हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में चार नवरात्रि का महोत्सव मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।इनमें अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान पूरे देश में गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त व चमत्कारीक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है।
धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्रि देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्रि का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु। जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है। नवरात्रि के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं। जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है।धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है। दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है। यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का। ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं। यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में ध्यान शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है।’नवरात्रि’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर महानवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप, उपवास का प्रतीक हैं। ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’। नौ शक्तियों से युक्त नवरात्रि कहलाते हैं। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं-
उक्तं – ‘आश्विने वा ऽथवा माघे चैत्रें वा श्रावणेऽति वा।’
अर्थात आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि तथा चैत्र में वासंतिक नवरात्रि होते हैं। माघ व श्रावण के गुप्त नवरात्रि कहलाते हैं वहीं शारदीय नवरात्रि में देवी शक्ति की पूजा व बासंतिक नवरात्रि में विष्णु पूजा की प्रधानता रहती है…।
मार्कण्डेय पुराण में शारदीय नवरात्रि का अत्यंत महत्व बतलाया गया है।
नवरात्रि में घट स्थापना, पूजन व विसर्जन के लिए प्रातःकाल समय शुभ माना जाता है। देवी शक्ति पूजन के लिए प्रातः स्नान कर पवित्र स्थल पर मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें धान्य बोए जाते हैं। फिर कलश स्थापना कर श्री गणेश, नवग्रह, लोकपाल, मातृका, वरुणदेव का पूजन किया जाता है। षष्ठी तक सभी पूजाएँ कलश पर होती हैं।
इसके बाद गणेशादि पूजन के पश्चात पुष्याह वाचन करके पूजन निमित्त संकल्प लिया जाता है। कलश पर चित्रमय दुर्गा की स्थापना करके फिर देवी का आह्वान, आसव, अर्घ्य, स्नान, वस्त्र गंध, अक्षत, पुष्प, धूप दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बूल, नीरांजन, पुष्पों आदि से नमस्कार विधि द्वारा कर पूजन पूर्ण होती है। प्रतिदिन नौ दिनों तक यम, नियम, संयम व श्रद्धा से मार्कण्डेय पुराण अंतर्गत दुर्गा सप्तशती का पाठ भक्तगण करते हैं।
‘नमो दैव्ये महादैव्ये, शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै, नियता: प्रणताः स्मताम्’॥
अष्टमी व नवमीं को कन्याओं को चरण धोकर आदर सहित पूजन कर यत्रारुचि भोजन करवाया जाता है। नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है।दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन- त्रिमूर्तिनी, चार- कल्याणी, पाँच-रोहिणी, छः- काली, सात वर्ष की कन्या चंडिका, आठ- शांभवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा, दस वर्ष की शुभद्रा स्वरूपा मानी जाती हैं।नवरात्रि में पूजन के नौ दिन विशेष महत्व के हैं। प्रतिपदा को देवी को आँवला, सुगंधित द्रव्य, द्वितीया को रेशम चोटी, तृतीया को सिंदूर-दर्पण, चतुर्थी को मधुपर्क, तिलक, काजल, पंचमी को चंदन पदार्थ, आभूषण, षष्ठी को माला, पुष्पादि अर्पित किया जाता है। सप्तमी को ग्रहमध्य पूजन, अष्टमी को उपवासपूर्वक पूजन, नवमीं को महापूजा व कुमारी पूजा का महत्व है। दशमी को पूजन के बाद दशमांश हवन, तर्पण, भार्गव व ब्राह्मण भोजन कराकर व्रत पारण किया जाता है। हवन से पूर्व महानवमी को हनुभद् ध्वजारोहण भी किया जाता है, क्योंकि हनुमानजी की विजयपताका के अर्पण बिना श्रीराम का प्रस्थान संभव नहीं। दसवें दिन विसर्जन के बाद ही नवरात्रि महापर्व पूर्ण होता है। नवरात्रि पूजन सीमातीत फलदायक कहा गया है। देवी पूजन से यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों फलों को देने वाला महापर्व है।नवरात्रि के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। देवी के भजनों के सुरों के संग गरबा नृत्य की धूम भक्तों में नव ऊर्जा, उत्साह व श्रद्धा जगाती है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्रि महापर्व भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बाँधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है।
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कैसे करें गुप्त नवरात्री में कलश स्थापना———
नवरात्र के दिनों में कहीं-कहीं पर कलश की स्थापना की जाती है एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है। मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमे गेहूं/जौ के दाने बो कर ज्वारे उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है। दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है।महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती मुर्तियाँ बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पो को अर्ध्य देवें । इन नौ दिनो में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना मिलता है इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
कन्या पूजन——-नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। अष्टमी के दिन कन्या-पूजन का महत्व है जिसमें 5, 7,9 या 11 कन्याओं को पूज कर भोजन कराया जाता है।
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माघ मास अमूमन जनवरी और फरवरी के महीने को कहा जाता है। अगली माघ गुप्त नवरात्र 09 फरवरी 2016 से लेकर 17 फरवरी 2016 तक रहेगी।
गुप्त नवरात्र पूजा विधि----
मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
जानिए गुप्त नवरात्रि का महत्त्व---
देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।
हिन्दू धर्म में नवरात्र मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तंत्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्र बेहद विशेष माने जाते हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है।
यह संधिवेला साधना और अनुष्ठान के लिए बड़ी महत्वपूर्ण और सिद्धिदायक बताई गयी है !इस नवरात्री की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं ,देवशयनी एकादसी से देवउठनी (देवप्रबोधनी )एकादसी के बीच चार माह को ऋषि परंपरा में विशेष महत्त्व प्राप्त है ! अब तो शंकराचार्य थोक के भाव में हो गए हैं, जो कभी भी कही भी अपनी चांदी की कुर्सी लिए विचरण करते रहते हैं ! पहले ऐसा नहीं होता था , आदि शंकराचार्य , आचार्य शंकर ने" चार धाम- चार मठ प्रतिष्ठित " किये एक विधि ब्यबस्था बनायी ,चातुर्मास व्रत करने की ,एक जगह रुकने की ,साधना अनुष्ठान ,स्वाध्याय ,संयम के साथ आहार संयम और सत्संग द्वारा लोकशिक्षण करने की !अब उस ब्यबस्था को चारो ओर उल्लंघित होते देखा जा सकता है !
कैसे करें गुप्त नवरात्री में कलश स्थापना———
नवरात्र के दिनों में कहीं-कहीं पर कलश की स्थापना की जाती है एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है। मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमे गेहूं/जौ के दाने बो कर ज्वारे उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है। दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है।महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती मुर्तियाँ बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पो को अर्ध्य देवें । इन नौ दिनो में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना मिलता है इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
कन्या पूजन——-नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। अष्टमी के दिन कन्या-पूजन का महत्व है जिसमें 5, 7,9 या 11 कन्याओं को पूज कर भोजन कराया जाता है।
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माघ मास अमूमन जनवरी और फरवरी के महीने को कहा जाता है। अगली माघ गुप्त नवरात्र 09 फरवरी 2016 से लेकर 17 फरवरी 2016 तक रहेगी।
गुप्त नवरात्र पूजा विधि----
मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
जानिए गुप्त नवरात्रि का महत्त्व---
देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।
हिन्दू धर्म में नवरात्र मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तंत्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्र बेहद विशेष माने जाते हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है।
यह संधिवेला साधना और अनुष्ठान के लिए बड़ी महत्वपूर्ण और सिद्धिदायक बताई गयी है !इस नवरात्री की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं ,देवशयनी एकादसी से देवउठनी (देवप्रबोधनी )एकादसी के बीच चार माह को ऋषि परंपरा में विशेष महत्त्व प्राप्त है ! अब तो शंकराचार्य थोक के भाव में हो गए हैं, जो कभी भी कही भी अपनी चांदी की कुर्सी लिए विचरण करते रहते हैं ! पहले ऐसा नहीं होता था , आदि शंकराचार्य , आचार्य शंकर ने" चार धाम- चार मठ प्रतिष्ठित " किये एक विधि ब्यबस्था बनायी ,चातुर्मास व्रत करने की ,एक जगह रुकने की ,साधना अनुष्ठान ,स्वाध्याय ,संयम के साथ आहार संयम और सत्संग द्वारा लोकशिक्षण करने की !अब उस ब्यबस्था को चारो ओर उल्लंघित होते देखा जा सकता है !
गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवियां----
गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।
जानिए इस नवरात्री में माँ शक्ति को प्रसन्न करने का प्रमुख मंत्र——-
---सर्प्रथम धूप दीप प्रसाद माता को अर्पित करें...
----रुद्राक्ष की माला से ग्यारह माला का मंत्र जप करें...
फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें...
मंत्र-ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:
और पेठे का भोग लगाएं
इन दस महाविद्याओं से पाइए मनचाही कामना—–
———————काली———————-
लम्बी आयु,बुरे ग्रहों के प्रभाव,कालसर्प,मंगलीक बाधा,अकाल मृत्यु नाश आदि के लिए देवी काली की साधना करें
हकीक की माला से मंत्र जप करें
नौ माला का जप कम से कम करें
मंत्र-क्रीं ह्रीं ह्रुं दक्षिणे कालिके स्वाहा:
———————तारा———————–
तीब्र बुद्धि रचनात्मकता उच्च शिक्षा के लिए करें माँ तारा की साधना
नीले कांच की माला से मंत्र जप करें
बारह माला का जप करें
मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुम फट
——————-त्रिपुर सुंदरी——————–
व्यक्तित्व विकास पूर्ण स्वास्थ्य और सुन्दर काया के लिए त्रिपुर सुंदरी देवी की साधना करें
रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें
दस माला मंत्र जप अवश्य करें
मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः
——————भुवनेश्वरी————————
भूमि भवन बाहन सुख के लिए भुबनेश्वरी देवी की साधना करें
स्फटिक की माला का प्रयोग करें
ग्यारह माला मंत्र जप करें
मन्त्र-ॐ ह्रीं भुबनेश्वरीयै ह्रीं नमः
——————छिन्नमस्ता———————-
रोजगार में सफलता,नौकरी पद्दोंन्ति के लिए छिन्नमस्ता देवी की साधना करें
रुद्राक्ष की माला से मंत्र जप करें
दस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचानियै ह्रीं फट स्वाहा:
—————–त्रिपुर भैरवी———————–
सुन्दर पति या पत्नी प्राप्ति,प्रेम विवाह,शीघ्र विवाह,प्रेम में सफलता के लिए त्रिपुर भैरवी देवी की साधना करें
मूंगे की माला से मंत्र जप करें
पंद्रह माला मंत्र जप करें
मंत्र-ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा:
——————धूमावती————————
तंत्र मंत्र जादू टोना बुरी नजर और भूत प्रेत आदि समस्त भयों से मुक्ति के लिए धूमावती देवी की साधना करें
मोती की माला का प्रयोग मंत्र जप में करें
नौ माला मंत्र जप करें
मंत्र-ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:
—————–बगलामुखी———————–
शत्रुनाश,कोर्ट कचहरी में विजय,प्रतियोगिता में सफलता के लिए माँ बगलामुखी की साधना करें
हल्दी की माला या पीले कांच की माला का प्रयोग करें
आठ माला मंत्र जप को उत्तम माना गया है
मन्त्र-ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:
——————-मातंगी————————-
संतान प्राप्ति,पुत्र प्राप्ति आदि के लिए मातंगी देवी की साधना करें
स्फटिक की माला से मंत्र जप करें
बारह माला मंत्र जप करें
ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:
——————-कमला————————-
अखंड धन धान्य प्राप्ति,ऋण नाश और लक्ष्मी जी की कृपा के लिए देवी कमला की साधना करें
कमलगट्टे की माला से मंत्र जप करें
दस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र-हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:
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– गुप्त नवरात्रि में सुबह या विशेष रूप से रात्रि में दिन के मुताबिक देवी के अलग-अलग स्वरूपों का ध्यान कर सामान्य पूजा सामग्री अर्पित करें।
——पूजा में लाल गंध, लाल फूल, लाल वस्त्र, आभूषण, लाल चुनरी चढ़ाकर फल या चना-गुड़ का भोग लगाएं। धूप व दीप जलाकर माता के नीचे लिखे मंत्र का नौ ही दिन कम से कम एक माला यानी 108 बार जप करना बहुत ही मंगलकारी होता है –
सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।
– —–मंत्र जप के बाद देवी की आरती करें और मंगल कामना करते हुए अपनी समस्याओं को दूर करने के लिये मन ही मन देवी से प्रार्थना करें।
यही कारण है कि व्यावहारिक उपाय के साथ धार्मिक उपायों को जोड़कर शास्त्रों में देवी उपासना के कुछ विशेष मंत्रों का स्मरण सामान्य ही नहीं गंभीर रोगों की पीड़ा को दूर करने वाला माना गया है।
——-इन रोगनाशक मंत्रों का नवरात्रि के विशेष काल में ध्यान अच्छी सेहत के लिये बहुत ही असरदार माना गया है। जानते हैं यह रोगनाशक विशेष देवी मंत्र –
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
—– धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि के अलावा हर रोज भी इस मंत्र का यथसंभव 108 बार जप तन, मन व स्थान की पवित्रता के साथ करने से संक्रामक रोग सहित सभी गंभीर बीमारियों का भी अंत होता है। घर-परिवार रोगमुक्त होता है।
इस मंत्र जप के पहले देवी की पूजा पारंपरिक पूजा सामग्रियों से जरूर करें। जिनमें गंध, फूल, वस्त्र, फल, नैवेद्य शामिल हो। इतना भी न कर पाएं तो धूप व दीप जलाकर भी इस मंत्र का ध्यान कर आरती करना भी बहुत शुभ माना गया है।
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गुप्त नवरात्रि में किए जाने वाले कुछ टोटके इस प्रकार हैं-
इस गुप्त नवरात्रि में इस उपाय से सुखी होगा दांपत्य जीवन--
पति-पत्नी एक गाड़ी के दो पहिए होते हैं। यानी एक-दूसरे के बिना वे अधूरे हैं। इसके बाद भी पति-पत्नी में विवाद होते रहते हैं। कई बार विवाद काफी बड़ भी जाते हैं। गुप्त नवरात्रि में कुछ साधारण उपाय करने से दाम्पत्य जीवन में आ रही परेशानियों को दूर किया जा सकता है। ये उपाय इस प्रकार हैं-
- यदि जीवनसाथी से अनबन होती रहती है तो गुप्त नवरात्रि में नीचे लिखे मंत्र को पढ़ते हुए 108 बार अग्नि में घी से आहुतियां दें। इससे यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा। अब नित्य सुबह उठकर पूजा के समय इस मंत्र को 21 बार पढ़ें। यदि संभव हो तो अपने जीवनसाथी से भी इस मंत्र का जप करने के लिए कहें-
सब नर करहिं परस्पर प्रीति।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।
- गुप्त नवरात्रि के दौरान यदि रोज सुबह-शाम यदि घर में शंख बजाया जाए अथवा गायत्री मंत्र का जप करें गृहक्लेश समाप्त हो जाता है।
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शत्रु शमन के लिए :---
साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदमनहींउठाएगा।
अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए :---
यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे-बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम लिखा था, उस स्थान पर अप बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें। ध्यान रहे, यहप्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो सकती है।
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मानसिक परेशानी दूर करने के लिए :----
रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा का पाठ करें ! प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल चढायें ! अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी गरीब को एक बार दान करें !
घर से पराशक्तियों को हटाने का टोटका-----
एक कांच के गिलास में पानी में नमक मिलाकर घर के नैऋत्य के कोने में रख दीजिये,और उस बल्ब के पीछे लाल रंग का एक बल्व लगा दीजिये,जब भी पानी सूख जाये तो उस गिलास को फ़िर से साफ़ करने के बाद नमक मिलाकर पानी भर दीजिये।
व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए----
व्यक्तिगत बाधा के लिए एक मुट्ठी पिसा हुआ नमक लेकर शाम को अपने सिर के ऊपर से तीन बार उतार लें और उसे दरवाजे के बाहर फेंकें। ऐसा तीन दिन लगातार करें। यदि आराम न मिले तो नमक को सिर के ऊपर वार कर शौचालय में डालकर फ्लश चला दें। निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की ग्रह स्थिति थोड़ी सी भी अनुकूल होगी तो हमें निश्चय ही इन उपायों से भरपूर लाभ मिलेगा।
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जानिए कुछ उपाय / टोटके पति-पत्नी के बीच वैमनस्यता को दूर करने हेतु :----
1. रात को सोते समय पत्नी पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति पत्नी के तकिये में कपूर की २ टिकियां रख दें। प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर उस कमरे जला दें।
पति को वश में करने के लिए :-----
1- यह प्रयोग शुक्ल में पक्ष करना चाहिए ! एक पान का पत्ता लें ! उस पर चंदन और केसर का पाऊडर मिला कर रखें ! फिर दुर्गा माता जी की फोटो के सामने बैठ कर दुर्गा स्तुति में से चँडी स्त्रोत का पाठ 43 दिन तक करें ! पाठ करने के बाद चंदन और केसर जो पान के पत्ते पर रखा था, का तिलक अपने माथे पर लगायें ! और फिर तिलक लगा कर पति के सामने जांय ! यदि पति वहां पर न हों तो उनकी फोटो के सामने जांय ! पान का पता रोज़ नया लें जो कि साबुत हो कहीं से कटा फटा न हो ! रोज़ प्रयोग किए गए पान के पत्ते को अलग किसी स्थान पर रखें ! 43 दिन के बाद उन पान के पत्तों को जल प्रवाह कर दें ! शीघ्र समस्या का समाधान होगा !
2- शनिवार की रात्रि में ७ लौंग लेकर उस पर २१ बार जिस व्यक्ति को वश में करना हो उसका नाम लेकर फूंक मारें और अगले रविवार को इनको आग में जला दें। यह प्रयोग लगातार ७ बार करने से अभीष्ट व्यक्ति का वशीकरण होता है।
3- अगर आपके पति किसी अन्य स्त्री पर आसक्त हैं और आप से लड़ाई-झगड़ा इत्यादि करते हैं। तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत कारगर है, प्रत्येक रविवार को अपने घर तथा शयनकक्ष में गूगल की धूनी दें। धूनी करने से पहले उस स्त्री का नाम लें और यह कामना करें कि आपके पति उसके चक्कर से शीघ्र ही छूट जाएं। श्रद्धा-विश्वास के साथ करने से निश्चिय ही आपको लाभ मिलेगा।
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ससुराल में सुखी रहने के लिए :----
1- कन्या अपने हाथ से हल्दी की 7 साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की तरफ फेंके, ससुराल में सुरक्षित और सुखी रहेगी।
2- सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
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जिन स्त्रियों के पति किसी अन्य स्त्री के मोहजाल में फंस गये हों या आपस में प्रेम नहीं रखते हों, लड़ाई-झगड़ा करते हों तो इस टोटके द्वारा पति को अनुकूल बनाया जा सकता है।
गुरुवार अथवा शुक्रवार की रात्रि में १२ बजे पति की चोटी (शिखा) के कुछ बाल काट लें और उसे किसी ऐसे स्थान पर रख दें जहां आपके पति की नजर न पड़े। ऐसा करने से आपके पति की बुद्धि का सुधार होगा और वह आपकी बात मानने लगेंगे। कुछ दिन बाद इन बालों को जलाकर अपने पैरों से कुचलकर बाहर फेंक दें। मासिक धर्म के समय करने से अधिक कारगर सिद्ध होगा।
पति पत्नी में कलेश दूर करने के लिए----
1. श्री गणेश जी और शक्ति की उपासना करे |
2. सोते समय पूर्व की और सिरहाना होना चाहिए |
3. चींटियों को शक्कर डालना चाहिए |
4. भोजपत्र पर लाल कलम से पति का नाम लिख कर तथा ” हं हनुमंते नमः ” का 21 बार उच्चारण करे उसे शहद में अच्छी तरह से बंद कर के घर के किसी कोने में रख दे जहाँ पर किसी की दृष्टि न पढ़े |
धीरे धीरे कलहपूर्ण वातावरण दूर होगा |
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जानिए शादी करने का अनुभूत उपाय---
---पुरुषों को विभिन्न रंगों से स्त्रियों की तस्वीरें और महिलाओं को लाल रंग से पुरुषों की तस्वीर सफ़ेद कागज पर रोजाना तीन महिने तक एक एक बनानी चाहिये।
---अगर लड़की की उम्र निकली जा रही है और सुयोग्य लड़का नहीं मिल रहा। रिश्ता बनता है फिर टूट जाता है। या फिर शादी में अनावश्यक देरी हो रही हो तो कुछ छोटे-छोटे सिद्ध टोटकों से इस दोष को दूर किया जा सकता है। ये टोटके अगर पूरे मन से विश्वास करके अपनाए जाएं तो इनका फल बहुत ही कम समय में मिल जाता है।
1. रविवार को पीले रंग के कपड़े में सात सुपारी, हल्दी की सात गांठें, गुड़ की सात डलियां, सात पीले फूल, चने की दाल (करीब 70 ग्राम), एक पीला कपड़ा (70 सेमी), सात पीले सिक्के और एक पंद्रह का यंत्र माता पार्वती का पूजन करके चालीस दिन तक घर में रखें। विवाह के निमित्त मनोकामना करें। इन चालीस दिनों के भीतर ही विवाह के आसार बनने लगेंगे।
2. लड़की को गुरुवार का व्रत करना चाहिए। उस दिन कोई पीली वस्तु का दान करे। दिन में न सोए, पूरे नियम संयम से रहे।
3. सावन के महीने में शिवजी को रोजाना बिल्व पत्र चढ़ाए। बिल्व पत्र की संख्या 108 हो तो सबसे अच्छा परिणाम मिलता है।
4. शिवजी का पूजन कर निर्माल्य का तिलक लगाए तो भी जल्दी विवाह के योग बनते हैं।
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जानिए संतान होने और नही होने की तरीका या टोटका --
पुरुष और स्त्री के दाहिने हाथ मे साफ़ मिट्टी रख कर उसके अन्दर थोडा दही और पिसी शुद्ध हल्दी रखनी चाहिये,यह काम रात को सोने से पहले करना चाहिये,सुबह अगर दोनो के हाथ में हल्दी का रंग लाल हो गया है तो संतान आने का समय है,स्त्री के हाथ में लाल है और पुरुष के हाथ में पीली है तो स्त्री के अन्दर कामवासना अधिक है,पुरुष के हाथ में लाल हो गयी है और स्त्री के हाथ में नही तो स्त्री रति सम्बन्धी कारणों से ठंडी है,और संतान पैदा करने में असमर्थ है,कुछ समय के लिये रति क्रिया को बंद कर देना चाहिये।
---चार गुरुवार को 900 ग्राम जौं चलते जल में बहाए |
---गुरुवार का व्रत भी रखना शुभ और लाभकारी होगा |
---श्री राधा कृष्णजी के मंदिर में शुक्ल पक्ष के वीरवार या जन्माष्टमी को चाँदी की बांसुरी चढाये |
---लाल या भूरी गायें को आट्टे का पेढा व पानी दे |
इन उपाय में से कोई भी उपाय मन से करने से मनोकामना पूरी होगी |
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इस गुप्त नवरात्री धन लाभ के लिए करें यह उपाय---
हिंदू पंचांग के अनुसार (माघ शुक्ल प्रतिपदा) गुप्त नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। इनकी आराधना करने से गुप्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यदि आप धन लाभ चाहते हैं तो आज से लगातार 9 दिनों तक नीचे लिखे उपाय में से कोई भी एक उपाय करें। धन लाभ होने लगेगा।
उपाय 1- पीपल के पत्ते पर राम लिखकर तथा कुछ मीठा रखकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं। इससे धन लाभ होने लगेगा। 2- भगवान शंकर को प्रतिदिन सुबह चावल तथा बिल्व पत्र चढ़ाएं। शीघ्र ही आपकी धन की इच्छा पूरी होगी।
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यदि आपके परिवार में सुख-शांति नहीं है और परिजनों में प्रतिदिन किसी न किसी बात पर विवाद होता रहता है तो गुप्त नवरात्रि में एक छोटा का उपाय कर आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं। यह उपाय इस प्रकार है-
उपाय----
यदि परिजनों के मध्य अशांति हो रही हो तो नवरात्रि के अंतिम तीन दिन इस मंत्र को स्फटिक की माला से भगवान राम और माता सीता के सम्मुख 324(तीन माला) बार जपें। इसके बाद अंतिम नवरात्र को इस मंत्र का उच्चारण करते हुए 11 बार घी से अग्नि में आहुति प्रदान करें। भगवान को खीर का भोग लगाएं। कुछ ही समय में आपके परिवार में सुख-शांति का वातावरण बन जाएगा।
मंत्र---
जब ते राम ब्याहि घर आए।
नित नव मंगल मोद बधाए।।