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भीष्म पंचक व्रत विधि, और महत्त्व

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  भीष्म पंचक व्रत विधि, और महत्त्व 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ पुराणों तथा हिंदू धर्म ग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम से भी जाना जाता है। धर्म ग्रंथों में कार्तिक स्नान को बहुत महत्त्व दिया गया है। अतः कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था इसलिए यह ‘भीष्म पंचक’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक के अंतिम पाँच दिन पुण्यमयी तिथियाँ मानी जाती हैं। इनका बड़ा विशेष प्रभाव माना गया है। अगर कोई कार्तिक मास के सभी दिन स्नान नहीं कर पाये तो उसे अंतिम पांच दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर लेने से सम्पूर्ण कार्तिक मास के प्रातःस्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी है। जैसे कहीं अनजाने में जूठा खा लिया है तो उस दोष को निवृत्त करने के लिए बाद में आँवला, बेर या गन्ना चबाया जाता है। इससे उस दोष से आदमी मुक्त होता है, बुद्धि स्वस्थ हो जाती है। जूठा खाने से बुद्धि म

शास्त्रों के अनुसार स्त्री सहवास

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 अनेकों जन्मों के पुण्यकर्मों से जीव मनुष्य शरीर प्राप्त करता है। माता-पिता द्वारा खाये हुए अन्न से शुक्र-शोणित बनता है , माता के पेट में मिलकर रज की अधिकता से स्त्री , शुक्र की अधिकता से पुरुष होता है , यदि दोनों का तेज समान हो तो नपुंसक होता है । ऋतुस्नाता पत्नी के ४ दिन बाद ५वें दिन से लेकर १६ दिन तक ऋतुकाल होता है । विषम रात्रियों में ५, ७, ९, ११, १३, १५ रात्रियों में भोग से कन्या तथा सम रात्रियों में ६ , ८, १०, १२, १४, १६ इनमें बालक का जन्म होता है । विषम रात्रियों में यदि पति का शुक्र अधिक है तो होता तो बालक है , किन्तु आकार बालिका की तरह तथा सम रात्रियों के संयोग में स्त्री की रज की अधिकता में कन्या होती है , किन्तु उसका रूप पुत्र जैसा होता है । लिङ्गपुराण में कहा है ----- "चतुर्थ्यां रात्रौ विद्याहीनं व्रतभ्रष्टम् पतितं परदारिकम् दरिद्रार्णव मग्नं च तनयं सा प्रसूयते । पञ्चम्यामुत्तमांकन्यां षष्ठ्यां सत्पुत्रं सप्तम्यां कन्यां अष्टम्यां सम्पन्नं पुत्रम् ।। त्रयोदश्यां व्यभिचारिणी कन्या चतुर्दश्यां सत्पुत्रं पंचदश्यां धर्मज्ञा कन्यां षोडश्यां ज्ञानं पारंगपुत्रं प्रसूयते ।

प्रणाम के नियम

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 * प्रणाम या नमस्कार* *या* *अभिवादनके मुख्य नियम* ---------------------------------- अभिवादन प्रणाम या नमस्कार के कुछ ऐसे नियम शास्त्रों में बताए हैं, जो जीवन में अत्यंत आवश्यक हैं प्रायः हम लोग जिन्हें नहीं जानते ,उन नियमों का कुछ अंश इस लेख में लिखा गया है। आप सभी लोग इसे अवश्य ही पढ़ें और परिपालन भी करें। *अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः!*  *चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ||* मनुः२/१२१||## अर्थात् जो वृद्धजनों,गुरुजनों,तथा माता-पिताको नित्य प्रणाम करता हैं और उनकी सेवा करता हैं,उसके आयु,विद्या,यश और बलकी वृद्धि होती हैं | *मातापितरमुत्थायपूर्वमेवाभिवादयेत् |* *आचार्यमथवाप्यन्यं तथायुर्विन्दते महत् ||* १०४/४३-४४महाभा० || महाभारतमें भी बताया गया हैं कि अभिवादनसे दीर्घ अयुकी प्राप्ति होती हैं ||  अपनेसे बड़े आनेपर उन्हें देखतें ही खड़े हो जाना चाहिये | यदि विशेष स्थिति न हो तो उनके समीप आनेकी प्रतिक्षा नहीं करनी चाहिये | यह सर्वसामान्य हैं कि मनुष्य शरीरमें एक प्रकारकी विद्युत-शक्ति हैं |  दुर्बलको प्रबल विद्युत् अपनी और खींचती हैं | शास्त्रानुसार किसी अपनेसे बड़ेके आन

हमारे पापकर्म और हमारी पीडाएं

  हमारे पापकर्म और हमारी पीडाएं 🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸 हम अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि मैंने कभी कोई बुरा काम नहीं किया फिर भी मैं बीमारियों से परेशान हूँ. ऐसा मेरे साथ क्यों हो रहा हैं. क्या भगवान बहुत कठोर और निर्दयी हैं ? पहली बात तो हमें ये समझ लेनी चाहिए कि हमारे कार्यों और भगवान का कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिए हमें अपनी परेशानियों और पीडाओं के लिए ईश्वर को दोषी नहीं मानना चाहिए। यदि आप सह्गुनी हैं तो आप जीवन में संपन्न और सुखी रहते हैं. यदि आप लोगों को सताते हैं या पाप कर्म करते हैं तो आप पीड़ित होते हैं और तरह तरह की बीमारियाँ कष्ट देती हैं. हमारे कार्यों का हम पर निश्चित रूप से असर होता है. कभी हमारे कर्मों का प्रभाव इसी जन्म में तो कभी अगले जन्म में मिलता हैं लेकिन मिलता जरुर है. आशय है कि हम अपने कर्मों के प्रभाव से कभी मुक्त नहीं होते यह बात अलग है कि इसका प्रभाव तुरंत दिखाई न दे। इस लेख में इस बात का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है कि हमारे पाप हमें किस रूप में लौटकर मिलते हैं और पीड़ित करते हैं. यदि आप किसी रोग से पीड़ित है तो ये समझें कि आपने अवश्य ही कोई पाप पूर्व ज