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ब्राह्मण से ही पूजा-पाठ क्यों कराएं ?

ब्राह्मण से ही पूजा-पाठ क्यों कराएं ?* ------------------------------------------------------------- उत्तर:- यम-नियम में आबद्ध ब्राह्मण- वर्ग अपनी निरंतर उपासना व त्यागवृत्ति, सात्त्विकता एवं उदारता के कारण ईश्वरतत्त्व के सर्वाधिक निकट रहते हैं। फिर धर्मशास्त्र, कर्मकांड के ज्ञाता एवं अधिकारी विद्वान होने के कारण परंपरागत मान्यता अनुसार पूजा-पाठ करने का अधिकार उन्हें ही है। ब्राह्मण को देवता क्यों कहा गया ? उत्तर:- दैवाधीनं जगत्सर्वं, मंत्राधीनं देवता।  ते मंत्रा विप्रं जानंति, तस्मात् ब्राह्मणदेवताः।। यह सारा संसार विविध देवों के अधीन है। देवता मंत्रों के अधीन हैं। उन मंत्रों के प्रयोग-उच्चारण व रहस्य को विप्र भली-भांति जानते हैं इसलिये ब्राह्मण स्वयं देवता तुल्य होते हैं। ब्राह्मणों को लोक-व्यवहार में अधिक सम्मान क्यों ? उत्तर:- निरंतर प्रार्थना, धर्मानुष्ठान व धर्मोपदेश कर के जिस प्रकार मौलवी मस्जिद का प्रमुख, गिरजाघर में पादरी सर्वाधिक सम्मानित होता है, उनसे भी बढ़कर ब्राह्मण का सम्मान परंपरागत लोक-व्यवहार में सदा सर्वत्र होता आया है। यज्ञ की अग्नि में तिल-जव,इत्यादि खाद्य पदार्...

शनि देव के बारे में विशेष जानकारी

राजा को भी क्षण में रंक कर देने वाले शनिदेव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी!!!!!! ▪️शनिदेव सूर्यदेव और छाया के पुत्र हैं। सूर्य समस्त ग्रहों के राजा हैं तो उनके पुत्र युवराज शनिदेव न्यायाधीश हैं। ▪️शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को हुआ था इसीलिए शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या (शनिचरी अमावस्या) शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए बहुत शुभ मानी जाती है । ▪️शनि का रंग काला, अवस्था वृद्ध, आकृति दीर्घ, लिंग नपुंसक है । ▪️शनि के चार हाथों में बाण, वर, शूल और धनुष है । उनका वाहनगिद्ध है । ▪️शनि का गोत्र कश्यप व जाति शूद्र है ।  ▪️वे सौराष्ट्र के अधिपति हैं । ▪️शनिदेव को मन्द, शनैश्चर, सूर्यसूनु, सूर्यज, अर्कपुत्र, नील, भास्करी, असित, पंगु, क्रूरलोचन, छायात्मज आदि नामों से जाना जाता है । ▪️शनिदेव का वार शनिवार, धातु लोहा, रत्न नीलम, उपरत्नजमुनिया या लाजावर्त, जड़ी बिछुआ, बिच्छोलमूल (हत्था जोड़ी)  व समिधा शमी  है ।  ▪️शनि का आधिपत्य मकर और कुम्भ राशि तथा पुष्य, अनुराधा एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्र पर है ।  ▪️शनि वायुतत्त्व प्रधान ग्रह है । ▪️अंकज्योतिष के अनुसार प्रत्येक मही...

शुभ-अशुभ लक्षण

सामुद्रिक शास्त्र में शुभाशुभ लक्षण जातक, रमल, केरलीय प्रश्न आदि अंगों की तरह सामुद्रिक शास्त्र भी ज्योतिषशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। पौराणिक आचार्यों का कथन है कि भगवान विष्णु ने सामुद्रिक नामक ब्राह्मण का अवतार लेकर जो फल कथन किया है उसे सामुद्रिक शास्त्र कहा गया है। कुछ अन्य लोगों का मत है कि समुद्र में शयन करने वाले भगवान विष्णु और लक्ष्मी के सौन्दर्य तथा शुभ लक्षणों को देखकर समुद्रदेव ने ही इस शास्त्र का निर्माण किया है। पुरुषोत्तमस्य लक्ष्म्या समं निजोत्सङ्गमधिशयानस्य। शुभलक्षणानि दृष्ट्वा क्षणं समुद्रः पुरा दध्यौ।। (सामुद्रिकशास्त्र, १३) अन्य आचार्यों का मत है कि समस्त शास्त्र भगवान शिव से उत्पन्न हैं और शिव ही त्रिभुवन गुरु हैं। अत: शंकर जी ने प्राणियों के शुभाशुभ लक्षणों का जो वर्णन पार्वती जी से किया था वही विषय सामुद्रिक शास्त्र के नाम से जाना गया है। वस्तुत: समुद्र अगाध है तथा प्राणियों के चिह्न (लक्षण) भी अगाध असंख्य हैं अत: जिस शास्त्र के द्वारा असंख्य लक्षणों का वर्णन प्राप्त होता है उस अंश को सामुद्रिक नाम दिया गया है। प्राणियों की आकृति, चिह्न, तिल, मशक आदि, हस्...

सूर्य ग्रहण विशेष

*सूर्यग्रहण*  *दिनांक* *21 जून रविवार को खंडग्रास सूर्यग्रहण होगा जो कि *भारत में दिखेगा*। *अतः इस ग्रहण का नियम पालन आवश्यक होगा।* *ग्रहण का स्पर्श(लगना): सुबह 10.09* *ग्रहण का मोक्ष(छूटना): दोपहर 01.43* *ग्रहण का सूतक(छाया):* *दिनांक 20 जून शनिवार को रात 10.09 से दूसरे दिन दोपहर 01.43 तक।* *सूर्य ग्रहण के दौरान क्या करें क्या ना करें* *सूर्य ग्रहण के दौरान कुछ कार्यों को विशेष रुप से करने की मनाही होती है तो कुछ कार्यों के लिए सर्वोत्तम समय होता है। यदि आप कोई सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं तो उसके लिए मंत्र जाप करने हेतु ग्रहण काल सर्वोत्तम माना गया है।* स्पर्शे स्नानं जपं कुर्यान्मध्ये होमं सुरार्चनम। मुच्यमाने सदा दानं विमुक्तौ स्नानमाचरेत।। --- (ज्ये. नि.) *अर्थात ग्रहण काल के प्रारंभ में स्नान और जप करना चाहिए तथा ग्रहण के मध्य काल में होम अर्थात यज्ञ और देव पूजा करना उत्तम रहता है। ग्रहण के मोक्ष होने के समय दान करना चाहिए तथा पूर्ण रूप से ग्रहण का मोक्ष होने पर स्नान करके स्वयं को पवित्र करना चाहिए।* दानानि यानि लोकेषु विख्यातानि मनीशिभः। तेषां फलमाप्नोति ग्रहणे चन्द्र सूर्...