इन लोगों से कभी झगड़ा ना करें ‌

 *भूलकर कर भी इन लोगों से विवाद नहीं करना चाहिए*


मनु स्‍मृति में कहा गया है : -

**ऋत्विक्पुरोहिताचार्यैर्मातुलातिथिसंश्रितैः। बालवृद्धातुरैर्वैधैर्ज्ञातिसम्बन्धिबांन्धवैः।। 

मातापितृभ्यां यामीभिर्भ्रात्रा पुत्रेण भार्यया। 

दुहित्रा दासवर्गेण विवादं न समाचरेत्।।**



अर्थात : - यज्ञ करने वाले ब्राह्मण, पुरोहित, शिक्षा देने वाले आचार्य, अतिथि, माता-पिता, मामा आदि सगे संबंधी, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री, पत्नी, पुत्रवधू, दामाद, गृह सेवक यानी नौकर से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। 


यज्ञ करने वाला : - यज्ञ करने वाला ब्राह्मण सदैव सम्मान करने योग्य होता है। यदि उससे किसी प्रकार की कोई चूक हो जाए तो भी उसके साथ कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। यदि आप ऐसा करेंगे तो इससे आपकी प्रतिष्ठा ही धूमिल होगी। अतः यज्ञ करने वाले वाले ब्राह्मण से वाद-विवाद न करने में ही भलाई है।


पुरोहित : - यज्ञ, पूजन आदि धार्मिक कार्यों को संपन्न करने के लिए हमारे कुल में योग्य व विद्वान ब्राह्मण को नियुक्त किया जाता है, जिसे पुरोहित कहा जाता है। भूल कर भी कभी पुरोहित से विवाद नहीं करना चाहिए। पुरोहित के माध्यम से ही पूजन आदि शुभ कार्य संपन्न होते हैं, जिसका पुण्य यजमान (यज्ञ करवाने वाला) को प्राप्त होता है। पुरोहित से वाद-विवाद करने पर वह आपका काम बिगाड़ सकता है, जिसका दुष्परिणाम यजमान को भुगतना पड़ सकता है। इसलिए पुरोहित से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


आचार्य : - प्राचीनकाल में उपनयन संस्कार के बाद बच्चों को शिक्षा के लिए गुरुकुल भेजा जाता था, जहां आचार्य उन्हें पढ़ाते थे। वर्तमान में उन आचार्यों का स्थान स्कूल टीचर्स ने ले लिया है। मनु स्मृति के अनुसार आचार्य यानी स्कूल टीचर्स से भी कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। वह यदि दंड भी दें तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। आचार्य (टीचर्स) हमेशा अपने छात्रों का भला ही सोचते हैं। इनसे वाद-विवाद करने पर विद्यार्थी का भविष्य भी खतरे में पड़ सकता है।


अतिथि : - हिंदू धर्म में अतिथि यानी मेहमान को भगवान की संज्ञा दी गई है इसलिए कहा जाता है मेहमान भगवान के समान होता है। उसका आवभगत ठीक तरीके से करनी चाहिए। भूल से भी कभी अतिथि के साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। अगर कोई अनजान व्यक्ति भी भूले-भटके हमारे घर आ जाए तो उसे भी मेहमान ही समझना चाहिए और यथासंभव उसका सत्कार करना चाहिए। अतिथि से वाद-विवाद करने पर आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस लग सकती है।


माता : - माता ही शिशु की सबसे प्रथम शिक्षक होती है। माता 9 महीने शिशु को अपने गर्भ में धारण करती है और जीवन का प्रथम पाठ पढ़ाती है। यदि वृद्धावस्था या इसके अतिरिक्त भी कभी माता से कोई भूल-चूक हो जाए तो उसे प्यार से समझा देना चाहिए न कि उसके साथ वाद-विवाद करना चाहिए। माता का स्थान गुरु व भगवान से ही ऊपर माना गया है। इसलिए माता सदैव पूजनीय होती हैं। अतः माता के साथ कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


पिता : - पिता हमारे द्वितीय शिक्षक होते है, जन्म से लेकर युवावस्था तक हमारा पालन-पोषण करते हैं। पिता भी माता के ही समान पूज्यनीय होते हैं। हम जब भी किसी मुसीबत में फंसते हैं, तो सबसे पहले पिता को ही याद करते हैं और पिता हमें उस समस्या का समाधान भी सूझाते हैं। वृद्धावस्था में भी पिता अपने अनुभव के आधार पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए पिता के साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


सगे संबंधी : - हमारे सगे संबंधी जैसे- मामा-मामी, नाना-नानी, चाचा-चाची, ताऊ-ताईजी, बुआ-फूफाजी, मौसा-मौसी, ये सभी वो लोग होते हैं, जो बचपन से ही हम पर स्नेह रखते हैं। बचपन में कभी न कभी ये भी हमारी जरूरतें पूरी करते हैं। इसलिए ये सभी सम्मान करने योग्य हैं। इनसे वाद-विवाद करने पर समाज में हमें सभ्य नहीं समझा जाएगा और हमारी प्रतिष्ठा को भी ठेस लग सकती है। इसलिए भूल कर भी कभी मामा आदि सगे-संबंधियों से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। यदि ऐसी स्थिति बने तो भी समझा-बूझाकर इस मामले को सुलझा लेना चाहिए।


भाई : - हिंदू धर्म के अनुसार बड़ा भाई पिता के समान तथा छोटा भाई पुत्र के समान होता है। बड़ा भाई सदैव मार्गदर्शक बन कर हमें सही रास्ते पर चलने के प्रेरित करता है और यदि भाई छोटा है तो उसकी गलतियां माफ कर देने में ही बड़प्पन है। विपत्ति आने पर भाई ही भाई की मदद करता है। बड़ा भाई अगर परिवार रूपी वटवृक्ष का तना है तो छोटा भाई उस वृक्ष की शाखाएं। इसलिए भाई छोटा हो या बड़ा उससे किसी भी प्रकार का वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


बहन : - भारतीय सभ्यता में बड़ी बहन को माता तथा छोटी बहन को पुत्री माना गया है। बड़ी बहन अपने छोटे भाई-बहनों को माता के समान स्नेह करती है। छोटे भाई-बहनों पर जब भी विपत्ति आती है, बड़ी बहन हर कदम पर उनका साथ देती है। छोटी बहन पुत्री के समान होती है। परिवार में जब भी कोई शुभ प्रसंग आता है, छोटी बहन ही उसे खास बनाती है। छोटी बहन जब घर में होती है तो घर का वातावरण सुखमय हो जाता है। इसलिए मनु स्मृति में कहा गया है कि बहन के साथ कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


पुत्र : - हिंदू धर्म ग्रंथों में पुत्र को पिता का स्वरूप माना गया है यानी पुत्र ही पिता के रूप में पुनः जन्म लेता है। शास्त्रों में कहा गया है- "पुं नाम नरक त्रायेताति इति पुत्रः" अर्थात पुत्र ही पिता को पुं नामक नरक से मुक्ति दिलाता है इसलिए उसे पुत्र कहते हैं। पुत्र द्वारा पिंडदान, तर्पण आदि करने पर ही पिता की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। पुत्र यदि धर्म के मार्ग पर चलने वाला हो तो वृद्धावस्था में माता-पिता का सहारा बनता है और पूरे परिवार का मार्गदर्शन करता है। इसलिए मनु स्मृति के अनुसार पुत्र से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


पुत्री : - भारतीय संस्कृति में पुत्री को लक्ष्मी का रूप माना जाता है कहते हैं कि भगवान जिस पर प्रसन्न होता है, उसे ही पुत्री प्रदान करता है। संभव है कि पुत्र वृद्धावस्था में माता-पिता का पालन-पोषण न करे, लेकिन पुत्री सदैव अपने माता-पिता का साथ निभाती है। परिवार में होने वाले हर मांगलिक कार्यक्रम की रौनक पुत्रियों से ही होती है। विवाह के बाद भी पुत्री अपने माता-पिता के करीब ही होती है। इसलिए पुत्री से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


पत्नी : - हिंदू धर्म में पत्नी को अर्धांगिनी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पति के शरीर का आधा अंग। किसी भी शुभ कार्य व पूजन आदि में पत्नी का साथ में होना अनिवार्य माना गया है, उसके बिना पूजा अधूरी ही मानी जाती है। पत्नी ही हर सुख-दुख में पति का साथ निभाती है। वृद्धावस्था में यदि पुत्र आदि रिश्तेदार साथ न हो तो भी पत्नी कदम-कदम पर साथ चलती है। इसलिए मनु स्मृति के अनुसार पत्नी से भी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


पुत्रवधू : - भारतीय संस्कृति के अनुसार पुत्रवधू को भी पुत्री के समान ही समझना चाहिए। पुत्रियों के अभाव में पुत्रवधू से ही घर में रौनक रहती है। कुल की मान-मर्यादा भी पुत्रवधू के ही हाथों में होती है। परिवार के सदस्यों व अतिथियों की सेवा भी पुत्रवधू ही करती है। पुत्रवधू से ही वंश आगे बढ़ता है। इसलिए यदि पुत्रवधू से कभी कोई चूक भी हो जाए तो भी उसके साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


नौकर : - मनु स्मृति के अनुसार नौकर से भी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए क्योंकि वह आपकी एवं आपके परिवार की गुप्त बातें जानता है। वाद-विवाद करने पर वह उन्‍हें सार्वजनिक कर सकता है। इसलिए नौकर से भी कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।


दामाद : - धार्मिक ग्रंथों में दामाद को पुत्र के समान माना गया है। पुत्र के न होने पर दामाद ही सभी जिम्मेदारी निभाता है तथा उत्तर कार्य (पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि) करने का अधिकारी भी होता है। दामाद से इसलिए भी विवाद नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका असर आपकी पुत्री के दाम्पत्य जीवन पर भी पढ़ सकता है।

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