संदेश

दिसंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भोजन करने के आवश्यक नियम

चित्र
भोजन करने के आवश्यक नियम भोजन करने के भी नियम होते हैं।  यह नहीं कि पेट भरना है तो चाहे जब खा  लिया और चाहे जब भूखे रह लिये। स्वास्थ्य वैज्ञानिक आजकल खानपान की बदलती प्रवृत्तियों को स्वास्थ्य के लिये खतरनाक बता रहे है।  आजकल आधुनिक युवा वर्ग बाज़ार में बने भोज्य पदार्थों के साथ ही ठंडे पेय भी उपयोग कर रहा है जिसकी वजह से बड़ी आयु में होने वाले विकार अब उनमें भी दिखाई देने लगे है।  जहां पहले युवा वर्ग को देखकर यह माना जाता था कि वह एक बेहतर स्वास्थ्य का स्वामी है और चाहे जो काम करना चाहे कर सकता है।  मौसम या बीमारी के आक्रमण से उनकी देह के लिये कम खतरा है पर अब यह सोच खत्म हो रही है।  अपच्य भोज्य पदार्थों और ठंडे पेयो के साथ ही  रसायनयुक्त तंबाकू की पुड़ियाओं का सेवन युवाओं के शरीर में ऐसे विकारों को पैदा कर रहा है जो साठ या सत्तर वर्ष की आयु में होते हैं। मनु स्मृति में कहा गया है कि — न भुञ्जीतोद्धतस्नेहं नातिसौहित्यमाचरेत्। नातिप्रगे नातिसायं न सत्यं प्रतराशितः।। हिन्दी में भावार्थ-जिन पदार्थों से चिकनाई निकाली गयी हो उनका सेवन करना ठीक नहीं है। दिन में कई बार पेट भरकर,

तुलसी पूजन विशेष

मित्रों आज तुलसी पूजन दिवस है। आपको आपके परिवार को तुलसी पूजन दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभ मंगलकामनाएँ,,,,,,   पौराणिक कथा के अनुसार देव और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से ‘‘तुलसी’’ की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मदेव ने उसे भगवान विष्णु को सौंपा। लंका मेंविभीषण के घर तुलसी का पौधा देखकर हनुमान अति हर्षित हुये थे। इसकी महिमा के वर्णन में कहा गयाहै, (नामायुध अंकित गृह शोभा वरिन न जाई। नव तुलसी के वृन्द तहंदेखि हरषि कपिराई)पद्म पुराण में लिखा है कि जहाँ तुलसी का एक भी पौधा होता है। वहाँ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी निवास करते हैं। तुलसी की सेवा करने से महापातक भी उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूर्य केउदय होने से अंधकार नष्ट हो जाता है। जिस प्रसाद में तुलसी पत्र नहीं होता उसे भगवान स्वीकार नहीं करते। भगवान विष्णु, योगेश्वर कृष्ण और पांडुरंग (श्री बालाजी) के पूजन के समय तुलसी पत्रों का हार उनकी प्रतिमाओं को अर्पण किया जाता है। तुलसी को दैवी गुणों से अभिपूरित मानते हुए इसके विषय में अध्यात्म ग्रंथों में काफ़ी कुछ लिखागया है। तुलसी औषधियों का खान हैं। इस

शिवलिंग के पूजन के लिए विशेष रहस्य

चित्र
मित्रो आज सोमवार को हम आपको बताएंगे कि शिवलिंग पर क्या चढ़ाने से क्या फल मिलता है?बहुत उपयोगी प्रस्तुति है। बातें बिल्व वृक्ष की- 1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते । 2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है । 3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है । ⚡4. चार पांच छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्रक पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है । 5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है। और बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है। 6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है। 7. बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते है। 8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे । 10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी उसके सारे पाप मुक्त हो जाते है । 11. बेल वृक्ष का रोपण,

रंभा- शुक संवाद

चित्र
रंभा - श्री शुकदेव जी संवाद !!!!!!! ----------------------- रंभा नामक एक अतीव सुंदरी (अप्सरा) श्री शुकदेव जी के रूपलावणय को देख मुग्ध हो गयी और श्रीशुकदेव जी को लुभाने पहुंची। श्री शुकदेव जी सहज विरागी थे। बचपन में ही वह वन चले गए थे। उन्होंने ही राजा परीक्षित को भागवत पुराण सुनाया था। वे महर्षि वेदव्यास के अयोनिज पुत्र थे और बारह वर्षों तक माता के गर्भ में रहे। श्रीकृष्ण के यह आश्वासन देने पर कि उन पर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, उन्होंने जन्म लिया। उन्हें गर्भ में ही उन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का ज्ञान हो गया था। कम अवस्था में ही वह ब्रह्मलीन हो गए थे। रंभा ने उन्हें देखा, तो वह मुग्ध हो गई और उनसे प्रणय निवेदन किया। शुकदेव ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। रंभा उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में जुट गई। जब वह बहुत कोशिश कर चुकी, तो शुकदेव ने पूछा, देवी, आप मेरा ध्यान क्यों आकर्षित कर रही हैं। रंभा ने कहा, ताकि हम जीवन का छक कर भोग कर सकें। शुकदेव बोले, देवी, मैं तो उस सार्थक रस को पा चुका हूं, जिससे क्षण भर हटने से जीवन निरर्थक होने लगता है। मैं उस रस को छोड़कर जीवन

चरणामृत की महिमा

चित्र
क्या है चरणामृत का महत्व!!!!!!! अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है,क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की कि चरणामृतका क्या महत्व है, शास्त्रों में कहा गया है। *अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।* *विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।* *"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप -व्याधियों का शमन करने वाला है तथा औषधि के समान है।* *जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता" जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता, जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है। चरणामृत से सम्बन्धित एक पौराणिक गाथा काफी प्रसिद्ध है जो हमें श्रीकृष्ण एवं राधाजी के अटूट प्रेम की याद दिलाती है। कहते हैं कि एक बार नंदलाल काफी बीमार पड़ गए। कोई दवा या जड़ी-बूटी उन पर बेअसर साबित हो रही थी। तभी श्रीकृष्ण ने स्वयं ही गोपियों से एक ऐसा उपाय करने को कहा जिसे सुन गोपियां दुविधा में पड़ गईं। श्रीकृष्ण हुए बीमार दरअसल श्रीकृष्ण ने गोपियों से उन्हें चरणामृत पिलाने को कहा। उनका मानना था कि उनके परम भक्

घर में कभी गरीबी नही आएगी रामायण की इन आठ चौपाइयों का नित्य पाठ करे

चित्र
घर में कभी गरीबी नही आएगी रामायण की इन आठ चौपाइयों का नित्य पाठ करे--जय श्री राम अदभुद           जब तें रामु ब्याहि घर आए।            नित नव मंगल मोद बधाए॥      भुवन चारिदस भूधर भारी।          सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी॥     रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई।          उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥      मनिगन पुर नर नारि सुजाती।           सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥       कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।              जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥      सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।                 रामचंद मुख चंदु निहारी॥       मुदित मातु सब सखीं सहेली।           फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥     राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ।            प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥ भावार्थ:-जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आए, तब से (अयोध्या में) नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ सुख रूपी जल बरसा रहे हैं॥ रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई।        उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥ मनिगन पुर नर नारि सुजाती।        सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥ भावार्थ:-ऋद्ध

हरसिंगार के औषधीय गुण व प्रयोग

चित्र
हरसिंगार, पारिजात,रातरानी, शेफालिका,शिवली,मल्लिका,स्वर्ण मल्लिका  यह एक दिव्य वृक्ष है,पुराणों के आधार पर ये पौधा भगवान श्री कृष्ण अपने साथ लाये थे इसके पुष्प से श्री हरि का श्रृंगार किया जाता है इस लिए इसे हरसिंगार कहा जाता है। यह इच्छा पूर्ति वृक्ष है साथ ही ये प्रेम का वृक्ष है। हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात नाम की राजकुमारी को सूर्य देव से प्रेम हुया व प्रेम स्वीकृत न होने पर प्राण त्याग दी जिस स्थान पर राजकुमारी का अंतिम संस्कार हुया वँहा इस दिव्य वृक्ष की उतपत्ति हुई जो सिर्फ रात को ही पुष्प खिलते हैं व सुबह जमीन पर गिरे मिलते हैं इसलिये इसे पारिजात नाम से जाना जाता है। यह वृक्ष औषधि गुणों से परिपूर्ण है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सबसे क्षारीय है इसके पत्तों का जूस :-रक्त शुद्धि,मधुमेह,पाचनशक्ति, मलेरिया,अन्य बुखार, में रामबाण है। पत्तो का लेप :- घाव, अस्थिभंग,चर्म रोग तनाव :- इसके पुष्प की सूंघना सुखी खाँसी :- पत्तो का रस शहद के साथ बवासिर:- इसके बीज का चूर्ण पानी के साथ बाल की हर समस्या :- फूलों का रस पीना सूजन को कम करे:-  पुष्प का लेप

सुमित्रा जी की कथा

चित्र
मित्रो आप जानते हैं, कि राजा दसरथ के तीन रानियाँ थी,कौसल्या, कैकेयी, और सुमित्रा।आज हम आपको माता सुमित्रा के बारे में बतायेंगे!!!!!!! सुमित्रा रामायण की प्रमुख पात्र और राजा दशरथ की तीन महारानियों में से एक हैं। सुमित्रा अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी तथा लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न की माता थीं। महारानी कौशल्या पट्टमहिषी थीं। महारानी कैकेयी महाराज को सर्वाधिक प्रिय थीं और शेष में श्री सुमित्रा जी ही प्रधान थीं। महाराज दशरथ प्राय: कैकेयी के महल में ही रहा करते थे।  सुमित्रा जी महारानी कौसल्या के सन्निकट रहना तथा उनकी सेवा करना अपना धर्म समझती थीं। पुत्रेष्टि-यज्ञ समाप्त होने पर अग्नि के द्वारा प्राप्त चरू का आधा भाग तो महाराज ने कौशल्या जी को दिया शेष का आधा कैकेयी को प्राप्त हुआ। चतुर्थांश जो शेष था, उसके दो भाग करके महाराज ने एक भाग कौशल्या तथा दूसरा कैकेयी के हाथों पर रख दिया। दोनों रानियों ने उसे सुमित्रा जी को प्रदान किया। समय पर माता सुमित्रा ने दो पुत्रों को जन्म दिया। कौशल्या जी के दिये भाग के प्रभाव से लक्ष्मण जी श्रीराम के और कैकेयी जी द्वारा दिये गये भाग के प्रभाव से शत्रुघ्

रुद्राक्ष के प्रकार

क्या आप जानते हैं, कि रुद्राक्ष कितने प्रकार के होते हैं, ओर क्या है उनका महत्व,,,,,, भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है। माना जाता है कि रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तपस्वियों के लिए ही नहीं, बल्कि सांसारिक जीवन में रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है। जानिए, कैसे इंसानी जीवन में नकारात्मकता को कम करने में मदद करता है रुद्राक्ष:। 1 मुखी रुद्राक्ष,,,पौराणिक मान्यताओके अनुसार, एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात शिवस्वरुप माना जाता है. ईसके निरंतर सानिध्यसे एव्ं ध्यानधारणासे , धारणकर्ता – वैश्विकज्ञान , उच्चतम चेतनावस्था पाते हुए त्रिकालदर्शी हो जाता है, और स्वर्गीय (ईश्वरीय) परम चेतना में विलीन हो जाता है।  यह मणि ईश्वरीय ज्ञान और आध्यात्मिक दृष्टि जागृत करने, आज्ञा चक्र पर प्रभावी सिद्ध होता है. भगवान शिव और की कृपा और पवित्र कर्मोके फलस्वरुप कुछ गिनेचुने भाग्यशाली व्यक्तियोको ही यह दुर्लभ मनी धारण करने का अवसर मिलता है। इसे धारण करने से व्यक्ति निश्चित रूप से मोक्ष मार्ग पे जाता है।  धारणकर्ता मन की इच्छाएं पूर्ण करने की, सारे

पक्षाघात paralysis के रोगी के लिए बहुमूल्य जानकारी और उपचार

पक्षाघात paralysis के रोगी के लिए बहुमूल्य जानकारी और उपचार पक्षाघात (लकवा) पैरालिसिस में रोगी का आधा मुंह टेढ़ा हो जाता हैं, गर्दन टेढ़ी हो जाती हैं, मुंह से आवाज़ नहीं निकल पाती, आँख, नाक, गाल व् भोंह टेढ़ी पढ़ जाती हैं, ये फड़कते हैं और इनमे दर्द होता हैं। मुंह से लार गिरती रहती हैं। पक्षाघात paralysis होने के लक्षण सबसे पहला लक्षण होता हैं के व्यक्ति को बोलने में तकलीफ आती हैं, उसके शब्द टूट टूट कर बाहर आते हैं। काम करते समय सामान हाथो से छूटना, हाथ पैर जवाब दे जाते हैं, ऐसी स्थिति को पक्षाघात होना माना जा सकता हैं। पक्षाघात paralysis कारण : पक्षाघात होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमे प्रमुख हैं हाई ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक, बैड कोलेस्ट्रोल के बढ़ने से, या कई बार रोगी को इनमे कोई लक्षण नहीं होते तो उसको ब्लड क्लॉटिंग की वजह से भी पक्षाघात (लकवा) हो सकता हैं। पक्षाघात paralysis के प्रकार : शरीर के आधे भाग, दायीं या बायीं तरफ के अंग अपना कार्य बंद कर दे तो इसको अधरंग बोलते हैं। कई बार रोगी को एक अंग में ही लकवा होता हैं तो जैसे ही लकवे के लक्षण दिखाई दे तो तुरंत