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सत्यनारायण व्रत कथा

मित्रों आज गुरुवार है, आज हम आपको सत्य नारायण व्रत कथा के बारे में बतायेगें!!!!!!!  हिंदू धर्मावलंबियो के बीच सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा है। कुछ लोग मनौती पूरी होने पर, कुछ अन्य नियमित रूप से इस कथा का आयोजन करते हैं। सत्यनारायण व्रतकथाके दो भाग हैं, व्रत-पूजा एवं कथा। सत्यनारायण व्रतकथा स्कंदपुराण के रेवाखंड से संकलित की गई है। सत्य को नारायण (विष्णु के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठांतर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध है जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- जिनमें एक है संकल्प को भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान। व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियां आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूर

पंचमुखी हनुमान जी का राज

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पंचमुखी हनुमान में क्यो  है भगवान शंकर के पांच अवतारों की शक्ति??????? शंकरजी के पांचमुख—तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव, अघोर व ईशान हैं; उन्हीं शंकरजी के अंशावतार हनुमानजी भी पंचमुखी हैं। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को, पुष्य नक्षत्र में, सिंहलग्न तथा मंगल के दिन पंचमुखी हनुमानजी ने अवतार धारण किया । हनुमानजी का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है । हनुमानजी का एकमुखी, पंचमुखी और ग्यारहमुखी स्वरूप ही अधिक प्रचलित हैं। हनुमानजी के पांचों मुखों के बारे में श्रीविद्यार्णव-तन्त्र में इस प्रकार कहा गया है— पंचवक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम् । बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकाम्यार्थ सिद्धिदम् ।। विराट्स्वरूप वाले हनुमानजी के पांचमुख, पन्द्रह नेत्र हैं और दस भुजाएं हैं जिनमें दस आयुध हैं—‘खड्ग, त्रिशूल, खटवांग, पाश, अंकुश, पर्वत, स्तम्भ, मुष्टि, गदा और वृक्ष की डाली । ▪️ पंचमुखी हनुमानजी का पूर्व की ओर का मुख वानर का है जिसकी प्रभा करोड़ों सूर्य के समान है । वह विकराल दाढ़ों वाला है और उसकी भृकुटियां (भौंहे) चढ़ी हुई हैं । ▪️ दक्षिण की ओर वाला मु

पारदशिवलिंग पूजन का महत्त्व

पारदशिवलिंग पूजन का महत्त्व 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔹🔸🔸 वैदिक रीतियों में, पूजन विधि में, समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति में पारद से बने शिवलिंग एवं अन्य आकृतियों का विशेष महत्त्व होता है। पारद जिसे अंग्रेजी में एलम (Alum) भी कहते हैं , एक तरल पदार्थ होता है और इसे ठोस रूप में लाने के लिए विभिन्न अन्य धातुओं जैसे कि स्वर्ण, रजत, ताम्र सहित विभिन्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इसे बहुत उच्च तापमान पर पिघला कर स्वर्ण और ताम्र के साथ मिला कर, फिर उन्हें पिघला कर आकार दिया जाता है। पारद को भगवान् शिव का स्वरूप माना गया है और ब्रह्माण्ड को जन्म देने वाले उनके वीर्य का प्रतीक भी इसे माना जाता है। धातुओं में अगर पारद को शिव का स्वरूप माना गया है तो ताम्र को माँ पार्वती का स्वरूप। इन दोनों के समन्वय से शिव और शक्ति का सशक्त रूप उभर कर सामने आ जाता है। ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है। इसीलिए ऐसे शिवलिंग को "सुवर्ण रसलिंग" भी कहते हैं। पारद के इस लिंग की महिमा का वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों में जैसे कि रूद्र संहिता, पारद

मां अन्नपूर्णा देवी

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माँ अन्नपूर्णा की कथा! अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री। सनातन धर्म की मान्यता है कि प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है। शिव की अर्धांगनी, कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, किंतु सम्पूर्ण जगत् उनके नियंत्रण में है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य में आने की कथा बडी रोचक है। भगवान शंकर जब पार्वती के संग विवाह करने के पश्चात् उनके पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत कैलास पर रहने लगे, तब देवी ने अपने मायके में निवास करने के बजाय अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की।  महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशा

पूजा के प्रकार

पूजन के प्रकार एवं अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी!!!!!!!!!!! पंचोपचार (05) दशोपचार (10) षोडसोपचार(16) राजोपचार द्वात्रिशोपचार (32) चतुषष्टीपोचार (64) एकोद्वात्रिंशोपचार (132) पंचोपचार👉 गन्ध, पुष्प, दूध, दीप तथा नैवेद्य द्वारा पूजन करने को पंचोपचार पूजन कहते हैं। दशोपचार👉  आसन, पाद्य, अर्ध्य, मधुपर्क, आचमन, गंध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य द्वारा पूजन करने को दशोपचार पूजन कहते हैं। षोडशोपचार👉 आवाहन, आसन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, अलंकार, सुगन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, ताम्बुल तथा दक्षिणा द्वारा पूजन करने की विधि को षोडषोपचार पूजन कहते हैं। राजोपचार पूजन👉 राजोपचार पूजन में षोडशोपचार पूजन के अतिरिक्त छत्र, चमर, पादुका, रत्न व आभूषण आदि विविध सामग्रियों व सज्जा से की गयी पूजा राजोपचार पूजन कहलाती है | राजोपचार अर्थात राजसी ठाठ-बाठ के साथ पूजन होता है, पूजन तो नियमतः ही होता है परन्तु पूजन कराने वाले के सामर्थ्य के अनुसार जितना दिव्य और राजसी सामग्रियों से सजावट और चढ़ावा होता है उसे ही राजोपचार पूजन कहते हैं। पूजन के अलावे कुछ विशिष्ट जानकारियां पंचामृत

पीलिया के कुछ आयुर्वेदिक उपचार

पाण्डु (पीलिया) : १.10 से 30 मिलीलीटर बेल के कोमल पत्तों के रस में आधा ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया के रोग में लाभ मिलता है। पीलिया रोग की सूजन में बेल के पत्तों के रस को गर्मकर लेप दें या पत्तों का काढ़ा बफारा देने से आराम मिलता है। बेल के पत्तों के रस में कालीमिर्च का चूर्ण डालकर पीने से पाण्डु रोग (पीलिया) शांत हो जाता है। २.हल्दी में वातनाशक गुण होता है इसलिए ठंड से होने वाली वात नाड़ी के जलन पर हल्दी खाने के लिए दी जाती है। हल्दी से शरीर की मालिश भी की जाती है। पीलिया और पित्त-प्रमेह में इसका उपयोग होता है। शरीर के भीतरी चोट (गुम चोट) पर हल्दी का उपयोग तो बहुत ही जरूरी होता है। ३. प्रतिदिन तीन बार एक-एक चम्मच शहद एक गिलास पानी में मिलाकर पिलाने से पीलिया रोग में लाभ होता है। ४. पीलिया : बबूल के फूलों को मिश्री के साथ मिलाकर बारीक पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। फिर इस चूर्ण की 10 ग्राम की फंकी रोजाना दिन में देने से ही पीलिया रोग मिट जाता है। बबूल के फूलों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर 10 ग्राम रोजाना खाने से पीलिया रोग मिट जाता है। ५

रावण से भी ज्यादा शक्तिशाली था कंस, सवालाख किलो का उठा लिया था धनुष!

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रावण से भी ज्यादा शक्तिशाली था कंस, सवालाख किलो का उठा लिया था धनुष! रावण को मारने के लिए श्री राम को कई दिन युद्ध करना पड़ा था इस दौरान दो बार राम जी तो 4 बार लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे। करोडो वानरों की भी मृत्यु हो गई थी (हालाँकि उन्हें इंद्र ने पुनः जीवन दान दे दिया था) तब जाकर कंही अंत में रावण का वध हुआ था। इसपे हनुमान जी और वानरों में भी कई वीरो की सहायता से ही रावण की सेना का संघार हुआ था। भले ही बड़े बड़े राक्षस राम लखन ने मारे थे लेकिन वानर वीरो ने भी कई राक्षस मारे थे। इन सब को देखते हुए अगर आपको लगता है की कंस तो बड़ा कमजोर था। भगवान कृष्ण जब ग्यारह साल के थे तभी उसे आसानी से मार दिया था तो आप गलत है! तब पर श्री कृष्णा हो या महाभारत सभी में कृष्ण लीला तो दिखाई है। लेकिन कंस का पराक्रम बहुत कम ही दिखाया गया है। श्री कृष्ण के राज पुरोहित गर्गाचार्य ने जो गर्ग संहिता लिखी है उसमे उन्होंने कंस के बल का वर्णन किया है जिसे जान आप भी कहेंगे की वो रावण से ज्यादा बलशाली था। जाने उसका बल… वत्सासुर, पूतना, तृणावर्त, अघासुर, बकासुर (पूतना का भाई). अरिष्ठासुर, केशी, व्योमासुर,

हनुमान जी की तस्वीर का मतलब

*हनुमानजी की 10 तस्वीर, सभी का महत्व है अलग-अलग :* हनुमानजी के आपने बहुत सारे चित्र देखें होंगे। जैसे, हवा में उड़ते हुए, पर्वत उठाते हुए या रामजी की भक्ति करते हुए। आज हम आपको बताते हैं हनुमानजी के उन चित्रों के बारे में जिन्हें घर में लगाने से मिलता है अपार लाभ। 1. पर्वत उठाते हुए हनुमान का चित्र : यदि यह चित्र आपके घर में है तो आपमें साहस, बल, विश्वांस और जिम्मेदारी का विकास होगा। आप किसी भी परिस्थिगति से घबराएंगे नहीं। हर परिस्थिति आपके समक्ष आपको छोटी नजर आएगी और तुरंत ही उसका समाधान हो जाएगा। 2. उड़ते हुए हनुमान : यदि यह चित्र आपके घर में है तो आपकी उन्नती, तरक्की और सफलता को कोई रोक नहीं सकता। आपमें आगे बढ़ने के प्रति उत्साह और साहस का संचार होगा। निरंतर आप सफलता के मार्ग पर बढ़ते जाएंगे। 3. श्रीराम भजन करते हुए हनुमान : इस चित्र में हनुमानजी हाथ में करताल लेकर राम की भक्ति करते नजर आएंगे। यदि यह चित्र आपके घर में है तो आपमें भक्ति और विश्वामस का संचार होगा। यह भक्ति और विश्वाुस ही आपके जीवन की सफलता का आधार है। इस चित्र की पूजा से जीवन के लक्ष्य को पाने में आ रहीं अड़च

भगवान श्री राम की बहन - शांता

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भगवान श्री राम की बहन - शांता रामायण और महाभारत महाकाव्य के रुप में भारतीय साहित्य की अहम विरासत तो हैं ही साथ ही हिंदू धर्म को मानने वालों की आस्था के लिहाज से भी ये दोनों ग्रंथ बहुत महत्वपूर्ण हैं। आम जनमानस पर इनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले रामायण के ही क्षेत्र और भाषायी आधार पर 300 से अधिक संस्करण मिलते हैं। हर कथा मूल रुप से एक समान लगती है लेकिन इनमें कुछ रोचक और भिन्न किस्से भी मिलते हैं। अब तक आप जिस रामायण से परिचित हैं उसमें भगवान श्री राम और लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रुप में उनके तीन भाईयों के बारे में जानकारी मिलती है।  राम का बनवास और सीता हरण से लेकर रावण के वध, अयोध्या वापसी और गर्भवती सीता को त्यागने की कहानी भी मिलती है। लव-कुश की कथा भी इसी का हिस्सा है। लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि भगवान राम की कोई बहन भी थी। शायद नहीं सुना होगा लेकिन यह सच है। चलिये आपको बताते हैं कौन थीं भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की बहन। प्रभु श्री राम की बहन शांता की कथा!!!! दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा के अनुसार भगवान श्री राम की