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देवीपार्वती के 108 नाम और इनका अर्थ

                             देवीपार्वती के 108 नाम और इनका अर्थ 〰️〰️🔸〰️〰️🔸🔸〰️〰️🔸〰️〰️ देवी पार्वती विभिन्न नामों से जानी जाता है और उनमें से हर एक नाम का एक निश्चित अर्थ और महत्व है। देवी पार्वती से 108 नाम जुड़े हुए है । भक्त बालिकाओं के नाम के लिए इस नाम का उपयोग करते है।  1 . आद्य - इस नाम का मतलब प्रारंभिक वास्तविकता है। 2 . आर्या - यह देवी का नाम है 3 . अभव्या - यह भय का प्रतीक है। 4 . अएंदरी - भगवान इंद्र की शक्ति। 5 . अग्निज्वाला - यह आग का प्रतीक है। 6 . अहंकारा - यह गौरव का प्रतिक है । 7 . अमेया - नाम उपाय से परे का प्रतीक है। 8 . अनंता - यह अनंत का एक प्रतीक है। 9 . अनंता - अनंत 10 अनेकशस्त्रहस्ता - इसका मतलब है कई हतियारो को रखने वाला । 11 . अनेकास्त्रधारिणी - इसका मतलब है कई हतियारो को रखने वाला । 12 . अनेकावारना - कई रंगों का व्यक्ति । 13 . अपर्णा – एक व्यक्ति जो उपवास के दौरान कुछ नहि कहता है यह उसका प्रतिक है । 14 . अप्रौधा – जो व्यक्ति उम्र नहि करता यह उसका प्रतिक है । 15 . बहुला - विभिन्...

श्रीजगन्नाथ जी की आँखे बड़ी क्यों है...?

                                श्रीजगन्नाथ जी की आँखे बड़ी क्यों है?  इसके मूल में भगवान् के प्रगाढ़ प्रेम को प्रकट करने वाली एक अद्भुत गाथा है। एक बार द्वारिका में रुक्मणी आदि रानियों ने माता रोहिणी से प्रार्थना की कि वे श्रीकृष्ण व गोपियों की बचपन वाली प्रेम लीलाएँ सुनना चाहतीं हैं। पहले तो माता रोहिणी ने अपने पुत्र की अंतरंग लीलाओं को सुनाने से मना कर दिया। किन्तु रानियों के बार-बार आग्रह करने पर मैया मान गईं और उन्होंने सुभद्रा जी को महल के बाहर पहरे पर खड़ा कर दिया और महल का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया ताकि कोई अनधिकारी जन विशुद्ध प्रेम के उन परम गोपनीय प्रसंगों को सुन न सके। बहुत देर तक भीतर कथा प्रसंग चलते रहे और सुभद्रा जी बाहर पहरे पर सतर्क होकर खड़ी रहीं। इतने में द्वारिका के राज दरबार का कार्य निपटाकर श्रीकृष्ण और बलराम जी वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने महल के भीतर जाना चाहा लेकिन सुभद्रा जी ने माता रोहिणी की आज्ञा बताकर उनको भीतर प्रवेश न करने दिया। वे दोनों भी सुभद्रा जी के पास बाहर ही बैठ गए और महल क...

श्रीराधा के सोलह नामों की महिमा

  श्रीराधा के सोलह नामों की महिमा  जो मनुष्य जीवन भर श्रीराधा के इस सोलह नामों का पाठ करेगा, उसको इसी जीवन में श्रीराधा-कृष्ण के चरण-कमलों में भक्ति प्राप्त होगी । मनुष्य जीता हुआ ही मुक्त हो जाएगा । श्रीराधा का सोलह (षोडश) नाम स्तोत्र भगवान नारायण ने श्रीराधा की स्तुति करते हुए उनके सोलह नाम और उनकी महिमा बतायी है— राधा रासेस्वरी रासवासिनी रसिकेश्वरी। कृष्णप्राणाधिका कृष्णप्रिया कृष्णस्वरूपिणी।। कृष्णवामांगसम्भूता परमानन्दरूपिणी ।  कृष्णा वृन्दावनी वृन्दा वृन्दावनविनोदिनी ।।  चन्द्रावली चन्द्रकान्ता शरच्चन्द्रप्रभानना ।  नामान्येतानि साराणि तेषामभ्यन्तराणि च ।। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्णजन्मखण्ड, १७।२२०-२२२)   श्रीराधा के सोलह नामों का रहस्य और अर्थ श्रीराधा के इन सोलह नामों का रहस्य और अर्थ भगवान नारायण ने नारदजी को बताया था जो इस प्रकार हैं– १. राधा–‘राधा’ का अर्थ है—भलीभांति सिद्ध । ‘राधा’ शब्द का ‘रा’ प्राप्ति का वाचक है और ‘धा’ निर्वाण का । अत: राधा मुक्ति, निर्वाण (मोक्ष) प्रदान करने वाली हैं ।  २. रासेस्वरी–वे रासेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की प्र...

विष्णु सहस्रनाम मंत्र के लाभ

 * विष्णु सहस्रनाम मंत्र और इसके लाभ ::-* ∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆ विष्णु सहस्रनाम एक ऐसा मंत्र है जिसमें विष्णु के हजार नामों का सम्मिश्रण है अर्थात अगर कोई व्यक्ति भगवान विष्णु के हजार नामों का जाप नहीं कर सकता है तो वह इस एक मंत्र का जाप कर सकता है। इस एक मंत्र में अथाह शक्ति छिपी हुई है जो कलयुग में सभी परेशानियों को दूर करने में सहायक है। *विष्णु सहस्रनाम स्त्रोत्र मंत्र :-* ********************* *नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।* *सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नमः।।* 💐💐💐💐💐💐💐💐 *शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है ये मंत्र :-* --------------------------------------- इस मंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हिन्दू धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है। *विष्णु सहस्रनाम में विष्णु को शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र के नाम से सम्बोधित किया है, जो इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि शिव और विष्णु एक ही है।* विष्णु सहस्रानम में प्रत्येक नाम के एक सौ अर्थ से कम नहीं हैं, इसलिए यह एक बहुत...

ब्राह्मण के प्रकार

 🔥 *ब्राह्मण के दश प्रकार* 🔥 *जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः*  - अत्रि स्मृति १३८ ब्राह्मण वंश में जन्म लेने वाला जन्म से ही ब्राह्मण है।  भले ही वो नीच कार्य भी क्यों न करें वह अंत तक ब्राह्मण ही रहेगा। महर्षि अत्रि ने ब्राह्मणो का कर्म अनुसार विभाग किया है। *देवो मुनिर्द्विजो राजा वैश्यः शूद्रो निषादकः ॥* *पशुम्लेच्छोपि चंडालो विप्रा दशविधाः स्मृताः॥* - अत्रि स्मृति ३७१ देव, मुनि, द्विज, राजा, वैश्य, शूद्र, निषाद, पशु, म्लेच्छ, चांडाल यह दश प्रकार के ब्राह्मण कहे हैं ॥ ३७१ ॥ १.देव ब्राह्मण -  ब्राह्मणोचित श्रोत स्मार्त कर्म करने वाला हो  २. मुनि ब्राह्मण - शाक पत्ते फल आहार कर वन में रहने वाला ३. द्विज ब्राह्मण - वेदांत,सांख्य,योग आदि अध्ययन व ज्ञान पिपासु ४. क्षत्रिय ब्राह्मण - युद्ध कुशल हो ५. वैश्य ब्राह्मण - व्यवसाय गोपालन आदि ६. शुद्र ब्राह्मण - लवण,लाख,घी,दूध,मांस आदि बेचने वाला ७. निषाद ब्राह्मण - चोर, तस्कर, मांसाहारी,व्यसनी हो ८. पशु ब्राह्मण - शास्त्र विहीन हो किन्तु मिथ्याभिमान हो ९. म्लेच्छ ब्राह्मण - बावड़ी,कूप,बाग,तालाब को बंद करने वाला १०. चांडाल ब्रा...

हनुमान चालीसा का महत्व

 हनुमान चालीसा का 100 बार जप करने पर आपको सभी भौतिकवादी चीजों से मुक्त करता है। हनुमान चालीसा का 21 बार जाप करने से धन में वृद्धि होती है। 19 बार हनुमान चालीसा का जाप करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। हनुमान चालीसा का 7 बार जाप करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से भगवान हनुमान का आशीर्वाद मिलता है और आपको हर स्थिति में विजयी होने में मदद मिलती है। मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और मंगल दोष, साढ़े साती जैसे हर दोष का निवारण होता है। भगवान हनुमान जी का नाम जप करने से आपके आसपास एक सकारात्मक आभा का निर्माण होता है। राम नाम का जप या राम हनुमान का कोई भी राम भजन, हनुमान जी को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है क्योंकि वे भगवान श्री राम जी से सबसे अधिक प्रेम करते हैं। यदि आप एक विशेष दोहा का जप करते हैं बल बुधि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार यदि आप अध्ययन से पहले 11 बार इस दोहा का जप करते हैं, तो 27 दिनों से पहले अध्ययन के प्रति आपकी एकाग्रता बढ़ेगी भूत पिशाच निकट नहीं आवै महावीर जु नाम सुनावे अगर आप इस श...

ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों

 * ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ?* रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।  सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है। ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है। “ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”। अर्थात - ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है। सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित...

शमी वृक्ष की उपयोगिता)

 --------: शमी वृक्ष की उपयोगिता :------ * शमी वृक्ष,  जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में , जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए,  धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता है,  तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है,  तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। * इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर, खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। * इसकी लकडी मजबूत होती है , जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से,  हल बनता है। * वराहमिहिर के अनुसार,  जिस साल शमी वृक्ष ज्यादा फूलता - फलता है । उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन,  इसकी पूजा करने का,  एक तात्पर्य यह भी है कि,  यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का,  पहले से संकेत दे देता है । जिससे किसान पहले से भी,  ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ती से निजात पा सकता है। * अकाल के समय,  रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का , यही एक मात्र सहारा है। सन्  १८९९ में,  दुर्भिक...

मनसा देवी की कथा एवं स्तोत्र

  मनसा देवी की कथा एवं स्तोत्र   〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ इनके नाम-स्मरण से सर्पभय और सर्पविष से मिलती है मुक्ति प्राचीनकाल में जब सृष्टि में नागों का भय हो गया तो उस समय नागों से रक्षा करने के लिए ब्रह्माजी ने अपने मन से एक देवी का प्राकट्य किया, मन से प्रकट होने के कारण ये ‘मनसा देवी’ के नाम से जानी जाती हैं, देवी मनसा दिव्य योगशक्ति से सम्पन्न होने के कारण कुमारावस्था में ही भगवान शंकर के धाम कैलास पहुंच गईं और वहां गहन तप किया, इससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें सामवेद का अध्ययन कराया और ‘मृतसंजीवनी विद्या’ प्रदान की इसीलिए देवी मनसा को ‘मृतसंजीवनी’ और ‘ब्रह्मज्ञानयुता’ कहते हैं। भगवान शंकर ने देवी मनसा को भगवान श्रीकृष्ण के अष्टाक्षर ( 18 अक्षर का ) मन्त्र—‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय नम:’ का भी उपदेश किया साथ ही वैष्णवी दीक्षा दी, भगवान शिव से शिक्षा प्राप्त करने के कारण ये शिव की शिष्या हुईं इसलिए ये ‘शैवी’ कहलाती हैं, इन्होंने भगवान शिव से सिद्धयोग प्राप्त किया था, इसलिए वे ‘सिद्धयोगिनी’ के नाम से भी जानी जाती हैं। इसके बाद देवी मनसा ने तीन युगों तक पुष्कर में तप करक...

दुर्गाष्टमी पूजा एवं कन्या पूजन विधान विशेष

दुर्गाष्टमी पूजा एवं कन्या पूजन विधान विशेष 〰〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️ आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन माँ दुर्गा के भवानी स्वरूप का व्रत करने का विधान है। इस वर्ष 2023 में यह व्रत 22 अक्टूबर को किया जाएगा। इस दिन मां भवानी प्रकट हुई थी। इस दिन विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. दुर्गा अष्टमी के दिन माता दुर्गा के लिये व्रत किया जाता है।नवरात्रे में नौ रात्रि पूरी होने पर नौ व्रत पूरे होते है।इन दिनों में देवी की पूजा के अलावा दूर्गा पाठ, पुराण पाठ, रामायण, सुखसागर, गीता, दुर्गा सप्तशती की आदि पाठ श्रद्वा सहित करने चाहिए। दूर्गा अष्टमी व्रत विधि 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ इस व्रत को करने वाले उपवासक को इस दिन प्रात: सुबह उठना चाहिए।और नित्यक्रमों से निवृ्त होने के बाद सारे घर की सफाई कर, घर को शुद्ध करना चाहिए, इसके बाद साधारणत: इस दिन खीर, चूरमा, दाल, हलवा आदि बनाये जाते है. व्रत संकल्प लेने के बाद घर के किसी एकान्त कोने में किसी पवित्र स्थान पर देवी जी का फोटो तथा अपने ईष्ट देव का फोटो लगाया जाता है। यदि संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा ही पूजन हवन का कार्य संपन्न कराया जाए परिस्तिथि वश ऐसा न...

इन ९ औषधियों में विराजती है माँ नवदुर्गा

  *इन ९ औषधियों में विराजती है माँ नवदुर्गा *  माँ दुर्गा नौ रूपों में अपने भक्तों का कल्याण कर उनके सारे संकट हर लेती हैं। इस बात का जीता जागता प्रमाण है, संसार में उपलब्ध वे औषधियां, जिन्हें माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के रूप में जाना जाता है। नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया और चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गा कवच कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि यह औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली और उनसे बचा रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गा कवच कहा गया।  इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जीवन जी सकता है। आइए जानते हैं दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों को जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है। (1) प्रथम शैलपुत्री (हरड़) :  कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है.यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है. इसका प्रयोग करने से पेट की सभी स...

नवरात्री के नौ दिन माँ के अलग-अलग भोग

  नवरात्री के नौ दिन माँ के अलग-अलग भोग 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 १👉 प्रथम नवरात्रि पर मां को गाय का शुद्ध घी या फिर सफेद मिठाई अर्पित की जाती है। २👉 दूसरे नवरात्रि के दिन मां को शक्कर का भोग लगाएं और भोग लगाने के बाद इसे घर में सभी सदस्यों को दें। इससे उम्र में वृद्धि होती है। ३👉 तृतीय नवरात्रि के दिन दूध या दूध से बनी मिठाई, खीर का भोग मां को लगाएं एवं इसे ब्राह्मण को दान करें। इससे दुखों से मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती है।  ४👉 चतुर्थ नवरात्र पर मां भगवती को मालपुए का भोग लगाएं और ब्राह्मण को दान दें। इससे बुद्धि का विकास होने के साथ निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है।  ५ 👉नवरात्रि के पांचवें दिन मां को केले का नैवेद्य अर्पित करने से शरीर स्वस्थ रहता है।  ६ 👉नवरात्रि के छठे दिन मां को शहद का भोग लगाएं, इससे आकर्षण शक्ति में वृद्धि होती है।  ७ 👉सप्तमी पर मां को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करने और इसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है एवं अचानक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है। ८ 👉अष्टमी व नवमी पर मां को नारियल का भोग लगाएं और नारियल का द...

शनैश्चरी सर्वपितृ अमावस्या विशेष

  शनैश्चरी सर्वपितृ अमावस्या विशेष 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ शनिवार, 14 अक्टूबर को आश्विम मास की अमावस्या तिथि है। इस दिन पितृ पक्ष समाप्त हो जाएगा। इसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है। अगले दिन यानी रविवार, 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाएगी। इस साल पितृ पक्ष में शनिवार और अमावस्या को योग बना है।  यह पितरों की शान्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तिथि है। इसलिए यह सर्वपितृकार्येषु अमावस्या के रुप में भी जानी जाती है। जो व्यक्ति पितृ पक्ष के पन्द्रह दिनों तक श्राद्ध-तर्पण आदि नहीं करते हैं, वे अपने पितरों के लिए श्राद्ध आदि सर्वपितृ अमावस्या को करते हैं। जिनको अपने पितरों की तिथि याद नहीं हो, उनके निमित्त भी श्राद्ध, तर्पण, दान आदि पितृ पक्ष की अमावस्या को किया जाता है इसलिए इसे सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं। पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है इसलिए इसे पितृविसर्जनी अमावस्या भी कहते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितृगण अपने पुत्रादि के घर के द्वार पर पिण्डदान एवं श्राद्ध आदि की आशा में आते हैं, यदि वहां उन्हें अन्न-जल नहीं मिलता तो वे शाप देकर चले जाते हैं।...

अजामिल कथा श्रीमद भागवत पुराण

 अजामिल कथा श्रीमद भागवत पुराण 🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹 कान्यकुब्ज (कन्नौज) में एक दासी पति ब्राम्हण रहता था। उसका नाम अजामिल था। यह अजामिल बड़ा शास्त्रज्ञ था। शील, सदाचार और सद्गुणों का तो यह खजाना ही था। ब्रम्हचारी, विनयी, जितेन्द्रिय, सत्यनिष्ठ, मन्त्रवेत्ता और पवित्र भी था। इसने गुरु, संत-महात्माओं सबकी सेवा की थी। एक बार अपने पिता के आदेशानुसार वन में गया और वहाँ से फल-फूल, समिधा तथा कुश लेकर घर के लिये लौटा। लौटते समय इसने देखा की एक व्यक्ति मदिरा पीकर किसी वेश्या के साथ विहार कर रहा है। वेश्या भी शराब पीकर मतवाली हो रही है। अजामिल ने पाप किया नहीं केवल आँखों से देखा और काम के वश हो गया । अजामिल ने अपने मन को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रहा। अब यह मन-ही-मन उसी वेश्या का चिन्तन करने लगा और अपने धर्म से विमुख हो गया । अजामिल सुन्दर-सुन्दर वस्त्र-आभूषण आदि वस्तुएँ, जिनसे वह प्रसन्न होती, ले आता। यहाँ तक कि इसने अपने पिता की सारी सम्पत्ति देकर भी उसी कुलटा को रिझाया। यह ब्राम्हण उसी प्रकार की चेष्टा करता, जिससे वह वेश्या प्रसन्न हो। इस वेश्या के चक्कर में इसने अपने कुलीन नवय...

तुलसी का महत्व

तुलसी के बारे में घर-घर में सभी जानते हैं। हिंदू धर्म में तुलसी को विशेष महत्व दिया गया हैैं। कहा जाता हैं कि जहां तुसली फलती हैं, उस घर में रहने वालों को कोई संकट नहीं आते। स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद में तुलसी के अनेक गुण के बारे में बताया गया हैं। यह बात कम लोग जानते हैं कि तुलसी परिवार में आने वाले संकट के बारे में सुखकर पहले संकेत दे देती हैं। पेटलावद के ज्योतिषी आनंद त्रिवेदी बता रहे हैं कि तुलसी एक, लेकिन गुण अनेक किय तरह से हैं। प्रकृति की अपनी एक अलग खासियत है। इसने अपनी हर एक रचना को बड़ी ही खूबी और विशिष्ट नेमत बख्शी है। इंसान तो वैसे भी प्रकृति की उम्दा रचनाओं में से एक है जो समझदारी और सूझबूझ से काम लेता है। इसके अलावा जानवरों की खूबी ये है कि वे आने वाले खतरे, मसलन भूकंपए सुनामी, पारलौकिक ताकतों आदि को पहले ही भांप सकने में सक्षम होते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग यह बात जानते हैं कि पौधों के भीतर भी ऐसी ही अलग विशेषता है, जिसे अगर समझ लिया जाए तो घर के सदस्यों पर आने वाले कष्टों को पहले ही टाला जा सकता है। क्यों मुरझाता है तुलसी का पौधा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शायद कभी किसी ने इस...

भगवान शिव के कुछ अन्य अवतार

 🕉️शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के उन्नीस अवतार हुए थे, आइए जानते हैं भगवान भोलेनाथ के अवतारों के बारे में। 🔸1- वीरभद्र अवतार भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्षद्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया। 🔸2- पिप्पलाद अवतार:  मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने ...