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श्रीराधास्तोत्र - गणेश कृत

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*॥ श्रीराधास्तोत्रं गणेशकृतम् ॥*


श्रीगणेश उवाच ।


*तव पूजा जगन्मातर्लोकशिक्षाकरी शुभे।*

*ब्रह्मस्वरूपा भवती कृष्णवक्षःस्थलस्थिता ॥ १॥*


*यत्पादपद्ममतुतलं ध्यायन्ते ते सुदुर्लभम् ।*

*सुरा ब्रह्मेशशेषाद्या मुनीन्द्राः सनकादयः ॥ २॥*


*जिवन्मुक्ताश्च भक्ताश्च सिद्धेन्द्राः कपिलादयः ।*

*तस्य प्राणाधिदेवि त्वं प्रिया प्राणाधिका परा ॥ ३॥*


*वामाङ्गनिर्मिता राधा दक्षिणाङ्गश्च माधवः ।*

*महालक्ष्मीर्जगन्माता तव वामाङ्गनिर्मिता ॥ ४॥*


*वसोः सर्वनिवासस्य प्रसूस्त्वं परमेश्वरी ।*

*वेदानां जगतामेव मूलप्रकृतिरीश्वरी ॥ ५॥*


*सर्वाः प्राकृतिका मातः सृष्ट्यां च त्वद्विभूतयः ।*

*विश्वानि कार्यरूपाणि त्वं च कारणरूपिणी ॥ ६॥*


*प्रलये ब्रह्मणः पाते तन्निमेषो हरेरपि ।*

*आदौ राधां समुच्चार्य पश्चात् कृष्णं परात्परम् ॥ ७॥*


*स एव पण्डितो योगी गोलोकं याति लीलया ।*

*व्यतिक्रमे महापी ब्रह्महत्यां लभेद् ध्रुवम् ॥ ८॥*


*जगतां भवती माता परमात्मा पिता हरिः ।*

*पितुरेव गुरुर्माता पूज्या वन्द्या परत्परा ॥ ९॥*


*भजते देवमन्यं वा कृष्णं वा सर्वकारणम् ।*

*पुण्यक्षेत्रे महामूढो यदि निन्दा राधीकाम् ॥ १०॥*


*वंशहानिर्भवेत्तस्य दुःखशोकमिहैव च ।*

*पच्यते निरते घोरे याव द्रदिवाकरौ ॥ ११॥*


*गुरुश्च ज्ञानोद्गिरणाज्ज्ञानं स्यान्मंत्रतंत्रयोः ।*

*स च मन्त्रश्च तत्तन्त्रं भक्तिः स्याद् युवयोर्यतः ॥ १२॥*


*निशेव्य मन्त्रं देवानां जीवा जन्मनि जन्मनि ।*

*भक्ता भवन्ति दुर्गायाः पादपद्मे सुदुर्लभे ॥ १३॥*


*निषेव्य मन्त्रं शम्भोश्च जगतां कारणस्य च ।*

*तदा प्राप्नोति युवयोः पादपद्मं सुदुर्लभम् ॥ १४॥*


*युवयोः पादपद्मं च दुर्लभं प्राप्य पुण्यवान् ।*

*क्षणार्धं षोडशांशं च न हि मुञ्चति दैवतः ॥ १५॥*


*भक्त्या च युवयोर्मन्त्रं गृहीत्वा वैष्णवादपि ।*

*स्तवं वा कवचं वापि कर्ममूलनिकृन्तनम् ॥ १६॥*


*यो जपेत् परया भक्त्या पुण्यक्षेत्रे च भारते ।*

*पुरुषाणां सहस्रं च स्वात्मना सार्धमुद्धरेत् ॥ १७॥*


*गुरुमभ्यर्च्य विधिवद् वस्त्रालंकारचन्दनैः ।*

*कवचं धारयेद् यो हि विष्णुतुल्यो भवेद् ध्रुवम् ॥ १८॥*


*॥ इति श्री ब्रह्मवैवर्ते गणेशकृतं श्रीराधास्तवनं सम्पूर्णम् ॥*

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