प्रभु श्रीकृष्ण ने आज तक उसे  पानी भी नही पिलाया । यह सुन मैना  बोली कि मैं बरसाने से  आयी हूँ तुम भी मेरे साथ चलो । मोर मान गया और दोनों वहां से निकल गए और बरसाने पहुंचे ।

मैना बरसाने में राधा जी के घर पहुंची और वहां उसने गीत गाना शुरू किया  ।” श्री राधे राधे राधे बरसाने वाली राधे ।” मैना ने मोर से भी राधा जी का यह गीत गाने को कहा ।मोर ने गाने की कोशिश भी की लेकिन उसे बाके बिहारी का ही भजन गाने की आदत थी , इसलिए वह उसे ही गाने लगे । ” मेरा कोई न सहारा बिना तेरे , गोपाल सावरियाँ मेरे , मां बाप सावरियाँ मेरे । ”

राधा जी की कानो में जब यह गीत पड़ा तो वह भागते हुए मोर के पास आई और उसे गले लगाकर प्यार से दुलारने लगी । वह मोर के साथ ऐसा व्यवहार कर रही थी जैसे कि उनका कोई खोया हुआ परिजन वापस आ गया हो ।

मोर की खातिरदारी कर राधा जी ने उनसे पूछा कि वो कहा से आया हैं । मोर गदगद हो गया । उसने कहना  शुरू किया , जय हो राधारानी , मैने  आज तक सुना था कि आप करुणा की देवी हो लेकिन आज साबित हो गया । यह सुन राधा ने पूछा कि वह उन्हें करुणामयी क्यों कह रहा हैं । तब मोर ने बताया कि कैसे वह साल भर श्याम नाम की धुन जपता  रहा और श्याम ने उसे पानी भी नही पूछा ।

राधा जी मुस्कुराई वह मोर के मन का टीस समझ गयी थी , और उसका कारण भी । राधा ने मोर से कहा कि तुम गोकुल वापस जाओ और वहां जो भजन तुम गाते थे उसकी जगह पर यह गाना । “जय राधे राधे बरसाने वाली राधे ।” मोर का मन तो राधा जी को छोड़ कर जाने का नही था लेकिन फिर भी वह उनके कहे मुताबिक गोकुल वापस गया और जाकर उनका बताया हुआ  भजन  गाने लगा ।

जब यह भजन कृष्ण के कानों में पड़ा तो वह भागते भागते मोर के पास पहुंचे और उसे गले लगा लिया और उसका हाल चाल पूछने लगे । कृष्ण ने पूछा कि तुम कहा से आये हो । यह सुन मोर भड़क गया । एक साल से में आपके नाम की धूनी रमा रहा था  , और आपने कभी मुझे पानी तक नही पूछा । आज जब मैंने दल बदल लिया तो भागते हुए चले आये ।

भगवान मुस्कुराते हुए कहते है कि तुम कहा से आये हो । मोर सावरियाँ से मिलने के लिए बहुत तरसा था , इसलिए वह अपनी सारी गिला शिकवे मिटा देना चाहता था । उसने याद दिलाते हुए कहा कि मैं वही मोर हूँ जो आपके दरवाजे पर एक साल से भजन गा रहा था । सर्दी गर्मी सब सहता एक साल तक आपके दरवाजे पर डटा रहा । आपकी स्तुति करता रहा मगर आपने पानी तक नही पूछा । में फिर बरसाने चला गया जहां राधा जी ने मुझे दुलार दिया ।

यह सब सुनकर कृष्ण मुग्ध हो गए । उन्होंने मोर से कहा , मोर तुमने राधा का नाम लिया यह तुमरे लिए वरदान साबित होगा । में वरदान देता हूँ कि जब तक यह सृष्टि रहेगी तुम्हारा पंख सदैव मेरे शीश पर विराजमान रहेगा । और तब से ही श्रीकृष्ण के मुकुट पर , उनके शीश पर मोर पंख विराजमान हैं ।

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