शिव नाम महिमा

भगवान् श्रीकृष्ण कहते है
‘महादेव महादेव’ कहनेवाले के पीछे पीछे मै नामश्रवण के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं। जो शिव शब्द का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है, वह कोटि जन्मों के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है । शिव शब्द कल्याणवाची है और ‘कल्याण’ शब्द मुक्तिवाचक है, वह मुक्ति भगवन् शंकर से ही प्राप्त होती है, इसलिए वे शिव कहलाते है ।
धन तथा बान्धवो के नाश हो जानेके कारण शोकसागर मे मग्न हुआ मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण करके सब प्रकार के कल्याणको प्राप्त करता है । शि का अर्थ है पापोंका नाश करनेवाला और व कहते है मुक्ति देनेवाला। भगवान् शंकर मे ये दोनों गुण है इसीलिये वे शिव कहलाते है । शिव यह मङ्गलमय नाम जिसकी वाणी मे रहता है, उसके करोड़ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है । शि का अर्थ है मङ्गल और व कहते है दाता को, इसलिये जो मङ्गलदाता है वही शिव है ।
भगवान् शिव विश्वभर के मनुष्योंका सदा ‘शं’ कल्याण करते है और ‘कल्याण’ मोक्ष को कहते है । इसीसे वे शंकर कहलाते है । ब्रह्मादि देवता तथा वेद का उपदेश करनेवाले जो कोई भी संसार मे महान कहलाते हैं उन सब के देव अर्थात् उपास्य होने से वे ऋषि ‘महादेव’ कहे जाते है । अथवा महती अर्थात्  विश्वभर में पूजित जो मूल प्रकृति ईश्वरी है, उस प्रकृतिद्वारा पूजित देव ‘माहादेव’ कहलाते हैं । संसार मे स्थित सारी आत्माओ के ईश्वर (स्वामी) होनेसे वे ‘महेश्वर’ है । महादेव, महादेव इस प्रकारकी जो रट लगाता है, उसके पीछे पीछे मैं नाम श्रवणके लोभसे संतुष्ट हुआ घूमता हूँ । (ब्रह्मवैवर्तपुराण-ब्रह्मखंड)
शिवजीने मृत्यु को देखकर कहा 
इसने (पद्मपुराण में वर्णित एक प्रसंग में एक व्यक्ति ने)मरणकाल में मेरा नाम लिया है । मुझे लक्ष्य करके अथवा और किसी वस्तु के अभिप्राय से जो मेरा नाम एकाध अक्षर जोडकर अथवा घटाकर भी कहता है, उसे मैं सत्य ही अपना लोक प्रदान करता हूँ । इसने मरते समय ‘प्रहर’ शब्दका उद्धरण किया है ।
केवल हर शब्द ही परम पद का देनेवाला है । फिर इसने तो ‘प्र’ शब्द अधिक कहा है । यमराज से मेरा आदेश कह दो कि जो ‘शिव‘ नामके जपनेवाले है, उन्हें तुम नमस्कार किया करो । जो लोग शिव को नमस्कार करते हैं, उनकी पूजा करते हैं, उनके नाम गुणका कीर्तन करते हैं, उनकी उपासना करते है अथवा दास्यभाव से उनकी भक्ति करते हैं, श्रुतिमें वर्णित षडाक्षरमन्त्र  म: शिवाय का जप करते है तथा ‘शतरुद्रिय’ का अनुष्ठान करते है उनपर मेरा ही शासन है -इसमें तनिक भी विचार न करना ।
(पद्मपुराण पातालखण्ड-शिवमृत्युसंवाद)
जो गति योगियों और काशी मे शरीर छोड़नेवालों की होती है, वही गति मेरे नाम का कीर्तन करनेवालोंको प्राप्त होती है । जो मनुष्य मेरे मुक्तिदायक दायक-महेश, पिनाकपाणि, शम्भुु, गिरीश, हर, शंकर, चन्द्रमौलि, विश्वेश्वर, अन्धकरिपु, पुरसूदन इत्यादि नामोंका उच्चारण करते हुए मेरी अर्चा करते है वे धन्य है । जो नीललोहित, दिगम्बर, कृत्तिवास, श्रीकणठ, शान्त, निरुपाधिक, निर्विकार, मृत्युञ्जय, अव्यय, निधीश, गणेश्वर इत्यादि नामोंका उद्धरण करते हुए मेरी पूजा करते है वे धन्य है ।
मेरे नामरूपी अमृत का पान करनेवाले और निरन्तर मेरे चरणोंका पूजन करनेवाले तथा मेरे लिंगो का पूजन करनेवाले मेरे प्रिय भक्त पुन: माता का दूध पीने की न तो इच्छा करते है और न उन्हें फिर यह प्राप्त होता है । वे तो सारे दुखे से छूटकर मेरे लोकमें अनन्त कालतक निवास करते है । महेशरूपी नामकी दिव्य अत्तध्यासे परिप्लावित मार्गमे से होकर भी जो निकल जाते है, वे कदापि शोक को प्राप्त नहीं होते । (शिव रहस्य सप्तमांश, प्रथम अध्याय)
मत्युकाल में यदि कोई महापात की भी मेरा नाम लेता है तो उसे मैं उस नामके प्रभाव से मोक्ष दे देता हूँ । मेरे जितने नाम है उन सबमें मुक्ति देनेका स्वभाव है । मृत्युकाल मे मेरा नाम लेकर अनेक मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर चुके है । नामका माहात्मय ही ऐसा है, इसमें किसी प्रकारका आश्चर्य नहीं करना चाहिये । ‘हर’ यह नाम अनेकों पापोंको हरता है । मैं पापोंको हरनेवाला हूं, इसीलिये मुझे लोग ‘हर’ कहते है ।
श्रीविष्णु ब्रह्माजी से कहते है 
जो ‘शम्भुु, शम्मु, महेश’ इन नामोंका उच्चारण बाराबार आनन्दपूर्वक करते है, उनको गर्भवास का भय नहीं होता । ‘हे शिव ! हे परमेश !इस प्रकार आनन्दपूर्वक जो निरन्तर भगवान् शिव का नाम लेते है उन्हें गर्भमे आना नहीं पड़ता । जो प्रतिदिन आनन्दपूर्वक शंकर जी का नाम लेते है, वे धन्यवाद के पात्र हैं ,यह हम सत्य सत्य कहते है । संसार रूपी घोर सागर से तरनेके लिये शंकर नामरूप ही नौका है । इसको छोड़कर संसार सागरसे पार होनेका कोई और उपाय नहीं है । यह निर्मल शिव नाम मधुर से भी मधुर है और मुक्ति को देनेवाला तथा संसारभय का नाश करनेवाला है । (शिवहस्य ७ । २०)
पूर्वकाल में एक पापी कुष्ट रोगसे पीडित ब्रह्मण मगध देशमें रहता था । वह सदा ब्रह्महत्यादि पाप किया करता था । उस ब्राह्मणको वृद्धावस्थामें सोमवारके दिन पुत्र पैदा हुआ । उसने हर्षसे उस षुत्रका नाम ‘सोमवासर’ रख दिया । वह ब्राह्मण अपने पुत्रको बराबर हर काम में ‘ सोमवासर सोमवासर’ कहकर पुकारा करता था । एक दिन उस ब्राह्मण को सांपने काट लिया । विष की ज्वाला से पीडित होकर बार बार ‘सोमवासर सोमवासर’ पुकारते पुकारते ब्राह्मण का देहान्त हो गया । उसी समय शिव के गण एक सुन्दर विमान लाये और उसको उसमें चढाकर सब देवताओंसे पूजित कराते हुए कैलास ले गये । (शिवरहस्य ७ । २ ० )
भगवान् शिव स्वयं यमराज सेे कहते है
जो पुरुष प्रसंगवश भी मेरा नाम उत्साहपूर्वक लेगा, वह सर्वथा पापोंसे छूट जायगा, इसमें कोई संदेह नहीं है । हे यमराज ! मेरा नाम पापोंके वनको जलानेमे दावानल के समान है । मेरे एक नामका उद्धरण करते ही पापोंका समूह तुरंत नष्ट हो जाता है । मेरे नामका श्रद्धापूर्वक स्मरण करनेपर पाप कहाँ  ठहर सकते है ?क्योंकि पापोंके झुंडका नाश करनेमें तो उसे वज्रपात की उपमा दो गयी है । जिस प्रकार कालाग्नि ज्वालाओंसे करोडों पर्वत जल गये थे, उसी प्रकार मेरे नामरूपी अग्नि से करोडों महापातक नष्ट हो जाते है । मैं उस चाण्डाल को भी नि:संदेह घोर संसारसमुद्रसे तार देता हूँ, जिसका चित्त मेरे नाम स्मरणमें अनुरक्त है ।
जिसने पापोके झुंडका नाश करनेवाला मेरा नाम अन्तकाल में स्मरण कर लिया उसने छोर संसार समुद्र को चुटकीयोंमें पार कर लिया समझो । मेरे नामका स्मरण मेरे ही स्मरण के तुल्य है और मेरी स्मृति हो जानेपर पाप कहाँ ठहर सकते हैं ? हे धर्मराज ! किसी पुरुष के अंदर पाप तभीतक ठहरते है जबतक कि वह महापातको का नाश करनेवाले मेरे नामका स्मरण नहीं करता । करोडों पहापातको का नाश तभीतक नहीं होता, जबतक मन मेरे नाम स्मरणमें लीन नहीं हो जाता । इसने महापातको का नाश करनेवाले मेरे ‘सोम’ नामका स्मरण करते हुए शरीर छोडा, इसलिये इसकी मुझमें कोई संदेह ही नहीं हो सकता ।
हे यम ! मैं तुम्हरि हितकी एक बात और कहता हूँ, वह यह है कि तुम प्रतिदिन मेरे भक्तोंकी यत्नपूर्वक पूजा किया करो, क्योंकि वे मुझे सर्वदा प्यारे है । (शिव.सप्त. अ.२०)
जिनकी जिह्वा का अग्रभाग सदा भगवान् शंकर का दो अक्षरोवाला नाम (शिव) विराजमान रहता है वे धन्य हैं वे महात्मा पुरुष है तथा वे हैं कृतकृत्य है । आज भी जिन्होंने ‘शिव’ इस अविनाशी नामका उच्चारण किया है, वे निश्चय ही मनुष्य रूपमें रुद्र हैं इममें संशय नहीं है । महादेवजी थोडा सा बिल्व पत्र पाकर भी सदा संतुष्ट रहते है । फूल और जल अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते हैं ।
(स्क पु .मा .के.अ २७)
ब्रह्माजी महर्षि गौतम से कहते हैं
शिवनामरूपी मणि जिसके कण्ठ सदा विराजमान रहती है, वह नीलकण्ठका ही स्वरूप बन जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं । हे द्विजवर ! तुम नित्य शंकर का पूजन करो और शिवनामामृतका पान करो, शिवनाम से बढकर दूसरा अमृत नहीं है । मृत्युके समय ‘शिव’ ये दो अक्षर भगवान् शंकर की कृपा के बिना मनुष्यके होठोंपर नहीं आता।
शिव नाम रूपी कुल्हाडीसे संसाररूपी वृक्ष जब एक बार कट जाता है तो फिर वह दुबारा नहीं जमता। पाप ही संसाररूपी वृक्षकी जड़ोकी जड़ है और शिव नाम का  एक बार जप करनेसे ही उसका नाश हो जाता है । (शिव० ७ । २ २ )
यमराज भी गौतम जी से कहते है
महान से महान पापी भी अथवा जिसने जीवनमे कोई भी पाप न छोडा हो, वह अन्तकालमें यदि शिव नाम का उच्चारण कर ले तो वह फिर मेरा द्वार नहीं देख सकता । ‘शिव’ शब्द का उच्चारण किये बिना ब्रह्मण भी मुक्त नहीं हो सकता और ‘शिव’ शब्दका उच्चारण कर चाण्डाल भी मुक्त हो सकता है । यों तो शिवजी के सभी नाम मोक्षदायक है किंतु उन सबमें ‘शिव’ नाम सर्वश्रेष्ठ है, उसका माहात्म्य गायत्री के समान है। (शिव. ७ । २ २ )
श्रीमद्भागवत में भगवती का वाक्य है
‘शिव’ इस द्वयक्षर नामका एक बार प्रसंगवश उच्चारण करनेसे भी मनुष्यके पाप शीघ्र नष्ट हो जाते है । आश्चर्य है की आप उन पुण्यश्लोक, अलंध्यशासन भगवान शिव का विरोध  करते है । इससे बढ़कर अमङ्गल क्या हो सकता है ?
सौरपुराण (अ .६४) में लिखा है
जो बिल्ववृक्ष के नीचे बैठकर तीन रात उपोषित रहकर  पवित्रतापूर्वक शिव नामका एक लाख जप करता है, वह भ्रूणहत्या के पाप से छूट जाता है ।
जितने भी रथूल अथवा सूक्ष्म पाप है वे सारे के सारे केवल क्षणभर शिवका चिन्तन करने से तुरंत नष्ट हो जाते है ।
जल के अंदर निमग्न होकर शिव का ध्यान करते हुए प्रसन्न चित्तसे ‘हर’ इस नाम को केवल आठ बार जपनेसे मनुष्य पापोंसे छूट जाता है । महादेवका स्मरण करनेवाले यदि पापी भी हों तो उन्हें  महात्मा ही समझना चाहिये, यह मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। शिव नामका उच्चारणरण कानेवाले को नरक अथवा यमराज का भय नहीं होता ।
जो लोग भगवान् महेश्वर के नामोंका अज्ञानपूर्वक भी उच्चारण करते है भगवान् भोलेनाथ उन्हें भी मुक्ति दे डालते है इससे अधिक और क्या चाहिये है ?
(सौ पु. अ ३)
ब्रह्माजी यमदूतों से कहते है
जो बैठे हुए, सोते हुए, चलते फिरते, दिन रात ‘शिव’ नामका कीर्तन करते रहते है उनपर तुम्हारा अधिकार नहीं है । (शि पु, ध सं, अ१६)
जिसने ‘शिव’ अथवा ‘रुद्र’ अथवा ‘हर’ इन  नामोंमेंसे किसीका एक बार भी उच्चारण कर लिया वह मरने के बाद अवश्य रुद्रलोक को जाता है ।
(शिपु, ध, सं ,अ १५)
जो नमः शिवाय इस मन्त्रका उच्चारण करता है, उसका मुख देरवनेसे निश्चय ही तीर्थ दर्शन का फल प्राप्त होता है। जिसके मुख में ‘शिव’ नाम तथा शरीरपर भस्म और रुद्राक्ष रहता है, उसके दर्शनेसे ही पाप नष्ट हो जाते है । (शिवपुराण. शा. सं.अ ३०)
जो पुरुष अन्त समयमे शिवका स्मरण करता है, वह चाहे ब्रह्महत्यारा हो, चाहे शराबी हो, चोर हो अथवा गुरुस्त्रीगामी ही क्यों न हो, शिवके साथ सायुज्यको प्राप्त होता है । (सौरपुराण .अ ६६)
जो मनुष्य ज्ञानपूर्वक भगवान् शम्भु केे नामोंका कीर्तन करता है, मुक्ति सदा उसके करतलगत रहती है । (सौरपु अ ४)
जो मनुष्य प्रसंगवश, कौतूहलसे, लोभसे, भयसे अथवा अज्ञानसे भी ‘हर’ नामका उच्चारण करता है, वह सरे पापोंसे छूट जाता है । (सौरपुराण अ ७)
‘शिव’ नाम के स्मरण से कर्मोकी न्यूनता पूर्ण हो जाती है । (शिवपुराण, कै२०, अ ९ ।५६)
प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। ऋषियों ने तो यह कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना एवं एक करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है।
बेल का वृक्ष हमारे यहां संपूर्ण सिद्धियों का आश्रय स्थल है। इस वृक्ष के नीचे स्तोत्र पाठ या जप करने से उसके फल में अनंत गुना की वृद्धि के साथ ही शीघ्र सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसके फल की समिधा से लक्ष्मी का आगमन होता है। बिल्वपत्र के सेवन से कर्ण सहित अनेक रोगों का शमन होता है।
यदि साधक स्वयं बिल्वपत्र तोड़ें तो उसे ऋषि आचारेन्दु के द्वारा बताए इस मंत्र का जप करना चाहिए-
अमृतोद्भव श्री वृक्ष महादेवत्रिय सदा।
गृहणामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्।।
भगवान् सदाशिव का भक्त भगवान् को एक ही बार प्रणाम करने से अपनेको मुक्त मानता है । भगवान् भी ‘महादेव’ ऐसे नाम उद्धरण करने वाले के प्रति ऐसे दौडते हैं, जैसे वत्सला गौ अपने बछड़ेके प्रति-
महादेव महादेव महादेवेति वादिनम् ।
वत्सं गौरिव गौरीशो धावन्तमनुधावति ।।
जो पुरुष तीन बार ‘महादेव ,महादेव, महादेव’ इस तरह भगवान् का नाम उच्चारण करता है, भगवान् एक नामसे मुक्ति देकर शेष दो नामसे सदा के लिये उसके ऋणी हो जाते है-
महादेव महादेव महादेवेति यो वदेत्।
एकेन मुक्तिमाप्नोति द्वाभ्यां शम्मू ऋणी भवेत्।।

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