--------: शमी वृक्ष की उपयोगिता :------
* शमी वृक्ष, जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में , जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए, धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता है, तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है, तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है।
* इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर, खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है।
* इसकी लकडी मजबूत होती है , जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से, हल बनता है।
* वराहमिहिर के अनुसार, जिस साल शमी वृक्ष ज्यादा फूलता - फलता है । उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन, इसकी पूजा करने का, एक तात्पर्य यह भी है कि, यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का, पहले से संकेत दे देता है । जिससे किसान पहले से भी, ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ती से निजात पा सकता है।
* अकाल के समय, रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का , यही एक मात्र सहारा है। सन् १८९९ में, दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था। जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग, इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे।
* इस पेड़ के नीचे, अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।
* पांडवों द्वारा, अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में , गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं।
* शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी, यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। वसन्त ऋतु में, समिधा के लिए, शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार वारों में , शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है।
* शमी शनि ग्रह का पेड़ है। राजस्थान में , सबसे अधिक होता है। छोटे तथा मोटे काँटों वाला भारी पेड़ होता है।
* कृष्ण जन्मअष्टमी को, इसकी पूजा की जाती है।बिस्नोई समाज ने , इस पेड़ के काटे जाने पर, कई लोगों ने अपनी जान दे दी थी।
* कहा जाता है कि , इसके लकड़ी के भीतर विशेष आग होती है, जो रगड़ने पर निकलती है। इसे ' शिंबा ' सफेद कीकर भी कहते हैं।
* घर के ईशान में आंवला वृक्ष, उत्तर में शमी (खेजड़ी), वायव्य में बेल (बिल्व वृक्ष) तथा दक्षिण में गूलर वृक्ष लगाने को शुभ माना गया है।
* कवि कालिदास ने, शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर ही, तपस्या कर के ज्ञान की प्राप्ति की थी।
* ऋग्वेद के अनुसार, आदिम काल में, सबसे पहली बार पुरुओं ने , शमी और पीपल की टहनियों को रगड़ कर ही, आग पैदा की थी।
* कवियों और लेखकों के लिये, शमी बड़ा महत्व रखता है। भगवान चित्रगुप्त को , शब्दों और लेखनी का देवता माना जाता है और शब्द-साधक, यम-द्वितीया को यथा-संभव, शमी के पेड़ के नीचे, उसकी पत्तियों से , उनकी पूजा करते हैं।
* नवरात्र में, मां दुर्गा की पूजा भी, शमी वृक्ष के पत्तों से करने का, शास्त्र में विधान है। इस दिन, शाम को वृक्ष का पूजन करने से, आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है।
* कहते है, एक आक के फूल को, शिवजी पर चढ़ाना से , सोने के दान के बराबर फल देता है। हज़ार आक के फूलों कि अपेक्षा, एक कनेर का फूल। हज़ार कनेर के फूलों के चढाने कि अपेक्षा, एक बिल्व-पत्र से मिल जाता है। हजार बिल्वपत्रों के बराबर, एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर, एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर है, एक कुश का फूल। हजार कुश फूलों के बराबर, एक शमी का पत्ता। हजार शमी के पत्तो के बराबर, एक नीलकमल। हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा। हजार धतूरों से भी ज्यादा, एक शमी का फूल, शुभ और पुण्य देने वाला होता है। इसलिए भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए, एक शमी का पुष्प चढ़ाएं। क्योंकि, यह फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।
* इसमें औषधीय गुण भी है। यह कफनाशक ,मासिक धर्म की समस्याओं को दूर करने वाला और प्रसव पीड़ा का निवारण करने वाला पौधा है।
" शन्नोदेवीरभीष्टय आपो भवन्तु
पीतये शन्नोदेवीरभीष्टय । "
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