मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

भगवान श्री राम की बहन - शांता

भगवान श्री राम की बहन - शांता


रामायण और महाभारत महाकाव्य के रुप में भारतीय साहित्य की अहम विरासत तो हैं ही साथ ही हिंदू धर्म को मानने वालों की आस्था के लिहाज से भी ये दोनों ग्रंथ बहुत महत्वपूर्ण हैं। आम जनमानस पर इनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले रामायण के ही क्षेत्र और भाषायी आधार पर 300 से अधिक संस्करण मिलते हैं।

हर कथा मूल रुप से एक समान लगती है लेकिन इनमें कुछ रोचक और भिन्न किस्से भी मिलते हैं। अब तक आप जिस रामायण से परिचित हैं उसमें भगवान श्री राम और लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रुप में उनके तीन भाईयों के बारे में जानकारी मिलती है।

 राम का बनवास और सीता हरण से लेकर रावण के वध, अयोध्या वापसी और गर्भवती सीता को त्यागने की कहानी भी मिलती है। लव-कुश की कथा भी इसी का हिस्सा है। लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि भगवान राम की कोई बहन भी थी। शायद नहीं सुना होगा लेकिन यह सच है। चलिये आपको बताते हैं कौन थीं भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की बहन।

प्रभु श्री राम की बहन शांता की कथा!!!!

दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा के अनुसार भगवान श्री राम की एक बड़ी बहन भी थी जिनका नाम शांता था। शांता के बारे में भी कई कहानियां मिलती हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

एक कथा के अनुसार रावण को अपने पितामह ब्रह्मा से पता चला कि उसकी मृत्यु कौशल्या और दशरथ के यहां जन्में दिव्य बालक के हाथों होगी इसलिये रावण ने कौशल्या को विवाह पूर्व ही मार डालने की योजना बनाई।

 उसने कौशल्या को अगवा कर एक डिब्बे में बंद कर सरयू नदी में बहा दिया उधर विधाता भी अपना खेल रच रहा था, दशरथ शिकार करके लौट रहे थे उनकी नजर रावण के भेजे राक्षसों के इस कृत्य पर पड़ गई लेकिन जब तक दशरथ वहां पहुंचते मायावी राक्षस अपना काम करके जा चुके थे। राजा दशरथ अब तक नहीं जानते थे कि डिब्बे में कौशल नरेश की पुत्री कौशल्या है उन्हें तो यही आभास था कि हो न हो किसी का जीवन खतरे में है। राजा दशरथ बिना विचारे ही नदी में कूद गये और डिब्बे की तलाश में लग गये।

कुछ शिकार के कारण और कुछ नदी में तैरने के कारण वे बहुत थक गये थे यहां तक उनके खुद के प्राणों पर संकट आ चुका था वो तो अच्छा हुआ कि जटायु ने उन्हें डूबने से बचा लिया और डिब्बे को खोजने में उनकी मदद की। तब डिब्बे में बंद मूर्छित कौशल्या को देखकर उनके हर्ष का ठिकाना न रहा। देवर्षि नारद ने कौशल्या और दशरथ का गंधर्व विवाह संपन्न करवाया। अब विवाह हो गया तो कुछ समय पश्चात उनके यहां एक कन्या ने जन्म लिया लेकिन यह कन्या दिव्यांग थी।

उपचार की लाख कोशिशों के बाद समाधान नहीं निकला तो पता चला कि इसका कारण राजा दशरथ और कौशल्या का गौत्र एक ही था इसी कारण ऐसा हुआ समाधान निकाला गया कि कन्या के माता-पिता बदल दिये जायें यानि कोई इसे अपनी दत्तक पुत्री बना ले तो इसके स्वस्थ होने की संभावना है ऐसे में अंगदेश के राजा रोमपाद और वर्षिणी ने शांता को अपनी पुत्री स्वीकार कर लिया और वह स्वस्थ हो गई। युवा होने के बाद ऋंग ऋषि से शांता का विवाह करवाया गया।

एक अन्य कथा के अनुसार राजा कौशल्या की एक बहन थी वर्षिणी जिनका विवाह राजा रोमपाद के साथ हुआ था लेकिन उनके यहां कोई संतान नहीं थी। वहीं राजा दशरथ और कौशल्या की एक पुत्री थी जिसका नाम था शांता वह बहुत ही गुणवान और हर कला में निपुण थी। एक बार राजा रोमपाद और वर्षिणी राजा दशरथ के यहां आये हुए थे।

वर्षिणी ने हंसी-हंसी में ही कह दिया कि काश मेरे यहां भी शांता जैसी संतान होती बस यह सुनते ही राजा दशरथ उन्हें शांता को गोद देने का वचन दे बैठे इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। राजा रोमपाद का शांता से विशेष लगाव हो गया वह अपनी पुत्री को बहुत चाहते थे। एक बार कोई ब्राह्मण द्वार पर आया लेकिन वह अपनी पुत्री के साथ वार्तालाप करते रहे और ब्राह्मण खाली हाथ लौट गया।

ब्राह्मण इंद्र देव का भक्त था। अपने भक्त के अनादर से इंद्र देव कुपित हो गए और अंगदेश में अकाल के हालात पैदा हो गये। तब राजा ने विभंडक ऋषि के पुत्र ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के लिये बुलवाया यज्ञ के फलस्वरुप भारी बारिश हुई और राज्य धन-धान्य से फलने-फूलने लगा ऐसे में राजा रोमपाद और वर्षिणी ने अपनी पुत्री का विवाह ऋंग ऋषि के साथ कर दिया।

एक अन्य लोककथा के अनुसार यह भी माना जाता है कि जब शांता का जन्म हुआ तो अयोध्या में 12 वर्षों तक भारी अकाल पड़ा। राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शांता के कारण ही यह अकाल पड़ा हुआ है ऐसे में राजा दशरथ ने नि:संतान वर्षिणी को अपनी पुत्री शांता दान में दे दिया। कहीं फिर अयोध्या अकालग्रस्त न हो जाये इस डर से शांता को कभी अयोध्या वापस बुलाया भी नहीं गया।

वहीं एक और लोककथा मिलती है जिसमें यह बताया जाता है कि राजा दशरथ ने शांता को सिर्फ इसलिये गोद दे दिया था चूंकि वह लड़की थी और राज्य की उत्तराधिकारी नहीं बन सकती थीं।

कुछ कहानियों में भगवान राम की दो बहनों के होने का जिक्र भी है, जिनमें एक का नाम शांता तो एक का कुतबी बताया गया है।

शांता के कहने पर ही पुत्रकामेष्ठि यज्ञ के लिये माने ऋंग ऋषि!!!!!

यह तो सभी जानते हैं कि राजा दशरथ को भगवान राम सहित चारों पुत्रों की प्राप्ति कैसे हुई। दरअसल इसके लिये उन्होंने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाया था जिसमें प्राप्त खीर को उन्होंने अपनी पत्नी कौशल्या को दिया, कौशल्या ने अपना आधा हिस्सा उनकी दूसरी पत्नी केकैयी को और फिर कौशल्या और केकैयी ने अपने हिस्से में से आधा-आधा हिस्सा राजा दशरथ की तीसरी पत्नी सुमित्रा को दिया इस प्रकार कौशल्या को ज्येष्ठ पुत्र के रुप में भगवान राम को जन्म दिया, केकैयी ने भरत को तो सुमित्रा की कोख से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। अब बात आती है यह यज्ञ किया किसने था। दरअसल इस यज्ञ को करने वाले कोई और नहीं बल्कि राजा दशरथ के दामाद श्रृंग ऋषि थे।

दरअसल शांता को गोद दिया जा चुका था और अब राजा दशरथ के यहां कोई संतान नहीं थी। ऐसे में उन्हें पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाने का सुझाव दिया लेकिन जो कोई भी पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करता उसके जीवन भर की तपस्या की आहुति इस यज्ञ में होने वाली थी इसलिये कोई भी यज्ञ करने के लिये तैयार नहीं था ऐसे में राजा दशरथ ने अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रकामेष्ठि यज्ञ का अनुरोध किया लेकिन ऋंग-ऋषि ने इसके लिये इंकार कर दिया।

 इसके बाद शांता ने अपने पति को यज्ञ के लिये राजी किया। कहा जाता है कि यज्ञ के बदले में राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को उनके परिवार के भरण-पोषण लिये बहुत सारा धन दिया। चूंकि उनकी तपस्या का पुण्य यज्ञ की आहुति में चला गया था इसलिये इसके बाद ऋंग ऋषि फिर से तपस्या करने के लिये हिमालय की ओर चले गये।

मान्यता तो यह भी है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बना जिन्हें ऋंगवशी राजपूत भी कहा जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If u have any query let me know.

कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...