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पुरुषोत्तम मास - विशेष

 .                             "पुरुषोत्तम मास व्रत"



           पुरुषोत्तम व्रत करने वाले को क्या भोजन करना चाहिए और क्या नहीं, क्या वर्ज्य है और क्या अवर्ज्य इसके संबंध में श्रीवाल्मीकि ऋषि ने कहा है :- 

          पुरुषोत्तम मास में एक समय हविष्यान्न भोजन करना चाहिए। भोजन में गेहूँ, चावल, सफेद धान, जौ, मूंग, तिल, बथुआ, मटर, चौलाई, ककड़ी, केला, आंवला, दही, दूध, घी, आम, हर्रे, पीपल, जीरा, सोंठ, सेंधा नमक, इमली, पान-सुपारी, कटहल, शहतूत, सामक, मेथी आदि का सेवन करना चाहिए। केवल सावां या केवल जौ पर रहना अधिक हितकर है। माखन-मिस्री पथ्य है। गुड़ नहीं खाना चाहिए, लेकिन ऊख का या ऊख के रस का सेवन करना चाहिए। मांस, शहद, चावल का मांड़, उड़द, राई, मसूर की दाल, बकरी, भैंस और भेड़ का दूध ये सब त्याज्य कहा हैं। काशीफल (कुम्हड़ा), मूली, प्याज, लहसुन, गाजर, बैगन, नालिका आदि का सेवन वर्जित है। तिलका तेल, दूषित अन्न, बासी अन्न आदि भी ग्रहण न करें। अभक्ष्य और नशे की चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। फलाहार पर रहें और संभव हो तो कृच्छ-चांद्रायण व्रत करें। इस मास ब्रह्मचर्य का पालन और पृथ्वी पर शयन करना करें। थाली में भोजन न करें, बल्कि पलाश के बने पत्तल पर भोजन करें। रजस्वला स्त्री और धर्मभ्रष्ट तथा संस्कार रहित लोगों से दूर रहें। परस्त्री का भूलकर भी स्पर्श नहीं करें। इस मास वैष्णव की सेवा करनी चाहिए। वैष्णवों को भोजन कराना बहुत पुण्यप्रद होता है। पुरुषोत्तम मास के व्रती को शिव या अन्य देवी-देवता, ब्राह्मण, वेद, गुरु, गौ, साधु-संन्यासी, स्त्री, धर्म और प्राज्ञगणों की निंदा भूलकर भी न तो करनी और न ही सुननी चाहिए। तांबे के पात्र में दूध, चमड़े के पात्र में पानी तथा केवल अपने लिए पकाया हुआ अन्न ये सब दूषित माने गए हैं। अतएव इनका परित्याग करना चाहिए। दिन में सोना नहीं चाहिए। 

         यदि संभव हो, तो मास के अंत में उद्यापन के लिए एक मंडप की व्यवस्था कर योग्य पंडित द्वारा भगवान की षोडशोपचार पूजा कराकर चार-पांच वेदविद् ब्राह्मणों द्वारा चतुर्व्यूह का जप कराना चाहिए। फिर दशांश हवन कराकर नारियल का होम करना चाहिए। गौओं को घास तथा दाना देना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। वैष्णवों को यथाशक्ति वसु-सोना, चांदी आदि एवं गाय, घी, अन्न, वस्त्र, पात्र, जूता, छाता आदि और गीता-भागवत आदि पुस्तकों का दान करना चाहिए। कांसे के बर्तन में तीस पूए रखकर संपुट करके ब्राह्मण-वैष्णव को दान करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है।

        पुरुषोत्तम मास में भक्ति पूर्वक अध्यात्म विद्या का श्रवण करने से ब्रह्म-हत्यादि जनित पाप नष्ट होते हैं। पितृगण मोक्ष को प्राप्त होते हैं तथा दिन-प्रतिदिन अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। यह व्रत निष्काम भाव से किया जाए, तो व्यक्ति पापमुक्त हो जाता है।

                      

जय जय श्री हरि"

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