#प्रश्न-- प्रेत बाधा को दूर करने का उपाय?
#उत्तर-प्रेतबाधाको दूर करनेके अनेक उपाय
हैं; जैसे-
(१) शुद्ध पवित्र होकर, सामने धूप जलाकर पवित्र
आसनपर बैठ जाय और हाथमें जलका लोटा लेकर
'नारायणकवच (श्रीमद्भागवत, स्कन्ध ६, अध्याय ८ में
आये) का पूरा पाठ करके लोटेपर फूँक मारे ।
इस तरह कम-से-कम इक्कीस पाठ करे और प्रत्येक पाठके अन्तमें
लोटेपर फूँक मारता रहे । फिर उस जलको प्रेतबाधावाले
व्यक्तिको पिला दे और कुछ जल उसके शरीरपर छिड़क दे।
(२) गीताप्रेससे प्रकाशित 'रामरक्षास्तोत्र' को उसमें दी
हुई विधिसे सिद्ध कर ले। फिर रामरक्षास्तोत्रका पाठ करते
प्रेतबाधावाले व्यक्तिको मोरपंखोंसे झाड़ा दे।
(३) शुद्ध-पवित्र होकर 'हनुमानचालीसा' के सात,
इक्कीस या एक सौ आठ बार पाठ करके जलको अभिमन्त्रित
करे। फिर उस जलको प्रेतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे।
(४) गीताके 'स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्तया
(११ । ३६)-इस श्लोकके एक सौ आठ पाठोंसे
अभिमन्त्रित जलको भूतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे।
(५) प्रेतबाधावाले व्यक्तिको भागवतका सप्ताह-
पारायण सुनाना चाहिये।
(६) प्रेतसे उसका नाम आदि पूछकर किसी शुद्ध-
पवित्र ब्राह्मणके द्वारा साङ्गोपाङ्ग विधि- विधानसे गया-श्राद्ध
कराना चाहिये।
(७) प्रेतबाधावाले व्यक्तिके पास गीता,
भागवत रख दे और उसको 'विष्णुसहस्रनाम का पाठ
हुए
रामायण,
सुनाता रहे।
(८) जिस स्थानपर श्रद्धापूर्वक साङ्गोपाङ्ग विधिसे
गायत्रीमन्त्रका पुरश्चरण, वेदोंका सस्वर पाठ, पुराणोंकी कथा
हुई हो, वहाँ प्रेतबाधावाले व्यक्तिको ले जाना चाहिये वहाँ
जाते ही प्रेत शरीरसे बाहर निकल जाता है, क्योंकि भूत-प्रेत
पवित्र स्थानोंमें नहीं जा सकते। प्रेतबाधावाले व्यक्तिको कुछ
दिन वहीं रहकर भगवन्नामका जप, हनुमानचालीसाका पाठ,
सुन्दरकाण्डका पाठ आदि करते रहना चाहिये, जिससे वह प्रेत
पुनः प्रविष्ट न हो। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो वह प्रेत बाहर
ही घूमता रहेगा और उस व्यक्तिके बाहर आते ही उसको फिर
पकड़ लेगा।
(९) सोलह कोष्ठकका 'चौंतीसा यन्त्र' सिद्ध कर
ले* । फिर मंगलवार या शनिवारके दिन अग्निमें खोपरा, घी,
जौ, तिल और सुगन्धित द्रव्योंकी १०८ आहुतियाँ दे । प्रत्येक
आहुति 'स्थाने हृषीकेश (११ । ३६)- इस श्लोकसे
डाले और प्रत्येक आहुतिके बाद चौतीसा यन्तको अग्निपर
घुमाये। इसके बाद उस यन्त्रको ताबीजमें डालकर प्रेतबाधा-
वाले व्यक्तिके गलेमें लाल या काले धागेसे पहना दे।
श्रद्धा-विश्वासपूर्वक कोई एक उपाय करनेसे प्रित-
बाधा दूर हो सकती है। इस तरहके अनुष्ठानोंमें प्रारब्धके
बलाबलका भी प्रभाव पड़ता है। अगर प्रारब्धकी अपेक्षा
अनुष्ठान बलवान् हो तो पूरा लाभ होता है अर्थात् कार्य सिद्ध
हो जाता है, परन्तु अनुष्ठानकी अपेक्षा प्रारब्ध बलवान् हो तो
थोड़ा ही लाभ होता है, पूरा लाभ नहीं होता ।
.....
#विशेष -- चौतीसा यन्त्र और उसको लिखनेकी तथा सिद्ध करनेकी विधि इस प्रकार है -
९
१६
५ ४
२
११ १४
१२
१३
१
६
३
इस यन्त्रको सफेद कागज या भोजपत्रपर अनारकी कलमसे अष्टागन्ध (सफेद चन्दन, लालल चन्दन, केसर, कुंकुम, कपूर, कस्तूरी, अगर एवं
तगर) के द्वारा लिखना चाहिये। इस यन्त्रमें एकसे लेकर सोलहतक अङ्ग आये हैं; न तो कोई अङ्क छूटा है और न ही कोई अङ्क दो बार आया
। यन्ल लिखते समय भी क्रमसे ही अड्कू लिखने चाहिये; जैसे- पहले १ लिखे, फिर २ लिखे, फिर ३ आदि ।
इस चौतीसा यन्लको सूर्यग्रहण, चन्द्रप्रहण या दीपावलीकी रात्रिको एक सौ आठ वार लिखनेसे यह सिद्ध हो जाता है। शीघ्र सिद्ध करना
हो तो शनिवारके दिन घोबी-घाटपर बैठकर उपर्युक्त प्रकारसे एक-एक यन्त्र लिखकर धोबीकी पानीसे भरी नॉंदमें डालता जाय । इस तरह एक
सौ आठ यन्त्र नॉँदमें डालनेके बाद उन सभी यन्त्रोंको नाँदमेसे निकालकर बहते हुए जलमें बहा दे। ऐसा करनेसे यन्त् सिद्ध हो जाता है यन्त्र
सिद्ध करनेके बाद भी प्रलयेक ग्रहणके समय और दीपावली-होलीकी रात्रिमें यह यन्त्र एक सौ आठ या चौंतीस वार लिखकर नदीमें बहा देना
चाहिये। [इस यन्त्रको 'चौतीसा यन्त्र' इसलिये कहा गया है कि इसको ६४ प्रकारसे गिननेपर कुल संख्या ३४ आती है यहाँ चौँतीसा यन्त्रका
है।
एक प्रकार दिया गया है। इस यन्त्रको ३८४ प्रकारसे बनाया जा सकता है।)
- डॉ0 विजय शंकर
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