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अथ रुद्राभिषेकस्तोत्रम् ॥

 ॥अथ रुद्राभिषेकस्तोत्रम् ॥ 


जो लोग वेद के अधिकारी न हों, या वैदिक रुद्र सूक्त का सम्यक पाठ न कर सकते हों वे लोग ऋषि व्यास कृत इन श्लोकों का पाठ करते हुए शिवलिंग का अभिषेक कर सकते हैं। कामना विशेष हो तो पाठ संख्या बढा दें। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसका उपदेश किया था। 


वेदव्यास भगवान की जय हो!!


॥महाभारतान्तर्गतम्  ॥ 


॥कृष्णार्जुनावूचतुः ॥


नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च । 

पशूनां पतये नित्यमुग्राय च कपर्दिने ॥ ५५॥

महादेवाय भीमाय त्र्यम्बकाय च शान्तये । 

ईशानाय मखघ्नाय नमोऽस्त्वन्धकघातिने ॥ ५६॥ 

कुमारगुरवे तुभ्यं नीलग्रीवाय वेधसे । 

पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा ॥ ५७॥  

विलोहिताय ध्रूम्राय व्याधायानपराजिते । 

नित्यं नीलशिखण्डाय शूलिने दिव्यचक्षुषे ॥ ५८॥ 

होत्रे पोत्रे त्रिनेत्राय व्याधाय वसुरेतसे । 

अचिन्त्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्वदेवस्तुताय च ॥ ५९॥ 

वृषध्वजाय  मुण्डाय  जटिने  ब्रह्मचारिणे  ।  

तप्यमानाय  सलिले  ब्रह्मण्यायाजिताय  च  ॥ ६०॥ 

विश्वात्मने  विश्वसृजे  विश्वमावृत्य  तिष्ठते  ।  

नमोनमस्ते  सेव्याय  भूतानां  प्रभवे  सदा  ॥ ६१॥ 

ब्रह्मवक्त्राय   सर्वाय   शंकराय   शिवाय   च ।  

नमोस्तु  वाचस्पतये  प्रजानां  पतये  नमः  ॥ ६२॥ 

अभिगम्याय काम्याय स्तुत्यायार्याय सर्वदा । 

नमोऽस्तु देवदेवाय महाभूतधराय च । 

नमो विश्वस्य पतये पत्तीनां पतये नमः ॥ ६३॥ 

नमो विश्वस्य पतये महतां पतये नमः । 

नमः सहस्रशिरसे सहस्र भुजमृत्यवे॥ 

सहस्रनेत्रपादाय नमोऽसङ्ख्येयकर्मणे । ६४॥ 

नमो हिरण्यवर्णाय हिरण्यकवचाय च । 

भक्तानुकम्पिने नित्यं सिध्यतां नो वरः प्रभो ॥६५॥ 

सञ्जय उवाच । 

एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेवः सहार्जुनः । 

प्रसादयामास भवं तदा ह्यस्त्रोपलब्धये ॥ ६६॥ ॥ 


इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि प्रतिज्ञापर्वणि अर्जुनस्वप्ने अशीतितमोऽध्यायः ॥ ८०॥

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