संदेश

मार्च, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एकादशी निर्णय

🔯#एकादशी_व्रत_निर्णय:🔯🚩 श्रीराम!         एकादशी व्रत वैसे तो मानव मात्र के लिए है, किन्तु वैष्णवों का यह सबसे महत्वपूर्ण है, सबसे प्रधान है , अनिवार्य है। कई बार अनेक श्रद्धालुओं नें जिज्ञासा व्यक्त की है, अतः  एकादशी व्रत के विषय में जगद्गुरु श्री रामानन्दाचार्यजी द्वारा प्रणीत  "#श्रीवैष्णवमताब्जभाष्कर" के माध्यम से निर्णय प्रस्तुत है:---  *श्री हरि को प्रिय एकादशी आदि व्रतों को बेध रहित तिथियों में ही करना चाहिए।  * *यदि वह एकादशी अरुणोदय काल में दशमी से युक्त हो तो उसे छोंड़कर बाद वाली द्वादशी में व्रतोपवस करना चाहिए-- #विद्धादशम्या_यदि_सारुणोदये_स_द्वादशीं_तूपवसेत्_विहाय_ताम्।। *एकादशी दो प्रकार की होती है-- *१ शुद्धा एकादशी--जो एकादशी सूर्योदयकाल से पूर्व न्यूनतम ४ घटी हो वह शुद्धा कहलाती है। *२ दशमी विद्धा (युक्ता) एकादशी। सुद्धा से अन्य एकादशी विद्धा कहलाती है। *बेध भी दो प्रकार का होता है-- • १ अरुणोदय काल में दशमी का प्रवेश होने से एक बेध। • २ सूर्योदय काल में दशमी का प्रवेश होने पर दूसरा बेध। #वेधोपि_बोध्यो_द्विविधोरुणोदये_सूर्योदये_वा_दशमी_प्रवेषतः

आमलकी एकादशी

चित्र
.           दिनांक 17.03.2019 दिन रविवार को आनेवाली है फाल्गुन शुक्ल एकादशी जिसे कहते हैं :-👇                           "आमलकी एकादशी"           आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में उसी प्रकार श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है जैसा नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान विष्णु को। विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। विधि           स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूँ। मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी

त्रिजटा

चित्र
विभीषण की पुत्री त्रिजटा की सम्पूर्ण कथा? * त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका॥ श्री रामचरित मानस के छोटे-से-छोटे पात्र भी विशेषता संपन्न है। इसके स्त्री पात्रों में त्रिजटा एक लधु स्त्रीपात्र है । यह पात्र आकार में जितना ही छोटा है, महिमा में उतना की गौरावमण्डित है । सम्पूर्ण ‘मानस’ में केवल सुन्दरकाण्ड और लंका काण्डमें सीता-त्रिजटा संवाद के रूपमें त्रिजटा का वर्णन आया है, परंतु इन लघु संवादो में ही त्रिजटा के चरित्र की भारी विशेषताएँ निखर उठी हैं। छोटेसे वार्ताप्रसङ्गमें भी सम्पूर्ण चरित्र को समासरूप से उद्भासित करने की क्षमता पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदासजी की विशेषता है । मानस के सुन्दरकाण्ड की एक चौपाईं में त्रिजटा का स्वरूप इस प्रकार बतलाया गया है : त्रिजटा जाम राच्छसी एका । राम चरन रति निपुन बिबेका ।। (प्रस्तुत पंक्ति त्रिजटाके चार गुणोंको स्पष्ट करती है- १- वह राक्षसी है । २-श्री रामचरण में उसकी रति है । ३ वह व्यवहार-निपुण और ४ -विवेकशीला है। राक्षसी होते हुए भी श्री रामचरणानुराग, व्यवहार कुशलता एवं विवेकशीलता जैसे दिव्य देवोपम गुणों की अवतारणा चरित्

तुलसी की पत्ती तोड़ने के नियम

चित्र
तुलसी जी को तोडने से पहले वंदन करो। 1. तुलसी जी को नाखूनों से कभी नहीं तोडना चाहिए,नाखूनों के तोडने से पाप लगता है। 2.सांयकाल के बाद तुलसी जी को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए । 3. रविवार को तुलसी पत्र नहीं तोड़ने चाहिए । 4. जो स्त्री तुलसी जी की पूजा करती है। उनका सौभाग्य अखण्ड रहता है । उनके घर सत्पुत्र का जन्म होता है । 5. द्वादशी के दिन तुलसी को नहीं तोडना चाहिए । 6. सांयकाल के बाद तुलसी जी लीला करने जाती है। 7. तुलसी जी वृक्ष नहीं है! साक्षात् राधा जी का अवतार है । 8. तुलसी के पत्तो को चबाना नहीं चाहिए। "तुलसी वृक्ष ना जानिये। गाय ना जानिये ढोर।। गुरू मनुज ना जानिये। ये तीनों नन्दकिशोर।। अर्थात- तुलसी को कभी पेड़ ना समझें गाय को पशु समझने की गलती ना करें और गुरू को कोई साधारण मनुष्य समझने की भूल ना करें, क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप हैं       राधे राधे जी

लहसुन के विषय में रोचक जानकारी

लहसुन की उत्तपत्ति के विषय में बताया गया है कि समुद्र मंथन के समय एक राक्षस कुलीन धोखे से देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और जब अमृत बंटने लगा तो उसे भी दिया गया किन्तु उसी समय भगवान सूर्य ने उस राक्षस को देख लिया और तुरन्त श्री हरि नारायण से बताया , भगवान विष्णु ने तत्काल चक्र सुदर्शन से उसका गला  काट दिया किन्तु अमृत उसके गले से उतरकर उदरस्थ हो चुका था , दो भागों में होकर भी वह राहु और केतु के नाम से जीवित बच गया सर का भाग राहु और शेष भाग केतु के नाम से प्रतिष्ठित हुआ , और नॉग्रहों में गणना हुई। किन्तु गला कटने से अमृत और खून की जो बूंदे धरती पर गिरीं उसी से धरती पर लहसन और प्याज की उत्तपत्ति हुई। लहसुन प्याज का भोग इसीलिए भगवान को नहीं लगाया जाता किन्तु लहसुन में बहुत ही औषधीय गुण भी हैं। लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषद्यि की तरह मन गया है। इसमें विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में लहसुन का किसी भी तरह से इस्तेमाल शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है।

आदर्श आचार संहिता' लागू, जानिए इसके बारे में सब कुछ

*लोकसभा चुनावों के एलान के साथ ही 'आदर्श आचार संहिता' लागू, जानिए इसके बारे में सब कुछ*👇 लोकसभा चुनाव का एलान हो चुका है। और इसी के साथ लागू हो गई है आदर्श आचार संहिता। इस चुनावी माहौल में आपके लिए जरूरी है कि आप चुनाव के तमाम नियमों से अपडेट रहें। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत पारदर्शी चुनावों के सफल आयोजन की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है। इसलिए चुनाव आयोग 'चुनाव आचार संहिता' लागू करता है जिसका पालन चुनाव खत्म होने तक हर पार्टी और उसके उम्मीदवार को करना होता है। *चुनाव आचार संहिता : क्या, क्यों और कैसे?* देश में होने वाले सभी चुनावों से पहले चुनाव आयोग आचार संहिता (Code of Conduct) लगाता है। इस दौरान राजनीतिक दलों, उनके उम्मीदवारों और आम जनता को सख्त नियमों का पालन करना होता है। अगर कोई उम्मीदवार इन नियमों का पालन नहीं करता तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। उसे चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है और  उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की जा सकती है। *सामान्य नियम:* * कोई भी दल ऐसा काम न करे, जिससे जातियों और धार्मिक या भाषाई समुदायों के बीच मतभेद बढ़

रुद्राक्ष की सम्पूर्ण जानकारी

🌹🌹🌹🌹* रुद्राक्ष की सम्पूर्ण जानकारी *🚩 रुद्राक्ष एक फल के अंदर निकलने वाला बीज है जिसका पेड़ पहाड़ी क्षत्रों में पाया जाता है धार्मिक मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव ने कठोर तपस्या के बाद अपने नेत्र खोले तो  उनकी आँखों से कुछ आंसू पृथ्वी पर आ गिरे जिनसे रुद्राक्ष के पेड़ की उत्त्पत्ति हुई | रुद्राक्ष = रूद्र + अक्ष , इन दो शब्दों से मिलकर बना यह शब्द ‘ रुद्राक्ष ‘ भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है |  जिसमें रूद्र-  भगवान शिव का ही नाम है और अक्ष का अर्थ आंसू से है | इस प्रकार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओ से हुई रुद्राक्ष  को धारण करने वाले  व्यक्ति भगवान शिव को प्रिय होते है।  *रुद्राक्ष कहां पाऐ जाते है*🚩 रुद्राक्ष का पेड़ भारत में हिमालय क्षेत्र में और असम व उत्तरांचल के जंगलो में पाए जाते है  इसके साथ -साथ नेपाल , मलेशिया और इंडोनेशिया में काफी मात्रा में पायें जाते है नेपाल और इंडोनेशिया से रुद्राक्ष सबसे अधिक मात्रा मे निर्यात भारत में होता है | *रुद्राक्ष कितने प्रकार के होते है*🚩 रुद्राक्ष कितने प्रकार के होते है यह सुनिश्चित कर पाना कठिन है  विशेषज

नाम जप महिमा

चित्र
श्री रामचरितमानस के अनुसार नामजपकी महिमा... कलियुगमें जितने भी साधनामार्ग है उसमें सबसे सहज मार्ग है भक्तियोग, और भक्तियोग अंतर्गत नामसंकीर्तनयोग अनुसार साधना करना इस युगकी सर्वश्रेष्ट साधनामार्ग है। संत तुलसीदासने श्री रामचरितमानसमें नामके महिमाका गुणगान किया है।  संत जिस देवी या देवताके स्वरूपकी आराधना कर आध्यात्मिक प्रगति कर आत्मज्ञानी बनते हैं उसी आराध्यके नामकी गुणगान कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। अध्यात्मशास्त्र अनुसार हमारे सूक्ष्म पिंडमें जिस सूक्ष्म तत्त्वकी कमी होती है, जब हम उस तत्त्वकी पूर्ति हेतु उस आराध्यके नामका जप करते हैं तो हमारी आध्यात्मिक प्रगति करते हैं द्रुत गतिसे होती है | जब तक हमने गुरुमंत्र नहीं मिला हो हमें आप कुलदेवता का जप करना चाहिए और यदि कुलदेवताका नाम नहीं पता हो तो या तो ‘श्री कुलदेवतायै नमः’ का जप करना चाहिए या अपने इष्टदेवताका जप करना चाहिए।  यदि घरमें पितृ दोष हो तो एक घंटे ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का जप करना चाहिए और शेष समय अपने कुलदेवताका या इष्टदेवताका मंत्र जपना चाहिए। ५० % से अधिक आध्यात्मिक स्तरके साधक उच्च कोटिके देवता ज

गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत्र" हिंदी अनुवाद सहित

चित्र
श्री शुक उवाच – श्री शुकदेव जी ने कहा एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि । जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥१॥ बुद्धि के द्वारा रीति से निश्चय करके तथा मन को हृदय देश में स्थिर करके वह गजराज अपने पूर्व जन्म में सीखकर कण्ठस्थ किये हुए सर्वश्रेष्ठ एवं बार बार दोहराने योग्य निम्नलिखित स्तोत्र का मन ही मन पाठ करने लगा। गजेन्द्र उवाच गजराज ने (मन ही मन) कहा :– ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम । पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥२॥ जिनके प्रवेश करने पर (जिनकी चेतना को पाकर) ये जड शरीर और मन आदि भी चेतन बन जाते हैं (चेतन की भांति व्यवहार करने लगते हैं), ‘ओम’ शब्द के द्वारा लक्षित तथा सम्पूर्ण शरीर में प्रकृति एवं पुरुष रूप से प्रविष्ट हुए उन सर्व समर्थ परमेश्वर को हम मन ही मन नमन करते हैं ॥ यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं । योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ॥३॥ जिनके सहारे यह विश्व टिका है, जिनसे यह निकला है , जिन्होने इसकी रचना की है और जो स्वयं ही इसके रूप में प्रकट हैं – फिर भी जो इस दृश्य जगत से एवं इसकी कारणभूता प्रकृति से सर्वथा परे (

पूजा से सम्बंधित तीस आवश्यक नियम

चित्र
सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परंपरा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए। अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां 30  ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में भी ध्यान रखना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं। ये नियम इस प्रकार हैं… 1. सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है। 2. शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। 3. मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है। 4. सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए। 5. तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यद

बारह महाजन

स्वयम्भुर्नारद:शम्भु कुमार: कपिलोमनु:  प्रह्लादोजनको भीष्मो बलिर्वैयासकिर्वयम।  ये12 महाजन हैं-स्वयंभू, शंभु, नारद, सनत कुमार, कपिल, मनु, जनक, भीष्म, बली, व्यास जी, प्रह्लाद और यमराज।