सोमवार, 30 जनवरी 2017

सरस्वती स्तोत्र

॥श्रीसरस्वती स्तोत्रम्॥
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥१॥

दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिं स्फटिकमणिनिभैरक्षमालान्दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापेरण ।
भासा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥२॥

सुरासुरसेवितपादपङ्कजा
करे विराजत्कमनीयपुस्तका ।
विरिञ्चिपत्नी कमलासनस्थिता
सरस्वती नृत्यतु वाचि मे सदा ॥३॥

सरस्वती सरसिजकेसरप्रभा
तपस्विनी सितकमलासनप्रिया ।
घनस्तनी कमलविलोललोचना
मनस्विनी भवतु वरप्रसादिनी ॥४॥

सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥५॥

सरस्वति नमस्तुभ्यं सर्वदेवि नमो नमः ।
शान्तरूपे शशिधरे सर्वयोगे नमो नमः ॥६॥

नित्यानन्दे निराधारे निष्कलायै नमो नमः ।
विद्याधरे विशालाक्षि शूद्धज्ञाने नमो नमः ॥७॥

शुद्धस्फटिकरूपायै सूक्ष्मरूपे नमो नमः ।
शब्दब्रह्मि चतुर्हस्ते सर्वसिद्ध्यै नमो नमः ॥८॥

मुक्तालङ्कृतसर्वाङ्ग्यै मूलाधारे नमो नमः ।
मूलमन्त्रस्वरूपायै मूलशक्त्यै नमो नमः ॥९॥

मनो मणिमहायोगे वागीश्वरि नमो नमः ।
वाग्भ्यै वरदहस्तायै वरदायै नमो नमः ॥१०॥

वेदायै वेदरूपायै वेदान्तायै नमो नमः ।
गुणदोषविवर्जिन्यै गुणदीप्त्यै नमो नमः ॥११॥

सर्वज्ञाने सदानन्दे सर्वरूपे नमो नमः ।
सम्पन्नायै कुमार्यै च सर्वज्ञे नमो नमः ॥१२॥

योगानार्य उमादेव्यै योगानन्दे नमो नमः ।
दिव्यज्ञान त्रिनेत्रायै दिव्यमूर्त्यै नमो नमः ॥१३॥

अर्धचन्द्रजटाधारि चन्द्रबिम्बे नमो नमः ।
चन्द्रादित्यजटाधारि चन्द्रबिम्बे नमो नमः ॥१४॥

अणुरूपे महारूपे विश्वरूपे नमो नमः ।
अणिमाद्यष्टसिद्ध्यायै आनन्दायै नमो नमः ॥१५॥

ज्ञानविज्ञानरूपायै ज्ञानमूर्ते नमो नमः ।
नानाशास्त्रस्वरूपायै नानारूपे नमो नमः ॥१६॥

पद्मदा पद्मवंशा च पद्मरूपे नमो नमः ।
परमेष्ठ्यै परामूर्त्यै नमस्ते पापनाशिनि ॥१७॥

महादेव्यै महाकाल्यै महालक्ष्म्यै नमो नमः ।
ब्रह्मविष्णुशिवायै च ब्रह्मनार्यै नमो नमः ॥१८॥

कमलाकरपुष्पा च कामरूपे रूप नमो नमः ।
कपालि कर्मदीप्तायै कर्मदायै नमो नमः ॥१९॥

सायं प्रातः पठेन्नित्यं षण्मासात् सिद्धिरुच्यते ।
चोरव्याघ्रभयं नास्ति पठतां शृण्वतामपि ॥२०॥

इत्थं सरस्वतीस्तोत्रम् अगस्त्यमुनिवाचकम् ।
सर्वसिद्धिकरं नॄणां सर्वपापप्रणाशणम् ॥२१॥

॥इति श्री अगस्त्यमुनिप्रोक्तं सरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

रविवार, 29 जनवरी 2017

सन्तान प्राप्ति उपाय


संतान गणपति स्तोत्र

नमो$स्तु गणनाथाय सिद्धी बुद्धि युताय च।
सर्वप्रदाय देवाय पुत्र वृद्धि प्रदाय च।।
गुरू दराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते।
गेाप्याय गोपिताशेष भुवनाय चिदात्मनें।।
विश्व मूलाय भव्याय विश्वसृष्टि करायते।
नमो नमस्ते सत्याय सत्य पूर्णाय शुण्डिनें ।।
एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम : ।
प्रपन्न जन पालाय प्रणतार्ति विनाशिने ।।
शरणं भव देवेश सन्तति सुदृढ़ां कुरु।
भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गण नायक।।
ते सर्वे तव पूजार्थ विरता : स्यु : वरो मत : ।
पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्व सिद्धि प्रदायकम्।।

श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का प्रयोग करने से सन्तान सुख की अवश्य प्राति होती है। जिन्हें कन्या रत्न है अौर पुत्र रत्न नही है तो उपरोक्त विधि से स्तोत्र का प्रयोग करनें से पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है। पुत्र प्राप्ति के लिए संकला में पुत्र संतति प्राप्तर्थे (पुत्र संतान प्राप्ति के लिए) का प्रयोग करनें से अवश्य लाभ होगा।

शनिवार, 28 जनवरी 2017

जगदगुरु वल्लभाचार्य


पूरा नाम वल्लभाचार्य जन्म संवत 1530 मृत्यु संवत 1588 संतान दो पुत्र- गोपीनाथ व विट्ठलनाथ कर्म भूमि ब्रज प्रसिद्धि पुष्टिमार्ग के प्रणेता विशेष योगदान शुद्धाद्वैत के संदर्भ में वल्लभाचार्य द्वारा भागवत पर रचित सुबोधिनी टीका का महत्त्व बहुत अधिक है। नागरिकता भारतीय संबंधित लेख अद्वैतवाद, वल्लभ सम्प्रदाय, ब्रह्मसूत्र अन्य जानकारी वल्लभाचार्य ने दार्शनिक समस्याओं के समाधान में अनुमान को अनुपयुक्त मानकर शब्द प्रमाण को वरीयता दी है। वल्लभाचार्य (जन्म: संवत 1530[1] - मृत्यु: संवत 1588[2])[3] भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं। जिनका प्रादुर्भाव ईः सन 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ। उन्हें 'वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार' कहा गया है। वे वेद शास्त्र में पारंगत थे। श्री रुद्रसंप्रदाय के श्री विल्वमंगलाचार्य जी द्वारा इन्हें 'अष्टादशाक्षर गोपाल मन्त्र' की दीक्षा दी गई। त्रिदंड सन्न्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्र तीर्थ से प्राप्त हुई। विवाह पंडित श्रीदेव भट्ट जी की कन्या महालक्ष्मी से हुआ, और यथासमय दो पुत्र हुए- श्री गोपीनाथ व विट्ठलनाथ। जीवन परिचय श्री वल्लभाचार्य जी विष्णुस्वामी संप्रदाय की परंपरा में एक स्वतंत्र भक्ति-पंथ के प्रतिष्ठाता, शुद्धाद्वैत दार्शनिक सिद्धांत के समर्थक प्रचारक और भगवत-अनुग्रह प्रधान एवं भक्ति-सेवा समन्वित 'पुष्टि मार्ग' के प्रवर्त्तक थे। वे जिस काल में उत्पन्न हुए थे, वह राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक सभी दृष्टियों से बड़े संकट का था पूर्वज और माता-पिता श्री वल्लभाचार्य जी के पूर्वज आंध्र राज्य में गोदावरी तटवर्ती कांकरवाड़ नामक स्थान के निवासी थे। वे भारद्धाज गोत्रीय तैलंग ब्राह्मण थे उनके पिता श्री लक्ष्मण भट्ट दीक्षित प्रकांड विद्वान और धार्मिक महापुरुष थे। उनका विवाह विद्यानगर (विजयनगर) के राजपुरोहित सुशर्मा की गुणवती कन्या इल्लम्मगारू के साथ हुआ था; जिससे रामकृष्ण नामक पुत्र और सरस्वती एवं सुभद्रा नाम की दो कन्याओं की उत्पत्ति हुई थी। जन्म श्री लक्ष्मण भट्ट अपने संगी-साथियों के साथ यात्रा के कष्टों को सहन करते हुए जब वर्तमान मध्य प्रदेश में रायपुर ज़िले के चंपारण्य नामक वन में होकर जा रहे थे, तब उनकी पत्नी को अकस्मात प्रसव-पीड़ा होने लगी। सांयकाल का समय था। सब लोग पास के चौड़ा नगर में रात्रि को विश्राम करना चाहते थे; किन्तु इल्लमा जी वहाँ तक पहुँचने में भी असमर्थ थीं। निदान लक्ष्मण भट्ट अपनी पत्नी सहित उस निर्जंन वन में रह गये और उनके साथी आगे बढ़ कर चौड़ा नगर में पहुँच गये। उसी रात्रि को इल्लम्मागारू ने उस निर्जन वन के एक विशाल शमी वृक्ष के नीचे अठमासे शिशु को जन्म दिया। बालक पैदा होते ही निष्चेष्ट और संज्ञाहीन सा ज्ञात हुआ, इसलिए इल्लम्मागारू ने अपने पति को सूचित किया कि मृत बालक उत्पन्न हुआ है। रात्रि के अंधकार में लक्ष्मण भट्ट भी शिशु की ठीक तरह से परीक्षा नहीं कर सके। उन्होंने दैवेच्छा पर संतोष मानते हुए बालक को वस्त्र में लपेट कर शमी वृक्ष के नीचे एक गड़ढे में रख दिया और उसे सूखे पत्तों से ढक दिया। तदुपरांत उसे वहीं छोड़ कर आप अपनी पत्नी सहित चौड़ा नगर में जाकर रात्रि में विश्राम करने लगे। दूसरे दिन प्रात:काल आगत यात्रियों ने बतलाया कि काशी पर यवनों की चढ़ाई का संकट दूर हो गया। उस समाचार को सुन कर उनके कुछ साथी काशी वापिस जाने का विचार करने लगे और शेष दक्षिण की ओर जाने लगे। लक्ष्मण भट्ट काशी जाने वाले दल के साथ हो लिये। जब वे गत रात्रि के स्थान पर पहुंचे, तो वहाँ पर उन्होंने अपने पुत्र को जीवित अवस्था में पाया। ऐसा कहा जाता है उस गड़ढे के चहुँ ओर प्रज्जवलित अग्नि का एक मंडल सा बना हुआ था और उसके बीच में वह नवजात बालक खेल रहा था। उस अद्भुत दृश्य को देख कर दम्पति को बड़ा आश्चर्य और हर्ष हुआ। इल्लम्मा जी ने तत्काल शिशु को अपनी गोद में उठा लिया और स्नेह से स्तनपान कराया। उसी निर्जन वन में बालक के जातकर्म और नामकरण के संस्कार किये गये। बालक का नाम 'वल्लभ' रखा गया, जो बड़ा होने पर सुप्रसिद्ध महाप्रभु वल्लभाचार्य हुआ। उन्हें अग्निकुण्ड से उत्पन्न और भगवान की मुखाग्नि स्वरूप 'वैश्वानर का अवतार' माना जाता है। आरंभिक जीवन वल्लभाचार्य जी का आरंभिक जीवन काशी में व्यतीत हुआ था, जहाँ उनकी शिक्षा-दीक्षा तथा उनके अध्ययनादि की समुचित व्यवस्था की गई थी। उनके पिता श्री लक्ष्मण भट्ट ने उन्हें गोपाल मन्त्र की दीक्षा दी थी और श्री माधवेन्द्र पुरी के अतिरिक्त सर्वश्री विष्णुचित तिरूमल और गुरुनारायण दीक्षित के नाम भी मिलते हैं। वे आरंभ से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि और अद्भुत प्रतिभाशाली थे। उन्होंने छोटी आयु में ही वेद, वेदांग, दर्शन, पुराण, काव्यादि में तथा विविध धार्मिक ग्रंथों में अभूतपूर्व निपुणता प्राप्त की थी। वे वैष्णव धर्म के अतिरिक्त जैन, बौद्ध, शैव, शाक्त, शांकर आदि धर्म-संप्रदायों के अद्वितीय विद्वान थे। उन्होंने अपने ज्ञान और पांडित्य के कारण काशी के विद्वत समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त किया था। कुटुम्ब-परिवार उनका कुटुम्ब परिवार काफ़ी बड़ा और समृद्ध था, जिसके अधिकांश व्यक्ति दक्षिण के आंध्र प्रदेश में निवास करते थे। उनकी दो बहिनें और तीन भाई थे। बड़े भाई का नाम रामकृष्ण भट्ट था। वे माधवेन्द्र पुरी के शिष्य और दक्षिण के किसी मठ के अधिपति थे। उन्होंने तपस्या द्वारा बड़ी सिद्धि प्राप्त की थी। संवत 1568 में वे वल्लभाचार्य जी के साथ बदरीनाथ धाम की यात्रा को गये थे। अपने उत्तर जीवन में वे सन्न्यासी हो गये थे। उनकी सन्न्यासावस्था का नाम केशवपुरी था। वल्लभाचार्य जी के छोटे भाई रामचन्द्र और विश्वनाथ थे। रामचंद्र भट्ट बड़े विद्वान और अनेक शास्त्रों के ज्ञाता थे। उनके एक पितृव्य ने उन्हें गोद ले लिया था और वे अपने पालक पिता के साथ अयोध्या में निवास करते थे। उन्होंने अनेक ग्रंथो की रचना की थी, जिनमें 'शृंगार रोमावली शतक' (रचना-काल संवत 1574), 'कृपा-कुतूहल', 'गोपाल लीला' महाकाव्य और 'शृंगार वेदान्त' के नाम मिलते हैं। वल्लभाचार्य जी का अध्ययन सं. 1545 में समाप्त हो गया था। तब उनके माता-पिता उन्हें लेकर तीर्थ यात्रा को चले गये थे। वे काशी से चल कर विविध तीर्थों की यात्रा करते हुए जगदीश पुरी गये और वहाँ से दक्षिण चले गये। दक्षिण के श्री वेंकटेश्वर बाला जी में संवत 1546 की चैत्र कृष्ण 9 को उनका देहावसान हुआ था। उस समय वल्लभाचार्य जी की आयु केवल 11-12 वर्ष की थी, किन्तु तब तक वे प्रकांड विद्वान और अद्वितीय धर्म-वेत्ता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। उन्होंने काशी और जगदीश पुरी में अनेक विद्वानों से शास्त्रार्थ कर विजय प्राप्त की थी। वल्लभाचार्य जी के दो पुत्र हुए थे। बड़े पुत्र गोपीनाथ जी का जन्म संवत 1568 की आश्विन कृष्ण द्वादशी को अड़ैल में और छोटे पुत्र विट्ठलनाथ का जन्म संवत 1572 की पौष कृष्ण 9 को चरणाट में हुआ था। दोनों पुत्र अपने पिता के समान विद्वान और धर्मनिष्ठ थे।
अद्वैतवाद अद्वैत वेदान्त की प्रतिक्रियास्वरूप ही वेदान्त के अन्य सम्प्रदायों का प्रादुर्भाव हुआ। रामानुज, निम्बार्क, मध्व और वल्लभ ने ज्ञान के स्थान पर भक्ति को अधिक प्रश्रय देकर वेदान्त को जनसामान्य की पहुँच के योग्य बनाने का प्रयास किया। उपनिषद, 'गीता' और ब्रह्मसूत्र के विश्लेषण पर ही शंकर के अद्वैतवाद का भवन खड़ा हुआ था। इसी कारण अन्य आचार्यों ने भी प्रस्थानत्रयी के साथ साथ भागवत को भी अपने मत का आधार बनाया। यद्यपि वल्लभाचार्य ने वेद, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र तथा श्रीमद्भागवत की व्याख्याओं के माध्यम से अपने मत का उपस्थान किया, किन्तु उनका यह भी विचार रहा है कि उपर्युक्त स्रोत ग्रन्थों में से उत्तरोत्तर का प्रामाण्य अधिक है। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि शुद्धाद्वैत के संदर्भ में वल्लभाचार्य द्वारा भागवत पर रचित सुबोधिनी टीका का महत्त्व बहुत अधिक है। दर्शन में भक्ति का पुट श्रीमद्भागवत से अधिक शायद ही किसी अन्य ग्रन्थ में उपलब्ध होता हो। अत: वल्लभाचार्य के लिए यह स्वाभाविक ही था कि वह श्रीमद्भागवत को अधिक महत्त्व देते।[3] वल्लभाचार्य के प्रमुख ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का 'अणु भाष्य' और वृहद भाष्य' भागवत की 'सुबोधिनी' टीका भागवत तत्वदीप निबंध पूर्व मीमांसा भाष्य गायत्री भाष्य पत्रावलंवन पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम दशमस्कंध अनुक्रमणिका त्रिविध नामावली शिक्षा श्लोक 11 से 26 षोडस ग्रंथ, (1.यमुनाष्टक,2.बाल बोध,3.सिद्धांत मुक्तावली,4.पुष्टि प्रवाह मर्यादा भेद, 5.सिद्धान्त 6.नवरत्न, 7.अंत:करण प्रबोध, 8. विवेकधैयश्रिय, 9.कृष्णाश्रय, 10.चतुश्लोकी, 11.भक्तिवर्धिनी, 12.जलभेद, 13.पंचपद्य, 14.संन्सास निर्णय, 15.निरोध लक्षण 16.सेवाफल) भगवत्पीठिका न्यायादेश सेवा फल विवरण प्रेमामृत तथा विविध अष्टक (1.मधुराष्टक, 2.परिवृढ़ाष्टक, 3. नंदकुमार अष्टक, 4.श्री कृष्णाष्टक, 5. गोपीजनबल्लभाष्टक आदि।) अणुभाष्य ब्रह्मसूत्र पर वल्लभाचार्य ने अणुभाष्य लिखा। अणु शब्द का प्रयोग आचार्य ने क्यों किया। ऐसी मान्यता है कि वल्लभाचार्य ने ब्रह्मसूत्र पर दो भाष्य लिखे थे, एक बृहदभाष्य (या भाष्य) और दूसरा अणु (छोटा) भाष्य। ऐसा प्रतीत होता है कि बृहदभाष्य अब उपलब्ध नहीं होता, किन्तु अणुभाष्य उसी का लघु संस्करण है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि श्रीमद्भागवत पर भी वल्लभाचार्य ने एक बृहद टीका (सुबोधिनी) लिखी और एक लघु टीका (सूक्ष्म टीका, जो कि अब उपलब्ध नहीं होती)। एक ही ग्रन्थ की टीकाओं के एकाधिक संस्करण अन्य आचार्यों ने भी लिखे हैं। उदाहरणतया मध्वाचार्य ने ब्रह्मसूत्र पर ही चार टीकाएं लिखी थीं- भाष्य अणुभाष्य (अथवा अनुव्याख्यान) अनुव्याख्यान विवरण अणुव्याख्यान। ये चारों ही संस्करण उपलब्ध हैं। अत: मध्वाचार्य का अनुकरण करके वल्लभाचार्य ने भी ब्रह्मसूत्र के भाष्य के दो संस्करण (एक बढ़ा और एक सूक्ष्म) लिखे हों तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। वल्लभाचार्य ने दार्शनिक समस्याओं के समाधान में अनुमान को अनुपयुक्त मानकर शब्द प्रमाण को वरीयता दी है। उनके मतानुसार ब्रह्म माया से अलिपत होने के कारण नितान्त शुद्ध है। वह सत्, चित्, आनन्द रस से युक्त है। ब्रह्म अपनी संधिनी शक्ति के सत् का, संचित् शक्ति द्वारा चित् का, और ह्लादिनी शक्ति द्वारा आनन्द का आवर्भाव करता है। वह पूर्ण पुरुषोत्तम शाश्वत तथा सर्वव्यापक होने के साथ साथ कर्ता और भोक्ता दोनों है। जगत् को वह अपने में से आविर्भूत करता है। और इस प्रकार वह जगत् का निमित्तकरण तथा उपादान कारण भी है। वह अविकृत परिणामवाद के अनुसार अपने को जगत् के रूप में आविर्भूत करता है, अत: उसके मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन या विकार नहीं आता है।[3] ब्रह्म के तीन रूप सृष्टि क्रम के संदर्भ में वल्लभाचार्य ने ब्रह्म के तीन रूप बताए हैं- आधिभौतिक-पर ब्रह्म आध्यात्मिक-अक्षर ब्रह्म आधिभौतिक-जगत् ब्रह्म। ब्रह्म रमण करने की इच्छा से जीव और जड़ का आविर्भाव करता है। इस व्यापार में उसकी क्रीड़ा करने की इच्छा का ही प्राधान्य है, न कि माया का। जिस प्रकार एक ही सर्प कुण्डल आदि बनाकर अनेक रूपों में दिखाई पड़ता है, किन्तु सर्प और उसके कुण्डलादि रूप अभिन्न हैं, उसी प्रकार ब्रह्म अनेक रूपों में स्फुरित होते हुए भी शुद्ध अद्वैत रूप ही है। ब्रह्म का दूसरा रूप अक्षर ब्रह्म है। वह भी सत्, चित् तथा आनन्दमय है, किन्तु परब्रह्म में आनन्द असीमित मात्रा में है, जबकि अक्षर ब्रह्म में वह सीमित होता है। यह अक्षर ब्रह्म ही अवतार के रूप में आविर्भूत होता है। अक्षर ब्रह्म एक प्रकार से आधिवैदिक परब्रह्म का आध्यात्मिक (कायिक) रूप है। कहीं कहीं अक्षर ब्रह्म को परब्रह्म का पुच्छ भी कहा गया है। अक्षर ब्रह्म के अतिरिक्त काल, कर्म और स्वभाव भी परब्रह्म के ही रूपान्तर हैं। सृष्टि के आरम्भ में, अक्षर ब्रह्म प्रकृति और पुरुष के रूप में आविर्भूत होता है। प्रकृति ही विभिन्न सोपानों में परिणत होती हुई जगत् का सृजन करती है। इसलिए प्रकृति को कारणों का कारण कहा जाता है। काल, कर्म और स्वभाव इस सृष्टि प्रक्रिया में अपनी अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। यद्यपि अक्षर, काल, कर्म और स्वभाव सृष्टि से पूर्व विद्यमान रहते हैं, किन्तु इनकी गिनती उन 28 तत्वों में नहीं की जाती, जिनका उल्लेख तत्वार्थदीप में इस प्रकार किया गया है- सत्व, रजस्, पुरुष, प्रकृति, महत्, अहंकार, पंचतन्मात्र, पंचमहाभूत, पंचकर्मेन्द्रियां, पंचज्ञानेन्द्रियां तथा मनस्। यह ज्ञातव्य है कि नाम साम्य होने पर भी तत्वार्थदीप में गिनाए गए तत्व सांख्य के तत्वों से भिन्न हैं।[3] जीव ब्रह्म वल्लभाचार्य के अनुसार जीव ब्रह्म ही है। यह भगवत्स्वरूप ही है, किन्तु उनका आनन्दांश-आवृत रहता है। जीव ब्रह्म से अभिन्न है, जब परब्रह्म की यह इच्छा हुई कि वह एक से अनेक हो जाये तो अक्षर ब्रह्म हज़ारों की संख्या में लाखों जीव उसी तरह से उद्भूत हुए, जैसे कि आग में से हज़ारों स्फुलिंग निकलते हैं। कुछ विशेष जीव अक्षर ब्रह्म की अपेक्षा सीधे ही परब्रह्म से आविर्भूत होते हैं। जीव का व्युच्चरण होता है उत्पत्ति नहीं। जीव इस प्रकार ब्रह्म का अंश है और नित्य है। लीला के लिए जीव में से आनन्द का अंश निकल जाता है, जिससे की जीव बंधन और अज्ञान में पड़ जाता है। जीव का जन्म और विनाश नहीं होता, शरीर की उत्पत्ति और नाश होता है। शंकर जीवात्मा को ज्ञानस्वरूप मानते हैं। वल्लभाचार्य के अनुसार वह ज्ञाता है। जीव अणु है किन्तु वह सर्वव्यापक और सर्वज्ञ नहीं है, चैतन्य के कारण वह भोग करता है। लीला के उद्देश्य से जगत् में वैविध्य लाने के लिए जीवों की तीन कोटियां बताई गई हैं- शुद्ध, जिस जीव में आनन्दांश का तिरोभाव रहता है, पर अविद्या से जिसका सम्बन्ध नहीं रहता, वह शुद्ध कहलाता है। संचारी, जब जीव का अविद्या से सम्बन्ध हो जाता है और वह जन्मादि क्रियाओं के बन्धन का विषय हो जाता है तो वह संचारी कहलाता है, संचारी जीव भी देव और आसुरभेद दो प्रकार के होते हैं। मुक्त, जो जीव ईश्वर के अनुग्रह से सच्चिदानंद रूप का प्राप्त करते हैं और ईश्वरमय हो जाते हैं, वे मुक्त कहलाते हैं। पति रूप या स्वामी रूप में श्रीकृष्ण की सेवा करना जीव का धर्म है। जीवों का जीवत्व, ईश्वर की आविर्भाव एवं तिरोभाव क्रियाओं का परिणाम है। इन क्रियाओं के द्वारा ही ईश्वर की कुछ शक्तियां एवं गुण जीव में तिरोभूत और कुछ आविर्भूत हो जाते हैं। वल्लभाचार्य के मतानुसार जगत् नित्य है। वह ब्रह्म का आधिभौतिक रूप है। उसमें सत् तो विद्यमान है, किन्तु चित् और आनंद प्रच्छन्न या अदृश्य रहते हैं। जगत् ब्रह्म की आविर्भाव दशा है। अत: कारणरूप ब्रह्म और कार्य रूप जगत् में कोई भेद नहीं है। वल्लभाचार्य के अनुसार जगत् ब्रह्मरूप ही है। कार्यरूप जगत् कारणरूप ब्रह्म से आविर्भूत हुआ है। सृष्टि ब्रह्म की आत्मकृति है। ब्रह्म से जगत् आविर्भूत हुआ, फिर भी ब्रह्म में कोई विकृति नहीं आती। यही अविकृत परिणामवाद है। जगत् की न तो उत्पत्ति होती है और न ही विनाश। उसका आविर्भाव-तिरोभाव होता है। आविर्भाव का आशय आविर्भाव का आशय है- अनुभव का विषय बनाना और तिरोभाव का अर्थ है- अनुभव का विषय न बनना। उपादानस्य कार्य या व्यवहारणोचरं करोति, साशक्तिराविर्भांविका, तिरोभावश्च तदयोग्यत्वम्[4] जगत् और संसार वल्लभाचार्य के मतानुसार जगत् और संसार में अंतर है। जगत् उसे कहते हैं, जो ईश्वर की इच्छा व विलास से आविर्भूत हो। इसके विपरीत, जीव अविद्या के प्रभाव से कल्पना तथा ममता द्वारा अर्थात् अविद्या के स्वरूपज्ञान, देहध्यास, इन्द्रियाध्यास, प्राणाध्यास तथा अंत:करणाध्यास- इन 'पर्वी' द्वारा जीवों की बुद्धि में जो द्वैतमूलक भ्रम उत्पन्न होता है, उससे जिस पदार्थ वर्ग की सृष्टि करता है वह संसार कहलाता है। ज्ञान होने पर संसार का नाश हो जाता है, किन्तु जगत् ब्रह्मरूप होने के कारण नष्ट नहीं होता। शुद्धाद्वैतवाद के अनुसार जगत् ब्रह्म और जीव के समान नित्य है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो विश्व दो प्रकार का होता है, एक पृथ्वी, सूर्य, चंद्र आदि से बना हुआ जड़ जगत्, जिसमें चेतन जीव रहते हैं और दूसरा जीवों के ममत्व से उत्पन्न हुआ संसार। ब्रह्म जगत् का निमित्त कारण शरीर और उपादान कारण दोनों है। ब्रह्म को समवायिकारण भी कहा गया है, क्योंकि वह सत्, चित् और आनंद रूप में सर्वव्यापक है। मोक्ष और माया अद्वैतवाद में माया को उपादान कारण माना गया है। वल्लभाचार्य ने माया के दो भेद बताये हैं- अविद्या माया और विद्या माया। अविद्या माया जीव में भ्रान्ति उत्पन्न करती है, जिससे कि वह अपने चित् रूप को भूल जाता है। विद्या माया अज्ञान नाशिनी होती है। मोक्ष प्राप्ति के संदर्भ में प्राय: तीन मार्गों का उल्लेख किया जाता है- कर्ममार्ग, ज्ञानमार्ग और भक्तिमार्ग। वेदान्त के विभिन्न सम्प्रदायों में इनके सम्बन्ध में पर्याप्त मतभेद रहा है। शुद्ध द्वैतवाद के अनुसार अग्निहोत्र, दर्शपौर्णमास, पशुयाग, चातुर्मास्य और सोमयाग करने से मोक्ष प्राप्त होता है। किन्तु ऐसा मोक्ष देवयान मार्ग का अनुसरण करके ही प्राप्त होता है। जो व्यक्ति ज्ञान मार्ग का अनुसरण करता है यानि यह ज्ञान प्राप्त कर लेता है कि जगत् में जो कुछ है, वह सब ब्रह्म ही है, वह अक्षर ब्रह्म में विलीन होता है, न कि परब्रह्म में, क्योंकि ज्ञानमार्गी की सीमा अक्षर ब्रह्म तक ही है। ज्ञानमार्गी अक्षर ब्रह्म का ही अंतिम सत्ता समझता है। हाँ, यदि ब्रह्मज्ञान में भक्ति का सामंजस्य हो जाये तो व्यक्ति परब्रह्म में लीन हो सकता है। इससे भी उत्तम स्थिति वह है, जिसमें परब्रह्म अपनी ही इच्छा से किसी जीव का अपने अंदर से आविर्भाव करके उसके साथ स्वयं नित्यलीला करता है। यही भजनानंद या स्वरूपानंद की स्थिति है। शंकर ने मतानुसार जीव ब्रह्मक्य रूप मुक्ति का प्रतिपादन किया था, किन्तु वल्लभाचार्य के मतानुसार भगवद माहात्म्यज्ञानपूर्विका भक्ति ही मुक्ति का कारण है। यद्यपि भक्ति मुक्ति का साधन, परन्तु उसका महत्त्व मुक्ति से भी अधिक है। वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वैतवाद को स्पष्ट रूप से समझने के लिए यह भी आवश्यक है कि वेदान्त के अन्य सम्प्रदायों और विशेष रूप से शंकर के सिद्धांतों के परिप्रेक्ष्य में उसकी सरसरी समीक्षा कर ली जाये। शुद्धाद्वैतवाद का तुलनात्मक विश्लेषण वल्लभाचार्य का दार्शनिक सिद्धांत शुद्धाद्वैत नाम से प्रचलित हुआ। शंकराचार्य ने अद्वैतवाद का प्रवर्तन करते हुए यह कहा था कि ब्रह्म और जीव में पारमार्थिक अमेद है। मध्वाचार्य ने शंकर के अद्वैतवाद के एकदम विपरीत द्वैतवाद की स्थापना की और यह प्रतिपादित किया कि ब्रह्म, जीव एवं जड़ जगत् में पारमार्थिक अमेद है। इन परस्पर विरोधी मतों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते हुए रामानुजचार्य ने विशिष्टाद्वैतवाद का प्रवर्तन किया, जिसके अनुसार ब्रह्म, जीव एवं जगत् की पृथक सत्ता तो है और तीनों नित्य भी हैं, किन्तु जीव और जगत् ब्रह्म के विशेषण हैं।


शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

मार्मिक कहानी

 `एक पिता ने अपने तीन बेटों के लिए संपत्ति के रूप में 17 बतख छोड़ दिया है।
जब पिता का निधन हो गया, उनके बेटों इच्छा खोला।
पिता की इच्छा ने कहा कि ज्येष्ठ पुत्र 17 बतख के आधा मिलना चाहिए,
मंझला बेटा 17 बतख के 1 / 3rd दी जानी चाहिए,
सबसे छोटे बेटे 17 बतख के 1/9 वीं दी जानी चाहिए।
यह 9 से 3 या 17 से आधे या 17 में 17 को विभाजित करने के लिए संभव नहीं है, बेटे एक-दूसरे के साथ लड़ने के लिए शुरू कर दिया।
तो, वे एक बुद्धिमान व्यक्ति जो एक गुफा में रहता है के लिए जाने का फैसला किया।
बुद्धिमान व्यक्ति होगा के बारे में धैर्य से सुनी। बुद्धिमान व्यक्ति, इस विचार देने के बाद, अपनी खुद की एक बतख लाया और 17 के लिए एक ही है कि 18 बतख के लिए कुल वृद्धि की गयी।
अब, वह मृतक पिता की इच्छा पढ़ना शुरू किया।
18 = 9 का आधा।
तो वह 9 बतख दिया
ज्येष्ठ पुत्र है।
18 = 6 के 1 / 3rd।
तो वह 6 बतख दिया
मंझला बेटा है।
18 = 2 का 1/9।
तो वह 2 बतख दिया
सबसे छोटे बेटे को।
अब इस को जोड़ें:
9 + 6 + 2 = 17 &
यह 1 बतख पत्ते
जो बुद्धिमान व्यक्ति को वापस ले लिया।
नैतिक: बातचीत और समस्या को सुलझाने के दृष्टिकोण 18 वीं बतख अर्थात आम जमीन खोजने के लिए है। एक बार एक व्यक्ति आम जमीन खोजने के लिए सक्षम है, इस मुद्दे को हल है। यह कई बार मुश्किल है।
हालांकि, एक समाधान तक पहुँचने के लिए, पहला कदम विश्वास करने के लिए एक समाधान है कि वहाँ है। अगर हमें लगता है कोई समाधान नहीं है कि वहाँ, हम किसी तक पहुँचने में सक्षम नहीं होगा।
एक बहुत ही दिलचस्प प्रबंधन 

शब्दावली

अगर आप संस्कृत पढना / या समझना चाहते है तो इस मेसेज को पढकर जरूर प्रिंट निकलवा कर अपने पुस्तककोश में सम्मान देगे।
ॐ ॥ पारिवारिक नाम संस्कृत मे ......
जनक: - पिता , माता - माता
पितामह: - दादा , पितामही - दादी
प्रपितामह: - परदादा , प्रतितामही - परदादी
मातामह: - नाना , मातामही - नानी
प्रमातामह: - परनाना , प्रमातामही - परनानी
वृद्धप्रतिपितामह - वृद्धपरनाना
पितृव्य: - चाचा , पितृव्यपत्नी - चाची
पितृप्वसृपितृस्वसा - फुआ , पितृस्वसा - फूफी
पैतृष्वस्रिय: - फुफेराभाई
पति: - पति , भार्या - पत्नी
पुत्र: / सुत: / आत्मज: - पुत्र , स्नुषा - पुत्र वधू
जामातृ - जँवाई ( दामाद ) , आत्मजा - पुत्री
पौत्र: - पोता , पौत्री - पोती
प्रपौत्र:,प्रपौत्री - पतोतरा
दौहित्र: - पुत्री का पुत्र , दौहितत्री - पुत्री का पुत्री
देवर: - देवर , यातृ,याता - देवरानी , ननांदृ,ननान्दा - ननद
अनुज: - छोटाभाई , अग्रज: - बड़ा भाई
भ्रातृजाया,प्रजावती - भाभी
भ्रात्रिय:,भ्रातृपुत्र: - भतीजा , भ्रातृसुता - भतीजी
पितृव्यपुत्र: - चचेराभाई , पितृव्यपुत्री - चचेरी बहन
आवुत्त: - बहनोई , भगिनी - बहिन , स्वस्रिय:,भागिनेय: - भानजा
नप्तृ,नप्ता - नाती
मातुल: - मामा , मातुली - मामी
मातृष्वसृपति - मौसा , मातृस्वसृ,मातृस्वसा - मौसी
मातृष्वस्रीय: - मौसेरा भाई
श्वशुर: - ससुर , श्वश्रू: - सास , श्याल: - साला
सम्बन्धीन् - समधी, सम्बन्धिनि - समधिन

पशव: ।।
उंट - उष्‍ट्र‚ क्रमेलकः
उद्बिलाव -
कछुआ - कच्‍छप:
केकडा - कर्कट: ‚ कुलीरः
कुत्‍ता - श्‍वान:, कुक्कुर:‚ कौलेयकः‚ सारमेयः
कुतिया – सरमा‚ शुनि
कंगारू - कंगारुः
कनखजूरा – कर्णजलोका
खरगोश - शशक:
गाय - गो, धेनु:
गैंडा - खड्.गी
गीदड (सियार) - श्रृगाल:‚ गोमायुः
गिलहरी - चिक्रोड:
गिरगिट - कृकलास:
गोह – गोधा
गधा - गर्दभ:, रासभ:‚ खरः
घोडा - अश्‍व:, सैन्‍धवम्‚ सप्तिः‚ रथ्यः‚ वाजिन्‚ हयः
चूहा - मूषक:
चीता - तरक्षु:, चित्रक:
चित्‍तीदार घोडा - चित्ररासभ:
छछूंदर - छुछुन्‍दर:
छिपकली – गृहगोधिका
जिराफ - चित्रोष्‍ट्र:
तेंदुआ – तरक्षुः
दरियाई घोडा - जलाश्‍व:
नेवला - नकुल:
नीलगाय - गवय:
बैल - वृषभ: ‚ उक्षन्‚ अनडुह
बन्‍दर - मर्कट:
बाघ - व्‍याघ्र:‚ द्वीपिन्
बकरी - अजा
बकरा - अज:
बनमानुष - वनमनुष्‍य:
बिल्‍ली - मार्जार:, बिडाल:
भालू - भल्‍लूक:
भैस - महिषी
भैंसा – महिषः
भेंडिया - वृक:
भेंड - मेष:
मकड़ी – उर्णनाभः‚ तन्तुनाभः‚ लूता
मगरमच्‍छ - मकर: ‚ नक्रः
मछली – मत्स्यः‚ मीनः‚ झषः
मेंढक - दर्दुरः‚ भेकः
लोमडी -लोमशः
शेर - सिंह:‚ केसरिन्‚ मृगेन्द्रः‚ हरिः
सुअर - सूकर:‚ वराहः
सेही – शल्यः
हाथी - हस्ति, करि, गज:
हिरन - मृग:
बाल - केशा:
2- माँग - सीमन्‍तम्
3- सफेद बाल - पलितकेशा:
4- मस्‍तक - ललाटम्
5- भौंह - भ्रू:
6- पलक - पक्ष्‍म:
7- पुतली - कनीनिका
8- नाक - नासिका
9- उपरी ओंठ - ओष्‍ठ:
10- निचले ओंठ - अधरम्
11- ठुड्डी - चिबुकम्
12- गाल - कपोलम्
13- गला - कण्‍ठ:
14- दाढी, मूँछ- श्‍मश्रु:
15- मुख - मुखम्
16- जीभ - जिह्वा
17- दाँत- दन्‍ता:
18- मसूढे - दन्‍तपालि:
19- कन्‍धा - स्‍कन्‍ध:
20- सीना - वक्षस्‍थलम्
21- हाँथ - हस्‍त:
22- अँगुली - अंगुल्‍य:
23- अँगूठा - अँगुष्‍ठ:
24- पेट - उदरम्
25- पीठ - पृष्‍ठम्
26- पैर - पाद:
27- रोएँ - रोम
।।संस्कृतं सर्वेषां संस्कृतं सर्वत्र📚।।
*शब्दान् जानीमहे वाक्यप्रयोगञ्च कुर्महे >
 विमानम् ।
 उपायनम् ।
🚘 यानम् ।
 आसन्दः / आसनम् ।
 नौका ।
 पर्वत:।
🚊 रेलयानम् ।
 लोकयानम् ।
 द्विचक्रिका ।
🇮🇳 ध्वज:।
 शशक:।
 व्याघ्रः।
 वानर:।
 अश्व:।
 मेष:।
 गज:।
🐢 कच्छप:।
🐜 पिपीलिका ।
 मत्स्य:।
🐄 धेनु: ।
🐃 महिषी ।
🐐 अजा ।
🐓 कुक्कुट:।
🐁 मूषक:।
🐊 मकर:।
🐪 उष्ट्रः।
 पुष्पम् ।
 पर्णे (द्वि.व)।
🌳 वृक्ष:।
🌞 सूर्य:।
🌛 चन्द्र:।
⭐ तारक: / नक्षत्रम् ।
☔ छत्रम् ।
👦 बालक:।
👧 बालिका ।
👂 कर्ण:।
👀 नेत्रे (द्वि.व)।
👃नासिका ।
👅 जिह्वा ।
👄 औष्ठौ (द्वि.व) ।
👋 चपेटिका ।
💪 बाहुः ।
🙏 नमस्कारः।
👟 पादत्राणम् (पादरक्षक:) ।
👔 युतकम् ।
💼 स्यूत:।
👖 ऊरुकम् ।
👓 उपनेत्रम् ।
💎 वज्रम् (रत्नम् ) ।
💿 सान्द्रमुद्रिका ।
🔔 घण्टा ।
🔓 ताल:।
🔑 कुञ्चिका ।
⌚ घटी।
💡 विद्युद्दीप:।
🔦 करदीप:।
🔋 विद्युत्कोष:।
🔪 छूरिका ।
✏ अङ्कनी ।
📖 पुस्तकम् ।
🏀 कन्दुकम् ।
🍷 चषक:।
🍴 चमसौ (द्वि.व)।
📷 चित्रग्राहकम् ।
💻 सड़्गणकम् ।
📱जड़्गमदूरवाणी ।
☎ स्थिरदूरवाणी ।
📢 ध्वनिवर्धकम् ।
⏳समयसूचकम् ।
⌚ हस्तघटी ।
🚿 जलसेचकम् ।
🚪द्वारम् ।
🔫 भुशुण्डिका ।(बु?) ।
🔩आणिः ।
🔨ताडकम् ।
💊 गुलिका/औषधम् ।
💰 धनम् ।
✉ पत्रम् ।
📬 पत्रपेटिका ।
📃 कर्गजम्/कागदम् ।
📊 सूचिपत्रम् ।
📅 दिनदर्शिका ।
✂ कर्त्तरी ।
📚 पुस्तकाणि ।
🎨 वर्णाः ।
🔭 दूरदर्शकम् ।
🔬 सूक्ष्मदर्शकम् ।
📰 पत्रिका ।
🎼🎶 सड़्गीतम् ।
🏆 पारितोषकम् ।
⚽ पादकन्दुकम् ।
☕ चायम् ।
🍵पनीयम्/सूपः ।
🍪 रोटिका ।
🍧 पयोहिमः ।
🍯 मधु ।
🍎 सेवफलम् ।
🍉कलिड़्ग फलम् ।
🍊नारड़्ग फलम् ।
🍋 आम्र फलम् ।
🍇 द्राक्षाफलाणि ।
🍌कदली फलम् ।
🍅 रक्तफलम् ।
🌋 ज्वालामुखी ।
🐭 मूषकः ।
🐴 अश्वः ।
🐺 गर्दभः ।
🐷 वराहः ।
🐗 वनवराहः ।
🐝 मधुकरः/षट्पदः ।
🐁मूषिकः ।
🐘 गजः ।
🐑 अविः ।
🐒वानरः/मर्कटः ।
🐍 सर्पः ।
🐠 मीनः ।
🐈 बिडालः/मार्जारः/लः ।
🐄 गौमाता ।
🐊 मकरः ।
🐪 उष्ट्रः ।
🌹 पाटलम् ।
🌺 जपाकुसुमम् ।
🍁 पर्णम् ।
🌞 सूर्यः ।
🌝 चन्द्रः ।
🌜अर्धचन्द्रः ।
⭐ नक्षत्रम् ।
☁ मेघः ।
⛄ क्रीडनकम् ।
🏠 गृहम् ।
🏫 भवनम् ।
🌅 सूर्योदयः ।
🌄 सूर्यास्तः ।
🌉 सेतुः ।
🚣 उडुपः (small boat)
🚢 नौका ।
✈ गगनयानम्/विमानम् ।
🚚 भारवाहनम् ।
🇮🇳 भारतध्वजः ।
1⃣ एकम् ।
2⃣ द्वे ।
3⃣ त्रीणि ।
4⃣ चत्वारि ।
5⃣ पञ्च ।
6⃣ षट् ।
7⃣ सप्त ।
8⃣ अष्ट/अष्टौ ।
9⃣ नव ।
🔟 दश ।
2⃣0⃣ विंशतिः ।
3⃣0⃣ त्रिंशत् ।
4⃣0⃣ चत्त्वारिंशत् ।
5⃣0⃣ पञ्चिशत् ।
6⃣0⃣ षष्टिः ।
7⃣0⃣ सप्ततिः ।
8⃣0⃣ अशीतिः ।
9⃣0⃣ नवतिः ।
1⃣0⃣0⃣ शतम्।
⬅ वामतः ।
➡ दक्षिणतः ।
⬆ उपरि ।
⬇ अधः ।
🎦 चलच्चित्र ग्राहकम् ।
🚰 नल्लिका ।
🚾 जलशीतकम् ।
🛄 यानपेटिका ।
📶 तरड़्ग सूचकम् ( तरड़्गाः)
+ सड़्कलनम् ।
- व्यवकलनम् ।
× गुणाकारः ।
÷ भागाकारः ।
% प्रतिशतम् ।
@ अत्र (विलासम्)।
⬜ श्वेतः ।
🔵 नीलः ।
🔴 रक्तः ।
⬛ कृष्णः ।
इदानीं वाक्यप्रयोगं कुर्मः ..........
संस्कृतेन सम्भाषणं कुर्मः ........
जीवनस्य परिवर्तनं कुर्मः ......
पुष्पनाम संस्कृतम्
१ कनेर कर्णिकार:
२ कमल (नीला) इन्‍दीवरम्
३ कमल (श्‍वेत) कैरवम्
४ कमल (लाल) कोकनदम्, पद्मम्
५ कुमुदनी कुमुदम्
६ कुन्‍द कुन्‍दम्
७ केवडा केतकी
८ गुलाब पाटलम्
९ गेंदा स्‍थलपद्मम्
१० चम्‍पा चम्‍पक:
११ चमेली
१२ जवापुष्‍प जपापुष्‍पम्
१३ जूही यूथिका
१४ दुपहरिया बन्‍धूक:
१५ नेवारी नवमालिका
१६ बेला मल्लिका
१७ मौलसरी बकुल:
१८ रातरानी रजनीगन्‍धा
१९ हरसिंगार शेफालिका
२० मालती मालतीपुष्‍प

बुधवार, 25 जनवरी 2017

गुप्त रात्रि


हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में चार नवरात्रि का महोत्सव मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।इनमें अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान पूरे देश में गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त व चमत्कारीक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है।

धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्रि देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्रि का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु। जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है। नवरात्रि के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं। जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है।धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है। दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है। यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का। ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं। यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में ध्यान शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है।’नवरात्रि’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर महानवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप, उपवास का प्रतीक हैं। ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’। नौ शक्तियों से युक्त नवरात्रि कहलाते हैं। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं-
उक्तं  – ‘आश्विने वा ऽथवा माघे चैत्रें वा श्रावणेऽति वा।’
अर्थात आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि तथा चैत्र में वासंतिक नवरात्रि होते हैं। माघ व श्रावण के गुप्त नवरात्रि कहलाते हैं वहीं शारदीय नवरात्रि में देवी शक्ति की पूजा व बासंतिक नवरात्रि में विष्णु पूजा की प्रधानता रहती है…।

मार्कण्डेय पुराण में शारदीय नवरात्रि का अत्यंत महत्व बतलाया गया है।

नवरात्रि में घट स्थापना, पूजन व विसर्जन के लिए प्रातःकाल समय शुभ माना जाता है। देवी शक्ति पूजन के लिए प्रातः स्नान कर पवित्र स्थल पर मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें धान्य बोए जाते हैं। फिर कलश स्थापना कर श्री गणेश, नवग्रह, लोकपाल, मातृका, वरुणदेव का पूजन किया जाता है। षष्ठी तक सभी पूजाएँ कलश पर होती हैं।

इसके बाद गणेशादि पूजन के पश्चात पुष्याह वाचन करके पूजन निमित्त संकल्प लिया जाता है। कलश पर चित्रमय दुर्गा की स्थापना करके फिर देवी का आह्वान, आसव, अर्घ्य, स्नान, वस्त्र गंध, अक्षत, पुष्प, धूप दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बूल, नीरांजन, पुष्पों आदि से नमस्कार विधि द्वारा कर पूजन पूर्ण होती है। प्रतिदिन नौ दिनों तक यम, नियम, संयम व श्रद्धा से मार्कण्डेय पुराण अंतर्गत दुर्गा सप्तशती का पाठ भक्तगण करते हैं।

‘नमो दैव्ये महादैव्ये, शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै, नियता: प्रणताः स्मताम्‌’॥

अष्टमी व नवमीं को कन्याओं को चरण धोकर आदर सहित पूजन कर यत्रारुचि भोजन करवाया जाता है। नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है।दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन- त्रिमूर्तिनी, चार- कल्याणी, पाँच-रोहिणी, छः- काली, सात वर्ष की कन्या चंडिका, आठ- शांभवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा, दस वर्ष की शुभद्रा स्वरूपा मानी जाती हैं।नवरात्रि में पूजन के नौ दिन विशेष महत्व के हैं। प्रतिपदा को देवी को आँवला, सुगंधित द्रव्य, द्वितीया को रेशम चोटी, तृतीया को सिंदूर-दर्पण, चतुर्थी को मधुपर्क, तिलक, काजल, पंचमी को चंदन पदार्थ, आभूषण, षष्ठी को माला, पुष्पादि अर्पित किया जाता है। सप्तमी को ग्रहमध्य पूजन, अष्टमी को उपवासपूर्वक पूजन, नवमीं को महापूजा व कुमारी पूजा का महत्व है। दशमी को पूजन के बाद दशमांश हवन, तर्पण, भार्गव व ब्राह्मण भोजन कराकर व्रत पारण किया जाता है। हवन से पूर्व महानवमी को हनुभद् ध्वजारोहण भी किया जाता है, क्योंकि हनुमानजी की विजयपताका के अर्पण बिना श्रीराम का प्रस्थान संभव नहीं। दसवें दिन विसर्जन के बाद ही नवरात्रि महापर्व पूर्ण होता है। नवरात्रि पूजन सीमातीत फलदायक कहा गया है। देवी पूजन से यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों फलों को देने वाला महापर्व है।नवरात्रि के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। देवी के भजनों के सुरों के संग गरबा नृत्य की धूम भक्तों में नव ऊर्जा, उत्साह व श्रद्धा जगाती है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्रि महापर्व भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बाँधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है।
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कैसे करें गुप्त नवरात्री में कलश स्थापना———
नवरात्र के दिनों में कहीं-कहीं पर कलश की स्थापना की जाती है एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है। मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमे गेहूं/जौ के दाने बो कर ज्वारे उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है। दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है।महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती मुर्तियाँ बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पो को अर्ध्य देवें । इन नौ दिनो में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना मिलता है इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।

कन्या पूजन——-नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। अष्टमी के दिन कन्या-पूजन का महत्व है जिसमें 5, 7,9 या 11 कन्याओं को पूज कर भोजन कराया जाता है।
========================================
माघ मास अमूमन जनवरी और फरवरी के महीने को कहा जाता है। अगली माघ गुप्त नवरात्र 09 फरवरी 2016 से लेकर 17 फरवरी 2016 तक रहेगी।

गुप्त नवरात्र पूजा विधि----

मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

जानिए गुप्त नवरात्रि का महत्त्व---

देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।

गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।

हिन्दू धर्म में नवरात्र मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तंत्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्र बेहद विशेष माने जाते हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है।

यह संधिवेला साधना और अनुष्ठान के लिए बड़ी महत्वपूर्ण और सिद्धिदायक बताई गयी है !इस नवरात्री की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं ,देवशयनी एकादसी से देवउठनी (देवप्रबोधनी )एकादसी के बीच चार माह को ऋषि परंपरा में विशेष महत्त्व प्राप्त है ! अब तो शंकराचार्य थोक के भाव में हो गए हैं, जो कभी भी कही भी अपनी चांदी की कुर्सी लिए विचरण करते रहते हैं ! पहले ऐसा नहीं होता था , आदि शंकराचार्य , आचार्य शंकर ने" चार धाम- चार मठ प्रतिष्ठित " किये एक विधि ब्यबस्था बनायी ,चातुर्मास व्रत करने की ,एक जगह रुकने की ,साधना अनुष्ठान ,स्वाध्याय ,संयम के साथ आहार संयम और सत्संग द्वारा लोकशिक्षण करने की !अब उस ब्यबस्था को चारो ओर उल्लंघित होते देखा जा सकता है !
कैसे करें गुप्त नवरात्री में कलश स्थापना———
नवरात्र के दिनों में कहीं-कहीं पर कलश की स्थापना की जाती है एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है। मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमे गेहूं/जौ के दाने बो कर ज्वारे उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है। दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है।महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती मुर्तियाँ बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पो को अर्ध्य देवें । इन नौ दिनो में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना मिलता है इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।

कन्या पूजन——-नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। अष्टमी के दिन कन्या-पूजन का महत्व है जिसमें 5, 7,9 या 11 कन्याओं को पूज कर भोजन कराया जाता है।
========================================
माघ मास अमूमन जनवरी और फरवरी के महीने को कहा जाता है। अगली माघ गुप्त नवरात्र 09 फरवरी 2016 से लेकर 17 फरवरी 2016 तक रहेगी।

गुप्त नवरात्र पूजा विधि----

मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

जानिए गुप्त नवरात्रि का महत्त्व---

देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।

गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।

हिन्दू धर्म में नवरात्र मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तंत्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्र बेहद विशेष माने जाते हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है।

यह संधिवेला साधना और अनुष्ठान के लिए बड़ी महत्वपूर्ण और सिद्धिदायक बताई गयी है !इस नवरात्री की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं ,देवशयनी एकादसी से देवउठनी (देवप्रबोधनी )एकादसी के बीच चार माह को ऋषि परंपरा में विशेष महत्त्व प्राप्त है ! अब तो शंकराचार्य थोक के भाव में हो गए हैं, जो कभी भी कही भी अपनी चांदी की कुर्सी लिए विचरण करते रहते हैं ! पहले ऐसा नहीं होता था , आदि शंकराचार्य , आचार्य शंकर ने" चार धाम- चार मठ प्रतिष्ठित " किये एक विधि ब्यबस्था बनायी ,चातुर्मास व्रत करने की ,एक जगह रुकने की ,साधना अनुष्ठान ,स्वाध्याय ,संयम के साथ आहार संयम और सत्संग द्वारा लोकशिक्षण करने की !अब उस ब्यबस्था को चारो ओर उल्लंघित होते देखा जा सकता है !
गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवियां----

गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।

जानिए इस नवरात्री में माँ शक्ति को प्रसन्न करने का प्रमुख मंत्र——-
---सर्प्रथम धूप दीप प्रसाद माता को अर्पित करें...
----रुद्राक्ष की माला से ग्यारह माला का मंत्र जप करें...
फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें...

मंत्र-ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:
और पेठे का भोग लगाएं

इन दस महाविद्याओं से पाइए मनचाही कामना—–

———————काली———————-
लम्बी आयु,बुरे ग्रहों के प्रभाव,कालसर्प,मंगलीक बाधा,अकाल मृत्यु नाश आदि के लिए देवी काली की साधना करें
हकीक की माला से मंत्र जप करें
नौ माला का जप कम से कम करें
मंत्र-क्रीं ह्रीं ह्रुं दक्षिणे कालिके स्वाहा:
———————तारा———————–
तीब्र बुद्धि रचनात्मकता उच्च शिक्षा के लिए करें माँ तारा की साधना
नीले कांच की माला से मंत्र जप करें
बारह माला का जप करें
मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुम फट
——————-त्रिपुर सुंदरी——————–
व्यक्तित्व विकास पूर्ण स्वास्थ्य और सुन्दर काया के लिए त्रिपुर सुंदरी देवी की साधना करें
रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें
दस माला मंत्र जप अवश्य करें
मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः
——————भुवनेश्वरी————————
भूमि भवन बाहन सुख के लिए भुबनेश्वरी देवी की साधना करें
स्फटिक की माला का प्रयोग करें
ग्यारह माला मंत्र जप करें
मन्त्र-ॐ ह्रीं भुबनेश्वरीयै ह्रीं नमः
——————छिन्नमस्ता———————-
रोजगार में सफलता,नौकरी पद्दोंन्ति के लिए छिन्नमस्ता देवी की साधना करें
रुद्राक्ष की माला से मंत्र जप करें
दस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचानियै ह्रीं फट स्वाहा:
—————–त्रिपुर भैरवी———————–
सुन्दर पति या पत्नी प्राप्ति,प्रेम विवाह,शीघ्र विवाह,प्रेम में सफलता के लिए त्रिपुर भैरवी देवी की साधना करें
मूंगे की माला से मंत्र जप करें
पंद्रह माला मंत्र जप करें
मंत्र-ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा:
——————धूमावती————————
तंत्र मंत्र जादू टोना बुरी नजर और भूत प्रेत आदि समस्त भयों से मुक्ति के लिए धूमावती देवी की साधना करें
मोती की माला का प्रयोग मंत्र जप में करें
नौ माला मंत्र जप करें
मंत्र-ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:
—————–बगलामुखी———————–
शत्रुनाश,कोर्ट कचहरी में विजय,प्रतियोगिता में सफलता के लिए माँ बगलामुखी की साधना करें
हल्दी की माला या पीले कांच की माला का प्रयोग करें
आठ माला मंत्र जप को उत्तम माना गया है
मन्त्र-ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:
——————-मातंगी————————-
संतान प्राप्ति,पुत्र प्राप्ति आदि के लिए मातंगी देवी की साधना करें
स्फटिक की माला से मंत्र जप करें
बारह माला मंत्र जप करें
ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:
——————-कमला————————-
अखंड धन धान्य प्राप्ति,ऋण नाश और लक्ष्मी जी की कृपा के लिए देवी कमला की साधना करें
कमलगट्टे की माला से मंत्र जप करें
दस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र-हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:
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– गुप्त नवरात्रि में सुबह या विशेष रूप से रात्रि में दिन के मुताबिक देवी के अलग-अलग स्वरूपों का ध्यान कर सामान्य पूजा सामग्री अर्पित करें।

——पूजा में लाल गंध, लाल फूल, लाल वस्त्र, आभूषण, लाल चुनरी चढ़ाकर फल या चना-गुड़ का भोग लगाएं। धूप व दीप जलाकर माता के नीचे लिखे मंत्र का नौ ही दिन कम से कम एक माला यानी 108 बार जप करना बहुत ही मंगलकारी होता है –

सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।

– —–मंत्र जप के बाद देवी की आरती करें और मंगल कामना करते हुए अपनी समस्याओं को दूर करने के लिये मन ही मन देवी से प्रार्थना करें।
यही कारण है कि व्यावहारिक उपाय के साथ धार्मिक उपायों को जोड़कर शास्त्रों में देवी उपासना के कुछ विशेष मंत्रों का स्मरण सामान्य ही नहीं गंभीर रोगों की पीड़ा को दूर करने वाला माना गया है।

——-इन रोगनाशक मंत्रों का नवरात्रि के विशेष काल में ध्यान अच्छी सेहत के लिये बहुत ही असरदार माना गया है। जानते हैं यह रोगनाशक विशेष देवी मंत्र –

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

—– धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि के अलावा हर रोज भी इस मंत्र का यथसंभव 108 बार जप तन, मन व स्थान की पवित्रता के साथ करने से संक्रामक रोग सहित सभी गंभीर बीमारियों का भी अंत होता है। घर-परिवार रोगमुक्त होता है।

इस मंत्र जप के पहले देवी की पूजा पारंपरिक पूजा सामग्रियों से जरूर करें। जिनमें गंध, फूल, वस्त्र, फल, नैवेद्य शामिल हो। इतना भी न कर पाएं तो धूप व दीप जलाकर भी इस मंत्र का ध्यान कर आरती करना भी बहुत शुभ माना गया है।
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गुप्त नवरात्रि में किए जाने वाले कुछ टोटके इस प्रकार हैं-

इस गुप्त नवरात्रि में इस उपाय से सुखी होगा दांपत्य जीवन--

पति-पत्नी एक गाड़ी के दो पहिए होते हैं। यानी एक-दूसरे के बिना वे अधूरे हैं। इसके बाद भी पति-पत्नी में विवाद होते रहते हैं। कई बार विवाद काफी बड़ भी जाते हैं। गुप्त नवरात्रि में कुछ साधारण उपाय करने से दाम्पत्य जीवन में आ रही परेशानियों को दूर किया जा सकता है। ये उपाय इस प्रकार हैं-

- यदि जीवनसाथी से अनबन होती रहती है तो गुप्त नवरात्रि में नीचे लिखे मंत्र को पढ़ते हुए 108 बार अग्नि में घी से आहुतियां दें। इससे यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा। अब नित्य सुबह उठकर पूजा के समय इस मंत्र को 21 बार पढ़ें। यदि संभव हो तो अपने जीवनसाथी से भी इस मंत्र का जप करने के लिए कहें-

सब नर करहिं परस्पर प्रीति।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।

- गुप्त नवरात्रि के दौरान यदि रोज सुबह-शाम यदि घर में शंख बजाया जाए अथवा गायत्री मंत्र का जप करें गृहक्लेश समाप्त हो जाता है।
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शत्रु शमन के लिए :---
साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदमनहींउठाएगा।

अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए :---
यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे-बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम लिखा था, उस स्थान पर अप बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें। ध्यान रहे, यहप्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो सकती है।
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मानसिक परेशानी दूर करने के लिए :----

रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा का पाठ करें ! प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल चढायें ! अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी गरीब को एक बार दान करें !

घर से पराशक्तियों को हटाने का टोटका-----
एक कांच के गिलास में पानी में नमक मिलाकर घर के नैऋत्य के कोने में रख दीजिये,और उस बल्ब के पीछे लाल रंग का एक बल्व लगा दीजिये,जब भी पानी सूख जाये तो उस गिलास को फ़िर से साफ़ करने के बाद नमक मिलाकर पानी भर दीजिये।

व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए----
व्यक्तिगत बाधा के लिए एक मुट्ठी पिसा हुआ नमक लेकर शाम को अपने सिर के ऊपर से तीन बार उतार लें और उसे दरवाजे के बाहर फेंकें। ऐसा तीन दिन लगातार करें। यदि आराम न मिले तो नमक को सिर के ऊपर वार कर शौचालय में डालकर फ्लश चला दें। निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की ग्रह स्थिति थोड़ी सी भी अनुकूल होगी तो हमें निश्चय ही इन उपायों से भरपूर लाभ मिलेगा।
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जानिए कुछ उपाय / टोटके पति-पत्नी के बीच वैमनस्यता को दूर करने हेतु :----

1.     रात को सोते समय पत्नी पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति पत्नी के तकिये में कपूर की २ टिकियां रख दें। प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर उस कमरे जला दें।
पति को वश में करने के लिए :-----
1-   यह प्रयोग शुक्ल में पक्ष करना चाहिए ! एक पान का पत्ता लें ! उस पर चंदन और केसर का पाऊडर मिला कर रखें ! फिर दुर्गा माता जी की फोटो के सामने बैठ कर दुर्गा स्तुति में से चँडी स्त्रोत का पाठ 43 दिन तक करें ! पाठ करने के बाद चंदन और केसर जो पान के पत्ते पर रखा था, का तिलक अपने माथे पर लगायें ! और फिर तिलक लगा कर पति के सामने जांय ! यदि पति वहां पर न हों तो उनकी फोटो के सामने जांय ! पान का पता रोज़ नया लें जो कि साबुत हो कहीं से कटा फटा न हो ! रोज़ प्रयोग किए गए पान के पत्ते को अलग किसी स्थान पर रखें ! 43 दिन के बाद उन पान के पत्तों को जल प्रवाह कर दें ! शीघ्र समस्या का समाधान होगा !

 2- शनिवार की रात्रि में ७ लौंग लेकर उस पर २१ बार जिस व्यक्ति को वश में करना हो उसका नाम लेकर फूंक मारें और अगले रविवार को इनको आग में जला दें। यह प्रयोग लगातार ७ बार करने से अभीष्ट व्यक्ति का वशीकरण होता है।

 3- अगर आपके पति किसी अन्य स्त्री पर आसक्त हैं और आप से लड़ाई-झगड़ा इत्यादि करते हैं। तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत कारगर है, प्रत्येक रविवार को अपने घर तथा शयनकक्ष में गूगल की धूनी दें। धूनी करने से पहले उस स्त्री का नाम लें और यह कामना करें कि आपके पति उसके चक्कर से शीघ्र ही छूट जाएं। श्रद्धा-विश्वास के साथ करने से निश्चिय ही आपको लाभ मिलेगा।
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ससुराल में सुखी रहने के लिए :----
1-    कन्या अपने हाथ से हल्दी की 7 साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की तरफ फेंके, ससुराल में सुरक्षित और सुखी रहेगी।
2-     सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
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जिन स्त्रियों के पति किसी अन्य स्त्री के मोहजाल में फंस गये हों या आपस में प्रेम नहीं रखते हों, लड़ाई-झगड़ा करते हों तो इस टोटके द्वारा पति को अनुकूल बनाया जा सकता है।
गुरुवार अथवा शुक्रवार की रात्रि में १२ बजे पति की चोटी (शिखा) के कुछ बाल काट लें और उसे किसी ऐसे स्थान पर रख दें जहां आपके पति की नजर न पड़े। ऐसा करने से आपके पति की बुद्धि का सुधार होगा और वह आपकी बात मानने लगेंगे। कुछ दिन बाद इन बालों को जलाकर अपने पैरों से कुचलकर बाहर फेंक दें। मासिक धर्म के समय करने से अधिक कारगर सिद्ध होगा।

पति पत्नी में कलेश दूर करने के लिए----
1.     श्री गणेश जी और शक्ति की उपासना करे |
2.    सोते समय पूर्व की और सिरहाना होना चाहिए |
3.    चींटियों को शक्कर डालना चाहिए |
4.    भोजपत्र पर लाल कलम से पति का नाम लिख कर तथा ” हं हनुमंते नमः ” का 21 बार उच्चारण करे उसे शहद में अच्छी तरह से बंद कर के घर के किसी कोने में रख दे जहाँ पर किसी की दृष्टि न पढ़े |
धीरे धीरे कलहपूर्ण वातावरण दूर होगा |
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जानिए शादी करने का अनुभूत उपाय---
---पुरुषों को विभिन्न रंगों से स्त्रियों की तस्वीरें और महिलाओं को लाल रंग से पुरुषों की तस्वीर सफ़ेद कागज पर रोजाना तीन महिने तक एक एक बनानी चाहिये।
---अगर लड़की की उम्र निकली जा रही है और सुयोग्य लड़का नहीं मिल रहा। रिश्ता बनता है फिर टूट जाता है। या फिर शादी में अनावश्यक देरी हो रही हो तो कुछ छोटे-छोटे सिद्ध टोटकों से इस दोष को दूर किया जा सकता है। ये टोटके अगर पूरे मन से विश्वास करके अपनाए जाएं तो इनका फल बहुत ही कम समय में मिल जाता है।

1. रविवार को पीले रंग के कपड़े में सात सुपारी, हल्दी की सात गांठें, गुड़ की सात डलियां, सात पीले फूल, चने की दाल (करीब 70 ग्राम), एक पीला कपड़ा (70 सेमी), सात पीले सिक्के और एक पंद्रह का यंत्र माता पार्वती का पूजन करके चालीस दिन तक घर में रखें। विवाह के निमित्त मनोकामना करें। इन चालीस दिनों के भीतर ही विवाह के आसार बनने लगेंगे।
2. लड़की को गुरुवार का व्रत करना चाहिए। उस दिन कोई पीली वस्तु का दान करे। दिन में न सोए, पूरे नियम संयम से रहे।
3. सावन के महीने में शिवजी को रोजाना बिल्व पत्र चढ़ाए। बिल्व पत्र की संख्या 108 हो तो सबसे अच्छा परिणाम मिलता है।
4. शिवजी का पूजन कर निर्माल्य का तिलक लगाए तो भी जल्दी विवाह के योग बनते हैं।
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जानिए संतान होने और नही होने की तरीका या टोटका --
पुरुष और स्त्री के दाहिने हाथ मे साफ़ मिट्टी रख कर उसके अन्दर थोडा दही और पिसी शुद्ध हल्दी रखनी चाहिये,यह काम रात को सोने से पहले करना चाहिये,सुबह अगर दोनो के हाथ में हल्दी का रंग लाल हो गया है तो संतान आने का समय है,स्त्री के हाथ में लाल है और पुरुष के हाथ में पीली है तो स्त्री के अन्दर कामवासना अधिक है,पुरुष के हाथ में लाल हो गयी है और स्त्री के हाथ में नही तो स्त्री रति सम्बन्धी कारणों से ठंडी है,और संतान पैदा करने में असमर्थ है,कुछ समय के लिये रति  क्रिया को बंद कर देना चाहिये।
---चार गुरुवार  को 900 ग्राम जौं चलते जल में बहाए |
---गुरुवार का व्रत भी रखना शुभ और लाभकारी होगा |
---श्री राधा कृष्णजी के मंदिर में शुक्ल पक्ष के वीरवार या जन्माष्टमी को चाँदी की बांसुरी चढाये |
---लाल या भूरी गायें को आट्टे का पेढा व पानी दे |
इन उपाय में से कोई भी उपाय मन से करने से मनोकामना पूरी होगी |
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इस गुप्त नवरात्री धन लाभ के लिए करें यह उपाय---
हिंदू पंचांग के अनुसार  (माघ शुक्ल प्रतिपदा) गुप्त नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। इनकी आराधना करने से गुप्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यदि आप धन लाभ चाहते हैं तो आज से लगातार 9 दिनों तक नीचे लिखे उपाय में से कोई भी एक उपाय करें। धन लाभ होने लगेगा।

उपाय 1- पीपल के पत्ते पर राम लिखकर तथा कुछ मीठा रखकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं। इससे धन लाभ होने लगेगा। 2- भगवान शंकर को प्रतिदिन सुबह चावल तथा बिल्व पत्र चढ़ाएं। शीघ्र ही आपकी धन की इच्छा पूरी होगी।
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यदि आपके परिवार में सुख-शांति नहीं है और परिजनों में प्रतिदिन किसी न किसी बात पर विवाद होता रहता है तो गुप्त नवरात्रि में एक छोटा का उपाय कर आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं। यह उपाय इस प्रकार है-
उपाय----
यदि परिजनों के मध्य अशांति हो रही हो तो नवरात्रि के अंतिम तीन दिन इस मंत्र को स्फटिक की माला से भगवान राम और माता सीता के सम्मुख 324(तीन माला) बार जपें। इसके बाद अंतिम नवरात्र को इस मंत्र का उच्चारण करते हुए 11 बार घी से अग्नि में आहुति प्रदान करें। भगवान को खीर का भोग लगाएं। कुछ ही समय में आपके परिवार में सुख-शांति का वातावरण बन जाएगा।
मंत्र---
जब ते राम ब्याहि घर आए।
नित नव मंगल मोद बधाए।।

सोमवार, 23 जनवरी 2017

निर्वाणषटकम्

॥ निर्वाण षटकम्॥
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

शनिवार, 21 जनवरी 2017

आशा भोसले - अविश्वसनीय, अतुलनीय, अविस्मरणीय सख्सियत

  कहते हैं कि समय का असर सभी पर होता है, लेकिन 8 सितंबर 1933 को जन्मी आशा की आवाज में आज भी वही खनक और मोहक अंदाज मौजूद है।
अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है   उन्होंने अब तक के अपने फ़िल्मी सफर में 16000 गानों में अपनी आवाज दी है। वह सिर्फ हिंदी में नहीं बल्कि मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषायोँ में गाने गातीं हैं।
लता मंगेशकर की छोटी बहन और दीनानाथ मंगेशकर की पुत्री आशा ने फिल्मी और गैर फिल्मी लगभग 16 हजार गाने गाये हैं और इनकी आवाज़ के प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषा के भी अनेक गीत गाए हैं। आशा भोंसले ने अपना पहला गीत वर्ष 1948 में सावन आया फिल्म चुनरिया में गाया।

आशा की विशेषता है कि इन्होंने शास्त्रीय संगीत, गजल और पॉप संगीत हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है और एक समान सफलता पाई है। उन्होने आर॰ डी॰ बर्मन से शादी की थी।

आशा भोसले का जन्म 8 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के ‘सांगली’ में हुआ। इनके पिता दीनानाथ मंगेसकर प्रसिद्ध गायक एवं नायक थे। जिन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा काफी छोटी उम्र मे ही आशा जी को दी। आशा जी जब केवल 9 वर्ष की थीं, इनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के मरणोपरांत, इनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और उसके बाद बम्बई आ गया। परिवार की सहायता के लिए आशा और इनकी बड़ी बहन लता मंगेसकर ने गाना और फिल्मों मे अभिनय शुरू कर दिया। 1943 में इन्होने अपनी पहली फिल्म (मराठी) ‘माझा बाळ’ में गीत गाया। यह गीत ‘चला चला नव बाळा...’ दत्ता दवाजेकर के द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। 1948 में हिन्दी फिल्म ‘चुनरिया’ का गीत ‘सावन आया।..’ हंसराज बहल के लिए गाया। दक्षिण एशिया की प्रसिद्ध गायिका के रूप में आशा जी ने गीत गाए। फिल्म संगीत, पॉप, गज़ल, भजन, भारतीय शास्त्रीय संगीत, क्षेत्रीय गीत, कव्वाली, रवीन्द्र संगीत और नजरूल गीत इनके गीतों मे सम्मिलित है। इन्होंने 14 से ज्यादा भाषाओं मे गीत गाए यथा– मराठी, आसामी, हिन्दी, उर्दू, तेलगू, मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, अंग्रेजी, रशियन, जाइच, नेपाली, मलय और मलयालम। 12000 से अधिक गीतों को आशा जी ने आवाज दी।

विवाह एवं व्यक्तिगत जीवन
16 वर्ष की उम्र में अपने 31 वर्षीय प्रेमी ‘गणपत राव भोसले’ (1916-1966) के साथ घर से पलायन कर पारिवारिक इच्छा के विरूद्ध विवाह किया। गणपत राव लता जी के निजी सचिव थे। यह विवाह असफल रहा। पति एवं उनके भाइयों के बुरे वर्ताव के कारण इस विवाह का दु:खान्त हो गया। 1960 के आसपास विवाह विच्छेद के बाद आशा जी अपनी माँ के घर दो बच्चों और तीसरे गर्भस्थ शिशु (आनन्द) के साथ लौट आईं। 1980 ई. मे आशा जी ने ‘राहुल देव वर्मन’(पंचम) से विवाह किया। यह विवाह आशा जी ने राहुल देव वर्मन के अंतिम सांसो तक सफलतापूर्वक निभाया।

आशा जी का घर दक्षिण मुम्बई, पेडर रोड क्षेत्र में प्रभुकुंज अपार्टमेंट में स्थित है। इनके तीन बच्चे हैं। साथ ही पाँच पौत्र भी है। इनका सबसे बड़ा लड़का हेमंत भोसले है। हेमंत ने पायलट के रूप मे अधिकांश समय बिताया। आशाजी की बेटी जो हेमंत से छोटी है “वर्षा”। वर्षा ने ‘द सनडे ऑबजरवर’ और ‘रेडिफ’ के लिए कॉलम लिखने का काम किया। आशाजी का सबसे छोटा पुत्र आनन्द भोसले है। आनन्द ने बिजनेस और फिल्म निर्देशन की पढाई की। आनन्द भोसले ही आशा के करियर की इन दिनों देखभाल कर रहे है। हेमंत भोसले के सबसे बड़े पुत्र चैतन्या (चिंटु) “बॉय बैण्ड” के सफल सदस्य के रूप में विश्व संगीत से जुड़े हुए है। अनिका भोसले (हेमंत भोसले की पुत्री) सफल फोटोग्राफर के रूप मे कार्य कर रही है। आशा जी की बहनें लता मंगेसकर और उषा मंगेसकर गायिका है। इनकी अन्य दो सहोदर बहन मीना मंगेसकर और भाई हृदयनाथ मंगेसकर संगीत निर्देशक है। आशाजी गायिका के अलावा बहुत अच्छी कुक (रसोईया) है। कुकिंग इनका पसंदीदा शौक है। बॉलीवुड के बहुत सारे लोग आशा जी के हाथों से बनें ‘कढाई गोस्त’ एवं ‘बिरयानी’ के लिए अनुरोध करते है। आशा जी भी इनकार नही करती है। बॉलीवुड के ‘कपुर’ खानदान में आशा जी द्वारा बनाए गये ‘पाया करी’, ‘गोझन फिश करी’ और ‘दाल’ काफी प्रसिद्ध है। एक बार जब ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के एक साक्षात्कार मे पुछा गया कि यदि आप गायिका न होती तो क्या करती? आशा जी ने जबाब दिया कि मै एक अच्छी रसोईया (कुक) बनती। आशा जी एक सफल रेस्तरॉ संचालिका है। इनके रेस्तरॉ दुबई और कुवैत में आशा नाम से प्रसिद्ध है।‘वाफी ग्रुप’ द्वारा संचालित रेस्तरॉ मे आशा जी के 20% भागीदारी है। वाफी सीटी दुबई और दो रेस्तरॉ कुवैत मे पारम्परिक उत्तर भारतीय व्यंजन के लिए प्रसिद्ध है। आशा जी ने ‘कैफ्स’ को स्वंय 6 महीनो का ट्रेंनिग दिया है। दिसम्बर 2004 ‘मेनु मैगजीन’ के रिपोर्ट के अनुसार ‘रसेल स्कॉट’ जो ‘हैरी रामसदेन’ के प्रमुख है आने वाले पाँच सालो मे आशा जी के ब्रैण्ड के अंतर्गत 40 रेस्तरॉ पुरे यू॰के॰ के अन्दर खोलने की घोषणा की है। इसी क्रम मे आशा जी की की रेस्तरॉ ‘बरमिंगम’ यू॰के॰ मे खोला गया है। आशा जी की फैशन और पहनावे में सफेद साड़ी चमकदार किनारो वाली, गले मे मोतियों के हार और हीरा प्रसिद्ध है। आशा जी एक अच्छी ‘मिमिक्री’ अदाकारा भी है।

गायिकी के क्षेत्र मे संघर्ष
एक समय जब प्रसिद्ध गायिका यथा- गीता दत, शमशाद बेगम और लता मंगेसकर का जमाना था। चारो ओर इन्ही का प्रभुत्व था। आशा जी गाना चाहती थी पर इन्हे गाने का मौका तक नही दिया जाता था। आशा जी सिर्फ दुसरे दर्जे की फिल्मों के लिए ही गा पाती थी। 1950 के दशक में बॉलीवुड के अन्य गायिकाओं की तुलना मे आशा जी ने कम बजट की ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड फिल्मों के लिए बहुत से गीत गाए। इनके गीतो के संगीतकार ए. आर. कुरैशी (अल्ला रख्खा खान), सज्जाद हुसैन और गुलाम मोहम्मद थे। जो काफी असफल रहे। 1952 ई. मे दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म ‘संगदिल’ जिसके संगीतकार सज्जाद हुसैन थे, ने प्रसिद्धि दिलाई। परिणाम स्वरूप विमल राय ने एक मौका आशा जी को अपनी फिल्म ‘परिणीता’ (1953) के लिए दिया। राज कपुर ने गीत ‘नन्हे मुन्ने बच्चे।...’ के लिए मोहम्मद रफी के साथ फिल्म ‘बुट पॉलिश्’(1954) के लिए अनुबंधित किया जिसने काफी प्रसिद्धि आशा जी को दिलाई। ओ.पी. नैयर ने आशा जी को बहुत बड़ा अवसर ‘सी. आई. डी.’(1956) के गीत गाने के लिए दिया। इस प्रकार 1957 की फिल्म ‘नया दौर’ बी. आर. चोपड़ा ने नैयर साहब के संगीतकार रूप मे आशा जी को बी. आर. चोपड़ा से पहली सफलता प्राप्त हुई। इस साझेदारी ने कई प्रसिद्ध गीतो को जनमानस के बीच लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फिर सचिन देव वर्मन और रवि जैसे संगीतकारो ने भी आशा जी को मौका दिया। 1966 ई. मे संगीतकार आर. डी. वर्मन की सफलतम फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ मे आशा जी ने आर. डी. वर्मन के साथ काफी प्रसिद्धि बटोरी। 1960 से 1970 के बीच प्रसिद्ध डॉसर हेलन की आवाज बनी। ऐसा कहा जाता है कि जब भी आशा जी गाती थी तो हेलन रिकाडिंग के समय मौजुद रहती थी ताकि गाने को अच्छी तरह समझ सके और अच्छी तरह नृत्य उस गाने पर कर सके। आशा जी और हेलन के प्रसिद्ध गीतों मे ‘पिया तु अब तो आजा...’(कारवॉ), ‘ ओ हसीना जुल्फो वाली...’(तीसरी मंजिल) और ‘ये मेरा दिल...(डॉन) शामिल है। 1981 मे उमराव जान और इजाजत (1987) मे पारम्परिक गज़ल गाकर आशा जी ने आलोचकों को करारा जबाब दिया। अपनी गायन प्रतिभा का लोहा मनवाया। इन्ही दिनो इन्हे उपरोक्त दोनो फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ‘बेस्ट फिमेल प्लेबैक सिंगर’ मिला। आशा जी 1990 तक लगातार गाती रही। 1995 की हिट फिल्म ‘रंगीला’ से एक बार पुन: अपनी दुसरी पारी का आरंभ किया। 2005 मे 72 वर्षीय आशा जी ने तमिल फिल्म ‘चन्द्रमुखी’ और पॉप संगीत ‘लक्की लिप्स...’ सलमान खान अभिनित के लिए गाया जो चार्ट बस्टर मे प्रसिद्ध रहा। अक्टूबर 2004,’द वेरी बेस्ट ऑफ आशा भोसले’, ‘द क्वीन ऑफ बॉलीवुड’ आशा जी के द्वारा गाए गीतो का एलबम (1966-2003) रिलिज किया गया।

फिल्म जो मिल का पत्थर साबित हुई
आशा भोसले जी के गायिकी के कैरियर मे चार फिल्मे मिल का पत्थर, साबित हुई- नया दौड (1957), तीसरी मंजिल (1966), उमरॉव जान (1981) और रंगीला (1995)। नया दौर (1957):- आशा भोसले जी की पहली बड़ी सफल फिल्म बी. आर. चोपड़ा की ‘नया दौर’(1957) थी। मो. रफी के साथ गाए उनके गीत यथा ‘माँग के हाथ तुम्हारा....’, ‘साथी हाथ बढ़ाना...’ और ‘उड़े जब जब जुल्फे तेरी...’ शाहिर लुधियानवी के द्वारा लिखित और ओ. पी. नैयर द्वरा संगीतबद्ध एक खास पहचान दी। आशा जी ने ओ.पी. नैयर के साथ पहले भी काम किया था पर यह पहली फिल्म थी जिसके सारे गीत आशा जी प्रमुख अभिनेत्री के लिए गाई थी। प्रोड्यूसर बी. आर. चोपडा ने नया दौर में उनकी प्रतिभा की पहचान कर आने वाली बाद की फिल्मों मे पुन: मौका दिया। उनमे प्रमुख फिल्म- वक्त, गुमराह, हमराज, आदमी और इंसान और धुंध आदि है। तिसरी मंजिल (1966):- आशा भोसले ने राहुल देव वर्मन की ‘तीसरी मंजिल’(1966) से काफी प्रसिद्ध हुई। जब पहले उन्होने गाने की धुन सुनी तो गीत ‘आजा आजा...’ इस गीत को गाने से इनकार कर दिया था, जो वेस्टर्न डांस नम्बर पर आधारित थी। तब आर. डी. वर्मन ने संगीत को बदलने का प्रस्ताव आशा जी को दिया किंतु आशा जी ने यह चैलेंज स्वीकार करते हुए गीत गाए। 10 दिन के अभ्यास के बाद जब अंतिम तौर पर यह खास गीत आशा जी ने गाए तो खुशी के कायल आर. डी. वर्मन ने 100 रूपये के नोट आशा जी के हाथ मे रख दिए। आजा आजा.... और इस फिल्म के अन्य गीत – ओ हसीना जुल्फो वाली... और ओ मेरे सोना रे.... ये सभी गीत रफी जी के साथ तहलका मचा दिया। शम्मी कपूर इस फिल्म के नायक ने एक बार कहा था “यदि मे पास मो. रफी इस फिल्म के गीतो को गाने के लिए नही होते तो मै आशा भोसले को यह कार्य देता”। उमराव जान (1981):- रेखा अभिनित ‘उमराव जान’(1981) आशा जी ने गज़ल गाया यथा- दिल चीज क्या है।..., इन आँखों की मस्ती के..., ये क्या जगह है दोस्तों... और जुस्त जु जिसकी थी।..। इन गज़लों के संगीतकार खय्याम थे जिन्होने आशा जी से सफलतापूर्वक गज़लो को गाने के लिए स्वरों के उतार चढाव को समझाया। आशा जी स्वयं आश्चर्यचकित थी कि वह इन गज़लो को सफलतापूर्वक गाई है। इन गज़लों ने आशा जी को प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया और उनकी बहुमुखी प्रतिभा साबित हुई। रंगीला (1995):- सन 1995 मे 62 वर्षीय आशा जी ने युवा अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर के लिए फिल्म रंगीला में गाई। इन्होने फिर अपने चाहनेवालों को आश्चर्यचकित कर दिया। सुपर हिट गीत यथा- तन्हा तन्हा... और रंगीला रे... गीत ए. आर. रहमान के संगीत निर्देशन मे गाई जो काफी प्रसिद्ध हुआ। बाद मे कई अन्य गीतों को ए. आर. रहमान के निर्देशन में गाई। तन्हा तन्हा... गीत काफी प्रसिद्ध हुआ और आज भी लोग गुनगुनाते है।


आशा की आवाज में विशेषता है उन्होंने शास्त्रीय संगीत, कव्वाली, भजन, गजल और पॉप संगीत हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है। हिंदी के अलावा आशाजी ने अन्य 20 भारतीय और विदेशी भाषाओ में भी गाने गाय है। आशाजी ने 2006 में कहा की उन्होंने अब तक 12,000 गाने गाए है। 2011 में आशाजी को सबसे ज्यादा गाने रिकॉर्ड करने के लिए गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने चुना। भारतीय सरकार द्वारा आशाजी को सन 2000 मे “दादा साहेब फाल्के अवार्ड” और 2008 में “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया। 2013 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म “माई” अभिनेत्री के रूप में की थी और उनकी इस फिल्म के किरदार के लिए काफी प्रशंसा की गयी थी।

आशा भोसले का जन्म महाराष्ट्र 8 सितम्बर 1933 में ‘सांगली’ में मराठा समाज के घर हुआ है। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर एक एक्टर और क्लासिकल गायक थे। आशा जी जब केवल 9 वर्ष की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। फिर उनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और उसके बाद मुंबई आ गया। परिवार की सहायता के लिए आशा और इनकी बड़ी बहन लता मंगेसकर ने गाना और फिल्मों मे अभिनय शुरू कर दिया। 1943 में उन्होने अपनी पहली मराठी फिल्म ‘माझा बाळ’ में “चला चला नाव बाळा” गीत गाया जिसे दत्ता दवाजेकर के द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। उन्होंने 1948 में अपनी पहली हिन्दी फिल्म ‘चुनरिया’ का गीत ‘सावन आया…’ हंसराज बहल के लिए गाया। उन्होंने 1949 में अपना पहला हिंदी सोलो (Solo) गाना “रात की रानी” फिल्म में गाया।
निजी एलबम संपादित करें

8 सितम्बर 1987 आशा जी के जन्म दिवस पर “दिल पड़ोसी है” नामक एलबम, गुलजार द्वारा रचित और आर.डी.वर्मन द्वारा संगीतबद्ध जारी किया गया। आशा जी उस्ताद अली अकबर खान से 1995 में विशेष रूप से मिली, बाद मे आशा जी ने उस्ताद अली अकबर खान के साथ ग्यारह बंदिसे रिकार्ड की ’कैलीफिर्निया मे’। जो ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित हुआ। 1990 मे आर.डी.वर्मन द्वारा संगीतबद्ध गीतो को आशा जी ने ‘रिमिक्स’ कर प्रयोगात्मक अनुभव किया जो कई लोगों द्वारा आलोचना का विषय बना। संगीतकार खय्याम ने भी इसकी आलोचना की। किंतु ‘राहुल और मै’ नामक एलबम काफी प्रसिद्ध रही। इंडोपॉप एलबम ‘जानम समझा करो’ लेस्ली लुईस के साथ काफी प्रसिद्ध रहा। कई पुरस्कारो सहित 1997 एम.टी.वी. एवार्ड इस खास एलबम को मिला। 2002 ई. मे अपनी एलबम ‘आप की आशा’ जो आठ गीतों वाला वीडियो एलबम था, खुद आशा जी ने संगीत तैयार किया। इसके गीत मुजरूह सुल्तांनपुरी द्वारा रचित (अंतिम रचना सुलतान पुरी द्वारा) था। 21 मई 2001 को सचिन तेन्दुलकर द्वारा मुम्बई मे एक खास पार्टी मे यह एलबम जारी किया गया।

जब पाकिस्तानी गायक अदनान सामी सिर्फ 10 वर्ष के थे तब आशा जी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। आशा जी ने अदनान सामी को गायन प्रतिभा विकसित कर आगे बढने के लिए प्रेरित किया। जब अदनान बडे हुए तब आशा जी के साथ’कभी तो नजर मिलाओ’ एलबम मे गीत गाए जो काफी प्रसिद्ध रहा। फिर ‘बरसे बादल’ नामक एलबम में भी अदनान सामी के साथ गाई। आशा जी ने कई एलबमों के लिए गज़ल गाई यथा-मीराज-ए-गज़ल, अबशहर-ए-गज़ल और कशीश। 2005 मे आशा जी ने एलबम ‘आशा’ जो चार गज़ल गायको को समर्पित था- मेंहदी हसन, गुलाम अली, फरीदा खानम और जगजीत सिंह जारी किया। इस एलबम मे आशा जी के आठ पसंदीदा गजल यथा- फरीदा खानम की ‘आज जाने की जिद ना करो..., गुलाम अली की ‘चुपके चुपके...’, ‘आवारगी...’ और ‘दिल मे एक लहर...’ जगजीत सिह की ‘आहिस्ता आहिस्ता...’, मेहदी हसन की ‘रंजीश है सही...’,’रफ्ता रफ्ता...’ और ‘मुझे तुम नजर से...’ शामिल था। इसके संगीतकार पंडित सोमेश माथुर थे जिन्होने युवाओ के ध्यान मे रखते हुए संगीत दिए। आशाजी के 60वें जन्मदिवस पर इ.एम.आई. इंडिया ने तीन कैसेट जारी किए- ‘बाबा मै बैरागन होंगी (भक्ति गीत)’, ‘द गोलडेन कलैक्सन-गज़ल (संगीतकार गुलाम अली, आर.डी.वर्मन और नजर हुसैन)’ और ‘द गोलडेन कलेक्शन- द एवर भरसाटाइल आशा भोसले’ जो 44 प्रसिद्ध गीतो का संग्रह था। 2006 मे आशा जी ने ‘आशा एण्ड फ्रैण्डस’ नामक एलबम रिकार्ड किया जिनमे युगल गीत संजय दत्त और उर्मिला मातोंडकर के साथ गाए साथ ही प्रसिद्ध क्रिकेटर ब्रेट ली के साथ आशा जी ने ‘यू आर द वन फॉर मी (हाँ मै तुम्हारी हूँ)’ गीत गाए। इन गीतो के संगीतकार समीर टण्डन थे। इसका विडियो निर्माण एस. रामचन्द्रन ने किया (जो पत्रकार से निर्देशक् बने थे)।
संगीत निर्देशको के साथ साझेदारी

ओ.पी. नैयर
संगीतकार ओ.पी. नैयर की साझेदारी ने आशा भोसले जी को एक खास पहचान दिलाया। कई लोगों ने इनकी आपसी संबंध को प्रेम संबंध मान लिया। नैयर जी पहली बार 1952 मे आशा जी से एक गीत छम छमा छम... के संगीत रिकार्डिग के समय मिलें। पहली बार इन्होने फिल्म ‘माँगू’ (1954) के लिए आशा जी को बुलाया। फिर इन्होने एक बहुत बड़ा मौका फिल्म सी.आई.डी. (1956) मे आशा जी को दिया। इस प्रकार नया दौर (1957) की सफलता ने इन दोनो की प्रसिद्धी को बढ़ाया। 1959 के बाद भावानात्मक और व्यावसायिक तौर पर आशा जी नैयर जी के साथ जुड़ी रहीं।

ओ.पी.नैयर और आशा भोसले की यादगार फिल्मे यथा- मधुबाला पर फिल्मांकित गीत ‘आईये मेहरबाँ...’ (हावड़ा ब्रिज-1958) और मुमताज पर फिल्मांकित गीत ‘ये है रेशमी जुल्फो का अंधेरा...(मेरे सनम-1965) आदि है। ओ.पी. नैयर ने कई हिट गीतों को आशा जी के साथ रिकार्ड किया यथा- नया दौर (1957), तुमसा नही देखा (1957), हावड़ा ब्रिज (1958), एक मुसाफिर एक हसीना (1962), कशमीर की कली (1964) आदि। इनकी साझेदारी की कुछ प्रसिद्ध गीत- आओ हुजुर तुमको...(किस्मत), जाईये आप कहाँ जाएगे...(मेरे सनम) आदि है। ओ.पी.नैयर की मो. रफी एवं आशा जी के साथ युगल गीत काफी प्रसिद्ध हुए। इनके द्वारा गाए कुछ प्रमुख युगल गीत ‘उडे जब जब जुल्फे तेरी...(नया दौर), मै प्यार का राही हूँ...(एक मुसाफिर एक हसीना), दिवाना हुआ बादल..., इशारो इशारो मे...(काश्मीर की कली) आदि। 5 अगस्त 1972 को दोनो में अलगाव हो गया। यह स्पष्ट नही हो पाया कि किन कारणो से दोनो मे अलगाव हुआ।

खय्याम
दूसरे संगीतकार जिन्होने आशा जी के प्रतिभा को पहचाना और इनकी साझेदारी मे आशा जी ने इनकी पहली फिल्म बीबी (1948) के लिए गाई। 1950 मे खय्याम ने कई अच्छे अनुबंध आशा जी के साथ किए यथा-फिल्म- दर्द, फिर सुबह होगी आदि। किंतु उन दोनो की साझेदारी की सबसे यादगार फिल्म- उमराव जान के गीत रहे।

रवि:- संगीत निर्देशक रवि, आशा भोसले जी को अपनी पसंदीदा गायिका मे एक मानते थे। आशा जी इनकी पहली फिल्म वचन (1955) मे गीत गाई। चन्दा मामा दूर के.... गीत रातो रात भारतीय माँ के बीच प्रसिद्ध हो गया। जब अधिकांश संगीतकार आशा जी को बी-ग्रेड गीत गाने के लिए जानते थे उन दिनो रवि ने आशा जी से भजन गाने को कहा जिनमें ‘घराना’, ‘गृहस्थी’ ‘काजल’ और ‘फुल और पत्थर’ फिल्में प्रमुख है। रवि और आशा जी ने कई प्रसिद्ध गीतो का रिकार्ड किया जिनमे किशोर कुमार के साथ गाए उनके मजेदार गीत ‘सी ए टी..कैट माने बिल्ली...(दिल्ली का ठग) आदि है। रवि द्वारा संगीतबद्ध आशा जी के प्रसिद्ध भजन ‘तोरा मन दर्पण कहलाए...’(काजल) आदि है। इनकी साझेदारी में कई प्रसिद्ध फिल्मों के गीत रिकार्ड हुए यथा- वक्त, चौदहवी का चाँद, गुमराह, बहु-बेटी, चायना टाउन, आदमी और इंसान, धुंध, हमराज और काजल आदि है। चौदहवीं के चाँद मे रवि गीता दत्त (प्रोड्यूसर गुरू दत्त की पत्नी) से गीत गवाना चाहते थे किंतु गुरू दत के जिद के कारण आशा जी ने गीत गाए जो काफी प्रसिद्ध हुए।

सचिन देव वर्मन
प्रसिद्ध संगीत निर्देशक सचिन देव वर्मन की पसंदीदा गायिका लता मंगेस्कर से 1957 से 1962 के बीच अच्छे संबंध नहीं थे। उन दिनो सचिन देव वर्मन ने आशा भोसले जी का उपयोग किया। इन दोनो की साझेदारी ने कई हिट गीत दिए यथा- फिल्म काला पानी, काला बाजार, इंसान जाग उठा, लाजवंति, सुजाता और तीन देविया (1965) आदि है। 1962 के बाद भी दोनो ने कई गीतों को रिकार्ड किया। मो. रफी और किशोर कुमार के साथ गाए युगल गीत आशा जी के काफी प्रसिद्ध रहे। अब के बरस... गीत बिमल राय की फिल्म बंदनी (1963) ने आशा जी को प्रमुख गायिका के रूप मे स्थापित किया। अभिनेत्री तनुजा पर फिल्मांकित गीत रात अकेली है।..(ज्वेल थीफ,1967) काफी प्रसिद्ध हुआ।

राहुल देव वर्मन
आशा भोसले राहुल देव वर्मन जी से उस समय पहली बार मिली जब वह दो बच्चों की माँ थी और संगीतकार राहुल देव वर्मन (पंचम) की साझेदारी मे फिल्म तीसरी मंजिल (1966) मे पहली बार लोगों का ध्यान आकर्षित कर पाई। आशा जी ने आर. डी. वर्मन के साथ कैबरे, रॉक, डिस्को, गज़ल, भारतीय शास्त्रीय संगीत और भी बहुत गीत गाए। 1970 मे आशा भोसले जी ने पंचम के साथ कई युवा गीत गाए यथा- पिया तु अब तो आ जा.....(कारवॉ-1971) हेलन पर फिल्मांकित, दम मारो दम...(हरे रामा हरे कृष्णा-1971), दुनिया में...(अपना देश-1972) चुरा लिया है तुमने...(यादों की बारात-1973) आदि है। इसके आलावा पंचम के संगीत निर्देशन मे आशा जी ने किशोर कुमार के साथ कए प्रसिद्ध युगल गीत गाए यथा- जाने जाँ ढुढता फिर रहा...(जवानी दिवानी), भली भली सी एक सूरत...(बुढा मिल गया) आदि। 1980 मे पंचम और आशा जी कई प्रसिद्ध गीतो को रिकार्ड किया। फिल्म इजाजत (1987)- मेरा कुछ सामान..., खाली हाथ शाम आयी है।.., कतरा कतरा... आदि प्रसिद्ध प्रमुख प्रसिद्ध गीतो को रिकार्ड किया। ओ मारिया...(सागर) के गीतो को भी रिकार्ड किया। गुलजार की इजाजत को आर. डी. वर्मन के संगीत निर्देशन में आशा जी को राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बेस्ट सिंगर’ प्राप्त हुआ। आर. डी. वर्मन जी ने कई हिन्दी प्रसिद्ध गीतो को बंगाली भाषा मे आशा जी के आवाज को रिकार्ड किया यथा- ‘मोहुए झुमेछे आज माऊ गो, चोखे चोखे कोथा बोले चोखे नामे बृष्टि (बंगाली रूपांतरण गीत जाने क्या बात है।..) बंसी सुने की घोरे टाका जाए, संध्या बेले तुमी आमी..., आज गुन गुन जे आमर (बंगाली रूपांतरण गीत प्यार दीवाना होता है) आदि। यह प्रसिद्ध साझेदारी विवाह मे परिणित हुई। पंचम जी के अंतिम सांसो तक यह साझेदारी चली।

जय देव
संगीत निर्देशक जयदेव, एस. डी. वर्मन के सहायक के तौर पर पहले काम करते थे बाद मे इन्होने स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन करना शुरू किया। संगीतकार जयदेव ने आशा जी के साथ कई फिल्मों के गीत रिकार्ड किए, यथा- हम दोनो (1961), मुझे जीने दो (1963), दो बुँद पानी (1971) आदि। जयदेव और आशा जी ने फिल्मी गीतों के अलावा 8 गीतों का एक खास संग्रह जिनमे गज़ल एवं कुछ अन्य गीत शामिल थे को “एन अनफॉर्गेटेबल ट्रिट” के नाम से निकला। आशा जी, जयदेव की अच्छी मित्र मानी जाती थी। 1987 मे जयदेव जी के मरणोपरांत आशा जी ने कम प्रसिद्ध गीत जो जयदेव के द्वारा संगीतबद्ध था,’सुरांजली’ नाम से निकाला।

शंकर जयकिशन
शंकर जयकिशन ने आशा जी के साथ कम काम किया, फिर भी कुछ हिट गीत रिकार्ड किए यथा- परदे में रहने दो...(शिखर-1968) इस गीत के लिए आशा जी को द्वितीय फिल्म फेयर अवार्ड मिला। आशा जी ने एक प्रसिद्ध गीत शंकर जयकिशन के लिए गाए जो किशोर कुमार के आवाज में ज्यादा प्रसिद्ध था यथा- जिन्दगी का सफर है सुहाना...(अंदाज)। जब राज कपुर का लता मंगेसकर के साथ बातचीत बंद था, तब आशा जी ने शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन मे फिल्म मेरा नाम जोकर (1970) के गीत गाए।

इलैयाराजा संपादित 
दक्षिण भारतीय संगीत निर्देशक इलैयाराजा 1980 के दौरान आशा जी के आवाज को रिकार्ड करना शुरू किया। इन दोनो की साझेदारी में फिल्म ‘मुन्दरम पइराई (1982)(या सदमा, इसकी हिन्दी रीमेक 1983में) बनी। 1980 से 1990 के बीच इन दोनो की साझेदारी बनी रही। इस खास साझेदारी की प्रसिद्ध गीत ‘सीनबागमाइ’(इनगा ओरू पट्टुकारन-1987, तमिल फिल्म) आदि है। 2000 ई. मे आशा जी ने इलैयाराजा के संगीतनिर्देशन में कमल हसन की फिल्म ‘हे राम’ के मूल गीत गाई। जन्मों की ज्वाला....(या अपर्णा की थीम गीत) को गज़ल गायक हरिहरन के साथ युगल गीत गाई।

अनु मलिक
अनु मलिक और आशा जी ने कई हिट गीत रिकार्ड किए। जिनमे इनकी संगीतबद्ध पहली फिल्म ‘सोनीमहीवाल’(1984) शामिल है। अनु मलिक के संगीत निर्देशन मे बहुत प्रसिद्ध गीतो मे ‘फिलहाल...(फिलहाल), किताबें बहुत से...(बाजीगर) आदि शामिल है। अनु मलिक के संगीत निर्देशन मे आशा जी ने चार पंक्ति ‘जब दिल मिले...(यादें) सुखबिन्दर सिह, उदित नारायण और सुनिधि चौहान के साथ गाए। आशा जी ने अनु मलिक के पिता ‘सरदार मलिक’ के लिए 1950 ई. से 1960 ई. मे गाई जिनमे प्रसिद्ध फिल्म सारंगा (1960) शामिल है।

ए. आर. रहमान
1995 फिल्म ‘रंगीला’ से आशा जी ने ए. आर. रहमान संगीत निर्देशक के साथ अपनी दुसरी पारी के शुरूआत की। इसका श्रेय ए. आर. रहमान को जाता है। चार्टबस्टर के हिट गीत तन्हा तन्हा... और रंगीला रे... से आशा जी को पुन: प्रसिद्धि मिली। रहमान और आशा जी की साझेदारी मे कई गीत रिकार्ड हुए जिनमे हिट गीत ‘मुझे रंग दे...(त्क्षक)’, राधा कैसे न जले...(लगान, युगल गीत उदित नारायण के साथ), कही आग लगे...(ताल), ओ भवरें...(दौड, युगल गीत के.जे.यशुदास), वीनीला वीनीला...(अरूवर-1999) प्रमुख है। रहमान ने एक बार कहा-“मै सोचता हूँ आशा और लता जी के कद मे जो संगीत फिट बैठ्ता है वैसा मैने तैयार किया।”

अन्य संगीत निर्देशक
मदन मोहन ने ‘झुमका गिरा रे...(मेरा साया-1966) के प्रसिद्ध गीत को आशा जी की आवाज मे रिकार्ड किया। सलिल चौधरी ने फिल्म छोटी सी बात (1975) मे जानेमन जानेमन... युगल गीत के.जे.यशुदास के साथ रिकार्ड किया। सलिल चौधरी की फिल्म जागते रहो (1956) गीत ‘ठंडी ठंडी सावन की फुहार...’ आशा जी की आवाज मे रिकार्ड किया। संगीतकार संदीप चौटा के साथ आशा जी ने ‘कमबख्त इश्क ..(एक युगल गीत सोनू निगम के साथ) फिल्म प्यार तुने क्या किया (2001) के लिए गाई जो युवाओं में काफी लोकप्रिय हुआ। आशा जी ने लक्षमीकांत-प्यारेलाल, नौशाद, रवीन्द्र् जैन, एन. दता, हेमंत कुमार के लिए गाए और साथ काम किया। बॉलीवुड के अन्य प्रसिद्ध संगीतकार के साथ भी आशा जी ने काम किया जिनमे जतिन ललित, बप्पी लाहिरी, कल्याण जी आन्नद जी, उषा खन्ना, चित्रगुप्त एवं रौशन शामिल है।
1997 मई आशा जी पहली भारतीय गायिका बनी जो ‘ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित की गई (उस्ताद अली अकबर खान के साथ एक विशेष एलबम के लिए)
आशा जी “सत्तरहवी महाराष्ट्र स्टेट अवार्ड” प्राप्त की।
भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए सन 2000 मे “दादा साहेब फाल्के अवार्ड” से सम्मानित की गई।
आशा जी को साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि से अमरावती विश्वविद्यालय एवं जलगाँव विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित किया गया।
“द फ्रिडी मरकरी अवार्ड” कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए आशा जी को इस खास पुरस्कार से सममानित किया गया।
नवम्बर 2002 मे आशा जी को “बर्मिंघम फिल्म फेस्टिवल” विशेष रूप से समर्पित किया गया।
“पद्म विभूषण” के द्वारा राष्टपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 5 मई 2008(सोमवार) को आशा जी को सम्मानित किया। यह सम्मान भारत सरकार के महत्वपूर्ण सम्मानो में एक है।

आशा भोसले - अविश्वसनीय, अतुलनीय, अविस्मरणीय सख्सियत

  कहते हैं कि समय का असर सभी पर होता है, लेकिन 8 सितंबर 1933 को जन्मी आशा की आवाज में आज भी वही खनक और मोहक अंदाज मौजूद है।
अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है   उन्होंने अब तक के अपने फ़िल्मी सफर में 16000 गानों में अपनी आवाज दी है। वह सिर्फ हिंदी में नहीं बल्कि मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषायोँ में गाने गातीं हैं।
लता मंगेशकर की छोटी बहन और दीनानाथ मंगेशकर की पुत्री आशा ने फिल्मी और गैर फिल्मी लगभग 16 हजार गाने गाये हैं और इनकी आवाज़ के प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषा के भी अनेक गीत गाए हैं। आशा भोंसले ने अपना पहला गीत वर्ष 1948 में सावन आया फिल्म चुनरिया में गाया।

आशा की विशेषता है कि इन्होंने शास्त्रीय संगीत, गजल और पॉप संगीत हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है और एक समान सफलता पाई है। उन्होने आर॰ डी॰ बर्मन से शादी की थी।

आशा भोसले का जन्म 8 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के ‘सांगली’ में हुआ। इनके पिता दीनानाथ मंगेसकर प्रसिद्ध गायक एवं नायक थे। जिन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा काफी छोटी उम्र मे ही आशा जी को दी। आशा जी जब केवल 9 वर्ष की थीं, इनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के मरणोपरांत, इनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और उसके बाद बम्बई आ गया। परिवार की सहायता के लिए आशा और इनकी बड़ी बहन लता मंगेसकर ने गाना और फिल्मों मे अभिनय शुरू कर दिया। 1943 में इन्होने अपनी पहली फिल्म (मराठी) ‘माझा बाळ’ में गीत गाया। यह गीत ‘चला चला नव बाळा...’ दत्ता दवाजेकर के द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। 1948 में हिन्दी फिल्म ‘चुनरिया’ का गीत ‘सावन आया।..’ हंसराज बहल के लिए गाया। दक्षिण एशिया की प्रसिद्ध गायिका के रूप में आशा जी ने गीत गाए। फिल्म संगीत, पॉप, गज़ल, भजन, भारतीय शास्त्रीय संगीत, क्षेत्रीय गीत, कव्वाली, रवीन्द्र संगीत और नजरूल गीत इनके गीतों मे सम्मिलित है। इन्होंने 14 से ज्यादा भाषाओं मे गीत गाए यथा– मराठी, आसामी, हिन्दी, उर्दू, तेलगू, मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, अंग्रेजी, रशियन, जाइच, नेपाली, मलय और मलयालम। 12000 से अधिक गीतों को आशा जी ने आवाज दी।

विवाह एवं व्यक्तिगत जीवन
16 वर्ष की उम्र में अपने 31 वर्षीय प्रेमी ‘गणपत राव भोसले’ (1916-1966) के साथ घर से पलायन कर पारिवारिक इच्छा के विरूद्ध विवाह किया। गणपत राव लता जी के निजी सचिव थे। यह विवाह असफल रहा। पति एवं उनके भाइयों के बुरे वर्ताव के कारण इस विवाह का दु:खान्त हो गया। 1960 के आसपास विवाह विच्छेद के बाद आशा जी अपनी माँ के घर दो बच्चों और तीसरे गर्भस्थ शिशु (आनन्द) के साथ लौट आईं। 1980 ई. मे आशा जी ने ‘राहुल देव वर्मन’(पंचम) से विवाह किया। यह विवाह आशा जी ने राहुल देव वर्मन के अंतिम सांसो तक सफलतापूर्वक निभाया।

आशा जी का घर दक्षिण मुम्बई, पेडर रोड क्षेत्र में प्रभुकुंज अपार्टमेंट में स्थित है। इनके तीन बच्चे हैं। साथ ही पाँच पौत्र भी है। इनका सबसे बड़ा लड़का हेमंत भोसले है। हेमंत ने पायलट के रूप मे अधिकांश समय बिताया। आशाजी की बेटी जो हेमंत से छोटी है “वर्षा”। वर्षा ने ‘द सनडे ऑबजरवर’ और ‘रेडिफ’ के लिए कॉलम लिखने का काम किया। आशाजी का सबसे छोटा पुत्र आनन्द भोसले है। आनन्द ने बिजनेस और फिल्म निर्देशन की पढाई की। आनन्द भोसले ही आशा के करियर की इन दिनों देखभाल कर रहे है। हेमंत भोसले के सबसे बड़े पुत्र चैतन्या (चिंटु) “बॉय बैण्ड” के सफल सदस्य के रूप में विश्व संगीत से जुड़े हुए है। अनिका भोसले (हेमंत भोसले की पुत्री) सफल फोटोग्राफर के रूप मे कार्य कर रही है। आशा जी की बहनें लता मंगेसकर और उषा मंगेसकर गायिका है। इनकी अन्य दो सहोदर बहन मीना मंगेसकर और भाई हृदयनाथ मंगेसकर संगीत निर्देशक है। आशाजी गायिका के अलावा बहुत अच्छी कुक (रसोईया) है। कुकिंग इनका पसंदीदा शौक है। बॉलीवुड के बहुत सारे लोग आशा जी के हाथों से बनें ‘कढाई गोस्त’ एवं ‘बिरयानी’ के लिए अनुरोध करते है। आशा जी भी इनकार नही करती है। बॉलीवुड के ‘कपुर’ खानदान में आशा जी द्वारा बनाए गये ‘पाया करी’, ‘गोझन फिश करी’ और ‘दाल’ काफी प्रसिद्ध है। एक बार जब ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के एक साक्षात्कार मे पुछा गया कि यदि आप गायिका न होती तो क्या करती? आशा जी ने जबाब दिया कि मै एक अच्छी रसोईया (कुक) बनती। आशा जी एक सफल रेस्तरॉ संचालिका है। इनके रेस्तरॉ दुबई और कुवैत में आशा नाम से प्रसिद्ध है।‘वाफी ग्रुप’ द्वारा संचालित रेस्तरॉ मे आशा जी के 20% भागीदारी है। वाफी सीटी दुबई और दो रेस्तरॉ कुवैत मे पारम्परिक उत्तर भारतीय व्यंजन के लिए प्रसिद्ध है। आशा जी ने ‘कैफ्स’ को स्वंय 6 महीनो का ट्रेंनिग दिया है। दिसम्बर 2004 ‘मेनु मैगजीन’ के रिपोर्ट के अनुसार ‘रसेल स्कॉट’ जो ‘हैरी रामसदेन’ के प्रमुख है आने वाले पाँच सालो मे आशा जी के ब्रैण्ड के अंतर्गत 40 रेस्तरॉ पुरे यू॰के॰ के अन्दर खोलने की घोषणा की है। इसी क्रम मे आशा जी की की रेस्तरॉ ‘बरमिंगम’ यू॰के॰ मे खोला गया है। आशा जी की फैशन और पहनावे में सफेद साड़ी चमकदार किनारो वाली, गले मे मोतियों के हार और हीरा प्रसिद्ध है। आशा जी एक अच्छी ‘मिमिक्री’ अदाकारा भी है।

गायिकी के क्षेत्र मे संघर्ष
एक समय जब प्रसिद्ध गायिका यथा- गीता दत, शमशाद बेगम और लता मंगेसकर का जमाना था। चारो ओर इन्ही का प्रभुत्व था। आशा जी गाना चाहती थी पर इन्हे गाने का मौका तक नही दिया जाता था। आशा जी सिर्फ दुसरे दर्जे की फिल्मों के लिए ही गा पाती थी। 1950 के दशक में बॉलीवुड के अन्य गायिकाओं की तुलना मे आशा जी ने कम बजट की ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड फिल्मों के लिए बहुत से गीत गाए। इनके गीतो के संगीतकार ए. आर. कुरैशी (अल्ला रख्खा खान), सज्जाद हुसैन और गुलाम मोहम्मद थे। जो काफी असफल रहे। 1952 ई. मे दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म ‘संगदिल’ जिसके संगीतकार सज्जाद हुसैन थे, ने प्रसिद्धि दिलाई। परिणाम स्वरूप विमल राय ने एक मौका आशा जी को अपनी फिल्म ‘परिणीता’ (1953) के लिए दिया। राज कपुर ने गीत ‘नन्हे मुन्ने बच्चे।...’ के लिए मोहम्मद रफी के साथ फिल्म ‘बुट पॉलिश्’(1954) के लिए अनुबंधित किया जिसने काफी प्रसिद्धि आशा जी को दिलाई। ओ.पी. नैयर ने आशा जी को बहुत बड़ा अवसर ‘सी. आई. डी.’(1956) के गीत गाने के लिए दिया। इस प्रकार 1957 की फिल्म ‘नया दौर’ बी. आर. चोपड़ा ने नैयर साहब के संगीतकार रूप मे आशा जी को बी. आर. चोपड़ा से पहली सफलता प्राप्त हुई। इस साझेदारी ने कई प्रसिद्ध गीतो को जनमानस के बीच लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फिर सचिन देव वर्मन और रवि जैसे संगीतकारो ने भी आशा जी को मौका दिया। 1966 ई. मे संगीतकार आर. डी. वर्मन की सफलतम फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ मे आशा जी ने आर. डी. वर्मन के साथ काफी प्रसिद्धि बटोरी। 1960 से 1970 के बीच प्रसिद्ध डॉसर हेलन की आवाज बनी। ऐसा कहा जाता है कि जब भी आशा जी गाती थी तो हेलन रिकाडिंग के समय मौजुद रहती थी ताकि गाने को अच्छी तरह समझ सके और अच्छी तरह नृत्य उस गाने पर कर सके। आशा जी और हेलन के प्रसिद्ध गीतों मे ‘पिया तु अब तो आजा...’(कारवॉ), ‘ ओ हसीना जुल्फो वाली...’(तीसरी मंजिल) और ‘ये मेरा दिल...(डॉन) शामिल है। 1981 मे उमराव जान और इजाजत (1987) मे पारम्परिक गज़ल गाकर आशा जी ने आलोचकों को करारा जबाब दिया। अपनी गायन प्रतिभा का लोहा मनवाया। इन्ही दिनो इन्हे उपरोक्त दोनो फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ‘बेस्ट फिमेल प्लेबैक सिंगर’ मिला। आशा जी 1990 तक लगातार गाती रही। 1995 की हिट फिल्म ‘रंगीला’ से एक बार पुन: अपनी दुसरी पारी का आरंभ किया। 2005 मे 72 वर्षीय आशा जी ने तमिल फिल्म ‘चन्द्रमुखी’ और पॉप संगीत ‘लक्की लिप्स...’ सलमान खान अभिनित के लिए गाया जो चार्ट बस्टर मे प्रसिद्ध रहा। अक्टूबर 2004,’द वेरी बेस्ट ऑफ आशा भोसले’, ‘द क्वीन ऑफ बॉलीवुड’ आशा जी के द्वारा गाए गीतो का एलबम (1966-2003) रिलिज किया गया।

फिल्म जो मिल का पत्थर साबित हुई
आशा भोसले जी के गायिकी के कैरियर मे चार फिल्मे मिल का पत्थर, साबित हुई- नया दौड (1957), तीसरी मंजिल (1966), उमरॉव जान (1981) और रंगीला (1995)। नया दौर (1957):- आशा भोसले जी की पहली बड़ी सफल फिल्म बी. आर. चोपड़ा की ‘नया दौर’(1957) थी। मो. रफी के साथ गाए उनके गीत यथा ‘माँग के हाथ तुम्हारा....’, ‘साथी हाथ बढ़ाना...’ और ‘उड़े जब जब जुल्फे तेरी...’ शाहिर लुधियानवी के द्वारा लिखित और ओ. पी. नैयर द्वरा संगीतबद्ध एक खास पहचान दी। आशा जी ने ओ.पी. नैयर के साथ पहले भी काम किया था पर यह पहली फिल्म थी जिसके सारे गीत आशा जी प्रमुख अभिनेत्री के लिए गाई थी। प्रोड्यूसर बी. आर. चोपडा ने नया दौर में उनकी प्रतिभा की पहचान कर आने वाली बाद की फिल्मों मे पुन: मौका दिया। उनमे प्रमुख फिल्म- वक्त, गुमराह, हमराज, आदमी और इंसान और धुंध आदि है। तिसरी मंजिल (1966):- आशा भोसले ने राहुल देव वर्मन की ‘तीसरी मंजिल’(1966) से काफी प्रसिद्ध हुई। जब पहले उन्होने गाने की धुन सुनी तो गीत ‘आजा आजा...’ इस गीत को गाने से इनकार कर दिया था, जो वेस्टर्न डांस नम्बर पर आधारित थी। तब आर. डी. वर्मन ने संगीत को बदलने का प्रस्ताव आशा जी को दिया किंतु आशा जी ने यह चैलेंज स्वीकार करते हुए गीत गाए। 10 दिन के अभ्यास के बाद जब अंतिम तौर पर यह खास गीत आशा जी ने गाए तो खुशी के कायल आर. डी. वर्मन ने 100 रूपये के नोट आशा जी के हाथ मे रख दिए। आजा आजा.... और इस फिल्म के अन्य गीत – ओ हसीना जुल्फो वाली... और ओ मेरे सोना रे.... ये सभी गीत रफी जी के साथ तहलका मचा दिया। शम्मी कपूर इस फिल्म के नायक ने एक बार कहा था “यदि मे पास मो. रफी इस फिल्म के गीतो को गाने के लिए नही होते तो मै आशा भोसले को यह कार्य देता”। उमराव जान (1981):- रेखा अभिनित ‘उमराव जान’(1981) आशा जी ने गज़ल गाया यथा- दिल चीज क्या है।..., इन आँखों की मस्ती के..., ये क्या जगह है दोस्तों... और जुस्त जु जिसकी थी।..। इन गज़लों के संगीतकार खय्याम थे जिन्होने आशा जी से सफलतापूर्वक गज़लो को गाने के लिए स्वरों के उतार चढाव को समझाया। आशा जी स्वयं आश्चर्यचकित थी कि वह इन गज़लो को सफलतापूर्वक गाई है। इन गज़लों ने आशा जी को प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया और उनकी बहुमुखी प्रतिभा साबित हुई। रंगीला (1995):- सन 1995 मे 62 वर्षीय आशा जी ने युवा अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर के लिए फिल्म रंगीला में गाई। इन्होने फिर अपने चाहनेवालों को आश्चर्यचकित कर दिया। सुपर हिट गीत यथा- तन्हा तन्हा... और रंगीला रे... गीत ए. आर. रहमान के संगीत निर्देशन मे गाई जो काफी प्रसिद्ध हुआ। बाद मे कई अन्य गीतों को ए. आर. रहमान के निर्देशन में गाई। तन्हा तन्हा... गीत काफी प्रसिद्ध हुआ और आज भी लोग गुनगुनाते है।


आशा की आवाज में विशेषता है उन्होंने शास्त्रीय संगीत, कव्वाली, भजन, गजल और पॉप संगीत हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है। हिंदी के अलावा आशाजी ने अन्य 20 भारतीय और विदेशी भाषाओ में भी गाने गाय है। आशाजी ने 2006 में कहा की उन्होंने अब तक 12,000 गाने गाए है। 2011 में आशाजी को सबसे ज्यादा गाने रिकॉर्ड करने के लिए गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने चुना। भारतीय सरकार द्वारा आशाजी को सन 2000 मे “दादा साहेब फाल्के अवार्ड” और 2008 में “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया। 2013 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म “माई” अभिनेत्री के रूप में की थी और उनकी इस फिल्म के किरदार के लिए काफी प्रशंसा की गयी थी।

आशा भोसले का जन्म महाराष्ट्र 8 सितम्बर 1933 में ‘सांगली’ में मराठा समाज के घर हुआ है। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर एक एक्टर और क्लासिकल गायक थे। आशा जी जब केवल 9 वर्ष की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। फिर उनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और उसके बाद मुंबई आ गया। परिवार की सहायता के लिए आशा और इनकी बड़ी बहन लता मंगेसकर ने गाना और फिल्मों मे अभिनय शुरू कर दिया। 1943 में उन्होने अपनी पहली मराठी फिल्म ‘माझा बाळ’ में “चला चला नाव बाळा” गीत गाया जिसे दत्ता दवाजेकर के द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। उन्होंने 1948 में अपनी पहली हिन्दी फिल्म ‘चुनरिया’ का गीत ‘सावन आया…’ हंसराज बहल के लिए गाया। उन्होंने 1949 में अपना पहला हिंदी सोलो (Solo) गाना “रात की रानी” फिल्म में गाया।
निजी एलबम संपादित करें

8 सितम्बर 1987 आशा जी के जन्म दिवस पर “दिल पड़ोसी है” नामक एलबम, गुलजार द्वारा रचित और आर.डी.वर्मन द्वारा संगीतबद्ध जारी किया गया। आशा जी उस्ताद अली अकबर खान से 1995 में विशेष रूप से मिली, बाद मे आशा जी ने उस्ताद अली अकबर खान के साथ ग्यारह बंदिसे रिकार्ड की ’कैलीफिर्निया मे’। जो ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित हुआ। 1990 मे आर.डी.वर्मन द्वारा संगीतबद्ध गीतो को आशा जी ने ‘रिमिक्स’ कर प्रयोगात्मक अनुभव किया जो कई लोगों द्वारा आलोचना का विषय बना। संगीतकार खय्याम ने भी इसकी आलोचना की। किंतु ‘राहुल और मै’ नामक एलबम काफी प्रसिद्ध रही। इंडोपॉप एलबम ‘जानम समझा करो’ लेस्ली लुईस के साथ काफी प्रसिद्ध रहा। कई पुरस्कारो सहित 1997 एम.टी.वी. एवार्ड इस खास एलबम को मिला। 2002 ई. मे अपनी एलबम ‘आप की आशा’ जो आठ गीतों वाला वीडियो एलबम था, खुद आशा जी ने संगीत तैयार किया। इसके गीत मुजरूह सुल्तांनपुरी द्वारा रचित (अंतिम रचना सुलतान पुरी द्वारा) था। 21 मई 2001 को सचिन तेन्दुलकर द्वारा मुम्बई मे एक खास पार्टी मे यह एलबम जारी किया गया।

जब पाकिस्तानी गायक अदनान सामी सिर्फ 10 वर्ष के थे तब आशा जी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। आशा जी ने अदनान सामी को गायन प्रतिभा विकसित कर आगे बढने के लिए प्रेरित किया। जब अदनान बडे हुए तब आशा जी के साथ’कभी तो नजर मिलाओ’ एलबम मे गीत गाए जो काफी प्रसिद्ध रहा। फिर ‘बरसे बादल’ नामक एलबम में भी अदनान सामी के साथ गाई। आशा जी ने कई एलबमों के लिए गज़ल गाई यथा-मीराज-ए-गज़ल, अबशहर-ए-गज़ल और कशीश। 2005 मे आशा जी ने एलबम ‘आशा’ जो चार गज़ल गायको को समर्पित था- मेंहदी हसन, गुलाम अली, फरीदा खानम और जगजीत सिंह जारी किया। इस एलबम मे आशा जी के आठ पसंदीदा गजल यथा- फरीदा खानम की ‘आज जाने की जिद ना करो..., गुलाम अली की ‘चुपके चुपके...’, ‘आवारगी...’ और ‘दिल मे एक लहर...’ जगजीत सिह की ‘आहिस्ता आहिस्ता...’, मेहदी हसन की ‘रंजीश है सही...’,’रफ्ता रफ्ता...’ और ‘मुझे तुम नजर से...’ शामिल था। इसके संगीतकार पंडित सोमेश माथुर थे जिन्होने युवाओ के ध्यान मे रखते हुए संगीत दिए। आशाजी के 60वें जन्मदिवस पर इ.एम.आई. इंडिया ने तीन कैसेट जारी किए- ‘बाबा मै बैरागन होंगी (भक्ति गीत)’, ‘द गोलडेन कलैक्सन-गज़ल (संगीतकार गुलाम अली, आर.डी.वर्मन और नजर हुसैन)’ और ‘द गोलडेन कलेक्शन- द एवर भरसाटाइल आशा भोसले’ जो 44 प्रसिद्ध गीतो का संग्रह था। 2006 मे आशा जी ने ‘आशा एण्ड फ्रैण्डस’ नामक एलबम रिकार्ड किया जिनमे युगल गीत संजय दत्त और उर्मिला मातोंडकर के साथ गाए साथ ही प्रसिद्ध क्रिकेटर ब्रेट ली के साथ आशा जी ने ‘यू आर द वन फॉर मी (हाँ मै तुम्हारी हूँ)’ गीत गाए। इन गीतो के संगीतकार समीर टण्डन थे। इसका विडियो निर्माण एस. रामचन्द्रन ने किया (जो पत्रकार से निर्देशक् बने थे)।
संगीत निर्देशको के साथ साझेदारी

ओ.पी. नैयर
संगीतकार ओ.पी. नैयर की साझेदारी ने आशा भोसले जी को एक खास पहचान दिलाया। कई लोगों ने इनकी आपसी संबंध को प्रेम संबंध मान लिया। नैयर जी पहली बार 1952 मे आशा जी से एक गीत छम छमा छम... के संगीत रिकार्डिग के समय मिलें। पहली बार इन्होने फिल्म ‘माँगू’ (1954) के लिए आशा जी को बुलाया। फिर इन्होने एक बहुत बड़ा मौका फिल्म सी.आई.डी. (1956) मे आशा जी को दिया। इस प्रकार नया दौर (1957) की सफलता ने इन दोनो की प्रसिद्धी को बढ़ाया। 1959 के बाद भावानात्मक और व्यावसायिक तौर पर आशा जी नैयर जी के साथ जुड़ी रहीं।

ओ.पी.नैयर और आशा भोसले की यादगार फिल्मे यथा- मधुबाला पर फिल्मांकित गीत ‘आईये मेहरबाँ...’ (हावड़ा ब्रिज-1958) और मुमताज पर फिल्मांकित गीत ‘ये है रेशमी जुल्फो का अंधेरा...(मेरे सनम-1965) आदि है। ओ.पी. नैयर ने कई हिट गीतों को आशा जी के साथ रिकार्ड किया यथा- नया दौर (1957), तुमसा नही देखा (1957), हावड़ा ब्रिज (1958), एक मुसाफिर एक हसीना (1962), कशमीर की कली (1964) आदि। इनकी साझेदारी की कुछ प्रसिद्ध गीत- आओ हुजुर तुमको...(किस्मत), जाईये आप कहाँ जाएगे...(मेरे सनम) आदि है। ओ.पी.नैयर की मो. रफी एवं आशा जी के साथ युगल गीत काफी प्रसिद्ध हुए। इनके द्वारा गाए कुछ प्रमुख युगल गीत ‘उडे जब जब जुल्फे तेरी...(नया दौर), मै प्यार का राही हूँ...(एक मुसाफिर एक हसीना), दिवाना हुआ बादल..., इशारो इशारो मे...(काश्मीर की कली) आदि। 5 अगस्त 1972 को दोनो में अलगाव हो गया। यह स्पष्ट नही हो पाया कि किन कारणो से दोनो मे अलगाव हुआ।

खय्याम
दूसरे संगीतकार जिन्होने आशा जी के प्रतिभा को पहचाना और इनकी साझेदारी मे आशा जी ने इनकी पहली फिल्म बीबी (1948) के लिए गाई। 1950 मे खय्याम ने कई अच्छे अनुबंध आशा जी के साथ किए यथा-फिल्म- दर्द, फिर सुबह होगी आदि। किंतु उन दोनो की साझेदारी की सबसे यादगार फिल्म- उमराव जान के गीत रहे।

रवि:- संगीत निर्देशक रवि, आशा भोसले जी को अपनी पसंदीदा गायिका मे एक मानते थे। आशा जी इनकी पहली फिल्म वचन (1955) मे गीत गाई। चन्दा मामा दूर के.... गीत रातो रात भारतीय माँ के बीच प्रसिद्ध हो गया। जब अधिकांश संगीतकार आशा जी को बी-ग्रेड गीत गाने के लिए जानते थे उन दिनो रवि ने आशा जी से भजन गाने को कहा जिनमें ‘घराना’, ‘गृहस्थी’ ‘काजल’ और ‘फुल और पत्थर’ फिल्में प्रमुख है। रवि और आशा जी ने कई प्रसिद्ध गीतो का रिकार्ड किया जिनमे किशोर कुमार के साथ गाए उनके मजेदार गीत ‘सी ए टी..कैट माने बिल्ली...(दिल्ली का ठग) आदि है। रवि द्वारा संगीतबद्ध आशा जी के प्रसिद्ध भजन ‘तोरा मन दर्पण कहलाए...’(काजल) आदि है। इनकी साझेदारी में कई प्रसिद्ध फिल्मों के गीत रिकार्ड हुए यथा- वक्त, चौदहवी का चाँद, गुमराह, बहु-बेटी, चायना टाउन, आदमी और इंसान, धुंध, हमराज और काजल आदि है। चौदहवीं के चाँद मे रवि गीता दत्त (प्रोड्यूसर गुरू दत्त की पत्नी) से गीत गवाना चाहते थे किंतु गुरू दत के जिद के कारण आशा जी ने गीत गाए जो काफी प्रसिद्ध हुए।

सचिन देव वर्मन
प्रसिद्ध संगीत निर्देशक सचिन देव वर्मन की पसंदीदा गायिका लता मंगेस्कर से 1957 से 1962 के बीच अच्छे संबंध नहीं थे। उन दिनो सचिन देव वर्मन ने आशा भोसले जी का उपयोग किया। इन दोनो की साझेदारी ने कई हिट गीत दिए यथा- फिल्म काला पानी, काला बाजार, इंसान जाग उठा, लाजवंति, सुजाता और तीन देविया (1965) आदि है। 1962 के बाद भी दोनो ने कई गीतों को रिकार्ड किया। मो. रफी और किशोर कुमार के साथ गाए युगल गीत आशा जी के काफी प्रसिद्ध रहे। अब के बरस... गीत बिमल राय की फिल्म बंदनी (1963) ने आशा जी को प्रमुख गायिका के रूप मे स्थापित किया। अभिनेत्री तनुजा पर फिल्मांकित गीत रात अकेली है।..(ज्वेल थीफ,1967) काफी प्रसिद्ध हुआ।

राहुल देव वर्मन
आशा भोसले राहुल देव वर्मन जी से उस समय पहली बार मिली जब वह दो बच्चों की माँ थी और संगीतकार राहुल देव वर्मन (पंचम) की साझेदारी मे फिल्म तीसरी मंजिल (1966) मे पहली बार लोगों का ध्यान आकर्षित कर पाई। आशा जी ने आर. डी. वर्मन के साथ कैबरे, रॉक, डिस्को, गज़ल, भारतीय शास्त्रीय संगीत और भी बहुत गीत गाए। 1970 मे आशा भोसले जी ने पंचम के साथ कई युवा गीत गाए यथा- पिया तु अब तो आ जा.....(कारवॉ-1971) हेलन पर फिल्मांकित, दम मारो दम...(हरे रामा हरे कृष्णा-1971), दुनिया में...(अपना देश-1972) चुरा लिया है तुमने...(यादों की बारात-1973) आदि है। इसके आलावा पंचम के संगीत निर्देशन मे आशा जी ने किशोर कुमार के साथ कए प्रसिद्ध युगल गीत गाए यथा- जाने जाँ ढुढता फिर रहा...(जवानी दिवानी), भली भली सी एक सूरत...(बुढा मिल गया) आदि। 1980 मे पंचम और आशा जी कई प्रसिद्ध गीतो को रिकार्ड किया। फिल्म इजाजत (1987)- मेरा कुछ सामान..., खाली हाथ शाम आयी है।.., कतरा कतरा... आदि प्रसिद्ध प्रमुख प्रसिद्ध गीतो को रिकार्ड किया। ओ मारिया...(सागर) के गीतो को भी रिकार्ड किया। गुलजार की इजाजत को आर. डी. वर्मन के संगीत निर्देशन में आशा जी को राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बेस्ट सिंगर’ प्राप्त हुआ। आर. डी. वर्मन जी ने कई हिन्दी प्रसिद्ध गीतो को बंगाली भाषा मे आशा जी के आवाज को रिकार्ड किया यथा- ‘मोहुए झुमेछे आज माऊ गो, चोखे चोखे कोथा बोले चोखे नामे बृष्टि (बंगाली रूपांतरण गीत जाने क्या बात है।..) बंसी सुने की घोरे टाका जाए, संध्या बेले तुमी आमी..., आज गुन गुन जे आमर (बंगाली रूपांतरण गीत प्यार दीवाना होता है) आदि। यह प्रसिद्ध साझेदारी विवाह मे परिणित हुई। पंचम जी के अंतिम सांसो तक यह साझेदारी चली।

जय देव
संगीत निर्देशक जयदेव, एस. डी. वर्मन के सहायक के तौर पर पहले काम करते थे बाद मे इन्होने स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन करना शुरू किया। संगीतकार जयदेव ने आशा जी के साथ कई फिल्मों के गीत रिकार्ड किए, यथा- हम दोनो (1961), मुझे जीने दो (1963), दो बुँद पानी (1971) आदि। जयदेव और आशा जी ने फिल्मी गीतों के अलावा 8 गीतों का एक खास संग्रह जिनमे गज़ल एवं कुछ अन्य गीत शामिल थे को “एन अनफॉर्गेटेबल ट्रिट” के नाम से निकला। आशा जी, जयदेव की अच्छी मित्र मानी जाती थी। 1987 मे जयदेव जी के मरणोपरांत आशा जी ने कम प्रसिद्ध गीत जो जयदेव के द्वारा संगीतबद्ध था,’सुरांजली’ नाम से निकाला।

शंकर जयकिशन
शंकर जयकिशन ने आशा जी के साथ कम काम किया, फिर भी कुछ हिट गीत रिकार्ड किए यथा- परदे में रहने दो...(शिखर-1968) इस गीत के लिए आशा जी को द्वितीय फिल्म फेयर अवार्ड मिला। आशा जी ने एक प्रसिद्ध गीत शंकर जयकिशन के लिए गाए जो किशोर कुमार के आवाज में ज्यादा प्रसिद्ध था यथा- जिन्दगी का सफर है सुहाना...(अंदाज)। जब राज कपुर का लता मंगेसकर के साथ बातचीत बंद था, तब आशा जी ने शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन मे फिल्म मेरा नाम जोकर (1970) के गीत गाए।

इलैयाराजा संपादित 
दक्षिण भारतीय संगीत निर्देशक इलैयाराजा 1980 के दौरान आशा जी के आवाज को रिकार्ड करना शुरू किया। इन दोनो की साझेदारी में फिल्म ‘मुन्दरम पइराई (1982)(या सदमा, इसकी हिन्दी रीमेक 1983में) बनी। 1980 से 1990 के बीच इन दोनो की साझेदारी बनी रही। इस खास साझेदारी की प्रसिद्ध गीत ‘सीनबागमाइ’(इनगा ओरू पट्टुकारन-1987, तमिल फिल्म) आदि है। 2000 ई. मे आशा जी ने इलैयाराजा के संगीतनिर्देशन में कमल हसन की फिल्म ‘हे राम’ के मूल गीत गाई। जन्मों की ज्वाला....(या अपर्णा की थीम गीत) को गज़ल गायक हरिहरन के साथ युगल गीत गाई।

अनु मलिक
अनु मलिक और आशा जी ने कई हिट गीत रिकार्ड किए। जिनमे इनकी संगीतबद्ध पहली फिल्म ‘सोनीमहीवाल’(1984) शामिल है। अनु मलिक के संगीत निर्देशन मे बहुत प्रसिद्ध गीतो मे ‘फिलहाल...(फिलहाल), किताबें बहुत से...(बाजीगर) आदि शामिल है। अनु मलिक के संगीत निर्देशन मे आशा जी ने चार पंक्ति ‘जब दिल मिले...(यादें) सुखबिन्दर सिह, उदित नारायण और सुनिधि चौहान के साथ गाए। आशा जी ने अनु मलिक के पिता ‘सरदार मलिक’ के लिए 1950 ई. से 1960 ई. मे गाई जिनमे प्रसिद्ध फिल्म सारंगा (1960) शामिल है।

ए. आर. रहमान
1995 फिल्म ‘रंगीला’ से आशा जी ने ए. आर. रहमान संगीत निर्देशक के साथ अपनी दुसरी पारी के शुरूआत की। इसका श्रेय ए. आर. रहमान को जाता है। चार्टबस्टर के हिट गीत तन्हा तन्हा... और रंगीला रे... से आशा जी को पुन: प्रसिद्धि मिली। रहमान और आशा जी की साझेदारी मे कई गीत रिकार्ड हुए जिनमे हिट गीत ‘मुझे रंग दे...(त्क्षक)’, राधा कैसे न जले...(लगान, युगल गीत उदित नारायण के साथ), कही आग लगे...(ताल), ओ भवरें...(दौड, युगल गीत के.जे.यशुदास), वीनीला वीनीला...(अरूवर-1999) प्रमुख है। रहमान ने एक बार कहा-“मै सोचता हूँ आशा और लता जी के कद मे जो संगीत फिट बैठ्ता है वैसा मैने तैयार किया।”

अन्य संगीत निर्देशक
मदन मोहन ने ‘झुमका गिरा रे...(मेरा साया-1966) के प्रसिद्ध गीत को आशा जी की आवाज मे रिकार्ड किया। सलिल चौधरी ने फिल्म छोटी सी बात (1975) मे जानेमन जानेमन... युगल गीत के.जे.यशुदास के साथ रिकार्ड किया। सलिल चौधरी की फिल्म जागते रहो (1956) गीत ‘ठंडी ठंडी सावन की फुहार...’ आशा जी की आवाज मे रिकार्ड किया। संगीतकार संदीप चौटा के साथ आशा जी ने ‘कमबख्त इश्क ..(एक युगल गीत सोनू निगम के साथ) फिल्म प्यार तुने क्या किया (2001) के लिए गाई जो युवाओं में काफी लोकप्रिय हुआ। आशा जी ने लक्षमीकांत-प्यारेलाल, नौशाद, रवीन्द्र् जैन, एन. दता, हेमंत कुमार के लिए गाए और साथ काम किया। बॉलीवुड के अन्य प्रसिद्ध संगीतकार के साथ भी आशा जी ने काम किया जिनमे जतिन ललित, बप्पी लाहिरी, कल्याण जी आन्नद जी, उषा खन्ना, चित्रगुप्त एवं रौशन शामिल है।
1997 मई आशा जी पहली भारतीय गायिका बनी जो ‘ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित की गई (उस्ताद अली अकबर खान के साथ एक विशेष एलबम के लिए)
आशा जी “सत्तरहवी महाराष्ट्र स्टेट अवार्ड” प्राप्त की।
भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए सन 2000 मे “दादा साहेब फाल्के अवार्ड” से सम्मानित की गई।
आशा जी को साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि से अमरावती विश्वविद्यालय एवं जलगाँव विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित किया गया।
“द फ्रिडी मरकरी अवार्ड” कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए आशा जी को इस खास पुरस्कार से सममानित किया गया।
नवम्बर 2002 मे आशा जी को “बर्मिंघम फिल्म फेस्टिवल” विशेष रूप से समर्पित किया गया।
“पद्म विभूषण” के द्वारा राष्टपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 5 मई 2008(सोमवार) को आशा जी को सम्मानित किया। यह सम्मान भारत सरकार के महत्वपूर्ण सम्मानो में एक है।

कुंभ महापर्व

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