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जुलाई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रुद्राभिषेक के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी

  सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बार

भगवान शिव का विभिन्न द्रव्यों से स्नान और उनका फल!!!!!!!

  भगवान शिव का विभिन्न द्रव्यों से स्नान और उनका फल!!!!!!! समुद्र-मंथन से उत्पन्न कालकूट विष की ज्वाला से दग्ध संसार की रक्षा के लिए भगवान शिव ने स्वयं ही उस महाविष का हथेली पर रखकर आचमन कर लिया और नीलकण्ठ कहलाए । उस विष की अग्नि को शांत करने के लिए भगवान शिव का शीतल वस्तुओं से अभिषेक किया जाता है । जैसे–कच्चा दूध, गंगाजल, पंचामृत, गुलाबजल, इक्षु रस (गन्ने का रस), चंदन मिश्रित जल, कुश-पुष्पयुक्त जल, सुवर्ण एवं रत्नयुक्त जल (रत्नोदक), नारियल का जल आदि ।  भोले-भण्डारी भगवान सदाशिव को अभिषेक अत्यन्त प्रिय है; इसीलिए कहा जाता है—अभिषेक प्रिय: शिव:’ । श्रावणमास में तो इसका महत्त्व बहुत ज्यादा है ।  विभिन्न पुराणों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न वस्तुओं से उनके स्नान व विभिन्न प्रकार के फूलों से पूजा बताई गयी है ।  वामनपुराण में वर्णित भगवान शिव के विभिन्न स्नान!!!!!!! वामन पुराण में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विविध वस्तुओं से स्नान और विभिन्न पुष्पों से पूजा करने के साथ ही उनके विभिन्न नामों का उच्चारण करने की विधि इस प्रकार बताई गयी है— ▪️गन्ने के रस से स्नान व कमलपुष्

भक्ष्य अभक्ष्य निर्णय

  भक्ष्य अभक्ष्य निर्णय   ~~~~~~~~~ प्रतिपत्सु च कुष्माण्डमभक्ष्यमर्थनाशनम्!! द्वितीयायां च वृहती भोजने न स्मरेद्धरिम्!! अभक्ष्यं च पटोलं च शत्रुवृद्धि करं परम्! तृतीयायां चतुर्थ्यां च मूलकं धन नाशनं !! कलंकारणम् चैव पँचम्यां विल्वभक्षणं! रोग वृद्धिकरं चैव नराणां ताल भक्षणं!! सप्तम्यां तथा तालं शरीरस्य च नाशनम्! नारिकेल फलं भक्ष्यमष्टम्यां वुद्धिनाशनम्!! तुम्बी नवम्यां गोमांसं दशम्यां च कलम्बिका ! एकादश्यां तथा शिम्बी द्वादश्यां पूतिका तथा!! त्र्योदश्यां च वार्ताकी भक्षणं पुत्र नाशनम्!! -------प्रतिपदा को कुष्माण्ड न खाएं!! द्वितीया की वृहती(भटकटैया) निषेध है!! तृतीया को परवल निषेध है--शत्रुओ की वृद्धि होती है!! चतुर्थी को मूली धन का नाश करने वाली है!! पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है!! षष्ठी को नीम की पत्ती ,फल या दातुन मुंह मे डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है!! सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर क्षीण होता है!! अष्टमी को नारियल खाने से वुद्धि क्षीण होती है!! नवमी को गोल लौकी त्याज्य है!! दशमी को कलम्बी का शाक त्याज्य है!! एकादशी को शिम्बी खाने से सन्तति की हानि

शास्त्र के अनुसार हाथ के नाखूनों से भी व्यक्ति के स्वभाव और जीवन के बारे मे एक जानकारी??

  शास्त्र के अनुसार हाथ के नाखूनों से भी व्यक्ति के स्वभाव और जीवन के बारे मे एक जानकारी??  "ताम्रस्निग्धोच्छिखोत्तुंग पर्वार्धोर्त्था नखा: शुभा: !  श्वेतैर्यैतित्वमस्थानै र्नखै: पीतै: सरोगता !!" अर्थात -  यदि नख(नाखून) कुछ चिकनाई और ललाई लिये हुए हों, अंगुली के अग्रभाग से कुछ आगे बढ़े हुए, अंगुली के पर्व की लम्बाई से आधे, कुछ ऊँचे नाखून हों, तो शुभ लक्षण है !  "कूर्मोन्नतेंगुष्ठनखे नर: स्याद् भाग्यवर्जिता: !" अर्थात: यदि अंगूठे का नाखून कछुए की पीठ की तरह उन्नत हो - ऊपर उठा हुआ हो, तो मनुष्य भाग्यहीन होता है ! स्त्री के नाखूनो के संदर्भ में 'भविष्य पुराण' में वर्णित है - "बन्धु जीवारूणैस्तुंगैर्नखैरैश्वर्य माप्नुयात् !  खरैर्वक्त्रैर्विवर्णाभै: श्वेत पीतैरनीशताम् !!" अर्थात: यदि नख बन्धूक पुष्प की तरह लाल, कुछ ऊँचाई लिए हुए हों, तो ऐसी स्त्री ऐश्वर्यशालिनी होती है !  'गर्ग संहिता' के अनुसार नाखून लाल, चमकीले, चिकने तथा उठे हुए हों, तो व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है ! 'गरूड़ पुराण' के अनुसार नाखूनो का रंग

सोम प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि

  सोम प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि  〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए। यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत की महत्ता 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दा

रजस्वला_स्त्री_के_लिए_त्याज्य_कर्म

   रजस्वला_स्त्री_के_लिए_त्याज्य_कर्म ~ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन न सम्भाष्या रजस्वला ।   प्रथमेऽहनि चाण्डाली यथा वर्ज्या तथाङ्गना ।।   द्वितीयेऽहनि विप्रा हि यथा वै ब्रह्मघातनी ।   तृतीयेऽह्नि तदर्धेन चतुर्थेऽहनि सुव्रताः ।।                    पहले दिन रजस्वला स्त्री चाण्डाली की भाँति वर्ज्य होती है -- हे विप्रो ! दूसरे दिन वह ब्रह्मघातनी के समान होती है और तीसरे दिन उसके आधे पाप से युक्त रहती है ---               चौथे दिन स्नान करके वह आधे महीने तक देवपूजन आदि के लिए शुद्ध रहती है---                पाँचवे दिन से सोलहवें दिन तक रजोदोष रहने के कारण स्त्री स्पर्श आदि की शुद्धि मूत्रोत्सर्ग की शुद्धि की तरह कही गई है -- इसके बाद ही वह पूर्ण शुद्ध होती है ----  स्नानं शौचं तथा गानं रोदनं हसनं तथा ।   यानमभ्यञ्जनं नारी द्यूतं चैवानुलेपनम् ।।   दिवास्वप्नं विशेषेण तथा वै दन्तधावनम् ।   मैथुनं मानसं वापि वाचिकं देवतार्चनम् ।।                 रजस्वला स्त्री को स्नान - शौच - गायन - रोदन - हास - परिहास - यात्रा करना - अभ्यंग - द्यूत - अनुलेपन - विशेष रूप से दिन में शयन - दन्तधावन -

पूजा से पहले शौच और आचमन करना क्यों जरूरी??

  पूजा से पहले शौच और आचमन करना क्यों जरूरी??????? 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ * सकल सौच करि राम नहावा। सुचि सुजान बट छीर मगावा॥ अनुज सहित सिर जटा बनाए। देखि सुमंत्र नयन जल छाए॥ भावार्थ:-शौच के सब कार्य करके (नित्य) पवित्र और सुजान श्री रामचन्द्रजी ने स्नान किया। फिर बड़ का दूध मँगाया और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित उस दूध से सिर पर जटाएँ बनाईं। यह देखकर सुमंत्रजी के नेत्रों में जल छा गया॥ संध्या वंदन के समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। संधिकाल में ही संध्या वंदन किया जाता है। वेदज्ञ और ईश्‍वरपरायण लोग इस समय प्रार्थना करते हैं। ज्ञानीजन इस समय ध्‍यान करते हैं। भक्तजन कीर्तन करते हैं।   पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष इस समय पूजा या आरती करते हैं। तब सिद्ध हुआ की संध्योपासना या हिन्दू प्रार्थना के चार प्रकार हो गए हैं- (1)प्रार्थना-स्तुति, (2)ध्यान-साधना, (3)कीर्तन-भजन और (4)पूजा-आरती। व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है।    भारतीय परंपरा में पूजा, प्रार्थना और दर्शन से पहले शौच और आचमन करने का विधान