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हल चंदन षष्ठी 24 अगस्त विशेष

 हल चंदन षष्ठी 24 अगस्त विशेष 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ व्रत महात्म्य विधि और कथा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी बलराम जन्मोत्सव के रूप में देशभर में मनायी जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि इस दिन भगवान शेषनाग ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रुप में अवतरित हुए थे। इस पर्व को हलषष्ठी एवं हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि मान्यता है कि बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल हैं जिस कारण इन्हें हलधर कहा जाता है इन्हीं के नाम पर इस पर्व को हलषष्ठी के भी कहा जाता है। इस दिन बिना हल चले धरती से पैदा होने वाले अन्न, शाक भाजी आदि खाने का विशेष महत्व माना जाता है। गाय के दूध व दही के सेवन को भी इस दिन वर्जित माना जाता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिये विवाहिताएं व्रत भी रखती हैं।  हिन्दू धर्म के अनुसार इस व्रत को करने वाले सभी लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण और राम भगवान विष्णु जी का स्वरूप है, और बलराम और लक्ष्मण शेषनाग का स्वरूप है. पौराणिक कथाओं के संदर्भ अनुसार एक बार भगवान विष्णु से शेष नाग नार...

शनिमहाराज की सम्पूर्ण कथा

  शनिमहाराज की सम्पूर्ण कथा ।  〰〰🌼〰🌼〰🌼〰〰 क्यों है शनिमहाराज के लिये शनिवार का महत्व? शनिदेव, सूर्य के पुत्र तथा यमराज के भाई हैं। शिवजी इनके गुरु हैं तथा शिवजी की आदेशानुसार ही ये दुष्टों को दण्ड देने का कार्य करते हैं। लेकिन कभी भी बेकसूर मनुष्यों को दण्ड नहीं देते। शिवजी तथा हनुमान जी के भक्तों को शनिदेव कभी कष्ट नहीं पहुँचाते। शनिदेव का अवतरण  पुराणों के अनुसार सूर्यदेव की पाँच पत्नियाँ हैं– प्रभा, संध्या, रात्रि, बड़वा और छाया। संध्या की तीन संतानें हैं— वैवस्वत मनु, यम और यमुना।  ऐसा कहा जाता है कि सूर्यदेव की पत्नी संध्या, सूर्य के तेज को नहीं सहन कर पाती थीं ।  जिससे उसे बहुत कष्ट सहना पड़ता था और वह अपने को अंतर्निहित करने का विचार करने लगी। उसने अपने ही रूप रंग जैसी एक प्रतिरूप स्त्री बनायी और उसे “छाया” नाम दिया ।  इसके बाद संध्या, उस छाया को सूर्यदेव के पास छोड़कर, स्वयं बड़वा (घोड़ी) के रूप में सुमेरु पर्वत पर तपस्या को चले गई।  जाते हुए संध्या ने छाया से वचन लिया कि वह उसके बच्चों का ख्याल रखेगी तथा इस रहस्य को सूर्य के समक्ष प्रकट नहीं...

दक्षिणा का महत्व

 * दक्षिणा का महत्व * ब्राह्मणों की दक्षिणा हवन की पूर्णाहुति करके एक मुहूर्त ( २४ ) मिनट के अन्दर दे देनी चाहिये , अन्यथा मुहूर्त बीतने पर १००  गुना  बढ जाती है ,  और तीन रात बीतने पर एक हजार ,  सप्ताह बाद दो हजार , महीने बाद एक लाख ,  और  संवत्सर बीतने पर तीन करोड गुना यजमान को देनी होती है ।  यदि नहीं दे तो उसके बाद उस यजमान का  कर्म निष्फल हो जाता है ,  और  उसे ब्रह्महत्या लग जाती है ,  उसके हाथ से किये जाने वाला हव्य - कव्य देवता और पितर कभी प्राप्त नहीं करते हैं । इसलिए  ब्राह्मणों की दक्षिणा जितनी जल्दी हो देनी चाहिये । यह जो कुछ भी कहा है सबका शास्त्रोॆ में प्रमाण है । *मुहूर्ते समतीते तु , भवेच्छतगुणा च सा ।* *त्रिरात्रे तद्दशगुणा , सप्ताहे द्विगुणा मता ।।* *मासे लक्षगुणा प्रोक्ता ,ब्राह्मणानां च वर्धते ।* *संवत्सर व्यतीते तु , त्रिकोटिगुणा भवेत् ।।* *कर्म्मं तद्यजमानानां , सर्वञ्च निष्फलं भवेत् ।* *सब्रह्मस्वापहारी च , न कर्मार्होशुचिर्नर: ।।* इसलिए चाणक्य ने कहा *"""नास्ति यज्ञसमो रिपु: """* मतलब यज्ञादि कर्म वि...

श्री कल्कि अवतार

  श्री कल्कि अवतार जन्मोत्सव 10 अगस्त विशेष 〰️〰️🌸〰️〰️🌸🌸〰️〰️🌸〰️〰️ शास्त्रों में वर्णित है श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह अवतार होना तय है पइसलिए यह शुभ तिथि कल्कि जयंती को उत्सव रूप में मनाया जाता है। कल्कि अवतार के जन्म समय ग्रहों की जो स्थिति होगी उसके बारे में दक्षिण भारतीय ज्योतिषियों की गणना के अनुसार जब चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में गोचर करेगा। गुरू स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा। कलियुग का प्रामाणिक वर्णन 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थ भविष्य पुराण में  कलयुग के विषय में जो प्रामाणिक वर्णन है उसके अनुसार कलियुग की आयु कुल 4,32,000 वर्ष की है जिनमें से (दिनांक 9 अप्रैल 2024 तक) 5,125 वर्ष बीत चुके हैं। अतः अभी भी कलियुग की बहुत आयु शेष है। वर्तमान में (दिनांक 9 अप्रैल 2024 से) कलियुग संवत् 5126 चल रहा है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नये विक्रम संवत्सर के साथ ही नया कलियुग संवत्सर(वर्ष) प्रारम्भ होता है। मान्यता है कि प्रत्येक युग के चार चर...

अथ रुद्राभिषेकस्तोत्रम् ॥

 ॥अथ रुद्राभिषेकस्तोत्रम् ॥  जो लोग वेद के अधिकारी न हों, या वैदिक रुद्र सूक्त का सम्यक पाठ न कर सकते हों वे लोग ऋषि व्यास कृत इन श्लोकों का पाठ करते हुए शिवलिंग का अभिषेक कर सकते हैं। कामना विशेष हो तो पाठ संख्या बढा दें। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसका उपदेश किया था।  वेदव्यास भगवान की जय हो!! ॥महाभारतान्तर्गतम्  ॥  ॥कृष्णार्जुनावूचतुः ॥ नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च ।  पशूनां पतये नित्यमुग्राय च कपर्दिने ॥ ५५॥ महादेवाय भीमाय त्र्यम्बकाय च शान्तये ।  ईशानाय मखघ्नाय नमोऽस्त्वन्धकघातिने ॥ ५६॥  कुमारगुरवे तुभ्यं नीलग्रीवाय वेधसे ।  पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा ॥ ५७॥   विलोहिताय ध्रूम्राय व्याधायानपराजिते ।  नित्यं नीलशिखण्डाय शूलिने दिव्यचक्षुषे ॥ ५८॥  होत्रे पोत्रे त्रिनेत्राय व्याधाय वसुरेतसे ।  अचिन्त्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्वदेवस्तुताय च ॥ ५९॥  वृषध्वजाय  मुण्डाय  जटिने  ब्रह्मचारिणे  ।   तप्यमानाय  सलिले  ब्रह्मण्यायाजिताय  च  ॥ ६०॥  विश्वात्मने...

स्त्री और यज्ञोपवीत

*॥ स्त्रियों के यज्ञोपवीत के विषय में संक्षिप्त कथन॥ * 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 हम यह नहीं कहते कि स्त्रियों में किसी कार्य को करने की क्षमता नहीं है इस कारण ही वह कार्य स्त्रियों लिए प्रतिषिद्ध है।अपितु तद्तदकार्य को करने से सर्वप्रथम तो उनका एवं तत्पश्चात समाज का अनिष्ट होगा इस कारण ही अनेक कार्य प्रतिषिद्ध हैं। संकल्पमात्र से त्रैलोक्याकर्षण में समर्थ भगवती , सूर्यचन्द्र को भी स्तम्भित करने में सक्षम पतिव्रता स्त्रियाँ सर्वसक्षम होते हुए भी पतिसेवा ही स्वीकार करती हैं। स्वधर्म में ही चमत्कृति है, इसका उदाहरण देखिए,स्त्रियों के लिए स्तोत्रपाठ एवं अनेक पौराणिकस्तुतियों के पाठ का विधान है यह तो सर्वस्वीकृत है ही।विगत वर्षों में अनेकों स्त्रियाँ स्तोत्र,सहस्रनामपाठादि द्वारा संसारभर में घर बैठे-बैठे ही ख्याति प्राप्त कर चुकी हैं। लयबद्ध स्तोत्रपाठों में तो वे पुरुषों को भी पीछे छोड़ दें। इसके विपरीत देखिए १५० वर्षों में समय काटने के लिए जितनी स्त्रियाँ भी वेदाध्ययन के नाम पर पथभ्रष्ट हुई हैं , उनमे से आज तक एक ऐसी स्त्री नहीं दिखी जो किसी परम्परागत गुरुकुल के बटुक के समक्ष ठीक ढंग स...