भोजन करने के आवश्यक नियम
भोजन करने के भी नियम होते हैं। यह नहीं कि पेट भरना है तो चाहे जब खा लिया और चाहे जब भूखे रह लिये। स्वास्थ्य वैज्ञानिक आजकल खानपान की बदलती प्रवृत्तियों को स्वास्थ्य के लिये खतरनाक बता रहे है। आजकल आधुनिक युवा वर्ग बाज़ार में बने भोज्य पदार्थों के साथ ही ठंडे पेय भी उपयोग कर रहा है जिसकी वजह से बड़ी आयु में होने वाले विकार अब उनमें भी दिखाई देने लगे है।
जहां पहले युवा वर्ग को देखकर यह माना जाता था कि वह एक बेहतर स्वास्थ्य का स्वामी है और चाहे जो काम करना चाहे कर सकता है। मौसम या बीमारी के आक्रमण से उनकी देह के लिये कम खतरा है पर अब यह सोच खत्म हो रही है। अपच्य भोज्य पदार्थों और ठंडे पेयो के साथ ही रसायनयुक्त तंबाकू की पुड़ियाओं का सेवन युवाओं के शरीर में ऐसे विकारों को पैदा कर रहा है जो साठ या सत्तर वर्ष की आयु में होते हैं।
मनु स्मृति में कहा गया है कि —
न भुञ्जीतोद्धतस्नेहं नातिसौहित्यमाचरेत्।
नातिप्रगे नातिसायं न सत्यं प्रतराशितः।।
हिन्दी में भावार्थ-जिन पदार्थों से चिकनाई निकाली गयी हो उनका सेवन करना ठीक नहीं है। दिन में कई बार पेट भरकर, बहुत सवेरे अथवा बहुत शाम हो जाने पर भोजन नहीं करना चाहिए। प्रातःकाल अगर भरपेट भोजन कर लिया तो फिर शाम को नहीं करना चाहिए।
न कुर्वीत वृथा चेष्टा न वार्यञ्जलिना पिवेत्
नोत्सङ्गे भक्षवेद् भक्ष्यान्नं जातु स्वात्कुतूहली।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस कार्य को करने से कोई लाभ न हो उसे करना व्यर्थ है। अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए और गोद में रखकर भोजन नहीं करना चाहिए।
हम देख रहे हैं कि समाज में एक तरह से बदहवासी का वातावरण बन गया है। दुर्घटनाओं, हत्यायें तथा छोटी छोटी बातों पर बड़े फसाद होने पर युवा वर्ग के लोग ही सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। युवाओं की मृत्यु दर में वृद्धि का कोई आंकड़ा दर्ज नहीं हुआ है पर जिस तरह के समाचार नित आते हैं वह इसका संदेह पैदा करते हैं।
कहा जाता है कि जैसा खाया जाये अन्न वैसा होता है मन। युवाओं में भोजन की बदलती प्रवृत्ति उनमें बढ़ते तनाव का प्रमाण तो पेश कर ही रही है। जिस तरह बच्चों की बीमारियों पर अनुसंधान किया जाता रहा है उसी तरह अलग से युवा वर्ग के तनावों और विकारों का भी शोध किया जाना चाहिये।
“स्वास्थ्य वैज्ञानिकों” के अनुसार हमारे भोजन का परंपरागत स्वरूप ही स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त है। इस संबंध में श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि रस और चिकनाई युक्त, देर तक स्थिर रहने वाले तथा पाचक भोजन सात्विक मनुष्य को प्रिय होता है। यह भी कहा गया है कि न तो मनुष्य को अधिक भोजन करना चाहिए न कम। इसकी व्याख्या में हम यह भी मान सकते हैं कि ऐसा करने पर ही मनुष्य सात्विक रह सकता है।
हम जब आजकल के दैहिक विकारों की तरफ देखते हैं तो पता लगता है कि चिकित्सक बीमारी से बचने के लिये चिकनाई रहित और हल्का भोजन करने की सलाह देते हैं। तय बात है कि इससे मनुष्य की मनोदशा में सात्विकता की आशा करना कठिन लगता है।
हालांकि यह भी सच है, कि इस तरह का भोजन करने पर शारीरिक श्रम अधिक कर उसको जलाना पड़ता है पर आजकल के रहन सहन में इसकी संभावना नहीं रहती। मगर यह सच है कि खानपान का मनुष्य जीवन से गहरा संबंध है और उसमें नियमों का पालन करना चाहिए।
जरूरी है भोजन के नियम,,,भोजन से केवल भूख ही शांत नहीं होती बल्कि इसका प्रभाव तन, मन एवं मस्तिष्क पर पड़ता है। अनीति (पाप) से कमाए पैसे के भोजन से मन दूषित होता है (जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन) वहीं तले हुए, मसालेदार, बासी, रुक्ष एवं गरिष्ठ भोजन से मस्तिष्क में काम, क्रोध, तनाव जैसी वृत्तियाँ जन्म लेती हैं। भूख से अधिक या कम मात्रा में भोजन करने से तन रोगग्रस्त बनता है।
भोजन से ऊर्जा के साथ-साथ सप्त धातुएँ (रक्त, मांस, मज्जा, अस्थि आदि) पुष्ट होती हैं। केवल खाना खाने से ऊर्जा नहीं मिलती, खाना खाकर उसे पचाने से ऊर्जा प्राप्त होती है। परंतु भागदौड़ एवं व्यस्तता के कारण मनुष्य शरीर की मुख्य आवश्यकता भोजन पर ध्यान नहीं देता। जल्दबाजी में जो मिला, सो खा लिया या चाय-नाश्ता से काम चला लिया। इससे पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है और भोजन का सही पाचन नहीं हो पाता। भोजन का सही पाचन हो सके इसके लिए इन बातों पर गौर करें :-
भोजन कब करें ?????
एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है ‘सुबह का खाना स्वयं खाओ, दोपहर का खाना दूसरों को दो और रात का भोजन दुश्मन को दो।’ वास्तव में हमें सुबह 10 से 11 बजे के बीच भोजन कर लेना चाहिए ताकि दिनभर कार्य करने के लिए ऊर्जा मिल सके। कुछ लोग सुबह चाय-नाश्ता करके रात्रि में भोजन करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता।
दिन का भोजन शारीरिक श्रम के अनुसार एवं रात का भोजन हल्का व सुपाच्य होना चाहिए। रात्रि का भोजन सोने से दो या तीन घंटे पूर्व करना चाहिए। तीव्र भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए। नियत समय पर भोजन करने से पाचन अच्छा होता है। इंगला, जिसको हम सूर्यस्वर या सूर्यनाडी के नाम से भी पहचानते है जब चल रही हो अर्थात नाक के दायें नथुने से श्वास चल रही हो तभी भोजन करना चाहिए ऐसा शास्त्रों का विधान है
भोजन कैसे करें ?????
हाथ-पैर, मुँह धोकर आसन पर पूर्व या दक्षिण की ओर मुँह करके भोजन करने से यश एवं आयु बढ़ती है। खड़े-खड़े, जूते पहनकर सिर ढँककर भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन को अच्छी तरह चबाकर करना चाहिए। वरना दाँतों का काम (पीसने का) आँतों को करना पड़ेगा जिससे भोजन का पाचन सही नहीं हो पाएगा। भोजन करते समय मौन रहना चाहिए।
इससे भोजन में लार मिलने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। टीवी देखते या अखबार पढ़ते हुए खाना नहीं खाना चाहिए। स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए भोजन करना चाहिए। स्वादलोलुपता में भूख से अधिक खाना बीमारियों को आमंत्रण देना है। भोजन हमेशा शांत एवं प्रसन्नचित्त होकर करना चाहिए।
भोजन किसके साथ करें, किसके साथ ना करें?????
पोषण और स्वास्थ्य के अपने भौतिक लाभ की तुलना में भोजन करने के बहुत अधिक लाभ है. किसके साथ हम खा रहे है , कब खा रहे है , कहां खा रहे है , क्या खा रहे है और कैसी परिस्थिति खा रहे है यह सब सामाजिक रुप से बहुत महत्वपूर्ण तो है ही अपितु किसके साथ भोजन किया जा सकता है और किसके हाथ का छुआ हुआ या बनाया हुआ कौन सा भोजन तथा जल आदि स्वीकार्य या अस्वीकार्य है यह जानना वैज्ञानिक दृष्टी से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
१. दिन में कम से कम एक बार अपने पूरे परिवार, के कुटुंब के बीच बैठ कर भोजन अवश्य करे ऐसा करने से यश, धन, कीर्ति व वैभव के साथ परस्पर प्रेम बढ़ता है
२. आपका हितैषी या जो आपका प्रिय हो उसके साथ भोजन करने से मन प्रफुल्लित रहता है ।
३. बच्चों के साथ भोजन करने से आप दीर्घायु हो सकते है ।
४. नियमित अपनी माँ, बहिन, पत्नी और बेटी के हाथ से पकाए गए घर के भोजन को ग्रहण करने वाला जल्दी से बीमार नहीं होता वह चिरायु होता है।
५. खुले स्थान या सार्वजनिक स्थल पर भोजन नहीं करना चाहिए क्योकि किसी अतृप्त व्यक्ति की नजर आपके भोजन के आध्यात्मिक प्रभाव को क्षीण कर सकती है भोजन, भजन और शयन परदे में ही होने चाहिए ऐसा शास्त्रों का मत है ।
६. अपने बड़े बुजुर्गों के साथ भोजन करने से आतंरिक प्रसन्नता बढ़ती है तथा उनका स्नेह अपने आप हम पर बरसने लगता है।
७. प्रेम से व दिल से लाये गए भोजन का कभी भी तिरस्कार न करें भले ही उसमे से एक कण ले खाए जरूर ऐसा न करने वाले अन्न का अनादर करते है जिससे ईश्वर रुष्ट होता होता है ।
८. उधार का लेकर खाने वाला, मांग कर खानेवाला तथा चुराकर खाने वाले शूकर योनी को प्राप्त होते है ।
९. खड़े होकर भोजन नहीं करना चाहिए यह भारतीय परंपरा के विरुद्द तो है ही अपितु शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक दोनों दृष्टी से गलत है ऐसा करने से नित नए रोगों का जन्म होता है ।
१०. घर में आये हुए अतिथि को खिलाये बिना पहले खुद ही भोजन ग्रहण करने वाला अपने इष्टदेव को अप्रसन्न करता है तथा मरणोंपरांत पशु योनि में जन्म लेकर छछूंदर बनता है ।
११. संक्रमण से ग्रसित व्यक्ति के साथ भोजन करने से उसके द्वारा संक्रमण का खतरा हो सकता है ।
१२. ईर्ष्यालु, घमंडी, लोभी लालची तथा क्रूर व्यक्ति के साथ भोजन कर लेने से मन छुब्द होता है तथा आत्मा कुपित होती है ।
१३. कपटी , बनावटी तथा मक्कार व्यक्ति के साथ भोजन करते रहने से उसके गुण आप में अपने आप आने लगते है ।
१४. दैनिक दिनचर्या को ठीक से न करने वाले व्यक्ति के साथ भोजन करने से मन में खिन्नता, क्षोभ व घृणा के भाव आने लगते है।
१५. कुटिल तथा गलत निगाह डालने वालों के साथ भोजन करते रहने से शरीर में व्याधियां बढनें लगतीं है ।
१६. जो व्यक्ति स्नान न किये हुए हो, खाने से पूर्व हाथ आदि धुलने की आदत न हो लघुशंका या दीर्घशंका के पश्चात हाथ-पैर को न धुलता हो ऐसे व्यक्ति को जानकार उसके साथ भोजन कदापि न करें क्योकि ऐसों के साथ भोजन करने से अन्न्देव अप्रसन्न होते है ऐसा शास्त्रों में लिखा है ।
१७. रजस्वला स्त्री के हाथ से बने हुए भोज्य पदार्थ को ग्रहण करने से आयु घटती है सहवास करके आये हुए व्यक्ति के साथ भोजन करने से पित्र दोष लगता है
१८. लापरवाही से पकाए गए भोजन को खाने से मस्तिष्क प्रभावित होता है तथा उदार रोग बढ़ते है ।
१९. अति से अधिक पकाए गए व्यंजन तथा भोजन बनाने की प्रक्रिया में अति से अधिक किये गए प्रयोगों को से भोजन के सात्विक और पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते है उपरोक्त व्यंजन या भोजन को ग्रहण करने वाले का वात, कफ तथा पित्त कुपित होकर जठराग्नि मंद कर देता है जिससे मोटापा, कफ जनित रोग और उदर रोगों को बढ़ावा मिलता है ।
२०. छिपाकर खाने से निर्धनता आती है चुराकर खाने से सम्पन्नता घटती है जूठा खिलाने से घर की बरकत नष्ट होने लगती है, जूठा या अपवित्र भोजन खाने से दूषित व् बुरे सपने आते है तथा बासी भोजन खिलाने से ऋण चढ़ता है ।
२१. साथ में भोजन करते समय भोज्य पदार्थ को चूस कर खाना किसी भी वस्तु को बार-बार चाटना या अपनी उँगलियों को डूबा कर जीभ से चाटना बहुत ही निंदनीय है ऐसा करने से साथ खाने वाले की आत्मा कुपित होती है जो आपके ओज और तेज को क्षीण कर देती है ।
२२. प्रसन्नचित्त व्यक्ति के साथ भोजन करने से आत्मिक प्रसन्नता आती है इसके विपरीत कुंठित व्यक्ति के साथ भोजन करने पर मन भारी हो जाता है तथा काम में मन नहीं लगता ऐसा आप ने भी महसूस किया होगा ।
हमारे घरों में भोजन दिव्य अमृत के सामान है जो हमारे शारीरिक व मानसिक शक्तिवर्धन के साथ साथ हमारे कुटुंब का पोषण करने का कार्य करता है इस लिए भोजन को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है और हम लोग इसे “अन्न्देवता” के नाम से पुकारते है इसलिए घर की गृहणियों को चाहिए की हमेशा अन्न्देवता का आदर करें, सुचिता से भोजन पकाए हमेशा घर के बुजुर्गों व बच्चों को पहले भोजन कराये तत्पश्चात ही स्वयं भोजन गृहण करें ऐसा करने से घर में धन-धान्य में वृद्धि होती है, अन्न्देव प्रसन्न होते है, और घर में बरकत आती है। ऐसे घरों में कभी भी टकराव और बिखराव की स्थितियां उत्पन्न नहीं होने पाती और न ही किसी प्रकार की दैवीय आपदाए सताती है क्योकि “जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन, और जैसा बने मन वैसा ही चले जीवन” ।
भोजन के पश्चात क्या न करें ?????
भोजन के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिए। भोजन के पश्चात घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, शौच आदि नहीं करना चाहिए।
भोजन के पश्चात क्या करें ?????
भोजन के पश्चात दिन में टहलना एवं रात में सौ कदम टहलकर बाईं करवट लेटने अथवा वज्रासन में बैठने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। भोजन के एक घंटे पश्चात मीठा दूध एवं फल खाने से भोजन का पाचन अच्छा होता है।
क्या-क्या न खाएँ ?????
रात्रि को दही, सत्तू, तिल एवं गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए। दूध के साथ नमक, दही, खट्टे पदार्थ, मछली, कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए। शहद व घी का समान मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। दूध-खीर के साथ खिचड़ी नहीं खाना चाहिए।
भोजन करने से पहले भोजन मंत्र का पाठ करने का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है जो कि परम आवश्यक है
भोजन मंत्र…
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर् ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम I
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना II
ॐ सह नाववतु I सह नौ भुनक्तु I
सह वीर्य करवावहै I तेजस्विनावाधीतमस्तु I
मा विद्विषावहै II
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः II
अर्थात – यज्ञ में आहुति देने का साधन अर्पण ब्रह्म हैं, ब्रह्म रूपी अग्नि में ब्रह्मरूप होमकर्ता द्वारा जो आर्पित किया जाता हैं, वह भी ब्रह्म ही हैं, इस ब्रह्मकर्म से ब्रह्म की ही प्राप्ति होती हैं, हम दोनों गुरु और शिष्य परस्पर मिलकर सुरक्षा करें. हम मिलकर खायें ( देश में कोई भुखा न रहे ) हम साथ मिलकर शौर्य करें. ( राष्ट्र में परचक्र आने पर युद्ध करे ). हम देश के संघठन रूपी तपश्चर्या से उज्वलित एवं प्रदीप्त हों. हम पठित एवं अध्ययन शील हो. परस्पर द्वेष न करें,शान्तिः हो , शान्तिः हो, शान्तिः हो।
भोजन करने के अत्यंत आवश्यक नियम?????
भूख अच्छी तरह लगने के बाद ही खाना खायें। भोजन उतना ही खाना चाहिए जितने से भूख शांत हो जाये।
भोजन के पहले निवाले को अच्छी तरह चबाने के बाद ही दूसरा निवाला लें। भोजन में कई तरह के खाद्य पदार्थ न लेकर कम और सादा भोजन करना चाहिए ताकि पाचन क्रिया पर बेकार का बोझ न पड़े।
भोजन ध्यान लगाकर और शांति के साथ करना चाहिए।
रात के समय सोने से तीन घंटे पहले भोजन करना चाहिए। दुबारा भोजन करने के बीच में कम से कम 5 से 6 घंटे का फासला होना चाहिए।
सोने के बाद उठकर तुरंत ही खाना नहीं खाना चाहिए।
चिंता, शोक, थकान और जल्दबाजी में खाना नहीं खाना चाहिए।
भोजन करते समय बिजनेस, समाज आदि से जुड़ी समस्याओं पर बात नहीं करनी चाहिए। भोजन में मिर्च-मसाले जैसे तेज पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
गले में जलन और गंदी वायु बनने पर भोजन न करें।
बिना पचने वाला और वजनदार भोजन भूलकर भी न करें।
जहां तक संभव हो सके अधपका भोजन ही करना चाहिए (फल और सलाद अंकुरित आदि)।
बासी भोजन करने से कई तरह के रोग हो जाते हैं।
भोजन करते समय बीच-बीच में पानी न पिये या तो भोजन से 30 मिनट पहले पानी पिये या भोजन के 40 से 60 मिनट बाद पानी पिये।
मैदा, सफेद, चीनी, पॉलिश किया हुआ चावल आदि पदार्थों के सेवन से बचें।
भोजन में नमक, मिठाइयां, मसाला, घी आदि की मात्रा घटायें।
चाय, कॉफी, तली हुई चीज धूम्रपान, शराब, और खाने के तंबाकू आदि के सेवन से बचें।
सप्ताह में एक दिन रस और पानी पीकर रहना चाहिए।
चोकर मिलाकर आटे की रोटी खायें।
फल और सब्जियां धोकर प्रयोग करें।
भोजन करने से पहले और बाद में हाथ धोयें कुल्ला करें और भोजन करने के बाद दान्त अच्छी तरह से साफ करें।
खाना खाते समय बातें नहीं करनी चाहिए।
भोजन करते हुए चलचित्र या टेलीविजन नहीं देखना चाहिए।
भोजन करने के बाद मूत्र त्यागने की आदत डालनी चाहिए।
दूध हमेशा सुबह नाश्ते के समय पीना चाहिए।
बहुत ज्यादा गर्म व बहुत ज्यादा ठंड़ी वस्तुएं खाने से हमारी पाचनक्रिया पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
भोजन के बाद मट्ठा पीना बहुत ही लाभदायक होता है।
एक बार खाने के बाद दूसरी बार खाने से पहले शरीर स्वस्थ न रहे तो दूसरी बार का खाना नहीं चाहिए।
दूध के मुकाबले दही आसानी से पचता है। भोजन करने के बाद 3 घंटे तक संभोग नहीं करना चाहिए।तेज गर्मी से चलकर आने के बाद पानी पीते हुए एक हाथ से दोनों नाक के नथुने बन्द कर लेने चाहिए।
भोजन करने के भी नियम होते हैं। यह नहीं कि पेट भरना है तो चाहे जब खा लिया और चाहे जब भूखे रह लिये। स्वास्थ्य वैज्ञानिक आजकल खानपान की बदलती प्रवृत्तियों को स्वास्थ्य के लिये खतरनाक बता रहे है। आजकल आधुनिक युवा वर्ग बाज़ार में बने भोज्य पदार्थों के साथ ही ठंडे पेय भी उपयोग कर रहा है जिसकी वजह से बड़ी आयु में होने वाले विकार अब उनमें भी दिखाई देने लगे है।
जहां पहले युवा वर्ग को देखकर यह माना जाता था कि वह एक बेहतर स्वास्थ्य का स्वामी है और चाहे जो काम करना चाहे कर सकता है। मौसम या बीमारी के आक्रमण से उनकी देह के लिये कम खतरा है पर अब यह सोच खत्म हो रही है। अपच्य भोज्य पदार्थों और ठंडे पेयो के साथ ही रसायनयुक्त तंबाकू की पुड़ियाओं का सेवन युवाओं के शरीर में ऐसे विकारों को पैदा कर रहा है जो साठ या सत्तर वर्ष की आयु में होते हैं।
मनु स्मृति में कहा गया है कि —
न भुञ्जीतोद्धतस्नेहं नातिसौहित्यमाचरेत्।
नातिप्रगे नातिसायं न सत्यं प्रतराशितः।।
हिन्दी में भावार्थ-जिन पदार्थों से चिकनाई निकाली गयी हो उनका सेवन करना ठीक नहीं है। दिन में कई बार पेट भरकर, बहुत सवेरे अथवा बहुत शाम हो जाने पर भोजन नहीं करना चाहिए। प्रातःकाल अगर भरपेट भोजन कर लिया तो फिर शाम को नहीं करना चाहिए।
न कुर्वीत वृथा चेष्टा न वार्यञ्जलिना पिवेत्
नोत्सङ्गे भक्षवेद् भक्ष्यान्नं जातु स्वात्कुतूहली।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस कार्य को करने से कोई लाभ न हो उसे करना व्यर्थ है। अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए और गोद में रखकर भोजन नहीं करना चाहिए।
हम देख रहे हैं कि समाज में एक तरह से बदहवासी का वातावरण बन गया है। दुर्घटनाओं, हत्यायें तथा छोटी छोटी बातों पर बड़े फसाद होने पर युवा वर्ग के लोग ही सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। युवाओं की मृत्यु दर में वृद्धि का कोई आंकड़ा दर्ज नहीं हुआ है पर जिस तरह के समाचार नित आते हैं वह इसका संदेह पैदा करते हैं।
कहा जाता है कि जैसा खाया जाये अन्न वैसा होता है मन। युवाओं में भोजन की बदलती प्रवृत्ति उनमें बढ़ते तनाव का प्रमाण तो पेश कर ही रही है। जिस तरह बच्चों की बीमारियों पर अनुसंधान किया जाता रहा है उसी तरह अलग से युवा वर्ग के तनावों और विकारों का भी शोध किया जाना चाहिये।
“स्वास्थ्य वैज्ञानिकों” के अनुसार हमारे भोजन का परंपरागत स्वरूप ही स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त है। इस संबंध में श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि रस और चिकनाई युक्त, देर तक स्थिर रहने वाले तथा पाचक भोजन सात्विक मनुष्य को प्रिय होता है। यह भी कहा गया है कि न तो मनुष्य को अधिक भोजन करना चाहिए न कम। इसकी व्याख्या में हम यह भी मान सकते हैं कि ऐसा करने पर ही मनुष्य सात्विक रह सकता है।
हम जब आजकल के दैहिक विकारों की तरफ देखते हैं तो पता लगता है कि चिकित्सक बीमारी से बचने के लिये चिकनाई रहित और हल्का भोजन करने की सलाह देते हैं। तय बात है कि इससे मनुष्य की मनोदशा में सात्विकता की आशा करना कठिन लगता है।
हालांकि यह भी सच है, कि इस तरह का भोजन करने पर शारीरिक श्रम अधिक कर उसको जलाना पड़ता है पर आजकल के रहन सहन में इसकी संभावना नहीं रहती। मगर यह सच है कि खानपान का मनुष्य जीवन से गहरा संबंध है और उसमें नियमों का पालन करना चाहिए।
जरूरी है भोजन के नियम,,,भोजन से केवल भूख ही शांत नहीं होती बल्कि इसका प्रभाव तन, मन एवं मस्तिष्क पर पड़ता है। अनीति (पाप) से कमाए पैसे के भोजन से मन दूषित होता है (जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन) वहीं तले हुए, मसालेदार, बासी, रुक्ष एवं गरिष्ठ भोजन से मस्तिष्क में काम, क्रोध, तनाव जैसी वृत्तियाँ जन्म लेती हैं। भूख से अधिक या कम मात्रा में भोजन करने से तन रोगग्रस्त बनता है।
भोजन से ऊर्जा के साथ-साथ सप्त धातुएँ (रक्त, मांस, मज्जा, अस्थि आदि) पुष्ट होती हैं। केवल खाना खाने से ऊर्जा नहीं मिलती, खाना खाकर उसे पचाने से ऊर्जा प्राप्त होती है। परंतु भागदौड़ एवं व्यस्तता के कारण मनुष्य शरीर की मुख्य आवश्यकता भोजन पर ध्यान नहीं देता। जल्दबाजी में जो मिला, सो खा लिया या चाय-नाश्ता से काम चला लिया। इससे पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है और भोजन का सही पाचन नहीं हो पाता। भोजन का सही पाचन हो सके इसके लिए इन बातों पर गौर करें :-
भोजन कब करें ?????
एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है ‘सुबह का खाना स्वयं खाओ, दोपहर का खाना दूसरों को दो और रात का भोजन दुश्मन को दो।’ वास्तव में हमें सुबह 10 से 11 बजे के बीच भोजन कर लेना चाहिए ताकि दिनभर कार्य करने के लिए ऊर्जा मिल सके। कुछ लोग सुबह चाय-नाश्ता करके रात्रि में भोजन करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता।
दिन का भोजन शारीरिक श्रम के अनुसार एवं रात का भोजन हल्का व सुपाच्य होना चाहिए। रात्रि का भोजन सोने से दो या तीन घंटे पूर्व करना चाहिए। तीव्र भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए। नियत समय पर भोजन करने से पाचन अच्छा होता है। इंगला, जिसको हम सूर्यस्वर या सूर्यनाडी के नाम से भी पहचानते है जब चल रही हो अर्थात नाक के दायें नथुने से श्वास चल रही हो तभी भोजन करना चाहिए ऐसा शास्त्रों का विधान है
भोजन कैसे करें ?????
हाथ-पैर, मुँह धोकर आसन पर पूर्व या दक्षिण की ओर मुँह करके भोजन करने से यश एवं आयु बढ़ती है। खड़े-खड़े, जूते पहनकर सिर ढँककर भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन को अच्छी तरह चबाकर करना चाहिए। वरना दाँतों का काम (पीसने का) आँतों को करना पड़ेगा जिससे भोजन का पाचन सही नहीं हो पाएगा। भोजन करते समय मौन रहना चाहिए।
इससे भोजन में लार मिलने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। टीवी देखते या अखबार पढ़ते हुए खाना नहीं खाना चाहिए। स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए भोजन करना चाहिए। स्वादलोलुपता में भूख से अधिक खाना बीमारियों को आमंत्रण देना है। भोजन हमेशा शांत एवं प्रसन्नचित्त होकर करना चाहिए।
भोजन किसके साथ करें, किसके साथ ना करें?????
पोषण और स्वास्थ्य के अपने भौतिक लाभ की तुलना में भोजन करने के बहुत अधिक लाभ है. किसके साथ हम खा रहे है , कब खा रहे है , कहां खा रहे है , क्या खा रहे है और कैसी परिस्थिति खा रहे है यह सब सामाजिक रुप से बहुत महत्वपूर्ण तो है ही अपितु किसके साथ भोजन किया जा सकता है और किसके हाथ का छुआ हुआ या बनाया हुआ कौन सा भोजन तथा जल आदि स्वीकार्य या अस्वीकार्य है यह जानना वैज्ञानिक दृष्टी से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
१. दिन में कम से कम एक बार अपने पूरे परिवार, के कुटुंब के बीच बैठ कर भोजन अवश्य करे ऐसा करने से यश, धन, कीर्ति व वैभव के साथ परस्पर प्रेम बढ़ता है
२. आपका हितैषी या जो आपका प्रिय हो उसके साथ भोजन करने से मन प्रफुल्लित रहता है ।
३. बच्चों के साथ भोजन करने से आप दीर्घायु हो सकते है ।
४. नियमित अपनी माँ, बहिन, पत्नी और बेटी के हाथ से पकाए गए घर के भोजन को ग्रहण करने वाला जल्दी से बीमार नहीं होता वह चिरायु होता है।
५. खुले स्थान या सार्वजनिक स्थल पर भोजन नहीं करना चाहिए क्योकि किसी अतृप्त व्यक्ति की नजर आपके भोजन के आध्यात्मिक प्रभाव को क्षीण कर सकती है भोजन, भजन और शयन परदे में ही होने चाहिए ऐसा शास्त्रों का मत है ।
६. अपने बड़े बुजुर्गों के साथ भोजन करने से आतंरिक प्रसन्नता बढ़ती है तथा उनका स्नेह अपने आप हम पर बरसने लगता है।
७. प्रेम से व दिल से लाये गए भोजन का कभी भी तिरस्कार न करें भले ही उसमे से एक कण ले खाए जरूर ऐसा न करने वाले अन्न का अनादर करते है जिससे ईश्वर रुष्ट होता होता है ।
८. उधार का लेकर खाने वाला, मांग कर खानेवाला तथा चुराकर खाने वाले शूकर योनी को प्राप्त होते है ।
९. खड़े होकर भोजन नहीं करना चाहिए यह भारतीय परंपरा के विरुद्द तो है ही अपितु शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक दोनों दृष्टी से गलत है ऐसा करने से नित नए रोगों का जन्म होता है ।
१०. घर में आये हुए अतिथि को खिलाये बिना पहले खुद ही भोजन ग्रहण करने वाला अपने इष्टदेव को अप्रसन्न करता है तथा मरणोंपरांत पशु योनि में जन्म लेकर छछूंदर बनता है ।
११. संक्रमण से ग्रसित व्यक्ति के साथ भोजन करने से उसके द्वारा संक्रमण का खतरा हो सकता है ।
१२. ईर्ष्यालु, घमंडी, लोभी लालची तथा क्रूर व्यक्ति के साथ भोजन कर लेने से मन छुब्द होता है तथा आत्मा कुपित होती है ।
१३. कपटी , बनावटी तथा मक्कार व्यक्ति के साथ भोजन करते रहने से उसके गुण आप में अपने आप आने लगते है ।
१४. दैनिक दिनचर्या को ठीक से न करने वाले व्यक्ति के साथ भोजन करने से मन में खिन्नता, क्षोभ व घृणा के भाव आने लगते है।
१५. कुटिल तथा गलत निगाह डालने वालों के साथ भोजन करते रहने से शरीर में व्याधियां बढनें लगतीं है ।
१६. जो व्यक्ति स्नान न किये हुए हो, खाने से पूर्व हाथ आदि धुलने की आदत न हो लघुशंका या दीर्घशंका के पश्चात हाथ-पैर को न धुलता हो ऐसे व्यक्ति को जानकार उसके साथ भोजन कदापि न करें क्योकि ऐसों के साथ भोजन करने से अन्न्देव अप्रसन्न होते है ऐसा शास्त्रों में लिखा है ।
१७. रजस्वला स्त्री के हाथ से बने हुए भोज्य पदार्थ को ग्रहण करने से आयु घटती है सहवास करके आये हुए व्यक्ति के साथ भोजन करने से पित्र दोष लगता है
१८. लापरवाही से पकाए गए भोजन को खाने से मस्तिष्क प्रभावित होता है तथा उदार रोग बढ़ते है ।
१९. अति से अधिक पकाए गए व्यंजन तथा भोजन बनाने की प्रक्रिया में अति से अधिक किये गए प्रयोगों को से भोजन के सात्विक और पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते है उपरोक्त व्यंजन या भोजन को ग्रहण करने वाले का वात, कफ तथा पित्त कुपित होकर जठराग्नि मंद कर देता है जिससे मोटापा, कफ जनित रोग और उदर रोगों को बढ़ावा मिलता है ।
२०. छिपाकर खाने से निर्धनता आती है चुराकर खाने से सम्पन्नता घटती है जूठा खिलाने से घर की बरकत नष्ट होने लगती है, जूठा या अपवित्र भोजन खाने से दूषित व् बुरे सपने आते है तथा बासी भोजन खिलाने से ऋण चढ़ता है ।
२१. साथ में भोजन करते समय भोज्य पदार्थ को चूस कर खाना किसी भी वस्तु को बार-बार चाटना या अपनी उँगलियों को डूबा कर जीभ से चाटना बहुत ही निंदनीय है ऐसा करने से साथ खाने वाले की आत्मा कुपित होती है जो आपके ओज और तेज को क्षीण कर देती है ।
२२. प्रसन्नचित्त व्यक्ति के साथ भोजन करने से आत्मिक प्रसन्नता आती है इसके विपरीत कुंठित व्यक्ति के साथ भोजन करने पर मन भारी हो जाता है तथा काम में मन नहीं लगता ऐसा आप ने भी महसूस किया होगा ।
हमारे घरों में भोजन दिव्य अमृत के सामान है जो हमारे शारीरिक व मानसिक शक्तिवर्धन के साथ साथ हमारे कुटुंब का पोषण करने का कार्य करता है इस लिए भोजन को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है और हम लोग इसे “अन्न्देवता” के नाम से पुकारते है इसलिए घर की गृहणियों को चाहिए की हमेशा अन्न्देवता का आदर करें, सुचिता से भोजन पकाए हमेशा घर के बुजुर्गों व बच्चों को पहले भोजन कराये तत्पश्चात ही स्वयं भोजन गृहण करें ऐसा करने से घर में धन-धान्य में वृद्धि होती है, अन्न्देव प्रसन्न होते है, और घर में बरकत आती है। ऐसे घरों में कभी भी टकराव और बिखराव की स्थितियां उत्पन्न नहीं होने पाती और न ही किसी प्रकार की दैवीय आपदाए सताती है क्योकि “जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन, और जैसा बने मन वैसा ही चले जीवन” ।
भोजन के पश्चात क्या न करें ?????
भोजन के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिए। भोजन के पश्चात घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, शौच आदि नहीं करना चाहिए।
भोजन के पश्चात क्या करें ?????
भोजन के पश्चात दिन में टहलना एवं रात में सौ कदम टहलकर बाईं करवट लेटने अथवा वज्रासन में बैठने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। भोजन के एक घंटे पश्चात मीठा दूध एवं फल खाने से भोजन का पाचन अच्छा होता है।
क्या-क्या न खाएँ ?????
रात्रि को दही, सत्तू, तिल एवं गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए। दूध के साथ नमक, दही, खट्टे पदार्थ, मछली, कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए। शहद व घी का समान मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। दूध-खीर के साथ खिचड़ी नहीं खाना चाहिए।
भोजन करने से पहले भोजन मंत्र का पाठ करने का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है जो कि परम आवश्यक है
भोजन मंत्र…
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर् ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम I
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना II
ॐ सह नाववतु I सह नौ भुनक्तु I
सह वीर्य करवावहै I तेजस्विनावाधीतमस्तु I
मा विद्विषावहै II
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः II
अर्थात – यज्ञ में आहुति देने का साधन अर्पण ब्रह्म हैं, ब्रह्म रूपी अग्नि में ब्रह्मरूप होमकर्ता द्वारा जो आर्पित किया जाता हैं, वह भी ब्रह्म ही हैं, इस ब्रह्मकर्म से ब्रह्म की ही प्राप्ति होती हैं, हम दोनों गुरु और शिष्य परस्पर मिलकर सुरक्षा करें. हम मिलकर खायें ( देश में कोई भुखा न रहे ) हम साथ मिलकर शौर्य करें. ( राष्ट्र में परचक्र आने पर युद्ध करे ). हम देश के संघठन रूपी तपश्चर्या से उज्वलित एवं प्रदीप्त हों. हम पठित एवं अध्ययन शील हो. परस्पर द्वेष न करें,शान्तिः हो , शान्तिः हो, शान्तिः हो।
भोजन करने के अत्यंत आवश्यक नियम?????
भूख अच्छी तरह लगने के बाद ही खाना खायें। भोजन उतना ही खाना चाहिए जितने से भूख शांत हो जाये।
भोजन के पहले निवाले को अच्छी तरह चबाने के बाद ही दूसरा निवाला लें। भोजन में कई तरह के खाद्य पदार्थ न लेकर कम और सादा भोजन करना चाहिए ताकि पाचन क्रिया पर बेकार का बोझ न पड़े।
भोजन ध्यान लगाकर और शांति के साथ करना चाहिए।
रात के समय सोने से तीन घंटे पहले भोजन करना चाहिए। दुबारा भोजन करने के बीच में कम से कम 5 से 6 घंटे का फासला होना चाहिए।
सोने के बाद उठकर तुरंत ही खाना नहीं खाना चाहिए।
चिंता, शोक, थकान और जल्दबाजी में खाना नहीं खाना चाहिए।
भोजन करते समय बिजनेस, समाज आदि से जुड़ी समस्याओं पर बात नहीं करनी चाहिए। भोजन में मिर्च-मसाले जैसे तेज पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
गले में जलन और गंदी वायु बनने पर भोजन न करें।
बिना पचने वाला और वजनदार भोजन भूलकर भी न करें।
जहां तक संभव हो सके अधपका भोजन ही करना चाहिए (फल और सलाद अंकुरित आदि)।
बासी भोजन करने से कई तरह के रोग हो जाते हैं।
भोजन करते समय बीच-बीच में पानी न पिये या तो भोजन से 30 मिनट पहले पानी पिये या भोजन के 40 से 60 मिनट बाद पानी पिये।
मैदा, सफेद, चीनी, पॉलिश किया हुआ चावल आदि पदार्थों के सेवन से बचें।
भोजन में नमक, मिठाइयां, मसाला, घी आदि की मात्रा घटायें।
चाय, कॉफी, तली हुई चीज धूम्रपान, शराब, और खाने के तंबाकू आदि के सेवन से बचें।
सप्ताह में एक दिन रस और पानी पीकर रहना चाहिए।
चोकर मिलाकर आटे की रोटी खायें।
फल और सब्जियां धोकर प्रयोग करें।
भोजन करने से पहले और बाद में हाथ धोयें कुल्ला करें और भोजन करने के बाद दान्त अच्छी तरह से साफ करें।
खाना खाते समय बातें नहीं करनी चाहिए।
भोजन करते हुए चलचित्र या टेलीविजन नहीं देखना चाहिए।
भोजन करने के बाद मूत्र त्यागने की आदत डालनी चाहिए।
दूध हमेशा सुबह नाश्ते के समय पीना चाहिए।
बहुत ज्यादा गर्म व बहुत ज्यादा ठंड़ी वस्तुएं खाने से हमारी पाचनक्रिया पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
भोजन के बाद मट्ठा पीना बहुत ही लाभदायक होता है।
एक बार खाने के बाद दूसरी बार खाने से पहले शरीर स्वस्थ न रहे तो दूसरी बार का खाना नहीं चाहिए।
दूध के मुकाबले दही आसानी से पचता है। भोजन करने के बाद 3 घंटे तक संभोग नहीं करना चाहिए।तेज गर्मी से चलकर आने के बाद पानी पीते हुए एक हाथ से दोनों नाक के नथुने बन्द कर लेने चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If u have any query let me know.