शुक्रवार, 28 जून 2024

मां लक्ष्मी के 18 पुत्र के नाम

 ऋग्वेदोक्त श्रीसूक्त में लक्ष्मी जी के 4 पुत्रों का नाम इस श्लोक में आया है।


आनंद: कर्दमः श्रीदश्चिकलीत इति विश्रुता।

ऋषयः श्रियः पुत्राश्व मयि श्रीर्देवी देवता।।


लेकिन आकस्मिक धन पाने के लिये आपको

लक्ष्मी जी के 18 वर्ग पुत्रों के नाम लेने होंगे। लक्ष्मी जी के 18 पुत्रों के नाम, शुक्रवार से जपना शुरू करें।


मां लक्ष्मी के 18 पुत्र के नाम-


1. ॐ देवसखाय नम: 

2. ॐ चिक्लीताय नमः

3. ॐ आनन्दाय नमः 

4. ॐ कर्दमाय नमः

5. ॐ श्रीप्रदाय नमः 

6. ॐ जातवेदाय नमः

7. ॐ अनुरागाय नमः 

8. ॐ सम्वादाय नमः

9. ॐ विजयाय नमः 

10. ॐ वल्लभाय नमः

11. ॐ मदाय नमः 

12. ॐ हर्षाय नमः

13. ॐ बलाय नमः 

14. ॐ तेजसे नमः

15. ॐ दमकाय नम: 

16. ॐ सलिलाय नमः

17. ॐ गुग्गुलाय नमः 

18. ॐ कुरूण्टकाय नमः

गुरुवार, 20 जून 2024

गुरुवार को नहीं करने चाहिए निम्नलिखित कार्य

 गुरुवार को नहीं करने चाहिए निम्नलिखित कार्य

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गुरुवार देवगुरु बृहस्पति के साथ जुड़े होने से धर्म का दिन होता है। ब्रह्मांड में स्थित नौ ग्रहों में से गुरु वजन में सबसे भारी ग्रह है। यही कारण है कि इस दिन हर वो काम जिससे कि शरीर या घर में हल्कापन आता हो। ऐसे कामों को करने से मना किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से गुरु ग्रह हल्का होता है। यानी कि गुरु के प्रभाव में आने वाले कारक तत्वों का प्रभाव हल्का हो जाता है। गुरु धर्म व शिक्षा का कारक ग्रह है। गुरु ग्रह को कमजोर करने से शिक्षा में असफलता मिलती है। साथ ही धार्मिक कार्यों में झुकाव कम होता चला जाता है।


गुरुवार को किए गए वर्जित कार्य पति, संतान की उन्नति में बाधा डालते है।

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शास्त्रों में गुरुवार को महिलाओं को बाल धोने से इसलिए मनाही की गई है। क्योंकि महिलाओं की जन्मकुंडली में बृहस्पति पति का कारक होता है। साथ ही बृहस्पति ही संतान का कारक होता है। इस प्रकार अकेला बृहस्पति ग्रह संतान और पति दोनों के जीवन को प्रभावित करता है। बृहस्पतिवार को सिर धोना बृहस्पति को कमजोर बनाता है जिससे कि बृहस्पति के शुभ प्रभाव में कमी होती है। इसी कारण से इस दिन बाल भी नहीं कटवाना चाहिए जिसका असर संतान और पति के जीवन पर पड़ता है। उनकी उन्नति बाधित होती है।


क्षौर कर्म

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शास्त्रों में गुरु ग्रह को जीव कहा गया है। जीव मतलब जीवन। जीवन मतलब आयु। गुरुवार को नेल कटिंग और शेविंग करना गुरु ग्रह को कमजोर करता है। जिससे जीवन शक्ति दुष्प्रभावित होती है। उम्र में से दिन कम करती है।


बृहस्पति को किस तरह कमजोर करते कुछ अन्य निम्न लिखित कार्य

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जिस प्रकार से बृहस्पति का प्रभाव शरीर पर रहता है। उसी प्रकार से घर पर भी बृहस्पति का प्रभाव उतना ही अधिक गहरा होता है। वास्तु अनुसार घर में ईशान कोण का स्वामी गुरु होता है। ईशान कोण का संबंध परिवार के नन्हे सदस्यों यानी कि बच्चों से होता है। साथ ही घर के पुत्र संतान का संबंध भी इसी कोण से होता है। ईशान कोण धर्म और शिक्षा की दिशा है। घर में अधिक वजन वाले कपड़ों को धोना, कबाड़ घर से बाहर निकालना, घर को धोना या पोछा लगाना। घर के ईशान कोण को कमजोर करता है। उससे घर के बच्चों, पुत्रों, घर के सदस्यों की शिक्षा, धर्म आदि पर शुभ प्रभाव में कमी आती है।


गुरुवार लक्ष्मी नारायण का दिन होता है। इस दिन लक्ष्मी और नारायण का एक साथ पूजन जीवन में खुशियों की अपार वृद्धि कराने वाला होता है। इस दिन लक्ष्मी और नारायण की एक साथ पूजन करने से पति- पत्नी के बीच कभी दूरिया नहीं आती है। साथ ही धन की वृद्धि होती है।


जन्मकुंडली में गुरु ग्रह के प्रबल होने से उन्नति के रास्ते आसानी से खुलते हैं। यदि गुरु ग्रह को कमजोर करने वाले कार्य किए जाए तो पदोन्नति होने में रुकावटें आती है।


किसी भी जन्मकुंडली में दूसरा और ग्यारहवां भाव धन के स्थान होते हैं। गुरु ग्रह इन दोनों ही स्थानों का कारक ग्रह होता है। गुरुवार को गुरु ग्रह को कमजोर किए जाने वाले काम करने से धन की वृद्धि रुक जाती है। धन लाभ की जो भी स्थितियां बन रही हों। उन सभी में रुकावट आने लगती है। सिर धोना, भारी कपड़े धोना, बाल कटवाना, शेविंग करवाना, शरीर के बालों को साफ करना, फेशियल करना, नाखून काटना, घर से मकड़ी के जाले साफ करना, घर के उन कोनों की सफाई करना जिन कोनों की रोज सफाई नहीं की जा सकती हो। ये सभी काम गुरुवार को करना धन हानि का संकेत हैं। तरक्की को कम करने का संकेत हैं।


पूजा - पाठ में सर ढके या नहीं

 आजकल एक कुप्रथा चल पड़ी है कि पूजन आरंभ होते हीं रूमाल निकाल कर सर पर रख लेते हैं, और कर्मकांड के लोग भी नहीं मना करते । जबकि पूजा में सिर ढकने को शास्त्र निषेध करता है। शौच के समय हीं सिर ढकने को कहा गया है। प्रणाम करते समय,जप व देव पूजा में सिर खुला रखें। तभी शास्त्रोचित फल प्राप्त होगा।


शास्त्र क्या कहते हैं ? आइए देखते हैं...


उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।

प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥

अर्थात् -

पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग्न होकर, शिखा खोलकर, कण्ठको वस्त्रसे लपेटकर, बोलते हुए, और काँपते हुए जो जप किया जाता है, वह निष्फल होता है ।'


शिर: प्रावृत्य कण्ठं वा मुक्तकच्छशिखोऽपि वा |

अकृत्वा पादयोः शौचमाचांतोऽप्यशुचिर्भवेत् ||


( -कुर्म पुराण,अ.13,श्लोक 9)


अर्थात्-- सिर या कण्ठ को ढककर ,शिखा तथा कच्छ(लांग/पिछोटा) खुलने पर,बिना पैर धोये आचमन करने पर भी अशुद्ध रहता हैं(अर्थात् पहले सिर व कण्ठ पर से वस्त्र हटाये,शिखा व कच्छ बांधे, फिर पाँवों को धोना चाहिए, फिर आचमन करने के बाद व्यक्ति शुद्ध(देवयजन योग्य) होता है)।


सोपानस्को जलस्थो वा नोष्णीषी वाचमेद् बुधः।


-कुर्म पुराण,अ.13,श्लोक 10अर्ध।


अर्थात्-- बुध्दिमान् व्यक्ति को जूता पहनें हुए,जल में स्थित होने पर,सिर पर पगड़ी इत्यादि धारणकर आचमन नहीं करना चाहिए ।


शिरः प्रावृत्य वस्त्रोण ध्यानं नैव प्रशस्यते।-(कर्मठगुरूः)


अर्थात्-- वस्त्र से सिर ढककर भगवान का ध्यान नहीं करना चाहिए ।


उष्णीशी कञ्चुकी नग्नो मुक्तकेशो गणावृत।

अपवित्रकरोऽशुद्धः प्रलपन्न जपेत् क्वचित् ॥-


(शब्द कल्पद्रुम )


अर्थात्-- सिर ढककर,सिला वस्त्र धारण कर,बिना कच्छ के,शिखा खुलीं होने पर ,गले के वस्त्र लपेटकर ।


अपवित्र हाथों से,अपवित्र अवस्था में और बोलते हुए कभी जप नहीं करना चाहिए ।।


न जल्पंश्च न प्रावृतशिरास्तथा।-योगी याज्ञवल्क्य


अर्थात्-- न वार्ता करते हुए और न सिर ढककर।


अपवित्रकरो नग्नः शिरसि प्रावृतोऽपि वा ।

प्रलपन् प्रजपेद्यावत्तावत् निष्फलमुच्यते ।। (रामार्च्चनचन्द्रिकायाम्)


अर्थात्-- अपवित्र हाथों से,बिना कच्छ के,सिर ढककर जपादि कर्म जैसे किये जाते हैं, वैसे ही निष्फल होते जाते हैं ।


शिव महापुराण उमा खण्ड अ.14-- सिर पर पगड़ी रखकर,कुर्ता पहनकर ,नंगा होकर,बाल खोलकर ,गले के कपड़ा लपेटकर,अशुद्ध हाथ लेकर,सम्पूर्ण शरीर से अशुद्ध रहकर और बोलते हुए कभी जप नहीं करना चाहिए ।।


श्रीसीताराम ।

शनिवार, 1 जून 2024

शनि द्वादशनाम स्तोत्र


 शनि द्वादशनाम स्तोत्र


कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यमः।

सौरि: शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥


एतानि द्वादश नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।

शनि पीडा न तस्य स्यात्सर्वत्र विजयि भवेत्।।


1. कोणस्थः - जो कोण में स्थित है

2. पिङ्गलः - जिनका रंग पीला या ताम्र है

3. बभ्रुः - जिनका रंग भूरा है

4. कृष्णः - जिनका रंग काला है

5. रौद्रः - जो क्रोधी स्वभाव के हैं

6. अन्तकः - जो अंत करने वाले हैं

7. यमः - जो न्याय के देवता हैं

8. सौरिः - सूर्य पुत्र

9. शनैश्चरः - जो धीरे-धीरे चलते हैं

10. मन्दः - जो धीमे हैं

11. पिप्पलादेन संस्तुतः - पिप्पलाद मुनि द्वारा स्तुत

12. कोणस्थः - जो कोण में स्थित है


इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और शनि से संबंधित कष्टों से मुक्ति मिलती है।

कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...