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गुरुवार को नहीं करने चाहिए निम्नलिखित कार्य

 गुरुवार को नहीं करने चाहिए निम्नलिखित कार्य 〰〰🌼〰〰🌼🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 गुरुवार देवगुरु बृहस्पति के साथ जुड़े होने से धर्म का दिन होता है। ब्रह्मांड में स्थित नौ ग्रहों में से गुरु वजन में सबसे भारी ग्रह है। यही कारण है कि इस दिन हर वो काम जिससे कि शरीर या घर में हल्कापन आता हो। ऐसे कामों को करने से मना किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से गुरु ग्रह हल्का होता है। यानी कि गुरु के प्रभाव में आने वाले कारक तत्वों का प्रभाव हल्का हो जाता है। गुरु धर्म व शिक्षा का कारक ग्रह है। गुरु ग्रह को कमजोर करने से शिक्षा में असफलता मिलती है। साथ ही धार्मिक कार्यों में झुकाव कम होता चला जाता है। गुरुवार को किए गए वर्जित कार्य पति, संतान की उन्नति में बाधा डालते है। 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 शास्त्रों में गुरुवार को महिलाओं को बाल धोने से इसलिए मनाही की गई है। क्योंकि महिलाओं की जन्मकुंडली में बृहस्पति पति का कारक होता है। साथ ही बृहस्पति ही संतान का कारक होता है। इस प्रकार अकेला बृहस्पति ग्रह संतान और पति दोनों के जीवन को प्रभावित करता है। बृहस्पतिवार को सिर धोना बृहस्पति को कमजोर बनाता है जिससे कि बृहस्पति के शुभ प्रभ

पूजा - पाठ में सर ढके या नहीं

 आजकल एक कुप्रथा चल पड़ी है कि पूजन आरंभ होते हीं रूमाल निकाल कर सर पर रख लेते हैं, और कर्मकांड के लोग भी नहीं मना करते । जबकि पूजा में सिर ढकने को शास्त्र निषेध करता है। शौच के समय हीं सिर ढकने को कहा गया है। प्रणाम करते समय,जप व देव पूजा में सिर खुला रखें। तभी शास्त्रोचित फल प्राप्त होगा। शास्त्र क्या कहते हैं ? आइए देखते हैं... उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः । प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग्न होकर, शिखा खोलकर, कण्ठको वस्त्रसे लपेटकर, बोलते हुए, और काँपते हुए जो जप किया जाता है, वह निष्फल होता है ।' शिर: प्रावृत्य कण्ठं वा मुक्तकच्छशिखोऽपि वा | अकृत्वा पादयोः शौचमाचांतोऽप्यशुचिर्भवेत् || ( -कुर्म पुराण,अ.13,श्लोक 9) अर्थात्-- सिर या कण्ठ को ढककर ,शिखा तथा कच्छ(लांग/पिछोटा) खुलने पर,बिना पैर धोये आचमन करने पर भी अशुद्ध रहता हैं(अर्थात् पहले सिर व कण्ठ पर से वस्त्र हटाये,शिखा व कच्छ बांधे, फिर पाँवों को धोना चाहिए, फिर आचमन करने के बाद व्यक्ति शुद्ध(देवयजन योग्य) होता है)। सोपानस्को जलस्थो वा नोष्णीषी वाचमेद् बुधः। -कुर्म प

शनि द्वादशनाम स्तोत्र

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  शनि द्वादशनाम स्तोत्र कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यमः। सौरि: शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥ एतानि द्वादश नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्। शनि पीडा न तस्य स्यात्सर्वत्र विजयि भवेत्।। 1. कोणस्थः - जो कोण में स्थित है 2. पिङ्गलः - जिनका रंग पीला या ताम्र है 3. बभ्रुः - जिनका रंग भूरा है 4. कृष्णः - जिनका रंग काला है 5. रौद्रः - जो क्रोधी स्वभाव के हैं 6. अन्तकः - जो अंत करने वाले हैं 7. यमः - जो न्याय के देवता हैं 8. सौरिः - सूर्य पुत्र 9. शनैश्चरः - जो धीरे-धीरे चलते हैं 10. मन्दः - जो धीमे हैं 11. पिप्पलादेन संस्तुतः - पिप्पलाद मुनि द्वारा स्तुत 12. कोणस्थः - जो कोण में स्थित है इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और शनि से संबंधित कष्टों से मुक्ति मिलती है।