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कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें_कुंभ_माननेवाले_व्यक्तिकी_चेष्टा- अप्रामाणिक, अशास्त्रीय और कपोल कल्पित है।  कुम्भपर्व— पृथ्वीपर कुम्भपर्व हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार तीर्थस्थानोंमें मनाये जाते हैं।  ये चारों ही एकसे बढ़कर एक परम पवित्र तीर्थ हैं।  इन चारों तीर्थोमें प्रत्येक लगभग बारह वर्षके बाद कुम्भपर्व होता है— *गङ्गाद्वारे प्रयागे च धारागोदावरीतटे।* *कुम्भाख्येयस्तु योगोऽयं प्रोच्यते शङ्करादिभिः॥* *अर्थ—* गङ्गाद्वार (हरिद्वार), प्रयाग, धारानगरी (उज्जैन) और गोदावरी (नासिक) में शङ्करादि देवगणोंने *'कुम्भयोग'* कहा है। *मुख्य_बारह_कुम्भपर्व—* सागर मंथनके समय जब अमृतका कलश लेकर भगवान् धन्वंतरि निकले तो देवताओंके इशारे पर उनके हाथोंसे अमृतकलश छीनकर इंद्रपुत्र जयंत आकाशमें उड़ गया, उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्यके आदेशानुसार दैत्योंने अमृतका कलश जयंतसे छीन लिया।तत्पश्चातक अमृतकुंभपर अपना- अपना अधिकार जमानेके लिए देवों और दानवोंमें 12 दिन तक अविराम यु...

देव उपासना में निषिद्ध वस्त्र

  देव उपासना में निषिद्ध वस्त्र =================== “न स्यूते न दग्धेन पारक्येन विशेषतः ।  मूषिकोत्कीर्ण जीर्णेन कर्म कुर्याद्विचक्षणः ||महा भा०||)” सिले हुए वस्त्र से , जले हुए वस्त्र से, विशेषकर दूसरे के वस्त्र से, चूहे से कटे हुए वस्त्र से धर्मकार्य नहीं करना चाहिए। “(जीर्णं नीलं संधितं च पारक्यं मैथुने धृतम् ।  छिन्नाग्रमुपवस्त्रं च कुत्सितं धर्मतो विदुः ।।  आचारादर्शे नृसिंहपुराणवचन)” जीर्ण, नीला, सीला हुआ, दूसरे का, संभोगावस्था में पहना हुआ, जिसका तत्र भाग कटा हो एवं छोर रहित वस्त्र धर्मकी दृष्टि से धारण न करें, “अहतं यन्त्र निर्मुक्तं वासः प्रोक्तं स्वयंभुवा ।  शस्तं तन् मांगलिक्येषु तावत् कालं न सर्वदा ||कश्यपः||” यन्त्र(मील) से निकले हुए बने हुए वस्त्र को “अहत” वस्त्र माना हैं | वह यन्त्र से निकला हुआ कपड़ा विवाह आदि मांगलिक कार्य में उतने ही समय तक ठीक हैं, हमेशा के लिए नहीं। “अन्यत्र यज्ञादौ तु इषद्धौतमिति । न_च_यज्ञादिकमपि #मांगलिक्यमेवेत्याशंकनीयम् । विवाहोत्सवादेरैहिकसुखस्याभ्युदयस्य च मांगलिकत्वात् । यज्ञोदेस्तु #धर्मरूपादृष्टफलदत्वेन मांगलिकत्वाभ...