माँ दुर्गा को दुर्गा क्यो कहते हैं?
हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक देवी-देवता से जुड़े तथ्य हमेशा से ही रोचकता पैदा करते रहे हैं, फिर वह चाहे अपने भक्तों को वरदान देने के संदर्भ में हो या फिर किसी दुष्ट प्राणी को दंड देने की बात हो, शास्त्रों की पौराणिक कथायें हमें पल-पल अचंभित करती हैं, कथाओं के साथ ही विभिन्न देवी-देवताओं के प्राकट्य, तथा उनके नाम से जुड़ी कथायें भी बहुत रोचक हैं।
माँ दुर्गा के नाम से जुड़ी एक कथा काफी प्रचलित है, माना जाता है कि मां दुर्गा जिन्हें मां काली के नाम से भी जाना जाता है, उनका नाम एक बड़ी घटना के बाद ही दुर्गा पड़ा था, श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा के अनुसार एक दुष्ट प्राणी पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् ही देवी को दुर्गा नाम से बुलाया गया।
यह तब की बात है जब प्रह्लाद के वंश में दुर्गम नाम का एक अति भयानक, क्रूर और पराक्रमी दैत्य पैदा हुआ, इस दैत्य के जीवन का एक ही मकसद था- सभी देवी-देवताओं को पराजित कर समस्त सृष्टि पर राज करना, लेकिन जब तक महान देवता इस दुनिया में मौजूद थे, तब तक दुर्गम के लिए यह करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी था।
अपनी सूझ-बोझ से दुर्गम ने यह पता लगा लिया था, कि जब तक देवताओं के पास महान वेदों का बल है, तब तक वह उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकेगा, इसलिये उसने उन देवों को हड़पने की योजना बनायीं, उसका मानना था कि यदि यह वेद देवताओं से दूर हो जायेंगे तो वे शक्तिहीन होकर पराजित हो जायेंगे।
दुर्गम ने हिमालय पर्वत जा कर तपस्या करने का फैसला किया, वहां जाकर उसने सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या आरम्भ कर दी, यदि उसकी तपस्या से ब्रह्माजी खुश हो गये तो वे वरदान में उनसे जो चाहे वो मांग सकता था।
दुर्गम ने तपस्या शुरू की, सैकड़ों साल बीत गये लेकिन दुर्गम तपस्या में लीन रहा, उसकी कठोर तपस्या के तेज से सभी देवता अचंभित और भयभीत हो गयें, वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिरकार ऐसा कौन है? जो इतने ध्यान से तप में लीन बैठा है, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।
जहां एक तरफ सभी देवता दुर्गम के तप से हैरान-परेशान हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर ब्रह्माजी ने उसे अपना दर्शन देने का निर्णय किया, ब्रह्माजी दुर्गम के सामने प्रकट हुये उस समय भी वह अपनी तपस्या में ध्यान लगाये बैठा था, उसे यह आभास भी नहीं हुआ कि ब्रह्माजी उसके निकट खड़े हैं।
उसे समाधि में लीन देखकर ब्रह्माजी बोले- वत्स! अपने नेत्र खोलो, मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूंँ और तुम्हें मुंहमांगा वरदान देने आया हूंँ, मांगो तुम्हें क्या चाहियें, भगवान् ब्रह्माजी के वचन सुन दुर्गम ने अपने नेत्र खोले, ब्रह्माजी को अपने सामने देख उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा, उसे लगा कि अब उसकी सभी मनोकामनायें अवश्य पूर्ण होगी।
वह बोला- हे पितामह! यदि आप मेरे इस कठोर तप से प्रसन्न हैं तो मुझे सभी वेद देने की कृपा कीजिये, सब वेद मेरे अधिकार में हो जायें, वेदों के साथ ही मुझे ऐसा अतुल्य बल प्रदान किजिये जिससे कि देवता, मनुष्य, गंधर्व, यक्ष, नाग कोई भी मुझे पराजित न कर सके, दुर्गम की प्रार्थना सुनते ही ब्रह्माजी ने तथास्तु कहा और वहां से ब्रह्मलोक लौट गये।
ब्रह्माजी द्वारा दुर्गम को वरदान देते ही देवी-देवता, ऋषि-मुनि सारे वेदों को भूल गये, इतना ही नहीं, सभी स्नान, संध्या, हवन, श्राद्ध, यज्ञ एवं जप आदि वैदिक क्रियाएं नष्ट हो गयीं, सारे भूमण्डल पर भीषण हाहाकार मच गया, वातावरण ने भी अपना प्रकोप दिखाना आरंभ कर दिया, वर्षा बंद हो गई और पृथ्वी पर चारों ओर अकाल पड़ गया।
यह देख सभी देवता बहुत दुखी हुयें, केवल यही उनकी चिंता का कारण नहीं था, बल्कि शक्तिहीन हो जाने की वजह से वह दैत्यों से भी पराजित हो गये, अब हर जगह दैत्यों का राज था और देवता परेशान थे, अपनी परेशानी का हल उन्हें मिल नहीं रहा था, सभी देवताओं ने देवी भगवती से इस कठिनाई का समाधान मांगा, हिमालय पर उन्हें माँ भगवती के साक्षात दर्शन हुये।
अपने हालात से परेशान देवताओं ने माता भगवती से मदद मांगी, तब देवी ने उन्हें यह भरोसा दिया कि वे किसी भी प्रकार से सभी वेदों को दुर्गम से वापस लाएंगी और देवताओं को सौंपेगी, जिसके फलस्वरूप उन्हें उनकी शक्तियां वापस मिलेंगी, यह कहकर देवी दुर्गम को पराजित करने के लिए हिमालय से निकल पड़ीं।
दुर्गम को पहले ही देवी के आने की खबर मिल गई थी, जिसके बाद उसने दैत्यों की एक विशाल सेना खड़ी कर ली, देवी के साथ देवताओं की सेना भी थी, लेकिन फिर भी दैत्यों की सेना को नष्ट करना कठिन था, वहां पहुंचकर देवताओं और दैत्यों में भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया, दोनों ओर से भीषण शक्तियों का प्रयोग होने लगा।
लेकिन देवों के ऊपर दैत्यों की सेना भारी पड़ रही थी जिसका कारण था दुर्गम को ब्रह्माजी द्वारा मिला हुआ वरदान, इस वरदान के अनुसार देवता उसे किसी भी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे, इसलिये उस पर हो रहे वार का कोई असर ही नहीं हो रहा था, तब माँ भगवती ने अपने अंश से आठ देवियों का निर्माण किया।
यह आठ देवियां थी- कालिका, तारिणी, बगला, मातंगी, छिन्नमस्ता, तुलजा, कामाक्षी, और भैरवी, इन देवियों में माता भगवती की तरह ही अपार शक्तियां थीं, जिनसे वह दैत्यों से युद्ध करने की क्षमता रखती थीं, इन सभी देवियों को आज भी कलयुग में माना जाता है, लोग इनकी पूजा करते हैं तथा इन्हें प्रसन्न करने के लिये व्रत-उपवास भी रखते हैं।
इसके बाद माता भगवती के साथ देवियों और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ, धीरे-धीरे सभी दैत्य पराजित होने लगे, माता भगवती द्वारा प्रकट की गयीं देवियों के सामने दैत्यों की शक्तियां बेअसर होने लगीं, अंत में माता जगदम्बा के वार से दुर्गम का वध हो गया, इस तरह दुष्ट एवं पापी दैत्य दुर्गम के प्राण हर लिये गये।
दुर्गम को पराजित करने की खुशी में सभी देवतायें आकाश से माता पर फूलों की वर्षा करने लगे, माता भगवती द्वारा दुर्गम को मार कर देवताओं को वेद दिए गये, जिसके बाद उनकी सभी शक्तियां लौट आयीं, इस घटना के बाद ही दुर्गम का वध करने के कारण भगवती का नाम दुर्गा पड़ गया।
जय हो माँ भगवती!
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