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जनवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सरस्वती स्तोत्र

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॥श्रीसरस्वती स्तोत्रम्॥ या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना । या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवः सदा पूजिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥१॥ दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिं स्फटिकमणिनिभैरक्षमालान्दधाना हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापेरण । भासा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥२॥ सुरासुरसेवितपादपङ्कजा करे विराजत्कमनीयपुस्तका । विरिञ्चिपत्नी कमलासनस्थिता सरस्वती नृत्यतु वाचि मे सदा ॥३॥ सरस्वती सरसिजकेसरप्रभा तपस्विनी सितकमलासनप्रिया । घनस्तनी कमलविलोललोचना मनस्विनी भवतु वरप्रसादिनी ॥४॥ सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि । विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥५॥ सरस्वति नमस्तुभ्यं सर्वदेवि नमो नमः । शान्तरूपे शशिधरे सर्वयोगे नमो नमः ॥६॥ नित्यानन्दे निराधारे निष्कलायै नमो नमः । विद्याधरे विशालाक्षि शूद्धज्ञाने नमो नमः ॥७॥ शुद्धस्फटिकरूपायै सूक्ष्मरूपे नमो नमः । शब्दब्रह्मि चतुर्हस्ते सर्वसिद्ध्यै नमो नमः ॥८॥ मुक्तालङ्कृतसर्वाङ्

सन्तान प्राप्ति उपाय

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संतान गणपति स्तोत्र नमो$स्तु गणनाथाय सिद्धी बुद्धि युताय च। सर्वप्रदाय देवाय पुत्र वृद्धि प्रदाय च।। गुरू दराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते। गेाप्याय गोपिताशेष भुवनाय चिदात्मनें।। विश्व मूलाय भव्याय विश्वसृष्टि करायते। नमो नमस्ते सत्याय सत्य पूर्णाय शुण्डिनें ।। एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम : । प्रपन्न जन पालाय प्रणतार्ति विनाशिने ।। शरणं भव देवेश सन्तति सुदृढ़ां कुरु। भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गण नायक।। ते सर्वे तव पूजार्थ विरता : स्यु : वरो मत : । पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्व सिद्धि प्रदायकम्।। श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का प्रयोग करने से सन्तान सुख की अवश्य प्राति होती है। जिन्हें कन्या रत्न है अौर पुत्र रत्न नही है तो उपरोक्त विधि से स्तोत्र का प्रयोग करनें से पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है। पुत्र प्राप्ति के लिए संकला में पुत्र संतति प्राप्तर्थे (पुत्र संतान प्राप्ति के लिए) का प्रयोग करनें से अवश्य लाभ होगा।

जगदगुरु वल्लभाचार्य

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पूरा नाम वल्लभाचार्य जन्म संवत 1530 मृत्यु संवत 1588 संतान दो पुत्र- गोपीनाथ व विट्ठलनाथ कर्म भूमि ब्रज प्रसिद्धि पुष्टिमार्ग के प्रणेता विशेष योगदान शुद्धाद्वैत के संदर्भ में वल्लभाचार्य द्वारा भागवत पर रचित सुबोधिनी टीका का महत्त्व बहुत अधिक है। नागरिकता भारतीय संबंधित लेख अद्वैतवाद, वल्लभ सम्प्रदाय, ब्रह्मसूत्र अन्य जानकारी वल्लभाचार्य ने दार्शनिक समस्याओं के समाधान में अनुमान को अनुपयुक्त मानकर शब्द प्रमाण को वरीयता दी है। वल्लभाचार्य (जन्म: संवत 1530[1] - मृत्यु: संवत 1588[2])[3] भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं। जिनका प्रादुर्भाव ईः सन 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ। उन्हें 'वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार' कहा गया है। वे वेद शास्त्र में पारंगत थे। श्री रुद्रसंप्रदाय के श्री विल्वमंगलाचार्य जी द्वारा इन्हें 'अष्टादशाक्षर गोपाल मन्त्र' की दीक्षा दी गई। त्रिदंड सन्न्यास की दीक्षा स्व

मार्मिक कहानी

 `एक पिता ने अपने तीन बेटों के लिए संपत्ति के रूप में 17 बतख छोड़ दिया है। जब पिता का निधन हो गया, उनके बेटों इच्छा खोला। पिता की इच्छा ने कहा कि ज्येष्ठ पुत्र 17 बतख के आधा मिलना चाहिए, मंझला बेटा 17 बतख के 1 / 3rd दी जानी चाहिए, सबसे छोटे बेटे 17 बतख के 1/9 वीं दी जानी चाहिए। यह 9 से 3 या 17 से आधे या 17 में 17 को विभाजित करने के लिए संभव नहीं है, बेटे एक-दूसरे के साथ लड़ने के लिए शुरू कर दिया। तो, वे एक बुद्धिमान व्यक्ति जो एक गुफा में रहता है के लिए जाने का फैसला किया। बुद्धिमान व्यक्ति होगा के बारे में धैर्य से सुनी। बुद्धिमान व्यक्ति, इस विचार देने के बाद, अपनी खुद की एक बतख लाया और 17 के लिए एक ही है कि 18 बतख के लिए कुल वृद्धि की गयी। अब, वह मृतक पिता की इच्छा पढ़ना शुरू किया। 18 = 9 का आधा। तो वह 9 बतख दिया ज्येष्ठ पुत्र है। 18 = 6 के 1 / 3rd। तो वह 6 बतख दिया मंझला बेटा है। 18 = 2 का 1/9। तो वह 2 बतख दिया सबसे छोटे बेटे को। अब इस को जोड़ें: 9 + 6 + 2 = 17 & यह 1 बतख पत्ते जो बुद्धिमान व्यक्ति को वापस ले लिया। नैतिक: बातचीत और समस्या को सुलझाने के दृ

शब्दावली

अगर आप संस्कृत पढना / या समझना चाहते है तो इस मेसेज को पढकर जरूर प्रिंट निकलवा कर अपने पुस्तककोश में सम्मान देगे। ॐ ॥ पारिवारिक नाम संस्कृत मे ...... जनक: - पिता , माता - माता पितामह: - दादा , पितामही - दादी प्रपितामह: - परदादा , प्रतितामही - परदादी मातामह: - नाना , मातामही - नानी प्रमातामह: - परनाना , प्रमातामही - परनानी वृद्धप्रतिपितामह - वृद्धपरनाना पितृव्य: - चाचा , पितृव्यपत्नी - चाची पितृप्वसृपितृस्वसा - फुआ , पितृस्वसा - फूफी पैतृष्वस्रिय: - फुफेराभाई पति: - पति , भार्या - पत्नी पुत्र: / सुत: / आत्मज: - पुत्र , स्नुषा - पुत्र वधू जामातृ - जँवाई ( दामाद ) , आत्मजा - पुत्री पौत्र: - पोता , पौत्री - पोती प्रपौत्र:,प्रपौत्री - पतोतरा दौहित्र: - पुत्री का पुत्र , दौहितत्री - पुत्री का पुत्री देवर: - देवर , यातृ,याता - देवरानी , ननांदृ,ननान्दा - ननद अनुज: - छोटाभाई , अग्रज: - बड़ा भाई भ्रातृजाया,प्रजावती - भाभी भ्रात्रिय:,भ्रातृपुत्र: - भतीजा , भ्रातृसुता - भतीजी पितृव्यपुत्र: - चचेराभाई , पितृव्यपुत्री - चचेरी बहन आवुत्त: - बहनोई , भगिनी - बहिन , स्वस्रिय:,भागिन

गुप्त रात्रि

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हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में चार नवरात्रि का महोत्सव मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।इनमें अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान पूरे देश में गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त व चमत्कारीक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है। धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्रि देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्रि का समय मौसम के बदलाव का ह

निर्वाणषटकम्

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॥ निर्वाण षटकम्॥ मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश: न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव: न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा: अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

आशा भोसले - अविश्वसनीय, अतुलनीय, अविस्मरणीय सख्सियत

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  कहते हैं कि समय का असर सभी पर होता है, लेकिन 8 सितंबर 1933 को जन्मी आशा की आवाज में आज भी वही खनक और मोहक अंदाज मौजूद है। अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है   उन्होंने अब तक के अपने फ़िल्मी सफर में 16000 गानों में अपनी आवाज दी है। वह सिर्फ हिंदी में नहीं बल्कि मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषायोँ में गाने गातीं हैं। लता मंगेशकर की छोटी बहन और दीनानाथ मंगेशकर की पुत्री आशा ने फिल्मी और गैर फिल्मी लगभग 16 हजार गाने गाये हैं और इनकी आवाज़ के प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषा के भी अनेक गीत गाए हैं। आशा भोंसले ने अपना पहला गीत वर्ष 1948 में सावन आया फिल्म चुनरिया में गाया। आशा की विशेषता है कि इन्होंने शास्त्रीय संगीत, गजल और पॉप संगीत हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है और एक समान सफलता पाई है। उन्होने आर॰ डी॰ बर्मन से शादी की थी। आशा भोसले का जन्म 8 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के ‘सांगली’ में हुआ। इनके पिता दीनानाथ मंगेसकर प्रसिद्ध गायक एवं

आशा भोसले - अविश्वसनीय, अतुलनीय, अविस्मरणीय सख्सियत

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  कहते हैं कि समय का असर सभी पर होता है, लेकिन 8 सितंबर 1933 को जन्मी आशा की आवाज में आज भी वही खनक और मोहक अंदाज मौजूद है। अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है   उन्होंने अब तक के अपने फ़िल्मी सफर में 16000 गानों में अपनी आवाज दी है। वह सिर्फ हिंदी में नहीं बल्कि मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषायोँ में गाने गातीं हैं। लता मंगेशकर की छोटी बहन और दीनानाथ मंगेशकर की पुत्री आशा ने फिल्मी और गैर फिल्मी लगभग 16 हजार गाने गाये हैं और इनकी आवाज़ के प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषा के भी अनेक गीत गाए हैं। आशा भोंसले ने अपना पहला गीत वर्ष 1948 में सावन आया फिल्म चुनरिया में गाया। आशा की विशेषता है कि इन्होंने शास्त्रीय संगीत, गजल और पॉप संगीत हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है और एक समान सफलता पाई है। उन्होने आर॰ डी॰ बर्मन से शादी की थी। आशा भोसले का जन्म 8 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के ‘सांगली’ में हुआ। इनके पिता दीनानाथ मंगेसकर प्रसिद्ध गायक एवं