जानीऐ श्राद्ध के बारे मे
ब्रह्मपुराण के ‘श्राद्ध’ अध्याय में श्राद्ध की निम्न व्याख्या है –
देशे काले च पात्रे च
श्रद्धया विधिना च यत् ।
पित¸नुद्दिश्य विप्रेभ्यो
दत्तं श्राद्धमुदाहृतम् ।।
– ब्रह्मपुराण
अर्थ : देश, काल तथा पात्र (उचित स्थान)के अनुसार, पितरों को उद्देशित कर ब्राह्मणों को श्रद्धा एवं विधियुक्त जो (अन्नादि) दिया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं ।
अमावास्वादिने प्राप्ते
गृहद्वारं समाश्रिताः ।
वायुभूताः प्रपश्यन्ति
श्राद्धं वै पितरो नृणाम् ॥
यावदस्तमयं भानोः
क्षुत्पिपासासमाकुलाः ।
ततश्चास्तंगते भानौ
निराशादुःखसंयुताः ।
निःश्वस्य सुचिरं यान्ति
गर्हयन्तः स्ववंशजम् ।
जलेनाऽपिचन श्राद्धं
शाकेनापि करोति यः ॥
अमायां पितरस्तस्य
शापं दत्वा प्रयान्ति च ॥
– कूर्मपुराण
अर्थ : (मृत्यु के पश्चात) वायुरूप बने पूर्वज, अमावस्या के दिन अपने वंशजों के घर पहुंचकर देखते हैं कि उनके लिए श्राद्ध भोजन परोसा गया है अथवा नहीं । भूख-प्यास से व्याकुल पितर सूर्यास्त तक श्राद्ध भोजन की प्रतीक्षा करते हैं । न मिलने पर, निराश और दुःखी होते हैं तथा आह भरकर अपने वंशजों को चिरकाल दोष देते हैं । ऐसे समय जो पानी अथवा सब्जी भी नहीं परोसता, उसको उसके पूर्वज शाप देकर लौट जाते हैं ।
न सन्ति पितरश्चेति
कृत्वा मनसि वर्तते ।
श्राद्धं न कुरुते यस्तु
तस्य रक्तं पिबन्ति ते ॥
– आदित्यपुराण
अर्थ : मृत्यु के पश्चात पूर्वजों का अस्तित्व नहीं होता, ऐसा मानकर जो श्राद्ध नहीं करता, उसका रक्त उसके पूर्वज पीते हैं ।
श्राद्ध न करने से प्राप्त दोष
न तत्र वीरा जायन्ते
नाऽऽरोग्यं न शतायुषः ।
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति
यत्र श्राद्धं विवर्जितम् ॥
– मार्कण्डेयपुराण
अर्थ : जहां श्राद्ध नहीं होता, उसके घर लड़का (वीराः) नहीं जन्मता । (जन्मीं तो केवल लडकियां ही जन्मती हैं ।), उस परिवार के लोग स्वस्थ्य और शतायु नहीं होते तथा उनको आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं अथवा संतुष्टि नहीं प्राप्त होती ।
ब्रह्मपुराण के ‘श्राद्ध’ अध्याय में श्राद्ध की निम्न व्याख्या है –
देशे काले च पात्रे च
श्रद्धया विधिना च यत् ।
पित¸नुद्दिश्य विप्रेभ्यो
दत्तं श्राद्धमुदाहृतम् ।।
– ब्रह्मपुराण
अर्थ : देश, काल तथा पात्र (उचित स्थान)के अनुसार, पितरों को उद्देशित कर ब्राह्मणों को श्रद्धा एवं विधियुक्त जो (अन्नादि) दिया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं ।
अमावास्वादिने प्राप्ते
गृहद्वारं समाश्रिताः ।
वायुभूताः प्रपश्यन्ति
श्राद्धं वै पितरो नृणाम् ॥
यावदस्तमयं भानोः
क्षुत्पिपासासमाकुलाः ।
ततश्चास्तंगते भानौ
निराशादुःखसंयुताः ।
निःश्वस्य सुचिरं यान्ति
गर्हयन्तः स्ववंशजम् ।
जलेनाऽपिचन श्राद्धं
शाकेनापि करोति यः ॥
अमायां पितरस्तस्य
शापं दत्वा प्रयान्ति च ॥
– कूर्मपुराण
अर्थ : (मृत्यु के पश्चात) वायुरूप बने पूर्वज, अमावस्या के दिन अपने वंशजों के घर पहुंचकर देखते हैं कि उनके लिए श्राद्ध भोजन परोसा गया है अथवा नहीं । भूख-प्यास से व्याकुल पितर सूर्यास्त तक श्राद्ध भोजन की प्रतीक्षा करते हैं । न मिलने पर, निराश और दुःखी होते हैं तथा आह भरकर अपने वंशजों को चिरकाल दोष देते हैं । ऐसे समय जो पानी अथवा सब्जी भी नहीं परोसता, उसको उसके पूर्वज शाप देकर लौट जाते हैं ।
न सन्ति पितरश्चेति
कृत्वा मनसि वर्तते ।
श्राद्धं न कुरुते यस्तु
तस्य रक्तं पिबन्ति ते ॥
– आदित्यपुराण
अर्थ : मृत्यु के पश्चात पूर्वजों का अस्तित्व नहीं होता, ऐसा मानकर जो श्राद्ध नहीं करता, उसका रक्त उसके पूर्वज पीते हैं ।
श्राद्ध न करने से प्राप्त दोष
न तत्र वीरा जायन्ते
नाऽऽरोग्यं न शतायुषः ।
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति
यत्र श्राद्धं विवर्जितम् ॥
– मार्कण्डेयपुराण
अर्थ : जहां श्राद्ध नहीं होता, उसके घर लड़का (वीराः) नहीं जन्मता । (जन्मीं तो केवल लडकियां ही जन्मती हैं ।), उस परिवार के लोग स्वस्थ्य और शतायु नहीं होते तथा उनको आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं अथवा संतुष्टि नहीं प्राप्त होती ।
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