सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भगवान शिव का विभिन्न द्रव्यों से स्नान और उनका फल!!!!!!!

 भगवान शिव का विभिन्न द्रव्यों से स्नान और उनका फल!!!!!!!


समुद्र-मंथन से उत्पन्न कालकूट विष की ज्वाला से दग्ध संसार की रक्षा के लिए भगवान शिव ने स्वयं ही उस महाविष का हथेली पर रखकर आचमन कर लिया और नीलकण्ठ कहलाए । उस विष की अग्नि को शांत करने के लिए भगवान शिव का शीतल वस्तुओं से अभिषेक किया जाता है । जैसे–कच्चा दूध, गंगाजल, पंचामृत, गुलाबजल, इक्षु रस (गन्ने का रस), चंदन मिश्रित जल, कुश-पुष्पयुक्त जल, सुवर्ण एवं रत्नयुक्त जल (रत्नोदक), नारियल का जल आदि । 


भोले-भण्डारी भगवान सदाशिव को अभिषेक अत्यन्त प्रिय है; इसीलिए कहा जाता है—अभिषेक प्रिय: शिव:’ । श्रावणमास में तो इसका महत्त्व बहुत ज्यादा है । 


विभिन्न पुराणों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न वस्तुओं से उनके स्नान व विभिन्न प्रकार के फूलों से पूजा बताई गयी है । 

वामनपुराण में वर्णित भगवान शिव के विभिन्न स्नान!!!!!!!


वामन पुराण में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विविध वस्तुओं से स्नान और विभिन्न पुष्पों से पूजा करने के साथ ही उनके विभिन्न नामों का उच्चारण करने की विधि इस प्रकार बताई गयी है—


▪️गन्ने के रस से स्नान व कमलपुष्पों से पूजन करने पर विरुपाक्ष (त्रिनेत्र) शिव प्रसन्न हों ।


▪️दूध से स्नान और कनेर के फूलों से पूजा करने पर शिव प्रसन्न हों ।


▪️दधि से स्नान व कनेर के फूलों से पूजा से शर्व प्रसन्न हों ।


▪️घृत से स्नान व तगर के फूलों से पूजा से त्र्यम्बक प्रसन्न हों ।


▪️कुश के जल से स्नान व कस्तूरी से पूजा करने पर महादेव उमापति प्रसन्न हों।


▪️पंचगव्य से स्नान और कुन्द के फूलों से पूजा करने पर रुद्र प्रसन्न हों ।


▪️गूलर के फल के जल से स्नान व मदार के फूलों से पूजा से नाट्येश्वर शिव प्रसन्न हों ।


▪️सुगन्धित फूलों के जल से स्नान व आम की मंजरियों से पूजा करने पर कालघ्न शिव प्रसन्न हों ।


▪️आंवले के जल से स्नान व मदार के फूलों से पूजा से पूषा के दांत तोड़ने वाले भगनेत्रघ्न शिव प्रसन्न हों ।


▪️बिल्व के जल से स्नान व धतूरे के उजले फूलों से पूजा करने से दक्ष-यज्ञ का विनाश करने वाले शिव प्रसन्न हों ।


▪️जटामासी के जल से स्नान व बिल्वपत्र व फल सहित पूजा से गंगाधर प्रसन्न हों ।


▪️धतूरे के पुष्पों से शंकर की पूजा करने से विरुपाक्ष (त्रिनेत्र) प्रसन्न हों ।


नारद-विष्णु पुराण में वर्णित शिव के विभिन्न स्नान!!!!!!!


नारद-विष्णु पुराण के अनुसार—


▪️जो मनुष्य कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और सोमवार के दिन भगवान शंकर को दूध से नहलाता है, वह शिव सायुज्य प्राप्त कर लेता है ।


▪️अष्टमी अथवा सोमवार को जो मनुष्य नारियल के जल से भगवान शिव को स्नान कराता है, वह शिव-सायुज्य प्राप्त करता है ।


▪️शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को घी और शहद से भगवान शिव को स्नान कराने से मनुष्य उनका सारुप्य प्राप्त कर लेता है ।


▪️तिल के तेल से भगवान शिव को स्नान कराकर मनुष्य सात पीढ़ियों के साथ उनका सारुप्य प्राप्त कर लेता है ।


▪️जो मनुष्य भगवान शिव को ईख के रस के स्नान कराता है, वह सात पीढ़ियों तक शिव लोक में निवास करता है ।


▪️साथ ही आक के फूलों से शिव पूजन करके मनुष्य उनका सालोक्य प्राप्त करता है और गुग्गुल धूप दिखाने से पापों से छूट जाता है ।


▪️भगवान शिव के समक्ष तिल के तेल से दीपदान करने पर मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है । घी के दीपदान करने से मनुष्य पापों से मुक्त होकर गंगास्नान का फल प्राप्त करता है ।


भगवान शिव सबके एकमात्र मूल हैं, उनकी पूजा ही सबसे बढ़कर है; क्योंकि मूल के सींचे जाने पर शाखा रूपी समस्त देवता स्वत: तृप्त हो जाते हैं । भगवान शिव के विधिवत् पूजन से जीवन में कभी दु:ख की अनुभूति नहीं होती है । अनिष्टकारक दुर्योगों में शिवलिंग के अभिषेक से भगवान आशुतोष की प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है, सभी ग्रहजन्य बाधाएं शान्त हो जाती हैं, अपमृत्यु भाग जाती है और सभी प्रकार के सुखभोग प्राप्त हो जाते हैं । शिवलिंग के अर्चन से मनुष्य को भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

शिव नाम महिमा

भगवान् श्रीकृष्ण कहते है ‘महादेव महादेव’ कहनेवाले के पीछे पीछे मै नामश्रवण के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं। जो शिव शब्द का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है, वह कोटि जन्मों के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है । शिव शब्द कल्याणवाची है और ‘कल्याण’ शब्द मुक्तिवाचक है, वह मुक्ति भगवन् शंकर से ही प्राप्त होती है, इसलिए वे शिव कहलाते है । धन तथा बान्धवो के नाश हो जानेके कारण शोकसागर मे मग्न हुआ मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण करके सब प्रकार के कल्याणको प्राप्त करता है । शि का अर्थ है पापोंका नाश करनेवाला और व कहते है मुक्ति देनेवाला। भगवान् शंकर मे ये दोनों गुण है इसीलिये वे शिव कहलाते है । शिव यह मङ्गलमय नाम जिसकी वाणी मे रहता है, उसके करोड़ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है । शि का अर्थ है मङ्गल और व कहते है दाता को, इसलिये जो मङ्गलदाता है वही शिव है । भगवान् शिव विश्वभर के मनुष्योंका सदा ‘शं’ कल्याण करते है और ‘कल्याण’ मोक्ष को कहते है । इसीसे वे शंकर कहलाते है । ब्रह्मादि देवता तथा वेद का उपदेश करनेवाले जो कोई भी संसार मे महान कहलाते हैं उन सब के देव अर्थात् उपास्य होने...

श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्

              __श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्__ शिव महिम्न: स्तोत्रम शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है| ४३ क्षन्दो के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है| स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी | कथा कुछ इस प्रकार के है … एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था| वो परं शिव भक्त था| उसने एक अद्भुत सुंदर बागा का निर्माण करवाया| जिसमे विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे| प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे | फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था| उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया| मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया| अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए | पर ये तो आरम्भ मात्र था … बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्यक दिन पुष्प की चोरी करने लगा| इस रहश्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे| पुष्पदंत अपने दिव्या शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा | और फिर … राजा च...